Tag Archives: कवितायें / गीत

कविता – 26 जनवरी, 15 अगस्त… – नागार्जुन

किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है!
कौन यहाँ सुखी है, कौन यहाँ मस्त है!
सेठ ही सुखी है, सेठ ही मस्त है
मन्त्री ही सुखी है, मन्त्री ही मस्त है
उसी की है जनवरी, उसी का अगस्त है!

कविता : हत्यारों की शिनाख़्त / लेस्ली पिंकने हिल

तो उन्होंने चुपचाप उस पर हमला किया
और उसे खींच ले गये;
इतना मुश्किल था उनका षडयन्त्र
कि सरकार ने दिन-दहाड़े
क़ानून और व्यवस्था के जिन प्रहरियों
के हाथ उसे सौंपा था
उनको पता तक नहीं चला।

कविता : जागो दुनिया के मज़दूर! / बबन भक्‍त

विश्व प्रगति से क़दम मिलाकर

उन्नति ख़ातिर अपने को खपाकर

अमीरों को हर सुख पहुँचाया,

अपने बच्चों को भूखा सुलाकर।

जीवन को तुमने हवन कर दिया,

रहे सुविधा से कोसों दूर।

अब चेतने का समय आ गया,

जागो दुनिया के मज़दूर।

कविता : लेनिन की मृत्यु पर कैंटाटा / बेर्टोल्ट ब्रेष्ट Poem : Cantata on the day of Lenin’s death / Bertolt Brecht

जिस दिन लेनिन नहीं रहे
कहते हैं, शव की निगरानी में तैनात एक सैनिक ने
अपने साथियों को बताया: मैं
यक़ीन नहीं करना चाहता था इस पर।
मैं भीतर गया और उनके कान में चिल्लाया: ‘इलिच
शोषक आ रहे हैं।’ वह हिले भी नहीं।
तब मैं जान गया कि वो जा चुके हैं।

सावित्रीबाई फुले की कुछ कविताएँ

“गुलाब का फूल
और फूल कनेर का
रंग रूप दोनों का एक सा
एक आम आदमी
दूसरा राजकुमार
गुलाब की रौनक
देसी फूलों से
उसकी उपमा कैसी?”

युवा मार्क्स की कविता : जीवन-लक्ष्य

कठिनाइयों से रीता जीवन
मेरे लिए नहीं,
नहीं, मेरे तूफानी मन को यह स्वीकार नहीं।
मुझे तो चाहिये एक महान ऊँचा लक्ष्य
और उसके लिए उम्र भर संघर्षों का अटूट क्रम ।
ओ कला ! तू खोल
मानवता की धरोहर, अपने अमूल्य कोषों के द्वार
मेरे लिए खोल !

कविता – मसखरा / कविता कृष्णपल्लवी

मसखरा सिंहासन पर बैठा
तरह-तरह के करतब दिखाता है
दरबारी हँसते हैं तालियाँ पीट-पीटकर
और डरे हुए भद्र नागरिक उनका साथ देते हैं।

कविता : असली कारण को पहचानो / आनन्‍द

काम की तलाश में घूम रहे हैं लोग,
एक-दूसरे की जाति-धर्म को
दोष दे रहे हैं लोग,
भाई-भतीजे, बुजुर्गों-रिश्तेदारों
को दोष दे रहे हैं लोग

कविता : अनिल सदा / अमिताभ बच्चन

उनका नाम उन करोड़ों प्रवासी मज़दूरों की तरह
इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा
जो कब पैदा लेते हैं
कब कहाँ शहीद हो जाते हैं
इसका पता हम सुशिक्षित ज़मीन मालिकों को
जो किसान के रूप में धरती से विदा होना नहीं चाहते
और प्रवासी मज़दूरों की तबाही में
अपनी कोई भूमिका नहीं देखते
पता ही नहीं चलता