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मुक्तिबोध की कविताओं के कुछ अंश

अगर मेरी कविताएँ पसन्द नहीं
उन्हें जला दो,
अगर उसका लोहा पसन्द नहीं
उसे गला दो,
अगर उसकी आग बुरी लगती है
दबा डालो
इस तरह बला टालो!!

मुक्तिबोध की कहानी :समझौता

मेरे पास पिस्तौल है। और, मान लीजिए, मैं उस व्यक्ति का – जो मेरा अफ़सर है, मित्र है, बन्धु है – अब ख़ून कर डालता हूँ। लेकिन पिस्तौल अच्छी है, गोली भी अच्छी है, पर काम – काम बुरा है। उस बेचारे का क्या गुनाह है? वह तो मशीन का एक पुर्ज़ा है। इस मशीन में ग़लत जगह हाथ आते ही वह कट जायेगा, आदमी उसमें फँसकर कुचल जायेगा, जैसे बैगन। सबसे अच्छा है कि एकाएक आसमान में हवाई जहाज़ मँडराये, बमबारी हो और वह कमरा ढह पड़े, जिसमें मैं और वह दोनों ख़त्म हो जायें। अलबत्ता, भूकम्प भी यह काम कर सकता है।

जनता का साहित्य / मुक्तिबोध

जनता के साहित्य से अर्थ है ऐसा साहित्य जो जनता के जीवन-मूल्यों को, जनता के जीवनादर्शों को, प्रतिष्ठापित करता हो, उसे अपने मुक्तिपथ पर अग्रसर करता हो। इस मुक्तिपथ का अर्थ राजनैतिक मुक्ति से लगाकर अज्ञान से मुक्ति तक है। अतः इसमें प्रत्येक प्रकार का साहित्य सम्मिलित है, बशर्ते कि वह सचमुच उसे मुक्तिपथ पर अग्रसर करे। … जनता के मानसिक परिष्कार, उसके आदर्श मनोरंजन से लगाकर क्रान्तिपथ पर मोड़ने वाला साहित्य, मन को मानवीय और जन को जन-जन करने वाला साहित्य, शोषण और सत्ता के घमण्ड को चूर करने वाले स्वातंत्रय और मुक्ति के गीतों वाला साहित्य, प्राकृतिक शोभा और स्नेह के सुकुमार दृश्यों वाला साहित्य – सभी प्रकार का साहित्य सम्मिलित है बशर्ते कि वह मन को मानवीय, जन को जन-जन बना सके और जनता को मुक्तिपथ पर अग्रसर कर सके।

कविता – पूँजीवादी समाज के प्रति / मुक्तिबोध

तेरे हृास में भी रोग-कृमि हैं उग्र
तेरा नाश तुझ पर क्रुद्ध, तुझ पर व्यग्र।
मेरी ज्वाल, जन की ज्वाल होकर एक
अपनी उष्णता में धो चलें अविवेक
तू है मरण, तू है रिक्त, तू है व्यर्थ
तेरा ध्वंस केवल एक तेरा अर्थ।