लघु कथा – रेल का सफर
इसी बीच उनके बीच कुछ नौजवान, हाथ में पर्चे और अख़बार लिये ट्रेन के डिब्बे में प्रवेश करते हैं। वे चलती ट्रेन में मेहनत की भट्टी में पके चेहरों के बीच नारे लगा रहे थे, ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे थे, उनकी गर्दन की नसें खिंची हुईं थीं, मुट्ठियाँ तनी हुईं थीं और क्रोध और आवेश उनके स्वर में भरा हुआ था। उनके नारे क्रान्तिकारियों को याद कर रहे थे, मज़दूरों और ग़रीबों को एकजुट होने का आह्वान कर रहे थे। उनके बीच एक नौजवान अख़बार के बारे में विस्तार से बता रहा था। उसने कहा कि यह मेहनतकश जनता का अख़बार है — उनका शिक्षक, उनका संगठनकर्ता।

















