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शाखा में साख

बहुत दिन हुए, मोहल्ले में विधर्मियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हुई। गहन मुद्रा में बैठे पाण्डेय जी सोच रहे थे। अन्य शाखा प्रान्त के लोग उनका कभी-कभी मज़ाक भी उड़ाने लगे थे। वे कहते “पाण्डेय जी आपके इलाक़े में तो इन मुल्लों की संख्या बढ़ती जा रही है। लगता है आपको पण्डिताईनी से फ़ुरसत नहीं मिल रही।” यही ख़्याल उन्हें बार-बार कुरेद रहा था। रविवार के दिन काम-धन्धें से फ़ारिग़ होकर कुर्सी पर बैठे वह इसी चिन्तन में मगन थे। पाण्डेय जी अब 50 के होने को आये हैं, बड़े से अपार्टमेण्ट में रह रहे हैं। बैंक में मैनेजर की पोस्ट पर कार्यरत हैं। इनका एक बच्चा अभी विदेश में सेटल हो चुका है, दूसरा बैंगलोर की एक बड़ी यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा है। बचपन में ही पाण्डेय जी शाखा से जुड़ गये थे। आज वह शाखा के उत्तर-पश्चिमी ज़िला के संघचालक हैं। जवानी में उन्होंने बाबरी मस्ज़िद के आन्दोलन में भी भाग लिया था।

अडानी जी का मोदी जी से भ्रष्टाचार-विहीन प्रेम!

माधवी जी का अडानी जी से; अडानी जी का मोदी जी से जो रिश्ता है, वह क्या कहलाता है? ये सब प्यार के रिश्ते ही तो हैं! मोदी जी ‘प्यार बाँटते चलो’ में यक़ीन रखते हैं! अडानी ने उन्हें थोड़ा प्यार दिया और मोदी जी ने इस प्यार के लिए पूरा देश उनपर न्यौछावर कर दिया! मोदी जी को प्यार सिर्फ़ अडानी ही नहीं बल्कि अम्बानी से लेकर टाटा-बिड़ला-हिन्दुजा जैसे सब बड़े लोग करते हैं। बदले में मोदी जी भी सबका ख़्याल रखते हैं, बोलते हैं: “जितना खाना है खाओ, मैं बैठा हूँ।” आप इस प्रेम से प्रेम करें! अगर आप नहीं करते, तो आप कैसे देशद्रोही, विदेशपरस्त और सिक्युलर व्यक्ति हैं? प्रेम से प्रेम करने पर प्रेम बढ़ता है! इसलिए यह बात समझ लें कि राष्ट्र अडानी जी, अम्बानी जी, टाटा जी, बिड़ला जी आदि की तिजोरियों में निवास करता है! उनकी लक्ष्मी ही राष्ट्र है, वही धर्म है, वही नैतिकता है, वही सबकुछ है! अब मोदी जी ठहरे पक्के राष्ट्रवादी और धर्मध्वजाधारी! तो वे राष्ट्रसेवा और धर्मसेवा नहीं करेंगे, तो क्या करेंगे?

एक धनपशु के बेटे की शादी का अश्लील तमाशा और देश के विकास की बुलन्द तस्वीर!

यही तो होता है देश का विकास। समूचे देश के राष्ट्रवादी व देशभक्त एकजुट होकर अभी इसी शादी में लगे हुए हैं। यह एक प्रकार से इस समय राष्ट्रवादी होने का सबसे अच्छा तरीका है। जब देश में विकास अपने चरम पर पहुँच जाता है तब छोटी-मोटी समस्याएँ दिखनी बन्द हो जाती है। भगदड़ में लोग मर जाते हैं, नौजवानों को नौकरी नहीं मिल रही, सभी समान महँगे हो रहे हैं, मॉब लिंचिंग हो रही है, धर्म के नाम पर क़त्ल हो रहे हैं, आदि-आदि। विकास के चरम पर पहुँच कर यह सब मोहमाया दिखने लगता है। अम्बानी और उनके जमात के लोग और उन सबके चहेते मोदी जी देश को इसी विकास की चरम अवस्था में ले जाना चाहते हैं। और भाई यही तो समानता होती है!

कहानी – सुकून की तलाश में एक दिन / अन्वेषक

आख़िर सूरज डूब गया, तेज़ हवाओं ने सब कुछ अपने आगोश में ले लिया। अँधेरा हर तरफ़ फैल चुका था। पूरे पार्क में सन्नाटा पसर गया, कहीं कोई नहीं दिखाई दे रहा था। लाउडस्पीकर का शोर अभी ख़त्म नहीं हुआ, बस अभी उसकी आवाज़ धीमी थी। सब लौट गये फिर अपने ठिकानों में जहाँ अगले दिन उन्हें सुबह से रात तक, अपने हाड मांस को गलाना था ताकि अपना व परिवार का पेट का गड्ढा भर सके। यही पहिया घूम रहा है दिन, रात, महीनों, सालों से। इसी में एक दिन निकाल कर आते हैं सभी सुकून की तलाश करते हुए, पर अन्त में रह जाता है तो सिर्फ़ अँधेरा जो सब कुछ अपने अन्दर समा लेना चाहता है।

कहानी – स्याह और सुर्ख़ (भाग एक)

हल्का पीला पड़ चुका चेहरा, जो लम्बी थकान के बाद लटका हुआ है। उसके हाथ एक दिशा में लगातार चल रहे हैं। पीलापन उसके चेहरे पर जड़ जमा चुका है, पर साफ़ नज़र नहीं आ रहा क्योंकि कारख़ाने में बन रहे वाइपर के पाइपों और उसमें लगा काले रंग का केमिकल उसके चेहरे को ढँक चुका है। इसी कारण थकान भी धूमिल लग रही है। दिन पर दिन उसका पतला-दुबला शरीर ढल रहा है। नीचे आसमानी रंग की हाफ़शर्ट, जो काले-नीले मिश्रण का रूप धारण कर चुकी है, कभी उसे फ़िट आती थी।