केन्द्रीय बजट 2025
मनरेगा मज़दूरों के साथ एक बार फ़िर से छल करती मोदी सरकार

अजय

मोदी सरकार की तरफ़ से वित्त मन्त्री सीतारमण ने केन्द्रीय बजट पेश किया। इस बजट में एक बार फ़िर मनरेगा मज़दूरों को दरकिनार किया गया। केन्द्र सरकार ने इस बार के मनरेगा बजट में भी पिछली बार जितनी ही राशि आवंटित की है, उसमें कोई बढ़ोतरी नहीं की है। केन्द्र सरकार ने बजट में मनरेगा के लिए केवल 86,000 करोड़ रुपये आवंटित किया है। किन्तु बीते साल भर में बढ़ी महँगाई के लिहाज़ से देखें तो यह बजट पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में प्रभावी रूप से 4000 करोड़ रुपये कम है। मतलब पिछले वित्तीय वर्ष 2024-25 में जो बजट आवण्टित था इस बार भी उतनी ही राशि आवण्टित होने के बावजूद यह राशि प्रभावी रूप से कम है। यह योजना नियमित वेतन सूचकांकीकरण (यानी बढ़ती महँगाई के अनुरूप बजट का विस्तार) की भी प्रतीक्षा कर रही है, और इस समायोजन को भी ध्यान में नहीं रखा गया है। जीडीपी के प्रतिशत के रूप में बात करें तो यह आवण्टन पिछले वित्तीय वर्ष में 0.26% की तुलना में घटकर मात्र 0.24% रह गया है।

गौरतलब है कि यह योजना पहले से ही 9,860 करोड़ रुपये के घाटे में चल रही थी, जिसमें 6,949 करोड़ रुपये का लम्बित वेतन है। ऐसे में ज़रूरत थी कि इस बार का बजट और बढ़ा कर आवण्टित किया जाये। किसी भी बजट में आवण्टित धनराशि समाप्त होने की सूरत में संशोधित आवण्टन किया जाता है। किन्तु वित्त वर्ष 2024-25 में धनराशि समाप्त होने के बावजूद कोई संशोधित आवण्टन नहीं किया गया है। एक प्रवृत्ति के तौर पर ऐसा हर साल होता है कि बजट का औसतन 20% हिस्सा पिछले वित्तीय वर्ष के बकाए को चुकाने में ख़र्च हो जाता है। उदाहरण के लिए पिछले वित्त वर्ष में पश्चिम बंगाल का बकाया क़रीब 7,500 करोड़ रुपये है। यह पिछला बकाया मौजूदा आवण्टित बजट में से ही जाएगा, नतीजतन मौजूदा बजट राशि घट कर केवल 70,000 करोड़ रुपये तक रह जायेगी।

कम बजटीय आवण्टन का प्रभाव व्यक्ति दिवसों में कमी के रूप में दिख रहा है जो 2023-24 में 312.37 करोड़ से घटकर फरवरी 2025 तक 239.67 करोड़ रह गया है, जबकि प्रति परिवार औसत कार्यदिवस 52.08 से घटकर मात्र 44.62 रह गया है। सरकार का सौ दिनों का काम देने का वायदा हवा ही रहा। 100 दिन का काम पूरा करने वाले परिवारों की संख्या सिर्फ़ 20,77,014 रही।

ऊपर दिये गए आँकड़ों से यह साफ़ दिखता है कि सरकार का मनरेगा के तहत अपने कानूनी दायित्वों को पूरा करने का कोई इरादा नहीं है। इस अपर्याप्त बजट का अनिवार्य रूप से तीन परिणाम होंगे। पहला, मज़दूरी भुगतान में भारी देरी, जिससे लाखों ग्रामीण मज़दूरों की आर्थिक स्थिति बिगड़ेगी। दूसरा, काम की माँग का दमन होगा, या उसे दबाया जायेगा, इस तरह से लोगों को रोज़गार के उनके अधिकार से वंचित किया जायेगा। तीसरा, मनरेगा के तहत होने वाले ढाँचों के निर्माण की गुणवत्ता में गिरावट, जिससे ग्रामीण बुनियादी ढाँचा ही कमज़ोर होगा।

 

मज़दूर बिगुल, फरवरी 2025


 

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