Category Archives: फ़ासीवाद / साम्‍प्रदायिकता

देशव्यापी लॉक डाउन में दिल्ली पुलिस का राजकीय दमन

दंगे भड़काने में जिन लोगों की स्पष्ट भूमिका थी, जिनके भड़काऊ़ बयानों के दर्जनों वीडियो हैं, अख़बारों में छपी ख़बरें हैं, ख़ुद पुलिस के अफ़सरों सहित सैकड़ों चश्मदीद गवाह हैं, उनकी गिरफ़्तारी तो दूर, उनको पूछताछ के लिए बुलाने का नोटिस भी नहीं दिया गया है। कपिल मिश्रा, प्रवेश वर्मा, रागिनी तिवारी जैसे लोगों की ओर पुलिस की नज़र भी नहीं गयी है। जिनकी छत से हथियार लहराते लोगों के वीडियो हैं उनसे पुलिस पूछने भी नहीं गयी है। जो लोग अनेक वीडियो में हिंसा करते नज़र आ रहे हैं उनकी पहचान करके पूछताछ करना पुलिस के “स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोटोकॉल” में नहीं आता है जिसकी दुहाई दिल्ली पुलिस के आला अफ़सर दे रहे हें।

ट्रम्प की भारत यात्रा : “गुजरात मॉडल” की सच्चाई दीवारों के पीछे छिपाये न छिपेगी

पिछली 24-25 फ़रवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान अहमदाबाद में ट्रम्प के रोड शो का आयोजन किया गया। चूँकि इस रोड शो के रास्ते के कुछ हिस्से में ग़रीबों की झोंपड़पट्टियाँ भी आ रही थीं, इसलिए फटाफट 500 मीटर लम्बी दीवार खड़ कर दी गयी ताकि ट्रम्प को “न्यू इण्डिया” का ही दर्शन हो पाये और असली भारत दीवार के पीछे छिप जाये।

ये झूठ है! झूठ है! झूठ है!

22 दिसंबर को नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली के दौरान कहा था: डिटेंशन सेंटर की अफ़वाहें हैं; यह झूठ है, झूठ है, झूठ है। 24 दिसम्बर को अमित शाह ने कहा: डिटेंशन सेंटर सतत प्रक्रिया है, अगर कोई विदेशी नागरिक पकड़ा जाता है तो उसे डिटेंशन सेंटर में रखते हैं। शाह ने कहा: 6 साल में एनआरसी पर कोई बात नहीं हुई। लेकिन संसद में और कई चुनावी रैलियों में अमित शाह ने कहा था: ये मानकर चलिए, एनआरसी आने वाला है।

राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ की देशभक्ति का सच

आरएसएस और उसकी पार्टी, यानी भाजपा, इस समय देशभक्ति के सबसे बड़े ठेकेदार बने हुए हैं। मोदी सरकार की कारगुज़ारियों के ख़ि‍लाफ़ अगर इस

देश का कोई भी नागरिक आवाज़ उठाता है, तो उसे “देशद्रोही” करार दिया जाता है। मगर ख़ुद इनकी देशभक्ति की सच्‍चाई क्‍या है? पिछले छह वर्षों में मोदी सरकार ने किस तरह से देश की जनता के ख़ि‍लाफ़ काम किया है, और किस तरह से मुटद्यठीभर देशी-विदेशी पूँजीपतियों के हाथों इस देश की सम्‍पदा को बेचा है, उसकी बात तो हम करते ही रहे हैं।

सियाचिन में खड़े जवान भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बटोरने का साधन हैं!

भाजपा समर्थक बात-बात पर सेना के जवानों की दुहाई देते हैं। नरेन्द्र मोदी पुलवामा के शहीद जवानों के नाम पर वोट माँगने में भी नहीं शर्माते। मगर इन्हीं जवानों की हालत क्या है? भारत के नियंत्रक एवं लेखा महापरीक्षक (सीएजी) की संसद में पेश रिपोर्ट के मुताबिक सियाचिन, लद्दाख, डोकलाम जैसे ऊँचे क्षेत्रों में तैनात सैनिकों को ज़रूरत के अनुसार कैलोरी वाला भोजन नहीं मिल रहा। उन्हें वहाँ के मौसम से निपटने के लिए जिस तरह के ख़ास कपड़ों की ज़रूरत होती है उसकी ख़रीद में भी काफी देरी हुई।

बच्चों को ज़हरीले प्रचार के नशे में पागल हत्यारे बनाने का संघी प्रोजेक्ट

फ़ासिस्ट प्रचार की ज़हरीली ख़ुराक पर लम्बे समय तक पलकर तैयार हुए दो पगलाये हुए नौजवानों ने दिल्‍ली में शान्ति से प्रदर्शन कर रहे लोगों पर गोलियाँ चलायीं। जगह-जगह ऐसे ही नफ़रत से पागल नौजवानों की भीड़ इकट्ठा करके “गोली मारो सालों को” के नारे लगवाये जा रहे हैं। पुलिस चुपचाप तमाशा देख रही है और फिर उन हमलावरों को बेशर्मी के साथ बचाने में जुट जा रही है।

हँसी भी फ़ासीवाद-विरोधी संघर्ष का एक हथियार है!

रुडोल्फ़ हर्ज़ोग जर्मनी के एक प्रसिद्ध इतिहासकार और फिल्म-निर्माता हैं। वह विख्यात फिल्म-निर्देशक वर्नर हर्जोग के बेटे हैं! उनकी एक डाक्यूमेंट्री ‘लाफिंग विद हिटलर’ नात्सी दौर में जनता में प्रचलित चुटकुलों पर और इस बात पर केन्द्रित है कि जनता फासिस्टों का मज़ाक उड़ाकर किस प्रकार अपनी नफ़रत और प्रतिरोध की भावना का इज़हार करती थी। यह डाक्यूमेंट्री  जर्मनी के चैनल वन और बीबीसी पर बहुत लोकप्रिय हुई थी।

भाजपा शासन के आतंक को ध्‍वस्‍त कर दिया है औरतों के आन्‍दोलन ने!

…जामिया पर दमन के विरोध में दिल्‍ली के शाहीन बाग़ में स्त्रियों का धरना शुरू हुआ जो आज एक ऐसा ताक़तवर आन्‍दोलन बन गया है जिसने मोदी-शाह-योगी की रातों की नींद हराम कर दी है। उन्‍हें सोते-जागते शाहीन बाग़ ही नज़र आता है। बौखलाहट में वे पागलों की तरह शाहीन बाग़-शाहीन बाग़ की रट लगाये हुए हैं। आज देश में 50 से भी ज़्यादा जगहों पर शाहीन बाग़ की तर्ज़ पर अनिश्चितकालीन दिनो-रात चलने वाले धरने जारी हैं जिनकी अगुवाई हर जगह औरतें कर रही हैं, और वही इनकी रक्षाकवच भी है।

आज़ादी के बाद का सबसे बर्बर और साम्प्रदायिक देशव्यापी पुलिसिया दमन

आज़ादी के बाद इस देश के हुक्मरानों ने सैकड़ों बार अपनी अवाम का ख़ून बहाया है। साम्प्रदायिक पुलिसिया दमन की ख़ूनी कहानियाँ मेरठ-मलियाना-भागलपुर से लेकर ’84 के सिख दंगों तक अनगिनत हैं। लेकिन एक साथ देश के अनेक हिस्सों में जिस तरह से इस बार सत्ता ने दमन और नफ़रत का खेल खेला है, वह अभूतपूर्व है। ख़ुद पर लगे दंगा भड़काने के सारे आरोपों को मुख्यमंत्री बनते ही वापस ले लेने वाले आदित्यनाथ ने जैसे उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ दिया है।

मुज़फ़्फ़रनगर और मेरठ में बर्बर पुलिस दमन की आँखों देखी रिपोर्ट

27 दिसम्बर को जाँच-पड़ताल करने वाली एक टीम के साथ मैं मुज़फ़्फ़रनगर और मेरठ गयी थी। इस टीम में सुप्रीम कोर्ट के वकील, इम्तियाज़ हाशमी और मोहम्मद रेहमान के साथ मेधा पाटकर, दिल्ली के दो वकील सन्दीप पाण्डेय और विमल के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता फै़ज़ल ख़ान भी शामिल थे।