ऑटोमोबाइल सेक्टर के अस्थायी मज़दूरों के सम्मेलन को पुलिस द्वारा बाधित करने की कोशिश!
ऑटोमोबाइल उद्योग अस्थायी मज़दूर यूनियन
बीते 9 मार्च को गुड़गाँव (हरियाणा) में ऑटोमोबाइल उद्योग अस्थायी मज़दूर यूनियन (AICWU) द्वारा ऑटोमोबाइल सेक्टर के अस्थायी मज़दूरों के सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन को सफ़ल बनाने के लिए इसका प्रचार मारुति-हीरो-होण्डा-सुज़ुकी जैसी प्रमुख मदर कम्पनियों समेत रिको-सनबीम आदि तमाम वेण्डर कम्पनियों के हज़ारों मज़दूरों के बीच किया गया। गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा के बीच फैली ऑटोमोबाइल पट्टी में हज़ारों पर्चे बाँटे गये और हज़ारों मज़दूरों का सम्मेलन में शामिल होने के लिए पंजीकरण किया गया। अस्थायी मज़दूरों के सम्मेलन से मालिकों-प्रबन्धन-प्रशासन सबके कान खड़े हो गये और उन्होंने सम्मेलन में बाधा डालने की पूरी कोशिश की। पुलिस द्वारा सम्मेलन को बाधित किये जाने पर हम आगे बात करेंगे, इससे पहले जान लेते हैं कि आज ऑटोमोबाइल सेक्टर के मज़दूरों के हालात क्या है और किन प्रमुख माँगों को लेकर अस्थायी मज़दूर सम्मेलन का आयोजन किया गया!
ऑटोमोबाइल सेक्टर के अस्थायी मज़दूरों के हालात
देश के सबसे बड़े मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर ऑटोमोबाइल सेक्टर में अस्थायी मज़दूरों के हालात आज नारकीय स्थिति में हैं। बेहद कम वेतन में, बिना किसी श्रम अधिकार के उन्हें खटाया जाता है। ओवरटाइम का डबल रेट से पेमेण्ट नहीं होता। कई बार साप्ताहिक छुट्टियाँ तक नहीं मिलतीं। ट्रेनी, अप्रेण्टिस, फिक्स्ड टर्म, स्टूडेण्ट ट्रेनी, ठेका आदि के नाम पर मज़दूरों से स्थायी प्रकृति के काम पर अस्थायी बनाकर काम करवाने के नये-नये रूप निकाले गये हैं। मोदी सरकार के नये लेबर कोड इसमें ऑटोमोबाइल कम्पनियों व उनके प्रबन्धन की पूरी मदद करेंगे। सिर्फ़ आधिकारिक आँकड़ों की बात करें, तो गुड़गाँव-मानेसर में 80 हज़ार से ज़्यादा मज़दूर प्रमुख ऑटोमोबाइल प्लाण्टों में काम कर रहे हैं। असली आँकड़े इससे कहीं ज़्यादा है। समूचे गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल-नीमराणा तक फैली ऑटोमोबाइल पट्टी में मौजूद समस्त प्रमुख व वेण्डर प्लाण्टों की बात करें, तो यह संख्या दस लाख से ऊपर पहुँच जाती है। इस भारी मज़दूर आबादी का 85 फ़ीसदी से ज़्यादा अस्थायी मज़दूर है। यानी मज़दूरों को ‘हायर एण्ड फ़ायर’ के तहत कम्पनियाँ मनचाहे तरीक़े से काम पर रखती हैं और मनचाहे तरीक़े से निकाल देती हैं। किसी को 7-8 महीने में बाहर का रास्ता दिखाया जाता है, तो किसी को दो-तीन साल तक निचोड़ने के बाद ये कम्पनियाँ सड़कों पर फेंक देती हैं। निकलने पर मज़दूरों को आम तौर पर ऐसा कोई कार्य-अनुभव प्रमाणपत्र भी नहीं दिया जाता जिसके आधार पर उन्हें किसी अन्य कम्पनी में आसानी से काम मिल सके। ऑटो सेक्टर के मज़दूरों की जवानी इसी में निकल जाती है। तमाम अस्थायी मज़दूर इस अनिश्चितता और डर में जीते रहते हैं।
ऊपर से अस्थायी मज़दूरों का वेतन स्थायी मज़दूरों की तुलना में कई बार तो चार-पाँच गुना कम होता है, जबकि अक्सर वे वही काम करते हैं जो स्थायी मज़दूर करते हैं। अगर मारुति सुज़ुकी, हीरो मोटोकॉर्प व होण्डा के प्लाण्टों की ही बात करें, तो इनमें अस्थायी मज़दूरों का वेतन (ओवरटाइम सहित) 15 से 30 हज़ार रुपये प्रति माह के बीच है, जबकि स्थायी मज़दूर का वेतन 1 लाख के ऊपर है। अगर कुशल और अकुशल के अन्तर की बात करें, तो भी वेतन में इतना ज़्यादा अन्तर होना किसी भी तरह से जायज़ नहीं है। न तो अस्थायी मज़दूरों को समान बोनस मिलता है, न समान छुट्टियाँ और न ही अन्य समान सुविधाएँ मिलती हैं। स्थायी काम पर स्थायी नौकरी, वेतन में वृद्धि, समान काम पर समान वेतन, ठेका प्रथा का उन्मूलन, ट्रेनी-अप्रेण्टिस आदि के नाम पर अस्थायी मज़दूरों के शोषण के ख़ात्मे और ऑटोमोबाइल सेक्टर के अस्थायी मज़दूरों की यूनियन को मज़बूत बनाने के लिए 9 मार्च ऑटो सेक्टर के अस्थायी मज़दूरों के सम्मेलन का आयोजन किया गया था। अब बात करते हैं 9 मार्च को पुलिस द्वारा सम्मेलन को बाधित करने पर!
ज़ोर है कितना दमन में तेरे! देख लिया है देखेंगे!
सम्मेलन के आयोजन के ठीक पहले मानेसर के एसीपी ने यूनियन के प्रतिनिधि को बुलाकार सम्मेलन के बारे में बातचीत की थी। इस मुलाकात में यूनियन के क़ानूनी सलाहकार से कोई भी क़ानूनी आज्ञा या परमिशन लेने की बात नहीं कही गयी थी। इसके अलावा भी यूनियन से इस सम्मेलन की आज्ञा या परमिशन लेने के लिए पुलिस प्रशासन ने कभी नहीं कहा था। सम्मेलन पहले मानेसर में होना था। लेकिन वहाँ पर सम्मेलन स्थल के प्रबन्धक को पुलिस ने डरा-धमकाकर उस जगह की बुकिंग को रद्द करवा दिया। AICWU के प्रतिनिधियों ने गुड़गाँव में ही दूसरे स्थान की बुकिंग की और वहाँ सम्मेलन की शुरुआत की। इसकी वजह से दर्जनों मज़दूर नये सम्मेलन स्थल पर नहीं पहुँच सके। लेकिन इस नये स्थान पर भी पुलिस ने कुछ घण्टों बाद ही वहाँ पहुँचकर सम्मेलन की प्रक्रिया को बाधित किया और उस स्थान से मज़दूरों को जाने को कहा। बाद में पता चला कि पुलिस को नये स्थान की सूचना देने का काम आन्दोलन के भीतर ही ट्रोजन हॉर्स की तरह शासक वर्ग का काम करने वाले ‘सहयोग केन्द्र-सीएसटीयू’ के लोगों ने किया था। बहरहाल, यह पूरी कार्रवाई पुलिस ग़ैरक़ानूनी तरीके से कर रही थी क्योंकि सम्मेलन के पहले पुलिस प्रशासन से बातचीत हुई थी और उन्होंने किसी भी तरह से कोई परमिशन या आज्ञा लेने की बात आयोजकों से नहीं कही थी। पुलिस का कहना था कि आप केवल अपने ऑफिस पर मीटिंग कर सकते हैं। लेकिन क्या पुलिस कभी कम्पनियों के प्रबन्धन, मालिकान और श्रम विभाग के अधिकारियों की महँगे बैंक्वेट हॉलों में होने वाली सौदेबाज़ी की मीटिंग रोकती है? क्या उन्हें कभी कहा जाता है कि आप केवल अपने दफ़्तर में बैठक कर सकते हैं, किसी धर्मशाला या बैंक्वेट हॉल में नहीं? ये नियम मालिकों और प्रबन्धन के लिए और सरकारी अधिकारियों के लिए नहीं हैं। ये केवल मज़दूरों के लिए वक़्त पड़ते गढ़ दिये जाते हैं, ताकि अस्थायी मज़दूर एकजुट और संगठित न हो सकें और मालिकों की मज़दूरों के शोषण की चक्की बदस्तूर चलती रहे।
ज़ाहिर है कि अस्थायी मज़दूरों के सम्मेलन की ख़बर से ही तमाम प्रमुख ऑटो कम्पनियों व वेण्डर कम्पनियों के मालिकान और प्रबन्धन के कान खड़े हो गये थे। वजह यह कि अगर ऑटोमोबाइल सेक्टर की 85 प्रतिशत अस्थायी मज़दूर आबादी, जिसकी उपेक्षा सभी केन्द्रीय ट्रेड यूनियन फ़ेडरेशनों व स्थायी यूनियनों के नेतृत्व ने की है, एकजुट और संगठित होने की शुरुआत कर देगी तो इन कम्पनियों के मालिकान और प्रबन्धन के लिए श्रम क़ानूनों का नंगे तरीक़े से उल्लंघन करने और मज़दूरों का बर्बर शोषण करने की चालें भविष्य में कामयाब नहीं हो पायेंगी। यह डर मालिकान और प्रबन्धन को सता रहा था और इसी वजह से पुलिस प्रशासन का सहारा लेकर वे लगातार ही कोशिश कर रहे थे कि इस सम्मेलन को होने से रोका जा सके। लेकिन पुलिस प्रशासन सम्मेलन को बाधित कर पाता, इससे पहले सम्मेलन की कार्रवाई आगे बढ़ चुकी थी। सम्मेलन का स्थान पुलिस को सूचित करने का काम स्वयं मज़दूर आन्दोलन में घुसे ‘सहयोग केन्द्र-सीएसटीयू’ के भितरघातियों ने किया, जिसका प्रमाण जल्द ही AICWU के कार्यकर्ताओं को मिल गया।
सम्मेलन में आये मज़दूरों का स्वागत करते हुए यूनियन की संयोजन समिति के सदस्य भारत ने कहा कि AICWU का लक्ष्य समूचे ऑटोमोबाइल सेक्टर में अस्थायी मज़दूरों की एकजुट यूनियन खड़ा करना है। सभी ने अस्थायी मज़दूरों की अनदेखी की है और अब अस्थायी मज़दूरों को ख़ुद ही संगठित होना होगा। चूँकि अस्थायी मज़दूर इस सेक्टर की कुल मज़दूर आबादी का 85 फ़ीसदी हैं, इसलिए अस्थायी मज़दूरों की यूनियन के पास ही वह शक्ति होगी, वह मोलभाव की ताक़त होगी कि वह इस सेक्टर में मज़दूरों के अधिकारों की लड़ाई को आगे बढ़ा सके। आगे यूनियन प्रतिनिधि अनन्त ने बात रखते हुए कहा कि आज अस्थायी मज़दूरों की सबसे प्रमुख माँग है स्थायी प्रकृति के काम पर स्थायी रोज़गार की, समान काम के लिए समान वेतन की, स्वैच्छिक व डबल रेट से भुगतान वाले ओवरटाइम की, और साथ ही ईएसआई, पीएफ़, बोनस समेत समस्त श्रम अधिकारों की। ज़ुबानी जमा ख़र्च के तौर पर हर कोई अपने पर्चे या पोस्टर में नीचे कहीं कोने में लिख देता है कि “अस्थायी को स्थायी करो”, पर अस्थायी मज़दूरों के मसलों व समस्याओं को पिछले तीन दशकों में कभी किसी ने प्राथमिकता नहीं दी चाहे वे केन्द्रीय ट्रेड यूनियन फ़ेडरेशनें हों, या स्थायी यूनियनों का नेतृत्व। आज कम्पनियों में अस्थायी मज़दूरों की स्थिति अस्थायी की है, तो मौजूदा मज़दूर आन्दोलन में भी उनकी स्थिति अस्थायी की ही बनी हुई है। इसी का नतीजा है कि ऑटोमोबाइल पट्टी में अतीत के सारे ही प्रमुख स्थायी मज़दूरों के आन्दोलन कामयाब नहीं हो सके। वजह यह कि केवल 15 फ़ीसदी आबादी लड़कर जीत नहीं सकती है। साथ ही, दूसरा कारण यह रहा कि मज़दूरों की एकता को समूचे सेक्टर में फैलाने का काम किसी भी यूनियन ने नहीं किया। चुनावी पार्टियों से जुड़ी ट्रेड यूनियन फ़ेडरेशनों ने तो इस काम को रोका ही। साथ ही, अपने आपको ‘सहयोग केन्द्र’, ‘इंक़लाबी केन्द्र’ कहने वाले कुछ और संगठनों ने भी इस प्रक्रिया को लगातार बाधित किया। इन दोनों कारणों के चलते पिछले लगभग ढाई-तीन दशकों के दौरान मज़दूरों के अधिकांश संघर्ष कामयाब नहीं हो सके, और कम्पनियों के मालिकान व प्रबन्धन को सरकार के सहयोग से अपनी मनमानी करने का पूरा मौका मिला।
आगे वक्ताओं ने कहा कि यह तस्वीर तभी बदल सकती है जब अस्थायी मज़दूर अपने आपको अलग यूनियन में संगठित करें, जो एक प्लाण्ट में ही केन्द्रित न हो, बल्कि समूचे ऑटोमोबाइल सेक्टर के अस्थायी मज़दूरों को समेटती हो। आज समय की माँग है कि अस्थायी मज़दूर यानी समूची ऑटोमोबाइल पट्टी की 85 फ़ीसदी आबादी अपनी स्वतन्त्र यूनियन बनायें। अलग-अलग प्लाण्टों में भी अस्थायी मज़दूरों को अपनी अस्थायी मज़दूर यूनियनें बनानी होंगी। लेकिन अगर ऑटोमोबाइल पट्टी के अस्थायी मज़दूर अपनी एक ऐक्यबद्ध यूनियन में संगठित हो जायें, तो उनकी शक्ति का अन्दाज़ा लगाया जा सकता है। क्योंकि अस्थायी मज़दूरों की कोई एक कम्पनी नहीं होती; आज यहाँ हैं, तो कल वहाँ, और परसों कहीं और। दूसरी ओर, समूचे ऑटोमोबाइल पट्टी में जो लाखों युवा अस्थायी मज़दूर बेरोज़गार हैं, उनको भी किसी एक प्लाण्ट की अस्थायी मज़दूर यूनियन नहीं समेट सकती है। तीसरी बात यह कि समस्त अस्थायी मज़दूरों के ख़िलाफ़ तमाम कम्पनियाँ, उनके प्रबन्धन और सरकारी प्रशासन एकजुट होकर कार्रवाई करते हैं। ऐसे में, जब तब समूचे सेक्टर के अस्थायी मज़दूरों की एकजुट एक यूनियन निर्मित नहीं होगी, तब तक प्रभावी तरीक़े से लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती। इससे स्थायी व अस्थायी की एकता टूटेगी नहीं, बल्कि अन्तत: बनेगी। वैसे भी टूटती वह चीज़ ही है, जो पहले से मौजूद हो। सच यह है कि स्थायी मज़दूरों के संघर्षों का भी कोई भविष्य तभी होगा, जब अस्थायी मज़दूर अपने आपको अपनी यूनियन में संगठित करेंगे। निश्चित तौर पर, स्थायी व अस्थायी की एकता बनानी होगी। लेकिन अस्थायी मज़दूरों का एकजुट और संगठित होना इसके लिए आवश्यक है। स्थायी और अस्थायी मज़दूरों की एकता का लक्ष्य भी तभी पूरा हो सकता है। यदि अस्थायी मज़दूर समूचे सेक्टर के पैमाने पर एक यूनियन में संगठित हो जायें तो उनको रोकने वाली कोई शक्ति नहीं है। यह काम लम्बा ज़रूर है, पर इसी के ज़रिये मज़दूरों के संघर्षों को आगे बढ़ाया जा सकता है, इसी के ज़रिये प्लाण्टों में केन्द्रित लड़ाइयों को भी जीता जा सकता है और इसी प्रक्रिया में क़ानूनी लड़ाई को भी आगे बढ़ाया जा सकता है। AICWU (Automobile Industry Contract Workers Union या ऑटोमोबाइल उद्योग अस्थायी मज़दूर यूनियन) इसी दिशा में बढ़ाया गया क़दम है। AICWU समूचे ऑटोमोबाइल सेक्टर के अस्थायी मज़दूरों की एकजुट और एकमात्र यूनियन है।
अन्त में, यूनियन के प्रतिनिधियों ने आने वाले समय के प्रमुख कार्यभारों की बात करते हुए AICWU की सदस्यता को गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल से लेकर खुशखेड़ा व टप्पूकड़ा तक के ऑटोमोबाइल बेल्ट में अस्थायी मज़दूरों में फैलाने, क़ानूनी प्रक्रिया के तहत ऑटोमोबाइल बेल्ट में सभी कम्पनियों द्वारा श्रम क़ानूनों का उल्लंघन करते हुए स्थायी काम पर अस्थायी मज़दूरों को रखने के खिलाफ़ याचिका दायर करने, सभी अस्थायी मज़दूरों का माँगपत्रक तैयार कर क़दम-दर-क़दम आन्दोलन को आगे बढ़ाने के कार्यभारों पर चर्चा हुई। साथ ही सम्मेलन में मौजूद सभी अस्थायी मज़दूरों से यूनियन का सदस्य बनने और पूरे ऑटोमोबाइल सेक्टर की अस्थायी मज़दूरों की एकजुट यूनियन खड़ा करने के प्रयासों से जुड़ने की अपील की गयी।
अस्थायी मज़दूरों के सम्मेलन को बाधित करने के लिए पुलिस द्वारा की गयी कार्रवाई से पता चलता है कि अस्थायी मज़दूरों के एकजुट-संगठित होने के प्रयासों की शुरुआत से पुलिस प्रशासन, कम्पनियों के मालिकान और प्रबन्धन पर असर पड़ रहा है। उनका डर दिखायी दे रहा है। वे किसी भी क़ीमत पर ऑटो सेक्टर के अस्थायी मज़दूरों को एकजुट होने से रोकना चाहते हैं। इससे पता चलता है कि अगर मालिक-प्रबन्धन-प्रशासन को मज़दूरों की कार्रवाई से तक़लीफ़ हो रही है, तो लड़ाई सही दिशा में आगे बढ़ रही है। सम्मेलन के एजेण्डा के बचे हुए कार्यभारों को अगले ही दिन मज़दूरों की ऑनलाइन मीटिंग में सम्पन्न किया गया जिसमें क़रीब 50 साथी शामिल हुए।
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