Category Archives: गतिविधि रिपोर्ट

ग्लोबल डे ऑफ़ एक्शन फ़ॉर गाज़ा के मौक़े पर भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी व अन्य जन संगठनों ने कई शहरों में प्रदर्शन किया

गाज़ा की जनता तक न तो पर्याप्त मात्रा में भोजन पहुँचने दिया जाता है, न ईंधन और न ही अन्य आवश्यक वस्तुएँ और सेवाएँ। नतीजतन, दुनिया में सबसे ज़्यादा जनसंख्या घनत्व रखने वाली यह ‘खुली जेल’ फ़िलिस्तीनियों के लिए एक क़ब्रगाह बनी हुई है, जहाँ फ़िलिस्तीनी बच्चे-बूढ़े और जवान एक धीमी मौत मर रहे हैं। 7 अक्टूबर को फ़िलिस्तीनी जनता ने जेल तोड़ी और अपने औपनिवेशिक उत्पीड़कों, यानी ज़ायनवादी इज़रायल पर हमला बोला। इस हमले के विरुद्ध इज़रायली उपनिवेशवादियों को “आत्मरक्षा” का उतना ही अधिकार है, जितना कि भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवादियों को भगतसिंह व उनके साथियों व अन्य क्रान्तिकारियों द्वारा की गयी कार्रवाइयों के ख़िलाफ़ था, या अल्जीरिया में अल्जीरियाई मुक्ति योद्धाओं के हमले के विरुद्ध फ्रांसीसी उपनिवेशवादियों को था जिन्होंने हथियारों के दम पर अल्जीरिया पर कब्ज़ा कर रखा था।

फ़िलिस्तीन के समर्थन में और हत्यारे इज़रायली ज़ायनवादियों के ख़िलाफ़ देशभर में विरोध प्रदर्शनों को कुचलने में लगी फ़ासीवादी मोदी सरकार

भारत इज़रायल के हथियारों का सबसे बड़ा ख़रीदार है। वहीं दोनो के खुफिया तन्त्र में भी काफ़ी समानता है। ज्ञात हो कि जासूसी उपकरण पेगासस भारत को देने वाला देश इज़रायल ही है। यह भी एक कारण है कि मोदी सरकार देश भर में जारी इज़रायल के प्रतिरोध से घबरायी हुई है, कि कहीं इससे उनके ज़ायनवादी दोस्त नाराज़ न हो जायें। वहीं फ़िलिस्तीन मसले पर इन्दिरा गाँधी के दौर तक भारत ने कम-से-कम औपचारिक तौर पर फ़िलिस्तीनी मुक्ति के लक्ष्य का समर्थन किया था और इज़रायल द्वारा फ़िलिस्तीनी ज़मीन पर औपनिवेशिक क़ब्ज़े को ग़लत माना था। 1970 के दशक से प्रमुख अरब देशों का फ़िलिस्तीन के मसले पर पश्चिमी साम्राज्यवाद के साथ समझौतापरस्त रुख़ अपनाने के साथ भारतीय शासक वर्ग का रवैया भी इस मसले पर ढीला होता गया और वह “शान्ति” की अपीलों और ‘दो राज्यों के समाधान’ की अपीलोंमें ज़्यादा तब्दील होने लगा। अभी भी औपचारिक तौर पर तो भारत फ़िलिस्तीन का समर्थन करता है, पर वह सिर्फ़ नाम के लिए ही है।

भगतसिंह जनअधिकार यात्रा के पहले चरण (12 मार्च से 15 अप्रैल, 2022) के समापन के बाद पहला राष्ट्रीय सम्मेलन दिल्ली में सफलतापूर्वक सम्पन्न

बीते 10 मई को दिल्ली के अम्बेडकर भवन में भगतसिंह जनअधिकार यात्रा के पहले राष्ट्रीय सम्मेलन का सफल आयोजन सम्पन्न हुआ। ज्ञात हो कि 12 मार्च से लेकर 15 अप्रैल तक देश के 11 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में भगतसिंह जनअधिकार यात्रा के प्रथम चरण का आयोजन किया गया था। यात्रा का प्रमुख मक़सद शिक्षा, चिकित्सा, रोज़गार, आवास जैसे मुद्दों को उठाना, महँगाई, बेरोज़गारी, लूट, साम्प्रदायिकता के खिलाफ़ जनता की जुझारू एकजुटता कायम करना है। दिल्ली एनसीआर, उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तराखण्ड, चण्डीगढ़, आन्ध्रप्रदेश, तेलंगाना समेत देश के विभिन्न हिस्सों में भगतसिंह जनअधिकार यात्रा की टोलियाँ पहुँची।

काम के अधिकार के लिए और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ मनरेगा यूनियन का प्रदर्शन

20 सितम्बर। कलायत तहसील में क्रान्तिकारी मनरेगा मज़दूर यूनियन के बैनर तले चौशाला, रामगढ़, बाह्मणीवाल व अन्य गाँव के मज़दूरों ने विरोध प्रदर्शन किया। यूनियन की ओर एक प्रतिनिधि मण्डल ने एसडीएम सुशील कुमार को मनरेगा मज़दूरों की समस्या से अवगत करते हुए अपनी माँगों का ज्ञापन भी सौंपा। यूनियन प्रभारी रमन ने बताया कि कलायत ब्लॉक के बीडीपीओ कार्यालय में प्राशासनिक कार्यों की कोई जवाबदेही तय नहीं है। बीडीपीओ कार्यालय के पास मनरेगा योजना को सुचारू रुप से चलाने का भी उत्तरदायित्व है।

बेलसोनिका में मज़दूरों की छँटनी व ठेका प्रथा के ख़िलाफ़ संघर्ष जारी है!

पिछली 3 अगस्त को आई.एम.टी. मानेसर (गुड़गाँव) में स्थित बेलसोनिका ऑटो कम्पोनेण्ट इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड के मज़दूरों द्वारा प्रबन्धन की मज़दूर विरोधी नीतियों के चलते दो बार दो घण्टे का टूल डाउन करने पर प्रबन्धन ने मज़दूरों को आठ दिन की वेतन कटौती का नोटिस जारी कर दिया था। बेलसोनिका मारुति के लिए कलपुर्ज़े बनाती है।

ऑटो सेक्टर के मज़दूरों की एक रिपोर्ट

पिछले कुछ दिनों से गुड़गाँव पट्टी के ऑटो सेक्टर में एक हलचल पैदा हो गयी है। लगातार कम्पनियों में छँटनी, पैसे न दिये जाने, मज़दूरो की माँगें न माने जाने आदि के मामले सामने आ रहे हैं, जिसके विरोध में कई प्रदर्शन और हड़ताल भी हो रहे हैं। पिछले 3 महीने में धारूहेड़ा में हुण्डई मोबीस के मज़दूरों का धरना, जेएनएस के मज़दूरों की हड़ताल तथा पिछले महीने नपीनों के मज़दूरों की हड़ताल इसके उदाहरण हैं। अभी-अभी बेलसोनिका के मज़दूरों के साथ भी कई सारी घटनाएँ सामने आ रही हैं।

दिल्ली की आँगनवाड़ी महिला मज़दूरों के जारी ऐतिहासिक और जुझारू संघर्ष की रिपोर्ट

हम ‘मज़दूर बिगुल’ के पन्नों पर पढ़ चुके हैं कि किस तरह 31 जनवरी से दिल्ली में आँगनवाड़ी स्त्री कामगारों की 38 दिनों तक चली हड़ताल का दमन करते हुए उपराज्यपाल ने हेस्मा लगाया था और दिल्ली सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग ने 884 लोगों को बदले की भावना से बर्ख़ास्त कर दिया था। हेस्मा व ग़ैर-क़ानूनी बर्ख़ास्तगी के ख़िलाफ़ महिलाकर्मियों ने अपने आन्दोलन को नये स्तर पर जारी रखा हुआ है। इस जुझारु आन्दोलन ने समूची पूँजीवादी व्यवस्था के चरित्र को बेनक़ाब किया है। विधायिका, कार्यपालिका से लेकर न्यायपालिका तक का मज़दूर-विरोधी, स्त्री-विरोधी चरित्र भी महिलाकर्मियों के इस संघर्ष के दौरान खुलकर सामने आया है।

मई दिवस का नारा, सारा संसार हमारा

136वें मज़दूर दिवस के अवसर पर देश की तमाम क्रान्तिकारी ट्रेड यूनियनों व संगठनों द्वारा मई दिवस की विरासत को याद करते हुए तथा बढ़ती महँगाई, बेरोज़गारी, श्रम क़ानूनों पर हमले के ख़िलाफ़ अलग-अलग जगहों पर विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया गया। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार से लेकर देशभर के अन्य इलाक़ों की क्रान्तिकारी यूनियनों और संगठनों ने मिलकर मोदी सरकार द्वारा लगातार श्रम क़ानूनों पर किये जाने वाले हमलों समेत देशभर में बढ़ती महँगाई के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन, गोष्ठी, सभा व अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया।

दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों की अनूठी मुहिम : नाक में दम करो अभियान

दिल्ली की सैंकड़ो महिलाकर्मी 16 मार्च से तकरीबन रोज़ ही दिल्ली के अलग-अलग इलाक़ों में एक अनूठा अभियान चला रही हैं। इस अभियान का नाम है ‘नाक में दम करो’ अभियान। इस अभियान के ज़रिए आँगनवाड़ीकर्मी विशेष तौर पर आम आदमी पार्टी और भाजपा के कार्यालयों पर विरोध प्रदर्शन करती हैं। ज्ञात हो कि दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों की 31 जनवरी से 38 दिनों तक चली ऐतिहासिक हड़ताल पर ‘आप’ और भाजपा ने मिलीभगत से हेस्मा (हरियाणा एसेंशियल सर्विसेज़ एक्ट) थोप दिया था। इसके बाद आँगनवाड़ीकर्मियों की यूनियन ने हेस्मा के ख़िलाफ़ न्यायालय में केस किया और हड़ताल को न्यायालय के फ़ैसले तक स्थगित किया और स्पष्ट किया कि अगर न्यायालय इस काले क़ानून को रद्द नहीं करती तो दिल्ली की 22000 आँगनवाड़ीकर्मी हेस्मा की परवाह किये बिना दुबारा हड़ताल पर जायेंगी।

दिल्ली की 22,000 आँगनवाड़ी कर्मियों की ऐतिहासिक हड़ताल

दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन के नेतृत्व में दिल्ली की 22000 आँगनवाड़ीकर्मियों की लड़ाई पिछले 38 दिनों से जारी थी। हड़ताल दिनों-दिन मज़बूत होती देख बौखलाहट में आम आदमी पार्टी व भाजपा ने आपसी सहमति बनाकर उपराज्यपाल के ज़रिए इस अद्वितीय और ऐतिहासिक हड़ताल पर हरियाणा एसेंशियल सर्विसेज़ मेण्टेनेंस एक्ट के ज़रिए छह महीने की रोक लगा दी है।