केदारनाथ अग्रवाल की तीन छोटी कविताएँ
जो जीवन की आग जला कर आग बना है
फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है
जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है
जो युग के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा
जो जीवन की आग जला कर आग बना है
फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है
जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है
जो युग के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा
कविता की कुछ पंक्तियां
..सम्मोहित-सी वह भीड़
हमेशा तानाशाह के पीछे चलती थी
और तानाशाह के इशारे का इंतज़ार करती थी।
तानाशाह इतना आश्वस्त था कि
यह सोच भी नहीं पाता था कि
किसी भी सम्मोहन का जादू
कुछ समय बाद टूटने लगता है।
एक दिन अपने लाव-लश्कर के साथ
तानाशाह जब सड़क पर निकला
तो उसने देखा कि भीड़
जो उसके पीछे चला करती थी,
वह उसका पीछा कर रही है!
जब मन्दिर, मस्जिद, गिरजा में
हर एक पहचान सिमट जाये
जब लूटने वाले चैन से हों
और बस्ती, बस्ती भूख उगे
युद्ध जो आ रहा है पहला युद्ध नहीं हैI
इससे पहले भी युद्ध हुए थेI
पिछला युद्ध जब ख़त्म हुआ
तब कुछ विजेता बने और कुछ विजित।
विजितों के बीच आम आदमी भूखों मरा
विजेताओं के बीच भी मरा वह भूखा ही।
किसान परिवार में जन्मे रामधारी खटकड़ हरियाणा की मेहनतकश जनता की बुलन्द आवाज़ के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। ये काव्य की रागनी/रागिनी या रागणी की विशिष्ट हरियाणवी शैली में लिखते हैं। इनकी कविताई बड़े ही सहज-सरल और साफ़गोई के साथ सामाजिक यथार्थ को प्रस्तुत करने में सक्षम है।
वे
जब विकास की बात करते हैं
तबाही के दरवाजे़ पर
बजने लगती है शहनाई
कहते हैं – एकजुटता
और गाँव के सीवान से
मुल्क की सरहदों तक
उग आते हैं काँटेदार बाड़े
ग़रीब अब गहरे जाल में फँस गए हैं
वे नहीं जानते कि उनके साथ लेनिन है या लोकनाथ
वे नहीं जानते कि गोली चलेगी या नहीं!
वे नहीं जानते कि गाँव-शहर में कोई उन्हें नहीं चाहता
राष्ट्र गीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है।
किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है!
कौन यहाँ सुखी है, कौन यहाँ मस्त है!
सेठ ही सुखी है, सेठ ही मस्त है
मन्त्री ही सुखी है, मन्त्री ही मस्त है
उसी की है जनवरी, उसी का अगस्त है!
तो उन्होंने चुपचाप उस पर हमला किया
और उसे खींच ले गये;
इतना मुश्किल था उनका षडयन्त्र
कि सरकार ने दिन-दहाड़े
क़ानून और व्यवस्था के जिन प्रहरियों
के हाथ उसे सौंपा था
उनको पता तक नहीं चला।