अँधेरा है घना, मगर संघर्ष है ठना!
ओमैक्स के बहादुर मज़दूरों का संघर्ष जारी है!

ओमैक्स के ठेका मज़दूर पिछले 42 दिन से नौकरी से बर्खास्त किये जाने के ि‍ख़‍लाफ़ शानदार लड़ाई लड़ रहे हैं। कम्पनी की इस फ़रमानशाही को चुनौती देते हुए मज़दूर पिछली 1 फ़रवरी यानी बर्खास्तगी के दिन से कम्पनी गेट पर खूँटा गाड़कर संघर्ष कर रहे हैं। इस संघर्ष में मज़दूरों ने कुर्बानियाें के बावजूद इस संघर्ष को जीवित रखा है। 13 फ़रवरी को मैनेजमेण्ट व ठेकेदार के दबाव और आर्थिक मन्दी के कारण ओमैक्स के एक मज़दूर अजय ने आत्महत्या कर ली। परन्तु इस घटना से मज़दूर साथियों का हौसला टूटा नहीं बल्कि कई गुना और बढ़ गया और उन्होंने इस संघर्ष को अपने मुक़ाम तक पहुँचाने की ठान ली। मज़दूरों ने 13 फ़रवरी की रात को अपने दिवंगत साथी का शव लेकर देर रात तक फ़ैक्टरी गेट जाम करके रखा व तीन माँगों को लेकर प्रदर्शन किया। मज़दूरों की पहली माँग थी कि मृत मज़दूर के परिवार को मुआवज़ा व परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाये। दूसरी माँग यह थी कि गुनहगार ठेकेदार और मैनेजमेण्ट के ि‍ख़‍लाफ़ तुरन्त क़ानूनी कार्यवाही की जाये। तीसरी माँग मज़दूरों ने यह उठाई कि निकाले गये सभी श्रमिकों को काम पर वापस लिया जाये। मज़दूरों का रोष देखते हुए पुलिस प्रशासन ने पूरे इलाक़े को छावनी में तब्दील कर दिया। परन्तु मज़दूरों के इस संघर्ष के उग्र होने और ओमैक्स ग्रुप के अन्य मज़दूरों के इस संघर्ष में शामिल होने के डर से पुलिस और कम्पनी मैनेजमेण्ट को मज़दूरों के दबाव के आगे झुकना पड़ा। कम्पनी प्रबन्धन ने मृतक के परिवार को साढ़े पाँच लाख रुपये का मुआवज़ा देने की घोषणा की और पुलिस ने कम्पनी प्रबन्धन व ठेकेदार के ि‍ख़‍लाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने की माँग मान ली। परन्तु निकाले गये मज़दूरों को काम पर वापस लेने की माँग को मैनेजमेण्ट ने टाल दिया कि यह फ़ैसला कम्पनी के बड़े अधिकारियों की मौजूदगी में ही हो सकता है।

यह भी ग़ौरतलब है कि जिस मज़दूर ने अपनी ज़िन्दगी के 14 साल इस फै़क्टरी को दे दिये उसकी मौत पर कम्पनी मैनेजमेण्ट के किसी आदमी ने मज़दूर की मौत पर अफ़सोस जताना तो दूर मज़दूरों से बात करने तक की ज़हमत नहीं उठायी। मुनाफ़े की हवस में अन्धे कम्पनी प्रबन्धन के लिए मज़दूर की ज़िन्दगी की क़ीमत महज़ एक पुर्जे जितनी है जिसे इस्तेमाल करने के बाद फेंक दिया जाता है। परन्तु ओमैक्स के मज़दूर पूँजी की इस गुलामी के ि‍ख़‍लाफ़ अपनी फै़क्टरी गेट पर डेट हुए हैं। मज़दूरों को कम्पनी के अन्दर मौजूद स्थायी मज़दूरों के बीच एकता स्थापित होने का ख़तरा लम्बे समय से खटक रहा था। 6 मार्च को कम्पनी ने यूनियन बॉडी सहित 18 स्थायी मज़दूरों को काम से निकाल दिया और काम पर आने पर स्थायी मज़दूरों से एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने को कहा जिसके तहत मज़दूरों को मीटिंग करने व संगठित होने की मनाही थी। कुछ मज़दूरों ने नासमझी और भ्रम में इसपर हस्ताक्षर कर दिये लेकिन करीब 100 मज़दूरों ने ऐसा करने से मना कर दिया। वे हड़ताल पर बैठे हुए मज़दूरों के साथ आ गये और प्रबन्धन के विरुद्ध नारेबाजी करने लगे। यह इस संघर्ष का एक बेहद महत्वपूर्ण बिन्दु था, जहाँ स्थायी और अस्थायी मज़दूरों के बीच एक ज़बरदस्त एकता क़ायम की जा सकती थी और पूरे संघर्ष को एक नये मुक़ाम तक पहुँचाया जा सकता था। परन्तु यह नहीं किया गया बल्कि उल्टा सभी स्थायी मज़दूर वापस काम पर चले गये। यह क़दम इस संघर्ष को कितना नुक़सान पहुँचायेगा यह तो आने वाले वक़्त में ही पता चलेगा परन्तु अगर मज़दूर इस संघर्ष को अपनी फै़क्टरी गेट से पूरे सेक्टर तक लेकर जायें तो इस संघर्ष को विस्तृत किया जा एकता है। यह संघर्ष दिखलाता है कि मज़दूर हर क़ीमत चुकाकर लड़ाई लड़ने को तैयार हैं, सवाल है उसे संगठित कर रास्ता दिखाने वाली एक सेक्टरव्यापी क्रान्तिकारी ट्रेड-यूनियन की। ग़ौरतलब है कि, इस सेक्टर की विभिन्न ट्रेड-यूनियनों ने इस संघर्ष में मज़दूरों के साथ खड़े होने की बात लगातार कही है। इसी क्रम मे विगत 17 फ़रवरी को होण्डा कामगार 2 एफ़ समूह, टपूकड़ा जो ख़ुद भी पिछले एक साल से अपनी माँगों को लेकर संघर्षरत है, के साथियों ने भी धरनास्थल पर आकर मज़दूर साथियों की हौसला-अफ़ज़ाई की। रिपोर्ट लिखे जाने तक 43 दिन बीत जाने के बाद भी ओमैक्स के मज़दूरों का संघर्ष बदस्तूर जारी है।

 

मज़दूर बिगुल, मार्च 2017


 

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