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अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार : पूँजीवाद के इतिहास से उपनिवेशवाद के ख़ूनी दाग़ साफ़ करने के प्रयासों का ईनाम

उनका सिद्धान्त उपनिवेशवाद के रक्तरंजित इतिहास को साफ़ करने की कोशिश करता है। वे एक भी जगह उपनिवेशवाद द्वारा ग़ुलाम देशों के लोगों पर की गयी लूट, हत्या और अत्याचारों को ध्यान में नहीं रखते हैं। आश्चर्य की बात नहीं है कि पुरस्कार प्राप्त करने के बाद जीतने वाले एक अर्थशास्त्री ऐसमोग्लू ने कहा कि उपनिवेशवाद के कुकर्मों पर विचार करने में उनकी दिलचस्पी नहीं थी। उपनिवेशीकरण की रणनीतियों के जो निहितार्थ थे बस उन्हीं में उनकी दिलचस्पी थी। हालाँकि अगर इस स्पष्ट स्वीकारोक्ति को छोड़ भी दिया जाये तो वैज्ञानिक व ऐतिहासिक रूप में उनका सिद्धान्त अन्य जगहों पर भी बुरी तरह विफल होता है। मसलन, उपनिवेशवाद के परिणाम उपनिवेशवादी देशों और उपनिवेशों के लिए समान या सीधे समानुपाती नहीं होते हैं। सच्चाई तो यह है कि उपनिवेशवादी देश ग़ुलाम देशों की भूमि से कच्चा माल व अन्य प्राकृतिक संसाधन लूटते हैं, वहाँ की जनता का सस्ता श्रम निचोड़ते हैं और ग़ुलाम देशों की क़ीमत पर अपने देश को समृद्ध बनाते है। इसलिए, पश्चिमी उदार लोकतंत्र वाले साम्राज्यवादी देश, जिनकी ये नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री प्रशंसा करते नहीं थकते, उपनिवेशवाद की सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद, यानी दुनिया के तमाम देशों को गुलाम बनाकर और उन्हें लूटकर आर्थिक समृद्धि के वर्तमान स्तर पर पहुँचे हैं।