मालिक बनने के भ्रम में पिसते मज़दूर
आनन्द, राजा विहार, बादली औद्योगिक क्षेत्र, दिल्ली-42
कम्पनी का मालिक किस हद तक मजदूरों को लूटना चाहता है इसका कुछ कहा नहीं जा सकता। आज बहुत ही कम लगभग पाँच प्रतिशत मज़दूर कम्पनी में पर्मानेण्ट नौकरी पाते हैं। बाकी सब कैजुअल, पीस रेट या ठेके पर काम करते हैं। ये स्थिति पूरे भारत की है। अंदाज़ा सिर्फ़ इससे लगा सकते हैं कि भारत की राजधानी दिल्ली में हाल ही में हुई वेतन बढ़ोत्तरी के बाद अकुशल मजदूरों की तनख़्वाह 6084, अर्द्धकुशल की 6784 रुपये और कुशल मज़दूरों की 7410 है। इसके विपरीत सभी कम्पनियाँ मज़दूरों को अकुशल के लिए 3000 रु और कुशल के लिए रु. 4500 देती हैं। मगर कंपनी मालिक इतना भी नहीं देना चाहते हैं।
बादली औद्योगिक क्षेत्र एफ 2/86 में अशोक नाम के व्यक्ति की कम्पनी है जिसमें बालों में लगाने वाला तेल बनता है और पैक होता है। पैकिंग का काम मालिक ठेके पर कराता है। इस कम्पनी में काम करने वाले आमोद का कहना है कि ये तो 8 घण्टे के 3000 रु. से भी कम पड़ता है। और उसके बाद दुनियाभर की सरदर्दी ऊपर से कि माल पूरा पैक करके देना है। अब उस काम को पूरा करने के लिए आमोद और उसका भाई प्रमोद और उमेश 12-14 घंटे 4-5 लोगों को साथ लेकर काम करता है। आमोद का कहना है कि कभी काम होता है कभी नहीं। जब काम होता है तब तो ठीक नहीं तो सारे मजदूरों को बैठाकर पैसा देना पड़ता है। जिससे मालिक की कोई सिरदर्दी नहीं है। जितना माल पैक हुआ उस हिसाब से हफ्ते में भुगतान कर देता है। अगर यही माल मालिक को खुद पैक कराना पड़ता तो 8-10 मजदूर रखने पड़ते। उनसे काम कराने के लिए सुपरवाइजर रखना पड़ता और हिसाब-किताब के लिए एक कम्प्यूटर ऑपरेटर रखना पड़ता। मगर मालिक ने ठेके पर काम दे दिया और अपनी सारी ज़िम्मेदारियों से छुट्टी पा ली। अगर ठेकेदार काम पूरा करके नहीं देगा तो मालिक पैसा रोक लेगा। मगर आज हम लोग भी तो इस बात को नहीं सोचते हैं। और ठेके पर काम लेकर मालिक बनने की सोचते हैं। काम तो ज्यादा बढ़ जाता है मगर हमारी जिन्दगी में कोई बदलाव नहीं होता। इसलिए आज की यह जरूरत है कि हम सब मिलकर मालिकों के इस लूट तन्त्र को खत्म कर दें।
मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2011