उन्हें भरोसा है कि उनका झूठा प्रचार और नफ़रत की अफ़ीम फिर सर चढ़कर बोलेंगे और लोग सबकुछ भूल जायेंगे!
मौत और बर्बादी का ऐसा ताण्डव मचाने के बाद भी ये फ़ासिस्ट ग़लती मानने के बजाय चोरी और सीनाज़ोरी वाले अन्दाज़ में झूठे दावे किये जा रहे हैं। लेकिन वे भी जानते हैं कि इस बार मौतों का जो सैलाब आया था उसने किसी को भी नहीं छोड़ा है। बड़ी संख्या में मोदीभक्त और भाजपा-संघ के समर्थक व कार्यकर्ता भी महामारी और सरकारी बदइन्तज़ामी का शिकार हुए हैं। ऐसे में उनके पास एकमात्र रास्ता है साम्प्रदायिकता के प्रेत को फिर से काम पर लगाना, जिसके वे पुराने माहिर हैं। पिछले कुछ दिनों की घटनाएँ आने वाले समय में इनके मंसूबों की ओर इशारा कर रही हैं।