मारुति सुज़ुकी के अस्थायी मज़दूरों का संघर्ष ज़िन्दाबाद!
30 जनवरी के प्रदर्शन पर दमन से पुलिस-प्रशासन और मारुति सुज़ुकी प्रबन्धन का गठजोड़ एक बार फिर से नंगा!
संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए व्यापक एकता और सही दिशा का सवाल अब अहम बन चुका है!
यूनियन संवाददाता
ताज़ा घटनाक्रम का ब्यौरा
जैसा कि आप सब जानते हैं 30 व 31 जनवरी को हरियाणा के आईएमटी मानेसर में मज़दूरों के प्रदर्शन और गुड़गाँव के श्रम विभाग के समक्ष होने वाली त्रिपक्षीय बैठक को मारुति सुज़ुकी प्रबन्धन और प्रशासन ने मिलकर नाक़ाम करने की पूरी कोशिश की। इसके दमन की शुरुआत मानेसर में पुलिस द्वारा प्रदर्शन के ठीक एक दिन पहले यानी 29 जनवरी को ही कर दी गयी थी। जिस जगह पर मज़दूरों को इकट्ठा होना था उसे पुलिस ने छावनी में तब्दील कर दिया था। यानी 2012 के बर्ख़ास्त मज़दूरों के धरनास्थल पर लगे तम्बू, बैनर, खाने-पकाने के समान सहित निजी वस्तुओं को भी ज़बरदस्ती उठा लिया गया। वहाँ मौजूद साथियों को पूरे दिन डिटेन रखा गया और शाम में छोड़ा गया। प्रदर्शन वाले दिन भी यानी 30 जनवरी को 76 साथियों को पकड़ कर पूरे दिन डिटेन रखा गया। हज़ारों संख्या में जुटे मज़दूरों को पुलिस लाठीचार्ज कर धरना स्थल से दूर भगाती रही और एकजगह शान्तिपूर्वक धरना स्थल पर इकट्ठा नहीं होने दिया गया। गौरतलब बात यह है कि इसकी लिखित अनुमति मज़दूरों ने 27 जनवरी को ही ले ली थी। इसके बावजूद पुलिस ने मारुति सुज़ुकी प्रबन्धन के इशारों पर कोर्ट द्वारा दी गयी अनुमति का उल्लंघन किया और मज़दूरों को एक जगह इकट्ठा नहीं होने दिया। पुलिस बर्बरता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि जो भी व्यक्ति धरना स्थल के पास बैग लिये दिख रहा था, उसे मारुति सुज़ुकी का मज़दूर समझ कर पुलिस डरा-धमका रही थी।
इसके बाद 31 जनवरी को गुड़गाँव के लघु सचिवालय परिसर में स्थित श्रम विभाग में 48 मज़दूरों को डिटेन किया गया। डिटेन किये गये साथियों में AICWU से साथी शाम मूर्ति भी शामिल थे। क़रीब 200 मज़दूर श्रम विभाग के दफ़्तर में होने वाली त्रिपक्षीय बैठक में शामिल होने से पहले अपनी बैठक कर रहे थे। पुलिस ने – बी.एन.एस 163 (जिसे पहले 144 के नाम से जाना जाता था) का हवाला देकर मज़दूरों को खदेड़ दिया। यह करने के पीछे पुलिस का मक़सद साफ़ था : यह सुनिश्चित करना कि मज़दूर इकट्ठा होकर त्रिपक्षीय बैठक में अपनी माँगों पर श्रम विभाग की मौजूदगी में प्रबन्धन के साथ आमने-सामने बात न कर सकें। डिटेन किये गये साथियों को जनदबाव के कारण उसी दिन देर रात को छोड़ दिया गया था। लेकिन यह पूरा घटनाक्रम दर्शाता है कि मारुति सुज़ुकी मैनेजमेण्ट और प्रशासन को अस्थायी मज़दूरों के एकजुट होने से कितना डर लगता है। साथ ही यह हमारे प्रदर्शन करने-एकजुट होने के संवैधानिक अधिकार पर भी हमला है।
संघर्ष की शुरुआत
पहले 5 जनवरी को और फिर 10 जनवरी को मारुति सुज़ुकी सुज़ुकी कम्पनी में कार्यरत और काम कर चुके हज़ारों अस्थायी मज़दूर अपनी माँगों के लेकर गुड़गाँव के डीसी ऑफिस पर इकट्ठा हुए। यह इस बात को साबित कर रहा है कि ठेका, अप्रेण्टिस, ट्रेनी समेत तमाम अस्थायी मज़दूर बेरोज़गार व ठेका प्रथा से किस कद़र त्रस्त हैं। कम्पनी में विभिन्न तरीके से लूट-शोषण और दमन का शिकार है। ऐसे में बढ़ती जा रही बेरोज़गारी और अस्थायी रोज़गार के दौर में मज़दूर स्थायी रोज़गार पाने का कोई मौका नहीं गँवाना चाहते हैं, जबकि स्थायी काम पर स्थायी रोज़गार हमारा अधिकार है। पहले क़दम के तौर पर मारुति सुज़ुकी के अस्थायी मज़दूरों ने अपना माँगपत्रक पेश किया। 5 और फिर 10 जनवरी को प्रदर्शन में 3-4 हज़ार की संख्या में मज़दूर एकत्रित हुए, जिसका अंदाजा मज़दूरों और पुलिस-प्रशासन को भी नहीं था। तब मज़दूरों ने गुड़गाँव के सचिवालय में डीसी आफिस और श्रम विभाग को माँग पत्रक और ज्ञापन सौंपा था। साथ ही गुड़गाँव श्रम विभाग के साथ-साथ चण्डीगढ़ श्रम विभाग/को भी लेटर दिया गया है। 31 जनवरी तहत त्रिपक्षीय वार्ता यानी श्रम विभाग के समक्ष मारुति सुज़ुकी-सुज़ुकी कम्पनी और मज़दूरों का प्रतिनिधि मण्डल का मिलना तय हुआ था। इसे लेकर मारुति सुज़ुकी प्रबन्धन और पुलिस-प्रशासन पहले से सतर्क हो गया और मौके की तलाश में ही था। प्रबन्धन को पता था कि अगर अस्थायी मज़दूरों को एकजुट होने से नहीं रोका गया तो पूरे ऑटोमोबाइल और गुड़गाँव से लेकर जयपुर तक औद्योगिक पट्टी का मज़दूर सड़कों पर आना शुरू कर देंगे। फिर 30 और 31 को हमें एकजुट होने नहीं दिया गया, डिटेन करने के साथ-साथ कई जगह मज़दूरों पर लाठीचार्ज किया गया।
मुख्य बात यह है कि बढ़ती बेरोज़गारी के आज के दौर में स्थायी रोज़गार की गारण्टी, ठेका प्रथा का समाप्ति, अस्थायी रोज़गार से मुक्ति का सवाल एक बार फिर से सामने आया है। ‘जब चाहे रखो और जब चाहे काम से निकालो’ (हायर एण्ड फायर) की नीति के मुखर विरोध में एकजुटता का स्वर भी उभरा है। लेकिन गुस्से की इन लहरों को सही दिशा में विकसित करके ही इसे मारुति सुज़ुकी सुज़ुकी के कम्पनी प्रबन्धन, ठेकेदारों समेत श्रम विभाग शासन-प्रशासन व सरकारों को ठीक से घेरा जा सकता है और अपने हक़-अधिकारों की लड़ाई को मज़बूत तरीके से आगे बढ़ाया जा सकता है। लेकिन आगे बढ़ने से पहले बुनियादी चीज़ को समझना बेहद जरूरी है।
मालिकों के मुनाफ़े की अन्धी हवस का बुनियादी कारण क्या है?
इसका बुनियादी कारण है कि मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था में मज़दूरों की मेहनत को लूटकर मुनाफ़ा बटोरने में पूँजीपतियों के मुनाफ़े की औसत दर कम होती जाती है। इससे बीच-बीच में आर्थिक संकट गहराता है और अल्पकालिक मुनाफ़े के दौर भी आते रहते हैं। देश के सभी सेक्टरों में विभिन्न तरीके और स्तर पर इसका असर नज़र आ रहा है। ऐसे में पूँजीपति वर्ग अपने गिरते मुनाफ़े का बोझ मज़दूरों पर डालने के लिए नये-नये तरीके निकालता रहता है और नतीज़तन हर मालिक/कम्पनी प्रबन्धन सस्ते और कच्चे मज़दूरों की भर्ती के लिए विभिन तरीके से शोषण, दमन और औद्योगिक आतंक को बढ़ाते चले जा रहे हैं। समूचे ऑटोमोबाइल पट्टी में भी सारी कम्पनियाँ मन्दी से निपटने और अपने मुनाफ़े की दर को बढ़ाने के लिए विभिन्न रूपों में अस्थायी मज़दूरों का शोषण कर रही हैं और अस्थायी मज़दूरों की संख्या को बढ़ाते हुए उनके सभी श्रम अधिकार छीन रही हैं। मोदी सरकार व अन्य सभी राज्य सरकारें इन कम्पनियों का इसमें पूरा साथ दे रही हैं।
24 फ़रवरी को एक बार फिर से आईएमटी मानेसर चलो की घोषणा और जुटान की चुनौतियाँ
मारुति सुज़ुकी अस्थायी मज़दूर संघ द्वारा 24 फ़रवरी को दोबारा ‘मानेसर चलो’ की ऐलान कर दिया गया है। उससे पहले 17 फ़रवरी को तमाम मारुति सुज़ुकी में काम कर चुके और कर रहे मज़दूरों के हस्ताक्षर किये गये फार्म प्रधानमन्त्री व श्रम विभाग को सौंपने का फैसला किया गया है। बेशक हमें अधिकतम संख्या में हस्ताक्षर जुटाने होंगे ताकि अपने क़ानूनी पक्ष को मज़बूत किया जा सके और साथ ही आगामी 24 फ़रवरी को अधिक से अधिक मज़दूरों को मानेसर में जुटाना होगा ताकि कम्पनी प्रबन्धन, श्रम विभाग, पुलिस-प्रशासन और सरकार के गठजोड़ और उसकी तानाशाही का मुक़ाबला किया जा सके। लेकिन जिस तरह से पिछली बार प्रबन्धन के हितों के लिए काम करने वाली पुलिस-प्रशासन ने बार-बार खदेड़ने, डिटेन करने व लाठीचार्ज करके आतंक का माहौल पैदा किया है उसका मुक़ाबला व्यापक मज़दूर आबादी विशेष तौर पर अस्थायी मज़दूर आबादी को शामिल करके ही किया जा सकता है। ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन (AICWU) इस कार्यक्रम को सफ़ल बनाने के लिए पूरी तरह से साथ है। 10, 30 और 31 जनवरी को भी समर्थन में पर्चा निकाला गया था और यूनियन के फेसबुक पेज से प्रदर्शन में शामिल होने का आह्वान लगातार किया गया था और अब भी किया जा रहा है। 31 जनवरी को AICWU के साथी गिरफ़्तार भी हुए थे। AICWU आगे भी समर्थन और संघर्ष में शामिल रहेगी।
आज आन्दोलन को आगे बढ़ाने के लिए एक तो मारुति सुज़ुकी में काम करने वाले सभी अस्थायी और स्थायी मज़दूरों से सम्पर्क करने की ज़रूरत तो है ही। साथ ही पिछले 2 दशकों से स्थायी और अस्थायी दोनों मज़दूरों के संघर्षों से सही सबक निकालने की भी ज़रूरत है। अभी तमाम कम्पनियाँ स्थायी-अस्थायी मज़दूरों को निकालने और यूनियनों को पंगु बनाने में लगी हुई हैं। चार नये लेबर कोड के ज़रिये यूनियन-हड़ताल समेत स्थायी रोज़गार, उचित वेतन व सभी श्रम क़ानून के अधिकारों पर हमला हो चुका है। वैसे पहले से ही ट्रांसफर, आंशिक या पूर्ण बन्दी, झूठे इल्ज़ाम लगाकर अनुशासनात्मक कार्यवाही, सालों काम करवाने के बाद फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों आदि बहानों से लगातार यह काम जारी है। मानेसर में 2012 के बर्ख़ास्त मारुति सुज़ुकी के स्थायी मज़दूरों का धरना, बेलसोनिका में यूनियन के पंजीकरण का रद्द करके यूनियन बॉडी को झूठी अनुशासनात्मक कार्यवाही के ज़रिये बाहर करना, नीमराना की हीरो की यूनियन पर ताज़ा हमला, गुड़गाँव में मुंजाल शोवा और सनबीम में मज़दूरों की आंशिक बन्दी के नाम पर छँटनी करके ठेका मज़दूरों की भर्ती। कम्पनी द्वारा दमन के यह सब उदाहरण हमारे सामने हैं। इन सबके ख़िलाफ़ एक सशक्त व मज़बूत ट्रेड यूनियन आन्दोलन खड़ा करना आज की ज़रूरत है। हम जानते हैं कि एक तरफ़ ऑटो सेक्टर के सभी अस्थायी मज़दूरों की एकजुटता और दूसरी तरफ़ अन्य सेक्टरों के अस्थायी तथा स्थायी मज़दूरों की एकजुटता स्थापित करना अभी बाक़ी है। विभिन्न इलाकों व सेक्टर के मालिक/कम्पनी प्रबन्धन तो अपनी-अपनी एसोसिएशनों के ज़रिये एकजुट हैं और उनका शासन-प्रशासन के साथ गठजोड़ भी है। लेकिन मज़दूरों का व्यापक स्तर पर एकजुट हो पाना अभी बाक़ी है।
दूसरी बात, आन्दोलन को आगे बढ़ाने के लिए ऑटोमोबाइल सेक्टर के सभी मज़दूरों को भी इसमें शामिल करना होगा। हम लोग जानते हैं कि 80-90 प्रतिशत आबादी तमाम अस्थायी मज़दूरों यानी ठेका, अप्रेण्टिस, फिक्सड टर्म ट्रेनी, नीम ट्रेनी, कैज़ुअल, टेम्परेरी मज़दूर आदि विभिन्न श्रेणी के अस्थायी मज़दूर हैं। इनकी भी वहीं माँगे हैं जो मारुति सुज़ुकी-सुज़ुकी के तमाम अस्थायी मज़दूरों की माँगें हैं। 2023 से क़रीब 10 लाख अस्थायी मज़दूरों को इस्तेमाल करके बाहर किया जा चुका है। वे ऑटोमोबाइल की किसी दूसरी कम्पनी जैसी हीरो, होण्डा या उन्हीं की वेण्डर कम्पनी या किसी अन्य जगह काम कर रहें हैं या एक आबादी ऐसी है जो अभी तक दोबारा रोज़गार हासिल नहीं कर पायी है। ऐसे बाहर कर दिये गये मज़दूरों की संख्या प्रदर्शन में सबसे ज़्यादा है। मारुति सुज़ुकी प्लाण्ट में फ़िलहाल काम करने वाले सभी अस्थायी मज़दूर आन्दोलन में शामिल नहीं हुए हैं। अन्दर कार्यरत मज़दूर अब अपने भविष्य के प्रति भी सशंकित हो चुके हैं और अभी अपना अस्थायी रोज़गार भी छिनने से भी डर रहे हैं। इन मज़दूरों को शामिल करने के लिए कम्पनी की यूनियनों को माँगपत्रक और संघर्ष के समर्थन में साथ लेने की कोशिश जारी रखनी चाहिए। स्थायी मज़दूर यूनियनों को समझ लेना चाहिए कि छँटनी की तलवार आपके सिर पर भी लटक रही है। जिससे बचने का रास्ता तत्काल मारुति सुज़ुकी-सुज़ुकी के तमाम स्थायी-अस्थायी मज़दूरों की एकता स्थापित करना ही हो सकता है। तमाम अस्थायी मज़दूरों को भी समझ लेना चाहिए कि 80-90 प्रतिशत आबादी मारुति सुज़ुकी-सुज़ुकी समेत पूरे सेक्टर में ठेका/अस्थायी की है। वर्षों तक अस्थायी मज़दूरों की उपेक्षा करने वाले स्थायी मज़दूरों व उनके यूनियनों तथा संघों को भी यह बात समझ में आ रही है कि अस्थायी मज़दूरों को संगठित किये बिना और आन्दोलन में उनकी माँगों को सबसे ऊपर रखे बिना उनके मसलों का कोई समाधान नहीं हो सकता है। लेकिन सबसे पहले अस्थायी मज़दूरों को अपनी स्वतन्त्र यूनियनों में संगठित होना होगा जिनकी बागडोर और नेतृत्व पूरी तरह से स्वयं अस्थायी मज़दूरों के ही हाथों में हो। इन्हीं चीजों को समझ कर ही तमाम ठेका/अस्थायी तथा स्थायी मज़दूरों को एकता क़ायम की जा सकती है।
सेक्टर या पेशा आधारित एकता स्थापित करना तत्काल बेहद ज़रूरी है
चूँकि हम ऊपर बात कर चुके हैं कि मारुति सुज़ुकी-सुज़ुकी के अस्थायी मज़दूरों के मुद्दे महज़ मारुति सुज़ुकी सुज़ुकी तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे ऑटो सेक्टर के मज़दूरों की माँग हैं। पिछले तमाम अस्थायी मज़दूरों के संघर्ष हो या स्थायी मज़दूरों के संघर्ष, कई जुझारू संघर्षों के बावजूद ये संघर्ष अपनी-अपनी कम्पनी या प्लाण्ट तक ही सीमित रहे। मालिक के इशारों पर काम करने वाले श्रम विभाग व कोर्ट ने इसे भटकाने-लटकाने का काम किया। वही पुलिस ने इसे आतंक पैदा करके दबाने का ही काम किया है। यानी यह बात भी साफ़ हो चुकी है कि अलग-अलग कारख़ानों जैसे: मारुति सुज़ुकी-सुज़ुकी, होण्डा, हीरो, बजाज जैसी दर्जनों मदर कम्पनियों तथा हीरो, रिको, हेमा, बेलसोनिका, सनबीम, मुन्जाल शोवा, सत्यम, ऐवटिव, जेएनएस जैसी सैंकड़ों वेण्डर कम्पनियों के विभिन्न प्लाण्टों के स्थायी व अस्थायी मज़दूरों के लिए महज़ अकेले-अकेले लड़कर जीत हासिल कर पाना बेहद-बेहद मुश्किल हो चुका है। लेकिन मज़दूरों का व्यापक स्तर पक एकजुट होना अभी बाक़ी है। अभी मारुति सुज़ुकी सुज़ुकी के अस्थायी मज़दूरों के एकजुट होने की शुरुआत हुई है। जिसका हम लोग समर्थन भी करते हैं। बेशक बड़े संघर्ष की शुरुआत छोटे-छोटे क़दमों से ही होती है। लेकिन इसको मुक़ाम तक ले जाने के लिए सही दिशा के साथ-साथ एकता को व्यापक और मज़बूत करना भी उतना ही ज़रूरी है।
ट्रेड यूनियन जनवाद, पारदर्शिता और संघर्ष की बागडोर का सवाल
संघर्ष का नेतृत्व अस्थायी मज़दूरों के हाथ में ही होना चाहिए और विभिन्न यूनि़यनों-संगठनों के संघर्ष के ज़रिये अर्जित अनुभव का सही तालमेल के साथ इस्तेमाल करके ही आन्दोलन को आगे बढ़ाया जा सकता है। अस्थायी मज़दूरों के नेतृत्वकारी कोर को अपने प्लाण्ट तक सीमित करके और संघर्ष की बागडोर अपने हाथ में न लेकर किसी परमानेण्ट मज़दूरों के यूनियन या कमेटी को सौंपना अस्थायी मज़दूरों के लिए घातक होगा। यह कभी भूलना नहीं चाहिए कि पिछले 12-13 वर्षों से मारुति सुज़ुकी के परमानेण्ट मज़दूर अपनी माँगों को लेकर लड़ रहे थे, लेकिन अस्थायी मज़दूरों के सवाल पर ज़ुबानी जमाख़र्च के अलावा, उनको संगठित करने और उनकी माँगों को प्राथमिकता देने के लिए कोई क़दम नहीं उठाया गया। 2011-12 से ही AICWU यह बात उठाती रही थी कि आन्दोलन में न सिर्फ़ अस्थायी मज़दूरों को साथ लिए बिना, बल्कि सबसे पहले उनकी माँगों को सबसे ऊपर रखे बिना, परमानेण्ट मज़दूरों के मसलों का भी कोई समाधान नहीं हो सकता है। जनवरी 2025 में जाकर, मारुति सुज़ुकी के मज़दूरों के संघर्ष के 12-13 वर्ष बीतने के बाद, अस्थायी मज़दूरों की सुध ली गयी, वह भी तब जबकि उनको साथ लिए बिना चल रहा संघर्ष एक बन्द गली में पहुँचकर बिखराव का शिकार हो चुका था। आज भी अस्थायी मज़दूरों को अपने संघर्ष की बागडोर सबसे पहले पूर्णत: अपने हाथों में लेनी होगी, अन्यथा माँगों को जीतना तो दूर, आन्दोलन का बहुत दूर तक जाना भी मुमकिन नहीं होगा। फ़ैसला लेने की ताक़त भूतपूर्व परमानेण्ट मज़दूरों के हाथों में नहीं, बल्कि स्वयं अस्थायी मज़दूरों के हाथों में होगी, तभी आन्दोलन विजय की दिशा में आगे बढ़ सकता है। आज भी समर्थकों व मौजूदा संघर्ष में शामिल यूनियनों, मज़दूर संगठनों के प्रति बहुत ही संकीर्ण व नकारने का नज़रिया और व्यवहार सामने आया है। इससे पहले ही बहुत नुक़सान हो चुका है। इसकी बजाय व्यापक मज़दूरों के हितों को केन्द्र में रखकर कर आगे बढ़ना होगा।
व्यापक एकता के लिए अस्थायी मज़दूरों के संघर्ष का समर्थन करने वाले और संघर्ष में शामिल मज़दूर यूनियनों, मज़दूरों संगठनों, अन्य जनसंगठनों और न्यायप्रिय और इन्साफ़पसन्द नागरिकों को संघर्ष में खुले दिल से शामिल करना होगा। किसी भी तरह के संकीर्ण सांगठनिक हितों-स्वार्थों, प्रिय चेहरों-चहेतों को प्राथमिकता देने और दूसरे संगठन के प्रति संकीर्ण रवैया रखने का नतीज़ा अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारना होगा। विभिन्न संघर्षशील और अनुभवी यूनियनों के समर्थन और सक्रिय भागीदारी के बिना आजतक कोई आन्दोलन आगे नहीं बढ़ा है। किसी चहेती कमेटी/संगठन के प्रति उदार या अन्य संगठन/यूनि़यन के प्रति पूर्वाग्रहित होकर उनके ख़िलाफ़ कुत्सा-प्रचार करना, उसके सहयोग-समर्थन, संघर्ष में शामिल और वर्षों से काम कर रहे संगठनों के कार्यों की उपेक्षा करना, इससे पूरे आन्दोलन को ही नुकसान होगा और यह अपनी ताक़त को ख़ुद ही कम करने के समान है।
पहले भी मज़दूर आन्दोलन में शामिल ऐसी धाराएँ मज़दूर या ट्रेड यूनियन संगठनों से निम्नस्तरीय एकता बनाते हैं और ऐसी प्रवृतियों को हवा देते है। अन्त में आन्दोलन अन्धी गलियों में भटक जाते हैं, जिसके नतीज़े पहले के भी मज़दूर संघर्षों में देख चुके हैं। अन्धी गलियों में उलझने पर मज़दूर एकतरफ़ छँटनी का शिकार होते हैं और ब्लैक लिस्ट होकर बेरोज़गारी का दंश झेलते हैं और दूसरी तरफ़ दशकों कोर्ट के चक्कर काट कर मज़दूर घर बैठ जाते हैं या किसी झूठी उम्मीद में चप्पलें घिसते रहते हैं। इसका तात्कालिक तौर पर आन्दोलन को नुक़सान होता ही है और दूरगामी तौर पर वर्गीय हितों को बहुत नुक़सान पहुँचता है। वहीं इसका फ़ायदा मुख्य तौर पर मालिक वर्ग को ही होता है।
यह बात हम लोग 2012 से ही कह रहे हैं। पिछला मारुति सुज़ुकी का आन्दोलन हो या होण्डा टपूकड़ा का या होण्डा मानेसर के जुझारू संघर्ष क्यों न रहे हों, इन सभी में इन्हीं दिक्कतों की वजह से अन्तत: हम सफलता तक नहीं पहुँच पाये। अपने आन्दोलन की बागडोर अपने हाथों में न लेकर अन्य किसी को सौंप देने तथा आन्दोलन को अपने प्लाण्ट कम्पनी तक सीमित रखने, दूसरे जुझारू संगठनों के साथ सही तरीके से तालमेल न करना, यह पिछले के सभी आन्दोलनों में कमी रही है। यह आन्दोलन के भीतर ठेका प्रथा है : यानी, अपने आन्दोलन की बागडोर अपने हाथों में लेने के बजाय उसका ठेका अपने नेतृत्व व प्रधानी को क़ायम रखने की इच्छा रखने वाले किसी गुट के हाथों में सौंप दिया जाय। मारुति सुज़ुकी के मौजूदा अस्थायी मज़दूरों के आन्दोलन को इस कमी से बचना होगा, उसे दूर करना होगा। अन्यथा, सफलता तक पहुँच पाना असम्भव होगा।
मज़दूर आन्दोलन को आगे कैसे बढ़ाया जाये? तत्काल क्या किया जाये?
कुल मिलाकर हमें तत्काल सेक्टरगत और इलाकाई एकता की ज़रूरत है। ऐसे में हम मज़दूर सभी बिखरे हुए संघर्षों का साझा मंच बनाकर जुझारू तरीके से संघर्ष को आगे बढ़ा जा सकते हैं। तभी मालिकों के मुनाफ़े के लिए जारी शोषण, दमन व आतंक पर रोक लगा सकते हैं। तभी हम न्याय हासिल कर सकते हैं। अस्थायीकरण पर रोक लगवा सकते हैं। स्थायी काम पर ग़ैर-क़ानूनी ठेका प्रथा पर रोक लगवा सकते हैं। 24 फ़रवरी के प्रदर्शन के बाद आन्दोलन का अगला क़दम सभी अस्थायी मज़दूरों के साझा माँगपत्रक के आधार पर ऑटोमोबाइल सेक्टर के समस्त अस्थायी मज़दूरों को एकजुट करना ही हो सकता है। यानी समूची इण्डस्ट्री के अस्थायी मज़दूरों की एकता के आधार पर आन्दोलन को आगे बढ़ाना होगा। इसके अलावा, तमाम संघर्षरत यूनियनों को भी एक साझा मंच पर आने की ज़रूरत है, ताकि संघर्षों को पूरी ताक़त से आगे बढ़ाया जा सके। अगर इन सब पर जल्द ही कुछ ठोस तरीके से काम नहीं किया गया तो फिर काफ़ी देर हो जायेगी! अतः आप सब मज़दूरों से अपील करेंगे कि हमारी बातों पर गौर करें, ताकि मारुति सुज़ुकी के मज़दूरों से शुरू हुई इस एकता को पूरे ऑटो सेक्टर के मज़दूरों की एकजुटता में तब्दील किया जा सके और एकता को व्यापक बनाया जा सके।
AICWU 2011-12 से ही हर आन्दोलन में शिरकत कर मुख्य रूप अस्थायी मज़दूरों समेत पूरे सेक्टर और इलाक़े के मज़दूरों को एकजुट करने में संघर्षरत रही है और अभी भी मारुति सुज़ुकी के अस्थायी मज़दूरों के संघर्ष में शामिल होकर सक्रिय समर्थन कर रही है। AICWU निम्न माँगपत्रक के आधार पर समूचे ऑटोमोबाइल उद्योग के मज़दूरों की एकजुटता स्थापित करने के लिए संघर्षरत है।
ऑटोमोबाइल सेक्टर के सभी अस्थायी व स्थायी मज़दूरों का माँगपत्रक:
- मारुति सुज़ुकी, बेलसोनिका, हीरो, मुंजाल शोवा समेत तमाम कम्पनियों के बर्ख़ास्त व निलम्बित मज़दूरों को तत्काल काम पर वापस लो!
- ठेका प्रथा ख़त्म करो! अप्रेण्टिस (TW 1+2), ट्रेनी (TW+CW+MST+SST+CT) मज़दूरों का शोषण नहीं सहेंगे! स्थायी प्रकृति के काम करने वाले इन सभी अस्थायी मज़दूरों को स्थायी करो!
- ‘स्थायी काम पर स्थायी रोज़गार’ और ‘समान काम पर समान वेतन’ लागू करो!
- ग़ैर-क़ानूनी निलम्बन, निष्कासन, तबादला, तालाबन्दी के नाम पर छँटनी बन्द करो!
- वेतन कटौती पर रोक लगाओ! स्थायी मज़दूरों की तरह और महँगाई के हिसाब से सभी अस्थायी मज़दूरों के लिए वेतन बढ़ोत्तरी लागू करो!!
- यूनियन बनाने के अधिकार व हड़ताल करने के अधिकार पर हमला बन्द करो!
- कार्यस्थलों पर सभी मज़दूरों के लिए सुरक्षा व सुविधाओं के पुख़्ता इन्तज़ाम करो!
- श्रम क़ानूनों को सख़्ती से लागू करो! मज़दूर विरोधी 4 नये लेबर कोड तत्काल रद्द करो!
- न्यूनतम वेतन ₹30,000 प्रति माह लागू करो!
- ‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी क़ानून’ पारित करो! सबको रोज़गार न दे पाने की सूरत में ₹15,000 मासिक बेरोज़गारी भत्ता दो!
- सभी अस्थायी मज़दूरों के लिए भी साल में सवेतन 42 छुट्टियों (SL+CL+PL) के साथ-साथ बोनस के प्रावधानों को लागू करो!
मज़दूर बिगुल, फरवरी 2025
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन