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एक और मज़दूर दुर्घटना का शिकार, मुनाफ़े की हवस ने ली एक और मज़दूर की जान!

ऑटोमोबाइल सेक्टर में ऐसी दुर्घटनाएँ कोई नयी बात नहीं है। आये दिन किसी न किसी फैक्ट्री में कम्पनी मैनेजमेंट की आपराधिक लापरवाही की वजह से दुर्घटनाओं में मज़दूर अपनी जान गँवा बैठते हैं या बुरी तरह घायल हो जाते हैं। लाखों मज़दूर अपनी जान जोख़िम में डालकर काम करने के लिए मजबूर हैं।

ग्रेटर नोएडा की यामाहा फैक्ट्री में वेतन बढ़ोत्तरी की माँग पर हड़ताल कर रहे मज़दूरों पर पुलिस और अर्द्धसैनिक बल ने बरसाई लाठियाँ!

कम्पनी के नियमित मज़दूरों और कान्‍ट्रैक्ट मज़दूरों के न तो काम में कोई अन्तर है और न ही काम के घंटों में कोई फर्क है, फिर भी एक ही फैक्ट्री में काम करने वाले मज़दूरों के वेतन में ज़मीन-आसमान का फर्क कोई इत्तेफ़ाक नहीं है। पूँजीवाद में मज़दूरों की वर्ग एकता को तोड़ने के लिए पूँजीपति बहुत चालाकी से मज़दूरों के बीच भी एक सफ़ेद कालर मज़दूर वर्ग तैयार कर देता है जो अपने ही वर्ग हित के ख़िलाफ़ काम करते हैं।

होंडा मोटर्स, राजस्‍थान के मज़दूरों के आन्‍दोलन का बर्बर दमन, पर संघर्ष जारी है!

पिछली 16 फरवरी की शाम को टप्पूखेड़ा प्लांट के बाहर धरने पर बैठे मज़दूरों पर राजस्थान पुलिस और कम्पनी के गुंडों ने बर्बर लाठीचार्ज किया। इसी दिन सुबह एक ठेका मज़दूर के साथ सुपरवाइज़र द्वारा मारपीट के बाद मज़दूर हड़ताल पर चले गये थे। मैनेजमेंट द्वारा कई मज़दूरों के खिलाफ़ कार्रवाई करने से मज़दूरों में आक्रोश था। 16 फरवरी की सुबह एक ठेका मज़दूर ने बीमार होने के कारण काम करने में असमर्थता जताई। इस पर सुपरवाइज़र ने उस पर हमला कर दिया और उसकी गर्दन दबाने लगा। इससे मज़दूर भड़क उठे और उन्होंने काम बंद कर फैक्‍ट्री के भीतर ही धरना दे दिया। उस वक्त करीब 2000 मज़दूर फैक्ट्री के भीतर थे और बड़ी संख्या में मज़दूर बाहर मौजूद थे। मैनेजमेंट ने यूनियन के प्रधान नरेश कुमार को बातचीत के लिए अंदर बुलाया और इसी बीच अचानक भारी संख्‍या में पुलिस और बाउंसरों ने मज़दूरों पर हमला बोल दिया। उन्होंने मज़दूरों को दौड़ा-दौड़ाकर बुरी तरह लाठियों-रॉड आदि से पीटा जिसमें दर्जनों मज़दूरों को गम्‍भीर चोटें आयीं। पूरी फैक्ट्री पर पुलिस और गुंडों ने कब्ज़ा कर लिया। सैकड़ों मज़दूरों को गिरफ्तार कर लिया गया।

नीमराना के ऑटो सेक्टर के मज़दूरों की लड़ाई जारी है…

आपको यह जानकर हैरत होगी कि मज़दूरों के धरने पर बैठने के फ़ैसले पर सबसे ज़्यादा आपत्ति श्रम विभाग या कम्पनी प्रबन्धन को नहीं बल्कि एटक को है। श्रम विभाग में अधिकारियों से हर रोज़ घण्टों बैठक करके एटक का नेतृत्व धरने पर बैठे मज़दूरों के पास यह निष्कर्ष लेकर पहुँचता है कि यहाँ पर धरने पर बैठने से कुछ नहीं होगा घर जाओ…

कब तक यूँ ही गुलामों की तरह सिर झुकाये जीते रहोगे

समीचन्द के साथ हुई यह मारपीट अपने आपमें कोई अकेली घटना नहीं है। यह पूरे इलाक़े में मज़दूरों पर हो रहे अत्याचार की झलक मात्र है। गुड़गाँव-मानेसर- धारुहेड़ा-बावल से लेकर भिवाड़ी और ख़ुशखेड़ा तक लाखों मज़दूर आधुनिक गुलामों की तरह खट रहे हैं। इस पूरे औद्योगिक क्षेत्र में ऑटोमोबाइल, दवा आदि फ़ैक्टरियों के साथ-साथ कपड़े उद्योग से जुड़े अनेक कारख़ाने मौजूद हैं। इन फ़ैक्टरियों में लाखों मज़दूर रात-दिन अपना हाड़-मांस गला कर पूरी दुनिया की बड़ी-बड़ी कम्पनियों के लिए सस्ती मज़दूरी में माल का उत्पादन करने के लिए लगातार खटते हैं। जहाँ एक तरफ़ ये कम्पनियाँ हमारे ही हाथों से बने उत्पादों को देश-विदेश में बेचकर अरबों का मुनाफ़ा कमा रही हैं, वहीं दूसरी तरफ़ इनमें काम करने वाले हम मज़दूर बेहद कम मज़दूरी पर 12 से 16 घंटों तक काम करने के बावजूद अपने परिवार के लिए ज़रूरी सुविधाएँ भी जुटा पाने में असमर्थ हैं। लगभग हर कारख़ाने में अमानवीय वर्कलोड, जबरन ओवरटाइम, वेतन में कटौती, ठेकेदारी, यूनियन बनाने का अधिकार छीने जाने जैसे साझा मुद्दे हैं। लेकिन हमारा संघर्ष कभी-कभी के गुस्से के विस्फोट तक और अलग अलग कारख़ानों में अलग-अलग लड़ाइयों तक ही सीमित रह जाता है।

अस्ति का मज़दूर आन्दोलन ऑटो सेक्टर मज़दूरों के संघर्ष की एक और कड़ी!

अस्ति में मज़दूरों पर अन्याय, शोषण, अत्याचार की यह अकेली घटना नहीं है। ऑटो सेक्टर की यह पूरी बेल्ट में इस तरह मज़दूरों की हड्डियाँ का चूरा बनाकर कम्पनियाँ मुनाफ़ा कूट रही हैं। और इसके विरुद्ध मज़दूरों की आवाज़ अलग-अलग समय पर अलग-अलग फ़ैक्टरी से उठती ही रही हैं। लेकिन फ़ैक्टरी-कारख़ानों की चौहद्दी में कैद होकर ये आन्दोलन टूट और बिखराव का शिकार हो जाता है। इसलिए अस्ति के मज़दूरों को अपनी फ़ौरी लड़ाई लड़ते हुए भी अपनी दूरगामी लड़ाई के लिए भी तैयार रहना होगा। क्योंकि आज पूरे गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल में ठेका, कैजुअल, ट्रेनी मज़दूर बेहद शोषण और अमानवीय परिस्थितियों में काम करने के लिए बेबस है। जिन कम्पनियों में यूनियन बनी है, उसका फ़ायदा भी सिर्फ़ स्थायी मज़दूरों को मिलता है। जबकि हम सभी जानते हैं कि मोदी सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों में बदलाव के बाद स्थायी कर्मचारियों के भी हक़-अधिकारों पर हमला होना तय है। इसलिए स्थायी, कैजुअल और ठेका मज़दूरों को अपनी ठोस एकता कायम करनी होगी, साथ ही पूरे ऑटो सेक्टर के आधार पर गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल के मज़दूरों की “ऑटो मज़दूर यूनियन” का निर्माण करना होगा। ज़ाहिरा तौर ऐसी ऑटो सेक्टर मज़़दूर यूनियन मज़दूर आन्दोलन से ग़द्दारी कर चुकी केन्द्रीय ट्रेड से स्वतन्त्र होनी चाहिए।

हरियाणा के मज़दूरों के लिए और “अच्छे दिनों” की शुरुआत!

कांग्रेस, भाजपा, इनेलो, बसपा, सपा, माकपा, भाकपा, भाकपा (माले) समेत सभी चुनावी पार्टियों में इस बात की होड़ है कि पूँजीपतियों की सेवा कौन बेहतर करेगा। मौजूदा मन्दी के दौर में पूँजीपति वर्ग के लिए मज़दूरों पर नंगी तानाशाही लागू करने के मामले में भाजपा ने सभी चुनावी मदारियों को पीछे छोड़ दिया है। भाजपा-शासित राज्यों और विशेषकर गुजरात, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मज़दूरों-मेहनतकशों पर देशी-विदेशी पूँजीपतियों की नंगी तानाशाही कायम करके भाजपा ने दिखला दिया है कि पूँजीपति वर्ग को संकट से कुछ राहत देने के लिए वह इस समय सबसे उपयुक्त पार्टी है। इसीलिए देश के पूँजीपतियों ने एकजुट होकर हज़ारों करोड़ रुपये ख़र्च करके पहले देश में और फिर हरियाणा, महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार बनवायी है। पूँजीवादी चुनावों में जीतता वही है जिसके पास पूँजीपतियों का समर्थन होता है क्योंकि इन चुनावों में सारा खेल ही बाहुबल, धनबल और मीडिया का होता है।

मेहनतकश जन जागो! अपना हक लड़कर माँगो!!

‘गुड़गाँव मज़दूर संघर्ष समिति’ का मानना है कि आज हमें एक ओर सेक्टरगत यूनियनें (जैसे कि समस्त ऑटोमोबाइल मज़दूरों की एक यूनियन, समस्त टेक्सटाइल मज़दूरों की एक यूनियन, आदि) बनानी होंगी जो कि समूचे सेक्टर के मज़दूरों को एक साझे माँगपत्रक पर संगठित करें। वहीं हमें समूचे गुड़गाँव-मानेसर के इलाके में मज़दूरों की एक इलाकाई मज़दूर यूनियन भी बनानी होगी, जो कि इस इलाके में रहने वाले सभी मज़दूरों की एकता कायम करती हो, चाहे वे किसी भी सेक्टर में काम करते हों। ऐसी यूनियन कारखानों के संघर्षों में सहायता करने के अलावा, रिहायश की जगह पर मज़दूरों के नागरिक अधिकारों जैसे कि शिक्षा, पेयजल, चिकित्सा आदि के मुद्दों पर भी संघर्ष करेगी। जब तक सेक्टरगत और इलाकाई आधार पर मज़दूरों के ऐसे व्यापक और विशाल संगठन नहीं तैयार होंगे, तब तक उस नग्न तानाशाही का मुकाबला नहीं किया जा सकता है, जोकि हरियाणा में मज़दूरों के ऊपर थोप दी गयी है।

ऑटो सेक्टर की ‘रिको फैक्ट्री’ के मज़दूर से बातचीत

मज़दूर- आप खुशहाली की बात करते हैं। मुझे दस साल हो गये हैं, रिको कम्पनी मे काम करते हुए और अभी तक हम (कैजुअल) अस्थाई मज़दूर की हैसियत से काम कर रहे हैं। हमारी कम्पनी ने नियम बना लिया है कि किसी को (परमानेन्ट) स्थाई मज़दूर नहीं करेंगे। 2/3 से ज्यादा मज़दूर तो कैजुअल, अप्रैन्टिस, ट्रेनी, व ठेकेदार की तरफ से लगे हुए हैं। ऊपर से मालिक हर साल एक नई जगह (जैसे- सिड़कुल, धारूहेड़ा, दादरी) मे फैक्ट्री खोल लेता है। और एक जगह प्रोडक्सन (उत्पादन)कम करवाकर यह दिखाने की कोशिश करता है कि कम्पनी के पास आर्डर कम है। जिससे कि हम मज़दूर डर जाते हैं कि काम कम है तो अब छँटनी होगी और हर आदमी अपनी नौकरी बचाने के चक्कर मे ऐसा कोई काम नहीं करता कि मैनेजमेन्ट को कहने का मौका मिले। और अनिश्चित कालीन एक सरदर्द जिन्दगी मे बना रहता है कि कहीं नौकरी न चली जाये। दस हजार की तनख्वाह मे आदमी की जिन्दगी मे क्या खुशहाली होगी?

गुड़गाँव के आटोमोबाइल मज़दूरों की स्थिति की एक झलक

इन सभी में ठेका मज़दूरों की स्थिति लगभग एक समान है। जाँच-पड़ताल और मज़दूरों से बातचीत करने पर यह जानकारी मिली। सभी में 8-8 घण्टे की तीन पालियों में 24 घण्टे काम होता है। ठेका मज़दूरों के लिए 8 घण्टे काम के बदले महीने में 4850 रुपये का वेतन निर्धारित है, जिसमें 12 प्रतिशत पीएफ और 1.75 प्रतिशत ईएसआई कटने के बाद लगभग 4100 रुपये महीना वेतन मज़दूर को मिलता है। पीएफ की कोई रसीद या ईएसआई कार्ड किसी मज़दूर को नहीं दिया जाता। सिर्फ काम पर आने के लिए एक गेटपास दे दिया जाता है। ज्यादातर मज़दूरों का कहना है कि कम्पनी छोड़ने पर पीएफ या ईएसआई का कोई पैसा कम्पनी नहीं देती, और मज़दूर कुछ समय तक चक्कर लगाने के बाद थक-हार कर छोड़ देते हैं, क्योंकि उनके पास काम करने का कोई प्रमाण भी नहीं होता। यानी वास्तव में मज़दूरों का कुल वेतन 4100 रुपये ही है। हर जगह ओवरटाइम सिंगल रेट पर दिया जाता है। ऐसे में मज़दूर 12 से 16 घण्टे तक काम करते हैं। 16 घण्टे की डबल शिफ़्ट में काम करने पर मज़दूरों को एक दिन के 180 रुपये अधिक दे दिये जाते हैं। काम पर आने में लेट होने पर आधे दिन का वेतन काट लिया जाता है।