Category Archives: फ़ासीवाद / साम्‍प्रदायिकता

गाय के नाम पर ”गौ-रक्षक” गुण्डों के पिछले दो वर्षों के क़ारनामों पर एक नज़र

इन गौ-गुण्डों को सरकारी शह हासिल है। लगभग सारी ही घटनाओं में पुलिस की भूमिका मूकदर्शक वाली बनी हुई है, कहीं-कहीं पुलिस ख़ुद “दोषियों” को गौ-गुण्डों के हवाले कर रही है। यह पूरा काम पुलिस और तथाकथित गौरक्षा  दलों की मिलीभगत से चल रहा है। कई ऐसे वीडियो भी सामने आये हैं, जहाँ पुलिस वाले इन घटनाओं पर हँसते हुए पाये गये हैं। गौ-रक्षकों के लिए यह एक मुनाफ़े वाला धन्धा भी बन रहा है। अख़बारों में छपे लोगों के विभिन्न बयानों से पता चलता है कि कई स्थानों पर गौ-रक्षकों ने पैसे लेकर “दोषियों” को बरी किया है और अगर आप पैसे नहीं दे सकते तो सज़ा के हक़दार तो हो ही। कई जगह ये तथाकथित गौरक्षक ख़ुद ही गाय बेचते पकड़े गये हैं। इसके साथ ही मुसलमानों पर झूठे मुक़द्दमों का दौर भी शुरू हुआ है। गोवंश हत्या और अस्थायी प्रवास अथवा निर्यात नियमन क़ाूनन, 1995 के तहत सिर्फ़ राजस्थान में 73 मुक़द्दमे दर्ज हुए जो बाद में झूठे साबित हुए।

उड़ती हुई अफ़वाहें, सोती हुई जनता!

सरकार और उसके तमाम प्रकार के पिट्ठू जनता को अन्धविश्वासी और कूपमण्डूक बनाये रखना चाहते हैं। लोगों की चेतना हर सम्भव तरीक़े से कुन्द कर देना चाहते हैं। ताकि वे भयंकर रूप से फैलती ग़रीबी, बेरोज़गारी, महँगाई, बदहाली जैसी ज्वलन्त समस्याओं को भूलकर तमाम प्रकार की बेसिर-पैर की ऊल-जलूल बातों में उलझे रहें।

मुस्लिम आबादी बढ़ने का मिथक

संघ और उसके तमाम अनुषंगी संगठन ऐसे झूठ फैलाकर हिन्दू जनता में मुस्लिमों के प्रति विद्वेष पैदा करने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा ऐसे हज़ारों झूठ होते हैं जो रोज़ सोशल मीडिया पर फैलाये जाते हैं। इतने कि सबका जवाब देना सम्भव भी नहीं है। उनकी एक नीति यही है कि हम झूठ बोलते जायेंगे, तुम कितनों का पर्दाफ़ाश करोगे। तुम जब तक एक का पर्दाफ़ाश करोगे, हम 256 और झूठ बोल चुके होंगे। और हमारा झूठ करोड़ों लोगों तक पहुँच चुका होगा।

घातक तथा व्यापक प्रभाव डालने वाले समाचार

देश-भक्ति, देशद्रोह के उसने अपने पैमाने गढ़ लिये हैं। राष्ट्रीयता अथवा राष्ट्रवाद के नाम पर उसकी दृष्टि संकीर्ण से संकीर्णतम होती जा रही है। ऐसे में फतवों की तरह उसके बयान आ रहे हैं। प्रतिरोध का कोई भी स्वर उसे सुहा नहीं रहा है। सत्ता पक्ष के चुने हुये जनप्रतिनिधियों की ओर से, पुलिस पर जिस प्रकार के हमले हुये हैं, वे गवाही देते हैं कि मनमानी करने की उसकी राह में आने वाली किसी भी संवैधानिक संस्था को वह विशेष महत्व नहीं दे रहा है। सामान्यतः तो उस ओर से उपेक्षा भाव ही है। किसी भी तरह की अराजकता से उसे कोई गुरेज नहीं है। और, यह सब हो रहा है सुशाषन तथा राष्ट्रवाद के नाम पर। इस माहौल में बड़ी मुसीबत यह भी है कि अपने सुव्यवस्थित कुप्रचार तंत्र के माध्यम से, बहुसंख्यक सवर्ण तथा बड़ी हद तक पिछड़ों और दलितों के दिमाग़ में भी वह यह बैठाने में सफल हुआ है कि उसका रास्ता सही है।

व्हाट्सअप पर बँटती अफ़ीम

हर बुराई का कारण मुस्लिम हैं, देश में महँगाई , बेरोज़गारी, ग़रीबी का कारण सरकार और कॉर्पोरेट की लूट नहीं बल्कि मुस्लिम हैं, किसान आत्महत्या मुस्लिमों की वजह से कर रहे हैं, भले ही मुस्लिम ख़ुद ही ज़्यादा ग़रीब हैं। एक बार मुस्लिम पाकिस्तान चले जाय तब देखो कैसे देश फिर सोने की चिड़िया बनता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था का गहराता संकट और झूठे मुद्दों का बढ़ता शोर

भविष्य के ‘‘अनिष्ट संकेतों’’ को भाँपकर मोदी सरकार अभी से पुलिस तंत्र, अर्द्धसैनिक बलों और गुप्तचर तंत्र को चाक-चौबन्द बनाने पर सबसे अधिक बल दे रही है। मोदी के अच्छे दिनों के वायदे का बैलून जैसे-जैसे पिचककर नीचे उतरता जा रहा है, वैसे-वैसे हिन्दुत्व की राजनीति और साम्प्रदायिक तनाव एवं दंगों का उन्मादी खेल जोर पकड़ता जा रहा है ताकि जन एकजुटता तोड़ी जा सके। अन्‍धराष्ट्रवादी जुनून पैदा करने पर भी पूरा जोर है। पाकिस्तान के साथ सीमित या व्यापक सीमा संघर्ष भी हो सकता है क्योंकि जनाक्रोश से आतंकित दोनों ही देशों के संकटग्रस्त शासक वर्गों को इससे राहत मिलेगी।

आरएसएस का “गर्भ विज्ञान संस्कार” – जाहिल नस्लवादी मानसिकता का नव-नाज़ी संस्करण

हमारे देश के ये संघी फासिस्ट तो जहालत के मामले में नाज़ियों से भी दो क़दम आगे हैं। ये जाहिल, मूर्ख और मध्ययुगीन मानसिकता वाले हैं, इसमें तो कोई शक की गुंजाइश नहीं, लेकिन यह नस्लवादी विचारधारा जो इनके रग-रग में बसी है, उसकी भी नंगी नुमाइश 21वीं सदी में ये स्वदेशी फ़ासिस्ट अब बिना किसी शर्म या संकोच के कर रहे हैं। इनके इस “गर्भ विज्ञान” का वैसे तो कोई वैज्ञानिक आघार भी नहीं है। लेकिन सही मायने में “उत्तम सन्तति” यानी स्वस्थ जच्चा-बच्चा की बात की जाये, तो वह इनकी सरकार के एजेण्डा में दूर-दूर तक कहीं नहीं है। साल दर साल स्वास्थ्य बजट में कटौती करती मोदी सरकार इस तथ्य की बेशर्मी के साथ अनदेखी करती आयी है कि मातृत्व मृत्यु दर, मातृत्व, शिशु व बाल कुपोषण के आँकड़ों के मामले में भारत दुनिया के सबसे पिछड़े देशों की क़तार में खड़ा है।

इलेक्ट्रोनिक व सोशल-मीडिया पर चल रहे कारनामे

किसी नेता के भाषण में आये लोगों की भीड़ को फ़ोटोशॉप द्वारा कई गुना बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना। किसी नेता के भाषण या पार्टी की रैलियों के वीडियो को एडिट करके और प्रभावशाली बनाके पेश करना। विरोधियों के वाक्यांश को इस तरह से काट-छाँट कर पेश करना जिससे कि वे लोगों के मन में नकारात्मक प्रभाव डाले। इनके अलावा भी बहुत तरह से वे इन कामों को अंजाम देते हैं जिसके लिए 10 से 12 लाख तक की सालाना तनख्वाह देकर वे अपनी कम्पनी के लिए एनालिस्ट के पोस्ट पर इंजीनियर्स को रखते हैं। हमारे पहचान का एक बीटेक का छात्र है जिसने ऐसी ही एक कम्पनी में इण्टर्नशिप (ट्रेनिंग) की थी। उस समय वे लोग 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी के लिए काम कर रहे थे।

गौरक्षा के नाम पर मानव हत्याएँ, जनसेवा के नाम पर अडानी-अम्बानी की सेवा – यही है फासीवादी संघी सरकार का असली चेहरा

जिन-जिन राज्यों में गौरक्षा के क़ानून लागू हुए, गौरक्षा दलों का आतंक बढ़ा, वहाँ के किसानों ने गाय की जगह भैंस पालना शुरू कर दिया, क्योंकि किसान के लिए पशुपालन भावना का नहीं बल्कि आर्थिक सहारे का मसला है। हरियाणा, उत्तरप्रदेश, गुजरात, राजस्थान जैसे राज्यों में भैंसों की तादाद गायों से कहीं ज़्यादा है। महाराष्ट्र में गौहत्या पर तो पहले से ही बैन था, पर देवेन्द्र फ़डनवीस की सरकार ने बैलों और साण्डों की हत्या पर भी बैन लगा दिया, जिसकी वजह से गौवंश का पूरा मार्केट तबाह हो गया है। किसानों के लिए बैल ख़रीदना नुक़सान का सौदा बन गया है। पूरे महाराष्ट्र में इस समय 7.5 लाख आवारा गौवंश खुले घूम रहे हैं और गाँवों-शहरों में एक्सीडेण्ट करवाने के साथ-साथ गाँवों में किसानों की फ़सलों को बर्बाद कर रहे हैं।

अमरीका, यूरोप और पूरी दुनिया में पैदा हुए नस्लीय, फासीवादी उभार का कारण

अगर वे अपने मूल देश में संघ-भाजपा या किसी अन्य शेड या रंग के (मसलन इस्लामिक चरमपन्थ या अन्य कि़स्म के चरमपन्थ) पार्टी के फासीवाद के पक्ष में खड़े होंगे तो विदेश में उनकी कुटाई और हत्या उसकी तार्किक परिणति होगी। इसलिए उनको तमाम कि़स्म के देशी-विदेशी रंगभेद, नस्लीय उत्पीड़न, जातीय उत्पीड़न या कह लें कि पूँजीवादी शोषण और दमन के तमाम अलग-अलग रूपों का सबके साथ मिलजुलकर विरोध करना होगा वो चाहे उनके अपने मूल देश में हो या उस देश में जहाँ वे रह रहे हैं।