Category Archives: फ़ासीवाद / साम्‍प्रदायिकता

विज्ञान कांग्रेस में संघी विज्ञान के नमूने

भारतीय विज्ञान कांग्रेस में जो हुआ वह अपने आपमें कोई अपवाद नहीं है। चारों ओर चाहे स्कूलों में पढ़ाये जाने वाली किताबों में इतिहास को बदलने की बात हो या विज्ञान के नाम पर संघी अविज्ञान और झूठों का प्रचार यह सब संघ के एक बड़े एजेण्डे के भीतर एकदम फिट बैठता है। आज का भारत भुखमरी, बेरोज़गारी, ग़रीबी और बीमारी को लेकर सवाल न करें और अपने आने वाले कल के बारे में न सोचे, इसीलिए उसे एक ऐसे सुनहरे अतीत की तस्वीर दिखायी जाती है, जो कभी थी ही नहीं। एक फन्तासी रची जाती है कि वैदिक काल में जब भारत एक महान हिन्दू राष्ट्र था तब यहाँ अभूतपूर्व वैज्ञानिक उपलब्धियाँ थीं, जो आज इसीलिए नहीं हैं, क्योंकि भारत एक हिन्दुत्ववादी राष्ट्र नहीं है।

महेश्वर की कविता : वे

वे
जब विकास की बात करते हैं
तबाही के दरवाजे़ पर
बजने लगती है शहनाई

  कहते हैं – एकजुटता

  और गाँव के सीवान से

  मुल्क की सरहदों तक

  उग आते हैं काँटेदार बाड़े

बुलन्दशहर की हिंसा : किसकी साज़िश?

3 दिसम्बर को बुलन्दशहर के महाव गाँव के खेतों में गाय के मांस के टुकड़े मिले थे। ये टुकड़े बाक़ायदा गन्ने के खेत में इस तरह से लटकाये गये थे जिससे दूर से दिखायी दे जायें। बाद में यह भी पता चल गया कि जानवर को कम से कम 48 घण्टे पहले मारकर वहाँ लाया गया था। ग़ौरतलब है कि इसके 3 दिन बाद यानी 6 दिसम्बर को बाबरी मस्जिद ध्वंस की बरसी आने वाली थी और राम मन्दिर का मुद्दा पहले से ही गरमाया हुआ था। इसी दिन घटनास्थल से 50 किलोमीटर दूर ही मुसलमानों का धार्मिक समागम इज़्तिमा हो रहा था जिसमें लाखों मुसलमान शिरक़त कर रहे थे। अफ़वाह यह भी फैलायी गयी थी कि गौहत्या की वारदात को इज़्तिमा में शामिल हुए लोगों ने अंजाम दिया है। सुदर्शन न्यूज़ नामक संघी न्यूज़ चैनल के मालिक सुरेश चह्वाणके ने तो बाक़ायदा इस बात की झूठी ख़बर भी फैलायी थी जिसका खण्डन यूपी पुलिस ने ट्वीट करके किया। यहाँ एक चीज़़ और देखने वाली थी कि महाव गाँव बुलन्दशहर-गढ़मुक्तेश्वर स्टेट हाइवे पर पड़ता है और इज़्तिमा के समापन के बाद इस मार्ग से लाखों मुसलमानों को गुज़रना था। ‘दैनिक जागरण’ की ख़बर के अनुसार महाव गाँव में गोवंश के अवशेष मिलने के बाद संघ परिवार के हिन्दू संगठन बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने चिरगाँवठी गाँव के पास बुलन्दशहर-गढ़मुक्तेश्वर स्टेट हाईवे पर मांस के टुकड़ों को ट्रैक्टर-ट्राली में रख कर जाम लगा दिया था।

पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा की शिकस्त : यह निश्चिंत होने का समय नहीं है बल्कि फासीवाद के विरुद्ध लड़ाई को और व्यापक और धारदार बनाने का समय है!

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि न्यायपालिका, आई.बी., सी.बी.आई., ई.डी. समूची नौकरशाही और मुख्य धारा की मीडिया के बड़े हिस्से का फासिस्टीकरण किया जा चुका है। शिक्षा-संस्कृति के संस्थानों में संघी विचारों वाले लोग भर गये हैं पाठ्यक्रमों में बदलाव करके बच्चों तक के दिमाग़ों में ज़हर भरा जा रहा है। सेना में भी शीर्ष पर फासिस्ट प्रतिबद्धता वाले लोगों को बैठाया जा रहा है। संघी फासिस्ट अगर चुनाव हार भी जायेंगे तो सड़कों पर अपना ख़ूनी खेल जारी रखेंगे और फिर से सरकार बनाने के लिए क्षेत्रीय बुर्जुआ वर्ग की चरम पतित और अवसरवादी पार्टियों के साथ गाँठ जोड़ने की कोशिश करते रहेंगे। वे अच्छी तरह समझते हैं कि कांग्रेस या बुर्जुआ पार्टियों का कोई भी गठबंधन अगर सत्तारूढ़ होगा तो उसके सामने भी एकमात्र विकल्प होगा नव-उदारवादी विनाशकारी नीतियों को लागू करना। इन नीतियों को एक निरंकुश बुर्जुआ सत्ता ही लागू कर सकती है

साढ़े चार साल के मोदी राज की कमाई!-ध्वस्त अर्थव्यवस्था, घपले-घोटाले, बेरोज़गारी- महँगाई!

हिटलर के प्रचार मन्त्री गोयबल्स ने एक बार कहा था कि यदि किसी झूठ को सौ बार दोहराओ तो वह सच बन जाता है। यही सारी दुनिया के फासिस्टों के प्रचार का मूलमंत्र है। आज मोदी की इस बात के लिए बड़ी तारीफ़ की जाती है कि वह मीडिया का कुशल इस्तेमाल करने में बहुत माहिर है। लेकिन यह तो तमाम फासिस्टों की ख़ूबी होती है। मोदी को ‘’विकास पुरुष’’ के बतौर पेश करने में लगे मीडिया को कभी यह नहीं दिखायी पड़ता कि गुजरात में मोदी के तीन बार के शासन में मज़दूरों और ग़रीबों की क्या हालत हुई। मेहनतकशों को ऐसे झूठे प्रचारों से भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए। उन्हें यह समझ लेना होगा कि तेज़ विकास की राह पर देश को सरपट दौड़ाने के तमाम दावों का मतलब होता है मज़दूरों की लूट-खसोट में और बढ़ोत्तरी। ऐसे ‘विकास’ के रथ के पहिए हमेशा ही मेहनतकशों और ग़रीबों के ख़ून से लथपथ होते हैं। लेकिन इतिहास इस बात का भी गवाह है कि हर फासिस्ट तानाशाह को धूल में मिलाने का काम भी मज़दूर वर्ग की लौह मुट्ठी ने ही किया है!

सनातन संस्था की असली जन्म कुंडली : बम धमाकों से महाराष्ट्र को कौन दहलाना चाहता था?

इन चारों से पूछताछ में यह सामने आया कि ये लोग महाराष्ट्र के छह शहरों मुंबई, पुणे के सनबर्न फेस्टिवल, सतारा, सांगली, सोलापुर आदि जगहों पर बम विस्फोट करने वाले थे। इसका उद्देश्य यही था कि इसमें मुस्लिमों का नाम आये और उनके प्रति नफरत पैदा की जा सके। इन्होंने कुछ पत्रकारों और लेखकों पर हमले की भी योजना बनाई थी। साथ ही इन्होंने कहा कि पद्मावत फ़िल्म की रिलीज के समय इन्होंने मुम्बई के कुछ सिनेमाघरों के सामने पेट्रोल बम फेंका था। 

असम के 40 लाख से अधिक लोगों से भारतीय नागरिकता छिनी – हिन्दुत्ववादी साम्प्रदायिकतावादियों, क्षेत्रवादियों, नस्लवादियों, अन्ध-राष्ट्रवादियों की साजि़शों का शिकार हुए बेगुनाह लोग

असम में इतने बड़े स्तर पर लोगों को विदेशी क़रार दिये जाने से जो स्थिति बनी है, उसका असर सिर्फ़ इन ही व्यक्तियों और उनके परिवारों तक ही सीमित नहीं बल्कि इससे असम में अशान्ति के जो गम्भीर हालात पैदा हो गये हैं, उसके चलते असम के बाक़ी लोग भी बड़े स्तर पर प्रभावित हो रहे हैं और होंगे। समूचे देश में ही साम्प्रदायिक, क्षेत्रवादी, अन्ध-राष्ट्रवाद की नफ़रत की आग और भड़केगी जिसका सबसे अधिक फ़ायदा हिन्दुत्ववादी फासीवादी आरएसएस/भाजपा को मिलेगा। पूरे देश में भाजपा ‘विदेशी मुसलमानों को बाहर निकालने’ के मुद्दे का फ़ायदा उठा रही है। इसके नेता भड़काऊ बयान दे रहे हैं।

उत्तराखण्ड पुलिस के लिए मज़दूरों को न्यूनतम मज़दूरी की माँग पर जागरूक करना “अराजकता और अशान्ति फैलाना” है!

इस क्षेत्र में मज़दूरों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक और संगठित करने के प्रयास हिन्दुत्ववादी संगठनों को बहुत नागवार गुज़रते हैं और वे पहले भी कई बार ऐसे प्रचार अभियानों पर हमला करने की कोशिश कर चुके हैं लेकिन मज़दूरों के विरोध के कारण उनकी दाल नहीं गलती थी। इस बार भी जब उनकी धमकियों, मारपीट, पर्चे फाड़ने का कोई असर होता नहीं दिखा तो उन्होंने पुलिस को बुला लिया। ग़रीबों के साथ होने वाले अपराधों की सूचना मिलने के बाद भी घण्टों तक न पहुँचने वाली पुलिस फ़ौरन हाज़िर हो गयी।

आम लोगों के जीवनस्तर में वृद्धि के हर पैमाने पर देश पिछड़ा – ‘अच्छे दिन’ सिर्फ़ लुटेरे पूँजीपतियों के आये हैं

मोदी सरकार और संघ परिवार का एजेण्डा बिल्कुल साफ़ है। लोग आपस में बँटकर लड़ते-मरते रहें और वे अपने पूँजीपति मालिकों की तिजोरियाँ भरते रहें। सोचना इस देश के मज़दूरों और आम लोगों को है कि वे इन देशद्रोहियों की चालों में फँसकर ख़ुद को और आने वाली पीढ़ियों को बर्बाद करते रहेंगे या फिर इन फ़रेबियों से देश को बचाने के लिए एकजुट होंगे।

प्रधान चौकीदार की देखरेख में रिलायंस ने की हज़ारों करोड़ की गैस चोरी और अब कर रही है सीनाज़ोरी

‘चौकीदार’ मोदी सरकार सेंधमार मुकेश अम्बानी की रिलायंस इण्डस्ट्रीज़़ से 30 हज़ार करोड़ रुपये की प्राकृतिक गैस चोरी का मुक़दमा अन्तरराष्ट्रीय मध्यस्थता पंचाट में हार गयी! आन्ध्र के कृष्णा-गोदावरी बेसिन में ओएनजीसी के गैस भण्डार में सेंध लगाकर रिलायंस द्वारा हज़ारों करोड़ रुपये की प्राकृतिक गैस चुराने का यह मामला कई साल से चल रहा था। इस पंचाट ने जो रिलायंस ओर मोदी सरकार की सहमति से चुना गया था, उसने ओएनजीसी की शिकायत को रद्द कर रिलायंस पर लगा 10 हज़ार करोड़ का वह जुर्माना हटा दिया जो 2016 में जस्टिस ए पी शाह आयोग द्वारा रिलायंस को दण्डित करने की सिफ़ारिश के चलते सरकार को लगाना पड़ा था। इससे भी बडी बात यह कि पंचाट ने आदेश दिया है कि अब उलटा सरकार को ही हरजाने के तौर पर लगभग 50 करोड़ रुपये रिलायंस को देने होंगे।