Category Archives: Slider

कर्नाटक चुनाव के नतीजे और मज़दूर-मेहनतकश वर्ग के लिए इसके मायने

भाजपा की चुनावी रैलियों से रोज़गार, शिक्षा, महँगाई, आवास और स्वास्थ्य नदारद थे और आते भी कैसे क्योंकि अभी सरकार में तो स्वयं भाजपा ही थी। भाजपा और संघ परिवार के लिए बिना कुछ किये वोट माँगने का सबसे सरल रास्ता होता है साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति को हवा देना। इसकी तैयारी इस वर्ष के अरम्भ से ही भाजपा ने नंगे तौर पर शुरू कर दी थी। जनवरी में कॉलेज में हिजाब पहनने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। लोगों के बीच प्रतिरोध होने पर हिन्दुत्ववादी संगठनों को हिंसा की खुली छूट दे दी गयी।

‘द केरला स्टोरी’: संघी प्रचार तन्त्र की झूठ-फ़ैक्ट्री से निकली एक और फ़िल्म

जिस तरीक़े से जर्मनी में यहूदियों को बदनाम करने के लिए किताबों, अख़बारों और फ़िल्मों के ज़रिए तमाम अफ़वाहें फ़ैलायी जाती थीं, आज उससे भी दोगुनी रफ़्तार से हिन्दुत्व फ़ासीवाद मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर उगल रहा है। ‘द केरला स्टोरी’ भारत के हिन्दुत्व फ़ासीवाद के प्रचार तन्त्र में से ही एक है।

‘द गुजरात स्टोरी’ : भाजपा के शासन में गुजरात में 41 हज़ार महिलाएँ लापता!

ऐसा क्यों होता है कि “संस्कार” और “प्राचीन भारतीय हिन्दू संस्कृति” की रट लगाने वाले ये लोग ही कुसंस्कारों की गटरगंगा में सबसे अधिक गोते लगाते पाये जाते हैं? “संसद-विधानसभा की मर्यादा”, “ईमानदारी” और “राष्ट्रवाद” का भ्रमजाल फैलाने वाले इन हिटलर-मुसोलिनी की सन्तानों का असल चेहरा बेहद ही अश्लील और घृणास्पद है।

कर्नाटक चुनावों के नतीजे, मोदी सरकार की बढ़ती अलोकप्रियता, फ़ासिस्टों की बढ़ती बेचैनी, साम्प्रदायिक उन्माद व अन्धराष्ट्रवादी लहर पैदा करने की बढ़ती साज़िशें और हमारे कार्यभार

कर्नाटक चुनावों में भाजपा और मोदी-शाह की जोड़ी ने एड़ी-चोटी का पसीना एक कर दिया लेकिन इसके बावजूद उसे चुनावों में क़रारी हार का सामना करना पड़ा। नरेन्द्र मोदी ने सारा कामकाज छोड़कर कर्नाटक चुनावों के प्रचार में अपने आपको झोंक दिया और हमेशा की तरह प्रधानमन्त्री की बजाय प्रचारमन्त्री की भूमिका निभायी। हार की आशंका होते ही नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने सीधे साम्प्रदायिक प्रचार और धार्मिक उन्माद पैदा करने की कोशिश की। लेकिन कुछ भी काम नहीं आया। इसकी कई वजहें थीं। पहली वजह यह थी कि जनता महँगाई, बेरोज़गारी और कर्नाटक में भाजपा द्वारा भ्रष्टाचार की नयी मिसालों को देखकर त्रस्त थी, दूसरा, हिन्दू-मुस्लिम और मन्दिर-मस्जिद के मुद्दे अब किसी नयी आबादी को भाजपा के पक्ष में नहीं जीत पा रहे थे और तीसरा, इन्हीं वजहों से लोग बदलाव चाहते थे।

मणिपुर में जारी हिंसा : भारतीय राज्यसत्ता के राष्ट्रीय दमन और हिन्दुत्व फ़ासीवाद के नफ़रती प्रयोग की परिणति

मणिपुर की हालिया हिंसा में एक नया कारक मणिपुर में संघ परिवार व भाजपा की बढ़ती मौजूदगी और उसके नफ़रती फ़ासिस्ट प्रयोग का रहा है। ग़ौरतलब है कि मणिपुर में 2017 से ही भाजपा की सरकार है जिसका इस समय दूसरा कार्यकाल चल रहा है। पिछले छह वर्षों में संघ परिवार ने सचेतन रूप से मणिपुर में मैतेयी राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने और उसे हिन्दुत्ववादी भारतीय राष्ट्रवाद से जोड़ने के तमाम प्रयास किये हैं। हाल के वर्षों में ऐसी अनेक संस्थाएँ अस्तित्व में आयी हैं जो मैतेयी लोगों के हितों की नुमाइन्दगी करने के नाम पर खुले रूप में मणिपुर की अन्य जनजातियों, जैसे कुकी और नगा के प्रति घृणा का माहौल पैदा कर रही हैं।

धर्म के बाज़ार में एक और नया पाखण्डी – धीरेन्द्र शास्त्री

पूँजीवादी समाज में धर्म एक धन्धा और व्यापार ही होता है। जब यह बुर्जुआ राजनीति के साथ मिलता है तो प्रतिक्रियावाद के सबसे घिनौने रूपों को जन्म देता है। आज पूँजीवादी राज्यसत्ता अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए धार्मिक कुरीति, अन्धविश्वास और “चमत्कारी बाबाओं” को बढ़ावा दे रही है ताकि पूँजीवादी व्यवस्था के तमाम “तोहफ़ों” जैसे सामाजिक-आर्थिक असुरक्षा, बेरोज़गारी, महँगाई, भुखमरी, ग़रीबी को ‘किस्मत का लेखा’, ‘रेखाओं का खेल’, ‘पूर्वजन्म के पाप’ आदि के रूप में प्रस्तुत किया जा सके और जनता को ‘जाहि बिधी रखे राम ताहि बिधी रहना’ पर भरोसा रखकर हर अन्याय और शोषण-उत्पीड़न को स्वीकार करने और ‘सन्तोषम् परम सुखम’ की नसीहत मानने के लिए राज़ी किया जा सके।

भाजपा के ‘लव जिहाद’ की नौटंकी की सच्चाई

आपको पता ही होगा कि भाजपा पिछले कई वर्षों से ‘लव जिहाद’ को लेकर दंगे-फ़साद और हत्याएँ करवाती रही है। यह ‘लव जिहाद’ क्या है? अगर किसी मुसलमान पुरुष की किसी हिन्दू स्त्री से शादी होती है, तो उसे भाजपा वाले ‘लव जिहाद’ बोलते हैं। अगर इसका उल्टा हो, यानी अगर हिन्दू पुरुष मुसलमान स्त्री से शादी कर ले, तो भाजपा वाले उसे ‘प्रेम धर्मयुद्ध’ नहीं बोलते। युद्ध या जिहाद इलाके, सम्पत्ति, देश जीतने के लिए होते हैं। तो फिर इस ‘लव जिहाद’ शब्द का मतलब क्या हुआ? परायी धर्म की स्त्री को जीतना! मानो स्त्री ज़मीन-जायदाद, इमारत, सम्पत्ति या ऐसी कोई चीज़ हो! प्यार करना सभी का स्वाभाविक अधिकार है। यदि कोई स्त्री अलग धर्म के पुरुष से प्यार करती है, तो यह उसका व्यक्तिगत मसला है। स्त्री किसी धार्मिक समुदाय की सम्पत्ति नहीं है और न ही उस धार्मिक समुदाय का “सम्मान” या “प्रतिष्ठा” स्त्री की देह या उसकी योनि में समायी होती है। अगर किसी को ऐसा लगता है, तब तो कहना होगा कि ऐसा सोचने वाले व्यक्ति को अपने धार्मिक समुदाय की “प्रतिष्ठा” या “सम्मान” या “इज़्ज़त” की सोच के बारे में सोचना पड़ेगा कि यह कैसा समुदाय है जिसकी इज़्ज़त, प्रतिष्ठा या सम्मान किसी गुप्तांग में समाया हुआ हो!

2024 के आम चुनावों के पहले अन्धराष्ट्रवाद व साम्प्रदायिक उन्माद की लहर उठाने की कोशिशों से सावधान रहें!

जब भी भाजपा की कोई सरकार ख़तरे में होती है तो या तो पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ होती है, या फिर कोई आतंकी हमला हो जाता है या कहीं दंगा फैल जाता है! याद करें कि गोधरा की घटना और फिर गुजरात-2002 साम्प्रदायिक नरसंहार भी 2002 के गुजरात विधानसभा चुनावों के ठीक पहले ही हुआ था। ऐसा लगता है मानो जब-जब भाजपा हार रही होती है और उसके नेता दिलो-जान से चाहते हैं कि कोई ऐसी आकस्मिक घटना घट जाये, उसी समय ऐसी आकस्मिक घटना घट ही जाती है! लेकिन पुलवामा हमले के समय जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे भाजपा नेता सत्यपाल मलिक के साक्षात्कार और डीएसपी देविन्दर सिंह को बाद में मिली जमानत से इस आकस्मिकता पर भी सवाल खड़े हो जाते हैं। ये घटनाएँ कितनी इत्तेफ़ाकन थीं, इस पर भी सवाल खड़े हो जाते हैं। और बार-बार भाजपा और उसकी सरकारों के संकट में आने पर अचानक “देश संकट में” कैसे आ जाता है, इस पर भी सवाल खड़े हो जाते हैं।

मज़दूर वर्ग को आरएसएस द्वारा इतिहास और प्राकृतिक विज्ञान को विकृत करने का विरोध क्यों करना चाहिए? 

डार्विन का सिद्धान्त जीवन और मानव के उद्भव के बारे में किसी पारलौकिक हस्तक्षेप को खत्म कर जीवन जगत को उतनी ही इहलौकिक प्रक्रिया के रूप में स्थापित करता है जैसे फसलों का उगना, फै़क्ट्री में बर्तन या एक ऑटोमोबाइल बनना। यह जीवन के भौतिकवादी आधार तथा उसकी परिवर्तनशीलता को सिद्ध करता है। यह विचार ही शासक वर्ग के निशाने पर है। संघ अपनी हिन्दुत्व फ़ासीवादी विचारधारा से देशकाल की जो समझदारी पेश करना चाहता है उसके लिए उसे जनता की धार्मिक मान्यताओं पर सवाल खड़ा करने वाले हर तार्किक विचार से उसे ख़तरा है। जनता के बीच धार्मिक पूर्वाग्रहों को मज़बूत बनाकर ही देश को साम्प्रदायिक राजनीति की आग में धकेला जा सकता है।

हर प्रकार के राजनीतिक विरोध को ख़ामोश करने की मोदी-शाह सत्ता की कोशिशें

जनवाद पर होने वाला हर हमला अन्तत: और दूरगामी तौर पर सर्वहारा वर्ग के हितों के विपरीत जाता है और सर्वहारा वर्ग व आम मेहनतकश जनता ही उसकी सबसे ज़्यादा क़ीमत चुकाती है। जब भी हम जनवाद पर होने वाले फ़ासीवादी हमले पर चुप रहते हैं तो हम फ़ासीवादी सत्ता के “दमन के अधिकार” का आम तौर पर वैधता प्रदान कर रहे होते हैं, चाहे हमारा ऐसा इरादा हो या न हो। इसलिए राहुल गाँधी की सदस्यता रद्द होने का प्रश्न हो या फिर जनपक्षधर पत्रकारों, जाति-उन्मूलन कार्यकर्ताओं, कलाकारों-साहित्यकारों के फ़ासीवादी मोदी-शाह सत्ता द्वारा उत्पीड़न का प्रश्न हो, सर्वहारा वर्ग को उसका पुरज़ोर तरीके से विरोध करना चाहिए। लेनिन ने बताया था कि जनवादी अधिकारों पर होने वाले हर हमले का विरोध किये बग़ैर, शोषक-शासक वर्गों व उनकी सत्ता द्वारा दमन-उत्पीड़न की हर घटना पर आवाज़ उठाये बग़ैर, और हर जगह दमित व शोषित लोगों के साथ खड़े हुए बग़ैर, सर्वहारा वर्ग समूची मेहनतकश जनता की अगुवाई करने और उसका हिरावल बनने की क्षमता अर्जित नहीं कर सकता है।