सफ़ाई कर्मचारियों की सेहत और सुरक्षा का ध्यान कौन रखेगा, जज महोदय?
रात में सफाई व्यवस्था के पक्ष में तर्क दिया गया है कि सफाई के दौरान उड़ने वाली धूल से अस्थमा, एलर्जी या सांस की बीमारियां हो सकती हैं और इसका खराब असर सुबह टहलने वाले लोगों पर पड़ता है। इस बात को सही मानने पर सबसे पहले तो सफाई कर्मचारी के स्वास्थ्य की सुरक्षा की चिन्ता की जानी चाहिए। सफाई कर्मचारी तो बरसों से बिना किसी सांस संबंधी सुरक्षा उपकरण के सफाई कर रहे हैं और उनमें टीबी, अस्थमा आदि रोग भी बहुतायत में मिलते हैं। इन बीमारियों से कई सफाई कर्मचारी जाने-अनजाने असमय मौत के मुंह में समाते रहते हैं। उड़ने वाली धूल से सेहत को सबसे ज्यादा खतरा इन सफाई कर्मचारियों को होता है जबकि चिन्ता की जा रही है दिनभर ऑफिसों-दुकानों- फैक्ट्रियों में बैठे-बैठे तोंद बढ़ाने वाले और फिर सुबह उसे कम करने के लिए हाँफते-काँपते दौड़ने वाले बाबू-सेठ लोगों की सेहत की या उनकी जो शानदार ट्रैकसूट पहनकर सुबह जॉगिंग करते हैं। जिन्दगी भर धूल-गन्दगी के बीच जीने वाले और अपनी सेहत की कीमत पर शहर को साफ-सुथरा रखने वाले सफाई कर्मचारियों के स्वास्थ्य के बारे में चिन्ता न तो नगर निगम को है और न माननीय न्यायपालिका को।