Category Archives: अर्थनीति : राष्‍ट्रीय-अन्‍तर्राष्‍ट्रीय

विकराल बेरोज़गारी : ज़ि‍म्मेदार कौन? बढ़ती आबादी या पूँजीवादी व्यवस्था?

पिछले 15 अगस्त को देश के 72वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर से दहाड़ते हुए लम्बा-चौड़ा भाषण दिया और देश की “अल्पज्ञानी” जनता को ज्ञान के नये-नये पाठ पढ़ाये! इस बार माननीय प्रधानमंत्री जी ने ‘भारी जनसंख्या विस्फोट’ को लेकर विशेष चिन्ता भी ज़ाहिर की और उन्होंने जनता को ही इसके लिए ज़ि‍म्मेदार ठहराया।

प्रधानमंत्री अमेरिका जाकर घोषणा कर रहे हैं कि ‘भारत में सब चंगा सी!’ पर आम मेहनतकश जनता पर मन्दी की मार तेज़ होती जा रही है

मोदी सरकार और पूरा बिका हुआ पूँजीवादी मीडिया फ़र्ज़ी आँकड़ों और झूठे दावों का चाहे जितना धुआँ छोड़ ले, लगातार गहराते आर्थिक संकट को ढाँक-तोप कर रखना अब उनके लिए मुश्किल होता जा रहा है। एक तरफ़ रोज़ होते खुलासे उनके झूठ के ग़ुब्बारे को पंचर कर दे रहे हैं और दूसरी तरफ़ आम लोगों के जीवन पर बेरोज़गारी, महँगाई, क़दम-क़दम पर सरकारी और निजी कम्पनियों की बढ़ती लूट और डूबते पैसों की जो मार पड़ रही है वह उन्हें असलियत का अहसास करा रही है। इसी कड़वी सच्चाई से ध्यान भटकाने के लिए फ़र्ज़ी देशभक्ति के नगाड़े ख़ूब पीटे जा रहे हैं। हक़ीक़त यह है कि पूँजीवादी व्यवस्था पूरे विश्व में चरमरा रही है और वैश्विक आर्थिक मन्दी के मौजूदा दौर ने दुनिया के लगभग सभी देशों को चपेट में ले लिया है। भारत में फ़ासिस्ट मोदी सरकार की कारगुज़ारियों ने इस संकट को और भी गम्भीर बना दिया है। ‘मज़दूर बिगुल’ में हम लगातार इस आर्थिक संकट के अलग-अलग पहलुओं और इसके कारणों पर लिखते रहे हैं। इस लेख में गहराते आर्थिक संकट की तीन बड़ी अभिव्यक्तियों की पड़ताल की गयी है।

अभिजीत बनर्जी को नोबल पुरस्कार और ग़रीबी दूर करने की पूँजीवादी चिन्ताओं की हक़ीक़त

चाहे अमर्त्य सेन हों या अभिजीत बनर्जी, ये कभी निजीकरण-उदारीकरण की उन नीतियों के बारे में नहीं बोलते जिनके विनाशकारी परिणाम पूरी दुनिया में ज़ाहिर हो चुके हैं। अर्थशास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित होने के बावजूद इन्हें यह नंगी सच्चाई नज़र नहीं आती कि पूँजीवादी व्यवस्था के टिके रहने की शर्त है मज़दूरों का शोषण और इसका अनिवार्य नतीजा है समाज के एक सिरे पर बेहिसाब दौलत और दूसरे सिरे पर बेहिसाब ग़रीबी। वे ग़रीबी के बुनियादी कारणों पर कभी चोट नहीं करते, वे पूँजीवाद और साम्राज्यवाद की लूट पर कभी सवाल नहीं उठाते। वे केवल ग़रीबी और उससे पैदा होने वाले असन्तोष की आँच कम करने के लिए ‘‘कल्याणकारी’’ योजनाओं की फुहार छोड़ने के के उपाय सुझाते रहते हैं।

गहरी आर्थिक मन्दी के सही कारण को पहचानो

मन्दी के कारण मज़दूरों की नौकरी छूट रही है, बेरोज़गारी और महँगाई बढ़ी है, परन्तु सरकार अपना पूरा ज़ोर लगा रही है कि पूँजीपतियों में निराशा न हो। मज़दूरों के लिए सरकार कोई नीति नहीं ला रही है। मोदी ने 15 अगस्त को मनमोहन सिंह की यह बात ही दोहरा दी है कि अमीरों को और अमीर बनाइये, उनकी जूठन से ग़रीबों के जीवन में भी समृद्धि आयेगी। हम यह जानते हैं कि समृद्धि नीचे से ऊपर ही जाती है, न कि ऊपर से नीचे की ओर।

ऑटोमोबाइल सेक्टर में भीषण मन्दी से लाखों लोगों का रोज़गार छिन सकता है

पाँच ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के कानफाड़ू शोर के बीच असली सच्चाई यह है कि देश की अर्थव्यवस्था मन्दी की गहरी खाई में गिरती जा रही है। पूँजीपतियों के मुनाफ़े की गिरती दर को बनाये रखने के लिए जनता को तबाही-बर्बादी के नरककुण्ड में धकेलकर उसके ख़ून-पसीने की कमाई से अरबों रुपये के ‘बेल-आउट पैकेज’ पहले ही पूँजीपतियों को दिये जा चुके हैं, लेकिन फिर भी अर्थव्यवस्था को दिवालिया होने से बचाने के सारे नुस्खे नीमहकीमी साबित हो रहे हैं। मन्दी की सबसे बुरी मार ग़रीब मेहनतकश आबादी पर पड़ रही है। महँगाई, बेरोज़गारी, छँटनी, तालाबन्दी सुरसा की तरह मुँह खोले आम आबादी को निगलने पर अमादा है।

जी हां, प्रधानमन्‍त्री महोदय! हम समृद्धि पैदा करने वाले लोगों का सम्‍मान करते हैं! लेकिन ये आपके पूंजीपति मित्र नहीं हैं!

अपने इस भाषण में प्रधानमन्‍त्री महोदय देश में अमीरों के प्रति बढ़ते गुस्‍से से काफ़ी चिन्तित दिखे! उन्‍हें लग रहा था कि मन्‍दी के कारण रोज़गार से खदेड़े जा रहे मज़दूर और नौजवान कहीं इसका कारण अमीर पूंजीपतियों को न समझ बैठें! ये बेचारे पूंजीपति तो खुद ही गिरते मुनाफ़े से बिलबिला रहे हैं और उन चूंटों-माटों की तरह भगदड़ मचाये हुए हैं, जिन पर गर्म तेल गिर गया हो! ऊपर से हम निकम्‍मे-नाकारे और बेग़ैरत ग़रीब लोग! इन्‍हीं ”मेहनती” अमीर पूंजीपतियों पर, इन ”समृद्धि पैदा करने वालों” पर त्‍यौरियां चढ़ा रहे हैं? बड़े निर्लज्‍ज किस्‍म के कृतघ्‍न लोग हैं हम लोग!

गम्भीर आर्थिक संकट में धँसती भारतीय अर्थव्यवस्था

देश में आर्थिक मन्दी की आहट अब शोर में तब्दील हो चुकी है। इस मन्दी का ख़ास तौर पर ऑटोमोबाइल सेक्टर में प्रभाव दिख रहा है। इस सेक्टर में मदर कम्पनियों से लेकर वेण्डर कम्पनियों तक में उत्पादन ठप्प पड़ा है। मारुति से लेकर होण्डा तक में शटडाउन चल रहा है, छोटे वर्कशॉप भी बन्द हो रहे हैं। देश-भर में ऑटोमोबाइल कम्पनियों के 300 से ज़्यादा शोरूम बन्द हो चुके हैं। क़रीब 52 हज़ार करोड़ रुपये मूल्य की 35 लाख अनबिकी कारें और दोपहिया वाहन पड़े सड़ रहे हैं। इसके कारण न सिर्फ़ ठेका मज़दूरों को काम से निकालने का नया दौर शुरू हो रहा है बल्कि पक्के मज़दूरों को भी कम्पनियों से निकालने की तैयारी हो रही है।

रेलवे के निजीकरण की पटरी पर बुलेट ट्रेन की रफ़्तार से भागती मोदी सरकार

देश के सबसे बड़े सार्वजनिक उपक्रम को बर्बाद करके मुनाफ़ाख़ोरों के हवाले करने के विरुद्ध संघर्ष अकेले रेलकर्मियों का सवाल नहीं है। यह आम जनता और तमाम मेहनतकशों का भी सवाल है। रेल कर्मियों को अपने संघर्ष को ने केवल सार्वजनिक क्षेत्र के दूसरे मेहनतकशों के आन्दोलनों से जोड़ना होगा, बल्कि देश की आम जनता को भी अपने आन्दोलन से जोड़ना होगा। तमाम मेहनतकश जनता को भी रेलकर्मियों के संघर्ष को समझकर उनके समर्थन के लिए आगे आना होगा।

पूँजीपतियों के मुनाफ़े की दर में गिरावट रोकने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाती मोदी सरकार

पूँजीपतियों के मुनाफ़े की दर में गिरावट रोकने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाती मोदी सरकार पराग वर्मा कांग्रेस, भाजपा और तमाम संसदीय पार्टियाँ पूँजीपतियों के हितों का प्रतिनिधित्व करती…

ईवीएम में घपले के ख़िलाफ़ भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) का निर्वाचन आयोग पर विरोध प्रदर्शन!

चुनाव के दौरान देश के अनेक स्थानों से ईवीएम मशीनों में हेराफेरी की आ रही ख़बरों और ईवीएम में छेड़छाड़ को लेकर उठाये जा रहे गम्भीर सवालों के मद्देनज़र 22 मई को RWPI के नेतृत्व में निर्वाचन आयोग के सामने चुनाव में जालसाज़ी के ख़िलाफ़ ज़ोरदार प्रदर्शन किया गया।