इस व्यवस्था में मौत का खेल यूँ ही जारी रहेगा!
सण्डीला गैस काण्ड
लालचन्द
मुनाफे की अंधी हवस बार-बार मेहनतकशों को अपना शिकार बनाती रहती है। इसका एक ताज़ा उदाहरण है सण्डीला (हरदोई) औद्योगिक क्षेत्र में स्थित ‘अमित हाइड्रोकेम लैब्स इण्डिया प्रा. लिमिटेड’ में हुआ गैस रिसाव। इस फैक्ट्री से फास्जीन गैस का रिसाव हुआ जो कि एक प्रतिबन्धित गैस है। इस गैस का प्रभाव फैक्ट्री के आसपास 600 मीटर से अधिक क्षेत्र में फैल गया। प्रभाव इतना घातक था कि 5 व्यक्तियों और दर्जनों पशुओं की मृत्यु हो गयी और अनेक व्यक्ति अस्पताल में गम्भीर स्थिति में भरती हैं। इस घटना के अगले दिन इसी फैक्ट्री में रसायन से भरा एक जार फट गया जिससे गैस का रिसाव और तेज़ हो गया। किसी बड़ी घटना की आशंका को देखते हुए पूरे औद्योगिक क्षेत्र को ही ख़ाली करा दिया गया। इस फैक्ट्री में कैंसररोधी मैटीरियल बनाने के नाम पर मौत का खेल रचा जा रहा था। इस तरह के तमाम और उद्योग हैं जहाँ पर, अवैध रूप से ज़िन्दगी के लिए ख़तरनाक रसायनों को तैयार किया जाता है।
भारत जैसे पिछड़े पूँजीवादी देशों में औद्योगिक उत्पादन के लिए ऐसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है जो कि विकसित देशों में प्रतिबन्धित हैं। औद्योगिक उत्पादन की आधुनिक तकनीक एवं उत्पादन की प्रक्रिया जो कि इन्सानी ज़िन्दगी के लिए सुरक्षित होता है, मंहगा पड़ता है। इसलिए भारत जैसे देशों में पिछड़ी उत्पादन तकनीकों एवं प्रक्रियाओं का इस्तेमाल होता है और कई बार तो यह मालूम होते हुए भी कि ऐसा करना ग़ैरक़ानूनी है? उस पर ध्यान नहीं दिया जाता क्योंकि पूँजीपति रिश्वत देकर अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं। भ्रष्टाचार एवं मुनाफा कमाने की अंधी दौड़ के कारण ऐसे ख़तरनाक उद्योग भारत जैसे देशों में चलते रहते हैं।
राजधानी लखनऊ के चारों ओर औद्योगिक क्षेत्र हैं। इनमें अमौसी, सरोजनी नगर, चिनहट, ताल कटोरा प्रमुख हैं। इन क्षेत्रों की फैक्ट्रियों में केमिकल, शीशा, पेण्ट, प्लास्टिक, दवा बनाने से लेकर सनमाइका एवं प्लाईवुड बनाने का काम होता है और इनके के लिए अमोनिया, क्लोरीन, नाइट्रोजन, आर्गन, आक्सीजन, आदि कई तरह की गैसों का इस्तेमाल किया जाता है। ये गैसें ज़हरीली होने के साथ ही ज्वलनशील भी होती हैं। गैस रिसाव जैसी आपदा की स्थितियों से निपटने के लिए इन फैक्ट्रियों में कोई प्रबन्ध नहीं है। प्रशासन एवं अग्निशमन विभाग के पास भी इन स्थितियों से निपटने के लिए कोई समुचित प्रबन्ध नहीं है। दो वर्ष पूर्व सरोजनी नगर स्थित औद्योगिक क्षेत्र में प्लास्टिक का दाना बनाने वाली फैक्ट्री में हुए गैस रिसाव से चार लोगों की मौत हो गयी थी और दर्ज़नों प्रभावित हुए थे।
यदि मौजूदा क़ानून के अनुसार देखा जाये तो कारख़ानों एवं खदानों में काम करने की जगहों एवं स्थितियों की जाँच करने और सही दिशा निर्देशों का पालन कराने के लिए फैक्ट्री इंस्पेक्टर, लेबर इंस्पेक्टर एवं ब्वायलर इंस्पेक्टर की नियुक्ति की जाती है जो कि वायु प्रदूषण, तापमान, सुरक्षा उपकरण, ज़हरीली गैसों के उपयोग, रासायनिक कचरों के निस्तारण, आदि पहलुओं की जाँच करने एवं उसका पालन कराने के लिए नियुक्त होते हैं। इस लुटेरी एवं मानवद्रोही व्यवस्था में सारे क़ानून काग़ज़ पर लिखी इबारत भर रह जाते हैं। आये दिन देश के अलग-अलग औद्योगिक क्षेत्रो में कभी गैस रिसाव तो कभी ब्वायलर फटने, कभी आग लगने की घटनाएँ घटती रहती हैं और मज़दूरों की जान लेकर ही शान्त होती हैं। अभी फरीदाबाद (हरियाणा) में भी एक संयन्त्र में गैस रिसाव हुआ है। क्लोरीन गैस के रिसाव के कारण लोगो को चक्कर आने, उल्टी, ख़राश, आँखो में जलन जैसी तमाम परेशानी होने लगी।
इस तरह की घटनाएँ घटने के बाद सरकारी महकमे अपनी लाज बचाने के वास्ते कुछ फौरी जाँच पड़ताल करते हैं और सबसे छोटे प्यादे को अपना निशाना बनाकर फिर शान्त हो जाते हैं। सण्डीला की घटना के बाद उ.प्र. प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने जाँच करने का ऐलान किया है और दोषी पाये जाने पर कार्रवाई की बात की है। पर इन कार्रवाइयों का हश्र सभी को मालूम है।
सण्डीला की जिस औद्योगिक इकाई में गैस रिसाव हुआ है उसके मालिक बी.एन. लाल एवं अमित श्रीवास्तव के ख़िलाफ ग़ैर इरादतन हत्या का मुकदमा लगाने की बात की जा रही है। केमिकल इंजीनियर शैलेन्द्र और स्थानीय व्यवस्थापक को हिरासत में लेकर मामले की खानापूर्ती की जा रही है। मालिकों को बचाने के लिए पूरा महकमा लगा हुआ है। सण्डीला क्षेत्राधिकारी के अनुसार रात की पाली में केवल सात श्रमिक कार्यरत थे जबकि सच्चाई यह है कि लगभग दो दर्जन लोग रात की पाली में काम पर थे और अब वे लापता हैं। लोगों की आशंका का आधार यह भी है कि फैक्ट्री में दो एम्बुलेंस खड़ी रहती थीं पर अब वे भी ग़ायब हैं। मामला तूल न पकड़े इसके लिए ज़िलाधिकारी 1.20 लाख रुपये देने की घोषणा करके शान्त बैठ चुके हैं।
सवाल यह है कि कब तक इस तरह की घटनाएँ होती रहेंगी और लोगों की ज़िन्दगी लीलती रहेंगी। जवाब भी एकदम साफ है! जब तक यह बर्बर एवं मानवद्रोही हो चुकी पूँजीवादी व्यवस्था बनी रहेगी तब तक मेहनतकशों की मौत का मौजूदा खेल जारी रहेगा। यह खेल तभी बन्द होगा जब ख़ुद मज़दूर इस व्यवस्था को बदलकर एक दूसरी बेहतर व्यवस्था नहीं स्थापित कर देते।
मज़दूर बिगुल, फरवरी 2011
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