Category Archives: फ़ासीवाद / साम्‍प्रदायिकता

क्रांतिकारी लोकस्‍वराज्‍य अभियान : भगतसिंह का सपना, आज भी अधूरा, मेहनतकश और नौजवान उसे करेंगे पूरा

सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्रान्ति का यह काम कुछ बहादुर युवा नहीं कर सकते। यह कार्य व्यापक मेहनतकश अवाम की गोलबन्दी और संगठन के बिना नहीं हो सकता है। यह आम जनता की भागीदारी के बिना नहीं हो सकता है। हम विशेषकर नौजवानों का आह्नान करेंगे कि वे इस अभियान से जुड़ें। इतिहास में ठहराव की बर्फ़ हमेशा युवा रक्त की गर्मी से पिघलती है। क्या आज के युवा अपनी इस ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी से मुँह चुरायेंगे?

राष्ट्र सेविका समिति के ज़रिये स्त्रियों को आज्ञाकारी आधुनिक दासियों में बदलने की आरएसएस की कोशिशें

असल में राष्ट्र सेविका समिति आज भी गोलवलकर की किताब ‘बंच ऑफ़ थॉट्स’ के उन विचारों पर कायम हैं – ”औरतें पूरी तरह माएँ हैं और उन्हें बच्चों के पीछे-पीछे रहना चाहिए।” यानी संघ औरत को इंसान मानने के लिए तैयार नहीं, जिसकी अपनी भी कुछ इच्छाएँ होती हैं। वे भी अपने पैरों पर खड़े होना चाहती हैं, अपनी इच्छा से हँसना और खेलना चाहती हैं। वे भी सपनों के पँख लगाकर जीवन के आकाश में आज़ादी से उड़ना चाहती हैं। लेकिन संघ उनके पँख काटकर उनको पिंजरे में बन्द कर देना चाहता है।

गाय के नाम पर ”गौ-रक्षक” गुण्डों के पिछले दो वर्षों के क़ारनामों पर एक नज़र

इन गौ-गुण्डों को सरकारी शह हासिल है। लगभग सारी ही घटनाओं में पुलिस की भूमिका मूकदर्शक वाली बनी हुई है, कहीं-कहीं पुलिस ख़ुद “दोषियों” को गौ-गुण्डों के हवाले कर रही है। यह पूरा काम पुलिस और तथाकथित गौरक्षा  दलों की मिलीभगत से चल रहा है। कई ऐसे वीडियो भी सामने आये हैं, जहाँ पुलिस वाले इन घटनाओं पर हँसते हुए पाये गये हैं। गौ-रक्षकों के लिए यह एक मुनाफ़े वाला धन्धा भी बन रहा है। अख़बारों में छपे लोगों के विभिन्न बयानों से पता चलता है कि कई स्थानों पर गौ-रक्षकों ने पैसे लेकर “दोषियों” को बरी किया है और अगर आप पैसे नहीं दे सकते तो सज़ा के हक़दार तो हो ही। कई जगह ये तथाकथित गौरक्षक ख़ुद ही गाय बेचते पकड़े गये हैं। इसके साथ ही मुसलमानों पर झूठे मुक़द्दमों का दौर भी शुरू हुआ है। गोवंश हत्या और अस्थायी प्रवास अथवा निर्यात नियमन क़ाूनन, 1995 के तहत सिर्फ़ राजस्थान में 73 मुक़द्दमे दर्ज हुए जो बाद में झूठे साबित हुए।

उड़ती हुई अफ़वाहें, सोती हुई जनता!

सरकार और उसके तमाम प्रकार के पिट्ठू जनता को अन्धविश्वासी और कूपमण्डूक बनाये रखना चाहते हैं। लोगों की चेतना हर सम्भव तरीक़े से कुन्द कर देना चाहते हैं। ताकि वे भयंकर रूप से फैलती ग़रीबी, बेरोज़गारी, महँगाई, बदहाली जैसी ज्वलन्त समस्याओं को भूलकर तमाम प्रकार की बेसिर-पैर की ऊल-जलूल बातों में उलझे रहें।

मुस्लिम आबादी बढ़ने का मिथक

संघ और उसके तमाम अनुषंगी संगठन ऐसे झूठ फैलाकर हिन्दू जनता में मुस्लिमों के प्रति विद्वेष पैदा करने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा ऐसे हज़ारों झूठ होते हैं जो रोज़ सोशल मीडिया पर फैलाये जाते हैं। इतने कि सबका जवाब देना सम्भव भी नहीं है। उनकी एक नीति यही है कि हम झूठ बोलते जायेंगे, तुम कितनों का पर्दाफ़ाश करोगे। तुम जब तक एक का पर्दाफ़ाश करोगे, हम 256 और झूठ बोल चुके होंगे। और हमारा झूठ करोड़ों लोगों तक पहुँच चुका होगा।

घातक तथा व्यापक प्रभाव डालने वाले समाचार

देश-भक्ति, देशद्रोह के उसने अपने पैमाने गढ़ लिये हैं। राष्ट्रीयता अथवा राष्ट्रवाद के नाम पर उसकी दृष्टि संकीर्ण से संकीर्णतम होती जा रही है। ऐसे में फतवों की तरह उसके बयान आ रहे हैं। प्रतिरोध का कोई भी स्वर उसे सुहा नहीं रहा है। सत्ता पक्ष के चुने हुये जनप्रतिनिधियों की ओर से, पुलिस पर जिस प्रकार के हमले हुये हैं, वे गवाही देते हैं कि मनमानी करने की उसकी राह में आने वाली किसी भी संवैधानिक संस्था को वह विशेष महत्व नहीं दे रहा है। सामान्यतः तो उस ओर से उपेक्षा भाव ही है। किसी भी तरह की अराजकता से उसे कोई गुरेज नहीं है। और, यह सब हो रहा है सुशाषन तथा राष्ट्रवाद के नाम पर। इस माहौल में बड़ी मुसीबत यह भी है कि अपने सुव्यवस्थित कुप्रचार तंत्र के माध्यम से, बहुसंख्यक सवर्ण तथा बड़ी हद तक पिछड़ों और दलितों के दिमाग़ में भी वह यह बैठाने में सफल हुआ है कि उसका रास्ता सही है।

व्हाट्सअप पर बँटती अफ़ीम

हर बुराई का कारण मुस्लिम हैं, देश में महँगाई , बेरोज़गारी, ग़रीबी का कारण सरकार और कॉर्पोरेट की लूट नहीं बल्कि मुस्लिम हैं, किसान आत्महत्या मुस्लिमों की वजह से कर रहे हैं, भले ही मुस्लिम ख़ुद ही ज़्यादा ग़रीब हैं। एक बार मुस्लिम पाकिस्तान चले जाय तब देखो कैसे देश फिर सोने की चिड़िया बनता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था का गहराता संकट और झूठे मुद्दों का बढ़ता शोर

भविष्य के ‘‘अनिष्ट संकेतों’’ को भाँपकर मोदी सरकार अभी से पुलिस तंत्र, अर्द्धसैनिक बलों और गुप्तचर तंत्र को चाक-चौबन्द बनाने पर सबसे अधिक बल दे रही है। मोदी के अच्छे दिनों के वायदे का बैलून जैसे-जैसे पिचककर नीचे उतरता जा रहा है, वैसे-वैसे हिन्दुत्व की राजनीति और साम्प्रदायिक तनाव एवं दंगों का उन्मादी खेल जोर पकड़ता जा रहा है ताकि जन एकजुटता तोड़ी जा सके। अन्‍धराष्ट्रवादी जुनून पैदा करने पर भी पूरा जोर है। पाकिस्तान के साथ सीमित या व्यापक सीमा संघर्ष भी हो सकता है क्योंकि जनाक्रोश से आतंकित दोनों ही देशों के संकटग्रस्त शासक वर्गों को इससे राहत मिलेगी।

आर.एस.एस. और बी.एम.एस. के मई दिवस विरोध के असली कारण

मई दिवस द्वारा अपने वाजिब हक के लिये लडने के संदेश को ‘अच्छा नहीं’ कहने वाला संगठन आखिर विश्वकर्मा जयंती से मज़दूरों को क्या संदेश देना चाह्ता है? ये मज़दूरों को बताते हैं कि मालिक लोग अपनी मेहनत व प्रतिभा से उद्योग लगाते हैं, उससे मज़दूरों को रोजगार मिलता है, उनके परिवारों की रोजी-रोटी चलती है; इसलिये मज़दूरों को उनका अहसानमंद होना चाहिये। जिन मशीनों-औजारों पर काम करके उनकी रोजी-रोटी चलती है उनकी पूजा करनी चाहिये, उनकी सफाई-देखभाल करनी चाहिये और ज़्यादा से ज़्यादा काम करने की शपथ लेनी चाहिये, जिससे उत्पादकता बढे। लेकिन वह मज़दूरों को यह नहीं बताते कि मालिक का मुनाफा मजदुर के श्रम से उत्पाद की वस्तु के मूल्य में होने वाले इजाफे से ही आता है – तो मज़दूर जितना ज़्यादा श्रम करेंगे मालिकों उनकी मेहनत के मूल्य को उतना ही ज़्यादा अपनी जेब में डालकर और भी सम्पत्तिशाली होते जायेंगे और इससे मज़दूरों को कुछ हासिल नहीं होगा। मज़दूरों का नाम लेने वाला लेकिन अन्दर से मालिकों के हितों का पोषण करने वाला कोई संगठन ही मज़दूरों को ऐसा संदेश देने को अच्छा बता सकता है।

आरएसएस का “गर्भ विज्ञान संस्कार” – जाहिल नस्लवादी मानसिकता का नव-नाज़ी संस्करण

हमारे देश के ये संघी फासिस्ट तो जहालत के मामले में नाज़ियों से भी दो क़दम आगे हैं। ये जाहिल, मूर्ख और मध्ययुगीन मानसिकता वाले हैं, इसमें तो कोई शक की गुंजाइश नहीं, लेकिन यह नस्लवादी विचारधारा जो इनके रग-रग में बसी है, उसकी भी नंगी नुमाइश 21वीं सदी में ये स्वदेशी फ़ासिस्ट अब बिना किसी शर्म या संकोच के कर रहे हैं। इनके इस “गर्भ विज्ञान” का वैसे तो कोई वैज्ञानिक आघार भी नहीं है। लेकिन सही मायने में “उत्तम सन्तति” यानी स्वस्थ जच्चा-बच्चा की बात की जाये, तो वह इनकी सरकार के एजेण्डा में दूर-दूर तक कहीं नहीं है। साल दर साल स्वास्थ्य बजट में कटौती करती मोदी सरकार इस तथ्य की बेशर्मी के साथ अनदेखी करती आयी है कि मातृत्व मृत्यु दर, मातृत्व, शिशु व बाल कुपोषण के आँकड़ों के मामले में भारत दुनिया के सबसे पिछड़े देशों की क़तार में खड़ा है।