Category Archives: अर्थनीति : राष्‍ट्रीय-अन्‍तर्राष्‍ट्रीय

सक्षम आँगनवाड़ी और पोषण 2.0 का अक्षम और कुपोषित बजट

नयी शिक्षा नीति 2020 के तहत शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा देने की स्कीम में आँगनवाड़ीकर्मियों के श्रम की लूट का भी हिस्सा है। ‘पोषण भी – पढ़ाई भी’ योजना मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में ही शुरू कर दिया गया था। इसके अनुसार आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को अब औपचारिक प्राथमिक शिक्षा का भार उठाना पड़ेगा। ज़ाहिरा तौर पर कार्यकर्ताओं का बोझ बढ़ेगा, मानदेय नहीं! एक रिपोर्ट के अनुसार जुलाई 2023 में पोषण ट्रैकर ऐप से जुटाया गया आँकड़ा यह बताता है कि महराष्ट्र, ओड़ीसा, राजस्थान और तेलंगाना में लाभार्थी और आँगनवाड़ी कार्यकर्ता का अनुपात क्रमशः 67.7, 55.4, 75.6 और 64.5 है। आबादी की ज़रूरत के अनुसार नये केन्द्र खोले जाने, खाली पड़े पदों की भर्ती इत्यादि पर महिला एवं बाल विकास मन्त्रालय का कोई ठोस कार्यक्रम नहीं है।

हिण्डेनबर्ग की दूसरी रिपोर्ट में सट्टा बाज़ार विनियामक सेबी कटघरे में – वित्तीय पूँजी की परजीवी दुनिया की ग़लाज़त की एक और सच्चाई उजागर

वित्तीय पूँजी के आवारा, परजीवी और मानवद्रोही चरित्र पर पर्दा डालने के लिए सेबी जैसे विनियामक संस्थाओं को बनाया जाता है और उन्हें स्वायत्त व निष्पक्ष संस्थाओं के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। लेकिन हिण्डेनबर्ग रिपोर्ट से यह दिन के उजाले की तरह साफ़ हो गया है कि ऐसी संस्थाओं की स्वायत्तता और निष्पक्षता एक छलावा है। ऐसी संस्थाएँ बनायी ही इसलिए जाती हैं कि तमाम लूट-खसोट और घोटालों के बावजूद लोगों का भरोसा पूँजी की इस मानवद्रोही दुनिया में बना रहे और निष्पक्षता और स्वायत्तता का ढोग-पाखण्ड करके लोगों की आँख में धूल झोंकी जाती रहे।

अडानी जी का मोदी जी से भ्रष्टाचार-विहीन प्रेम!

माधवी जी का अडानी जी से; अडानी जी का मोदी जी से जो रिश्ता है, वह क्या कहलाता है? ये सब प्यार के रिश्ते ही तो हैं! मोदी जी ‘प्यार बाँटते चलो’ में यक़ीन रखते हैं! अडानी ने उन्हें थोड़ा प्यार दिया और मोदी जी ने इस प्यार के लिए पूरा देश उनपर न्यौछावर कर दिया! मोदी जी को प्यार सिर्फ़ अडानी ही नहीं बल्कि अम्बानी से लेकर टाटा-बिड़ला-हिन्दुजा जैसे सब बड़े लोग करते हैं। बदले में मोदी जी भी सबका ख़्याल रखते हैं, बोलते हैं: “जितना खाना है खाओ, मैं बैठा हूँ।” आप इस प्रेम से प्रेम करें! अगर आप नहीं करते, तो आप कैसे देशद्रोही, विदेशपरस्त और सिक्युलर व्यक्ति हैं? प्रेम से प्रेम करने पर प्रेम बढ़ता है! इसलिए यह बात समझ लें कि राष्ट्र अडानी जी, अम्बानी जी, टाटा जी, बिड़ला जी आदि की तिजोरियों में निवास करता है! उनकी लक्ष्मी ही राष्ट्र है, वही धर्म है, वही नैतिकता है, वही सबकुछ है! अब मोदी जी ठहरे पक्के राष्ट्रवादी और धर्मध्वजाधारी! तो वे राष्ट्रसेवा और धर्मसेवा नहीं करेंगे, तो क्या करेंगे?

विकास के खोखले दावों की पोल खोलते गिरते पुल, जलभराव, टूटी सड़कें!

हमसे ही वसूले गये टैक्स के पैसे को सरकार इन पब्लिक सेक्टर के कामों में लगाती है। इसका ठेका प्राईवेट कॉन्ट्रैक्टर व कम्पनियों को दिया जाता है और जो भाजपा को अधिक चन्दा देता है, इन कामों का ठेका उन्हें दे दिया जाता है। आपको याद ही होगा पिछले साल उत्तराखण्ड में जिस सुरंग के ढहने से मज़दूर फँस गये थे, उस सुरंग का निर्माण करने वाली कम्पनी नवयुग इन्जीनियरिंग ने भाजपा को 55 करोड़ का चन्दा दिया था। इससे पहले भी यह कम्पनी ज़मीन अधिग्रहण और प्रोजेक्ट तैयार करने को लेकर भी विवाद में लिप्त थी, पर भाजपा ने इनको धन्धा देकर अपना धर्म निभाया। ऐसे में सरकार द्वारा जारी तमाम टेण्डरों में भ्रष्टाचार होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

सामाजिक-आर्थिक विषमता दूर करने के कांग्रेस के ढपोरशंखी वायदे और मोदी की बौखलाहट

जनता से किये गये बड़े-बड़े ढपोरशंखी वायदे भारतीय बुर्जुआ चुनावी राजनीति और सम्‍भवत: किसी हद तक हर देश में पूँजीवादी राजनीति की चारित्रिक विशेषता है। लेकिन भारत में तो यह ग़ज़ब तरीके से होता है। पंचायत चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक में हर प्रत्याशी अपने प्रतिद्वन्दी से बढ़कर ही वायदे करता है, चाहे उसका सत्य से कोई लेना-देना हो या न हो। 18वीं लोकसभा के चुनाव में भी इसी परिपाटी का पालन हो रहा है। मज़ेदार बात है कि ऐसे वायदे सत्तासीन पार्टी की तरफ़ से नहीं बल्कि विपक्ष की तरफ़ से ज़्यादा हो रहे हैं। सत्‍तासीन पार्टी के पास तो 10 साल के कुशासन के बाद किसी ठोस मुद्दे पर कोई ठोस वायदा करने की स्थिति ही नहीं बची है, तो मोदी सरकार बस साम्‍प्रदायिक उन्‍माद फैलाने वाले झूठ और ग़लतबयानियों का सहारा ले रही है। लेकिन ‘इण्डिया’ गठबन्‍धन ठोस मुद्दों पर बात अवश्‍य कर रहा है। लेकिन वायदे ऐसे कर रहा है, जो भारतीय पूँजीवाद की आर्थिक सेहत को देखते हुए व्‍यावहारिक नहीं लगते।

‘भगतसिंह जनअधिकार यात्रा’ का दूसरा चरण : समाहार रपट

3 मार्च को दिल्ली में यात्रा के समापन के तौर पर होने वाले विशाल प्रदर्शन को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस ने एड़ी-चोटी का पसीना एक कर दिया, बवाना औद्योगिक क्षेत्र में यात्रा के समर्थन में हुई हड़ताल को कुचलने के लिए गिरफ्तारियाँ और हिरासत में यातना तक का सहारा लिया, जन्तर-मन्तर से कई लहरों में हज़ारों लोगों को बार-बार हिरासत में लिया और शहर में जगह-जगह जत्थों में आ रहे मज़दूरों, मेहनतकशों, छात्रों-युवाओं को रोकने की कोशिश की और जन्तर-मन्तर पर कई दफ़ा लाठी चार्ज तक किया। लेकिन इससे भी वह प्रदर्शन को रोकने में कामयाब नहीं हो पायी। जन्तर-मन्तर पर तो बार-बार प्रदर्शन हुए ही, दिल्ली के करीब आधा दर्जन पुलिस थानों में भी प्रदर्शन होते रहे। प्रदर्शन का सन्देश सीमित होने के बजाय पूरे शहर में और भी ज़्यादा व्यापकता के साथ फैला।

भीषण आर्थिक व राजनीतिक संकट से जूझता बंगलादेश लेकिन क्रान्तिकारी विकल्प की ग़ैर-मौजूदगी में शासक वर्ग का दबदबा क़ायम

आने वाले दिनों में बंगलादेश में आर्थिक संकट और गहराने ही वाला है क्योंकि चालू खाते का घाटा बढ़ता जा रहा है और भुगतान सन्तुलन की हालत खस्ता है। पूँजीपतियों द्वारा क़र्ज़ों की अदायगी न करने की सूरत में बैंकिंग क्षेत्र का संकट भी और बढ़ने वाला ही है। विश्व बाज़ार में उछाल की सम्भावना कम होने की वजह से निर्यात पर टिकी अर्थव्यवस्था के सामने संकट से उबरने की वस्तुगत सीमाएँ हैं। ऐसे में लोगों के जीवन में बेहतरी और उनकी आमदनी बढ़ने की कोई सम्भावना नहीं दिखती है। इस गहराते आर्थिक संकट की अभिव्यक्ति राजनीतिक संकट के गहराने के रूप में सामने आयेगी क्योंकि सत्ता में बने रहने के लिए और जन आक्रोश को कुचलने के लिए शेख़ हसीना की अवामी लीग सरकार का दमनतंत्र ज़्यादा से ज़्यादा निरंकुश होता जायेगा।

चुनाव नज़दीक आते ही मोदी सरकार द्वारा रसोई गैस की क़ीमत घटाने के मायने

मोदी सरकार के नौ सालों में जनता ने कमरतोड़ महँगाई का सामना किया है। बढ़ती क़ीमतों ने देश की मेहनतकश आबादी का जीना दूभर कर दिया है। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आ रहे हैं मोदी सरकार द्वारा जनता का “हितैषी” बनने का ढोंग शुरू हो गया है। पिछले नौ सालों में जनता के मुद्दों के हर मोर्चे पर बुरी तरह विफल रहने के बाद, फ़ासीवादी मोदी सरकार को 2024 के लोकसभा चुनाव में हार का भूत अभी से डराने लगा है। इसका ताज़ा उदाहरण अभी मोदी सरकार द्वारा 2024 के चुनाव से ठीक पहले रसोई गैस की क़ीमत में दो सौ रूपए की “कटौती” करना है।

कब तक अमीरों की अय्याशी का बोझ हम मज़दूर-मेहनतकश उठायेंगे!

जी-20 शिखर सम्मेलन से ठीक पहले दिल्ली में हरे रंग के पर्दे और फ्लेक्स को झुग्गी-झोपड़ियों के सामने लगा दिया गया ताकि भारत की ग़रीबी पर पर्दा डाला जा सके। लेकिन जी-20 के लिए दिल्ली में जो ‘सौंदर्यीकरण’ का अभियान चला, उसके तहत ये सब होना केवल एक ही पहलू है जिससे झुग्गी में रहने वाले लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। मोदी सरकार ने जी-20 के नाम पर ग़रीबों के ख़िलाफ़ खुलकर काम किया। दिल्ली में ही कई सारी झुग्गी बस्तियों को तोड़ दिया गया। इस दौरान धौला कुआँ, मूलचन्द बस्ती, यमुना बढ़ क्षेत्र के आस-पास की झुग्गियों, महरौली, तुगलकाबाद के इलाक़े में झुग्गियों को तोड़ा गया। इससे क़रीब 2 लाख 61 हज़ार लोग प्रभावित हुए। साथ ही जिन झुग्गियों को तोड़ नहीं पाये, उन्हें हरे पर्दे से ढक दिया गया, ताकि जी-20 के प्रतिनिधियों को भारत की ग़रीबी न दिखे।

 मोदी सरकार के घोटालों की पोल खोलती नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की हालिया रिपोर्ट

एक के बाद एक ऐसे घोटालों के सामने आने के बाद भी मोदी राज में बेलगाम होते भ्रष्टाचार पर गोदी मीडिया चूँ तक नहीं कर रहा है। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी आज भी ख़ुद को पाक-साफ़ और देशभक्त बताने में जी जान से जुटे हैं। कैग की रिपोर्ट इनकी कथनी और करनी के दोमुँहेपन को लोगों के सामने लाता है।