दिल्ली की 22,000 आँगनवाड़ी कर्मियों की ऐतिहासिक हड़ताल
केजरी-मोदी सरकारों द्वारा काला क़ानून ‘हेस्मा’ थोपने से लड़ाई रुकेगी नहीं!

– बिगुल संवाददाता

दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन के नेतृत्व में दिल्ली की 22000 आँगनवाड़ीकर्मियों की लड़ाई पिछले 38 दिनों से जारी थी। हड़ताल दिनों-दिन मज़बूत होती देख बौखलाहट में आम आदमी पार्टी व भाजपा ने आपसी सहमति बनाकर उपराज्यपाल के ज़रिए इस अद्वितीय और ऐतिहासिक हड़ताल पर हरियाणा एसेंशियल सर्विसेज़ मेण्टेनेंस एक्ट के ज़रिए छह महीने की रोक लगा दी है।
हड़ताल ने सिर्फ़ 22-24 प्रतिशत की मानदेय बढ़ोत्तरी हासिल नहीं की है (जिसे आँगनवाड़ीकर्मियों ने नाकाफ़ी बढ़ोत्तरी के तौर पर अस्वीकार किया है) बल्कि आप और भाजपा दोनों पर अभूतपूर्व जीत हासिल की है और उनके चरित्र को हज़ारों आँगनवाड़ीकर्मियों के सामने बेनक़ाब किया है। हेस्मा लगाने के लिए शासक वर्ग उन्हीं हड़तालों के विरुद्ध मजबूर होता है जिनकी फ़ौलादी एकजुटता को वह तोड़ नहीं पाता। बिरले ही हड़तालों पर एस्मा/हेस्मा लगाया जाता है और आँगनवाड़ीकर्मियों की हड़ताल पर हेस्मा लगाकर सरकार ने संघर्ष का एक नया रास्ता खोल दिया है। यह एक्ट आँगनवाड़ीकर्मियों पर लगाया जाना अपने आप में कितना अलोकतांत्रिक और ग़ैर-क़ानूनी है, इसपर हम आगे बात करेंगे।
यह हड़ताल बीते 31 जनवरी से जारी थी। 9 मार्च को हेस्मा लगाये जाने के मद्देनज़र हड़ताल को फ़िलहाल अदालत में मसले पर फ़ैसला आने तक स्थगित कर दिया गया है और संघर्ष को अन्य रूपों में जारी रखने का निर्णय लिया गया है जिसमें कि प्रमुख है दिल्ली के नगर निगम चुनावों में आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी का बहिष्कार। आँगनवाड़ीकर्मियों की यह हड़ताल ऐतिहासिक रही, जिसे वीरतापूर्वक लड़ा गया।
आइए एक बार संक्षेप में निगाह डालते हैं हड़ताल के घटनाक्रम पर।
7 सितम्बर 2021 के चेतावनी प्रदर्शन के बाद दिल्ली सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम ने एक हफ़्ते के भीतर हमारी माँगों पर ठोस कार्रवाई का आश्वासन दिया था। लम्बे इन्तज़ार के बाद भी कोई जवाब न मिलने पर 6 जनवरी को एक बार फिर आँगनवाड़ीकर्मियों ने एकदिवसीय हड़ताल कर काम ठप्प किया और मंत्री महोदय की याददिहानी के लिए अपना माँगपत्रक सौंपा। मगर पंजाब चुनाव प्रचार में व्यस्त केजरीवाल सरकार को दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों की समस्या नहीं दिखी। अन्त में 31 जनवरी से दिल्ली के सिविल लाइन्स, विकास भवन पर हड़ताल की शुरुआत हुई। 11 फ़रवरी व 22 फ़रवरी को दिल्ली की सड़कों पर पहले पन्द्रह और फिर अट्ठारह हज़ार की संख्या में आँगनवाड़ीकर्मियों की रैली निकाली गयी जिसमें दिल्ली की जनता ने भी भारी समर्थन दिया। इस दौरान दिल्ली की सड़कों पर जो लाल सैलाब उमड़ा यह अपने आप में अभूतपूर्व था। इसके साथ ही गोवा व पंजाब में केजरीवाल का बहिष्कार करने के लिए भी अभियान चलाया गया।

25 फ़रवरी को हड़ताल एक नये चरण में प्रवेश हुई, जब कश्मीरी गेट स्थित महिला एवं बाल विकास विभाग (डब्ल्यू.सी.डी.) के दफ़्तर पर दिन-रात धरना शुरू हो गया और उसपर क़ब्ज़ा कर लिया गया। डब्लू.सी.डी. के डायरेक्टर नवलेन्द्र सिंह ने हड़ताल तोड़ने के लिए आँगनवाड़ीकर्मियों को निलम्बन पत्र जारी किया था, इसके विरोध में जब डब्लू.सी.डी. का घेराव करने आँगनवाड़ीकर्मी जा रही थीं, तब डरकर नवलेन्द्र ख़ुद धरना स्थल पर बात करने पहुँचे और आश्वासन दिया था कि कुछ ही देर में यह निलम्बन वापस ले लिये जायेंगे। पर कोई सुनवाई न होते देख अन्त में डब्लू.सी.डी. का घेराव किया गया और वहाँ पर एक और प्रदर्शन की शुरुआत की गयी, जो आख़िरी दिन तक जारी रहा। इस दौरान डब्लू.सी.डी. का सारा काम काज ठप्प कर दिया गया और सभी कर्मचारियों को विनम्रतापूर्वक काम करने से मना कर दिया गया। 8 मार्च को अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर राजघाट से दिल्ली सचिवालय की ओर ‘स्त्री अधिकार रैली’ निकाली गयी और तब भी केजरीवाल के मंत्री आँगनवाड़ीकर्मियों से मिलने को तैयार नहीं हुए। यह रैली दुनिया में इस वर्ष अन्तरराष्ट्रीय स्त्री दिवस पर हुई सबसे बड़ी रैली थी, जिसमें क़रीब पन्द्रह हज़ार औरतों ने शिरकत की।
इसके साथ ही हड़ताल के दौरान लगातार दिल्ली के अलग-अलग इलाक़ों में ‘नाक में दम करो अभियान’ चलाया जा रहा था जो कि अभी भी जारी है, जिसके तहत आम आदमी पार्टी के नेताओं का बहिष्कार किया जा रहा है। इसमें मनीष सिसोदिया से लेकर दिलीप पाण्डे जैसे आप के नेताओं के कार्यक्रम में जाकर धावा बोला गया और उन्हें आँगनवाड़ीकर्मियों की माँगों से अवगत कराया गया। पर इसके बावजूद आप के मंत्री यूनियन से वार्ता के लिए तैयार नहीं हुए और उल्टे आँगनवाड़ीकर्मियों पर पुलिस द्वारा दमन कराया गया। पुलिस और आम आदमी पार्टी की मिलीभगत का ख़ुलासा इससे होता है कि इस दौरान पुलिस ने भी आन्दोलन को तोड़ने और नुक़सान पहुँचाने की पूरी कोशिश की। 11 फ़रवरी की रैली के बाद धोखे से हड़ताल के सामान को ज़ब्त कर लिया और कुछ साथियों को डिटेन कर लिया गया, पर जनबल के साथ तुरन्त सिविल लाइन थाने में धरना शुरू हो गया और मजबूरन उन्हें साथियों को रिहा करना पड़ा और कोर्ट में भी कई चक्कर लगाने के बाद ज़ब्त किया हुआ समान छुड़ाया गया। इसके अलावा मनीष सिसोदिया के ख़िलाफ़ जब विरोध प्रदर्शन किया जा रहा था तब भी उसकी रक्षा के लिए पुलिस ने आँगनवाड़ीकर्मियों को पकड़ लिया और उनके साथ बदसलूकी की। पर अन्त में आँगनवाड़ीकर्मियों की एकजुटता के आगे पुलिस को भी झुकना पड़ा। इस सब के बाद भी जब केजरीवाल यूनियन से वार्ता के लिए तैयार नहीं हुआ तो उसके आवास के बाहर ही दिन और रात के धरने की शुरआत की गयी जो कि आख़िरी तीन दिनों तक हेस्मा थोपे जाने के पहले तक जारी रही। ज्ञात हो कि 2017 की आँगनवाड़ी की हड़ताल के बाद केजरीवाल के आवास के पास धरना न करने के निर्देश दिये गये थे। पर ये निर्देश भी आँगनवाड़ीकर्मियों की एकजुटता के आगे धरे के धरे रह गये। कला मोर्चे पर भी प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट लीग के साथियों द्वारा इस बीच हड़ताल स्थल पर नयी-नयी कलाकृतियों का निर्माण किया जा रहा था।
38 दिनों तक चली इस हड़ताल ने दिल्ली की आम आदमी पार्टी और केन्द्र की भाजपा को ही चुनौती नहीं दी, बल्कि समूची पूँजीवादी व्यवस्था को भी बेनक़ाब किया। सरकार का असली कामकाज तो नौकरशाही सँभालती है जिसकी जनता के प्रति कोई जवाबदेही नहीं होती। इस व्यवस्था के ये स्तम्भ किस प्रकार संघर्ष करने वाली जनता के विरोधी होते हैं, यह इस हड़ताल में खुलकर दिखा। हड़ताल को तोड़ने के लिए महिला एवं बाल विभाग प्रशासन ने सारे हथकण्डे अपना लिये, इसके बावजूद भी वे हड़ताल तोड़ने में असफल रहे। जहाँ एक तरफ़ विभाग के मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम ने पहले हड़ताल को मानने तक से इन्कार कर दिया, वहीं नेतृत्व कर रही यूनियन और उसके नेताओं के ख़िलाफ़ कुत्साप्रचार की मुहिम चलायी, पर हड़ताली कर्मियों ने हड़ताल जारी रखी और अन्त में विभाग और मंत्री को भी मानना पड़ा कि हड़ताल जारी है और दिल्ली की आँगनवाड़ियाँ ठप्प हैं। डब्लू.सी.डी. के डायरेक्टर नवलेन्द्र सिंह ने तो एक क़दम आगे बढ़ते हुए कर्मियों को ‘सरफ़रोश’ करने की धमकी दे डाली और उन्हें अपशब्द कहे। ज्ञात हो कि ये वही नवलेन्द्र सिंह हैं जिन्हें 2016 में 5 करोड़ के घूस के आरोप में निलम्बित किया गया था। सिर्फ़ इतना ही नहीं हड़ताल को जल्द से जल्द तोड़ने के लिए 27 कर्मियों को निलम्बन का नोटिस जारी कर दिया और हज़ारों की संख्या में कर्मियों को कारण बताओ नोटिस भेजा गया। इन सब के ख़िलाफ़ यूनियन और आँगनवाड़ीकर्मियों ने संघर्ष किया और अपनी माँगों को लेकर डटे रहे। ये साफ़ दिखाता है कि कार्यपालिका किस प्रकार सिर्फ़ अपने ऊपर बैठे मंत्रियों के ही निर्देश लागू करने और पूँजीवादी व्यवस्था की सेवा के लिए ही बनी है। उसका जनता से कोई लेना-देना नहीं है।
अब बात करते हैं सरकारों के साथ मिलकर नक़ली लाल रंग लगाकर मज़दूरों-मेहनतकशों को भरमाने वाले, उनके संघर्षों के साथ ग़द्दारी करने वाले संशोधनवादियों की, जिन्होंने एक बार फिर इस हड़ताल में भी साबित किया कि ये व्यवस्था की सेफ़्टी वॉल्व के तौर पर काम करते हैं। केजरीवाल सरकार और महिला एवं बाल विकास विभाग की हज़ारों चालों और साज़िशों के बावजूद दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मी अपनी हड़ताल में बहादुरी से डटी रहीं। लेकिन इस हड़ताल को कमज़ोर करने के इरादे से संशोधनवादी सीपीएम की सीटू की दलाल यूनियन ने केजरीवाल सरकार के साथ अब सौदेबाज़ी करने का एक भी मौक़ा हाथ से नहीं जाने दिया। पूरी हड़ताल में सौदेबाज़ी करने के लिए सीटू ने भी ‘आप’ के मंत्रियों की तरह यूनियन के ख़िलाफ़ कुत्साप्रचार किया और बारह लोगों की सदस्यता वाली अपनी फ़र्ज़ी यूनियन को आँगनवाड़ीकर्मियों का प्रतिनिधि बताने लगे। ये हड़ताल तोड़ने के लिए इस हद तक आमादा थे कि जब एल.जी. ने हड़ताल पर हेस्मा लगाया तो ये ख़ुशी से खिल उठे। यह वही दलाल यूनियन है जिसे 2015 और 2017 में अपनी इसी कुत्सित ग़द्दारी के चलते आँगनवाड़ीकर्मियों ने हड़ताल से पीट-पीटकर दौड़ा लिया था और तब से ही यह यूनियन अपनी इसी क़िस्म की घटिया हरकतों के लिए आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के बीच कुख्यात है। दूसरी तरफ़ इनकी मातृ पार्टी सी.पी.एम. ने तो चुनावों में आम आदमी पार्टी का समर्थन भी किया है, तो किस मुँह से ये इनके ख़िलाफ़ बोलेंगे। असल में सीटू अपनी दलाली और आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर की गयी साज़िशों के बावजूद भी हड़ताल को नहीं तोड़ पायी और ख़ुद ही लुट-पिटकर बैठ गयी। इनकी दलालियों पर एक पूरा पुराण लिखा जा सकता है। हरियाणा में सुपरवाइज़र्स को बचाने के लिए इन्होंने आँगनवाड़ी वर्कर्स और हेल्पर्स को क़ुर्बान कर दिया। इस आन्दोलन को नाकाम करने के लिए भी इन्होंने दलाली और ग़द्दारी के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये थे और इसलिए हज़ारों औरतों द्वारा दर्जनों बार खदेड़े गये। साथ ही इनका इतिहास भी यही बताता है कि ये मज़दूर आन्दोलन के विभीषण और मीर जाफ़र हैं।
इस हड़ताल से भाजपा की केन्द्र सरकार भी भयाक्रान्त थी और आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार की तो ऐसी छीछालेदर जनता के बीच कभी हुई ही नहीं थी। अपनी लाख कोशिशों के बावजूद केन्द्र की भाजपा और राज्य की आम आदमी पार्टी हड़ताल तोड़ने में नाकामयाब रहे। एक तरफ़ आम आदमी पार्टी पंजाब में जाकर आँगनवाड़ीकर्मियों का वेतन दोगुना करने की बात कर रही थी, वहीं दूसरी तरफ़ केजरीवाल ने दिल्ली की आँगनवाड़ी हड़ताल को बिल्कुल अनदेखा कर दिया। इनके मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम मानदेयर में 22 प्रतिशत की वृद्धि कर खुलेआम झूठ बोलते हैं कि दिल्ली की आँगनवाड़ी का मानदेय अब देश में सबसे अधिक है और कहा कि आँगनवाड़ीकर्मी सिर्फ़ 3-5 घण्टे ही काम करती हैं। यह बात सच्चाई से कोसों दूर है। सच्चाई यह है कि तेलंगाना राज्य की सरकार द्वारा दिया जा रहा मानदेय दिल्ली में मानदेय बढ़ोत्तरी की राशि से भी कहीं ज़्यादा है। तेलंगाना में वर्ष 2021 से ही वर्कर्स को 13,650 रुपये और हेल्पर्स को 7,800 रुपये मानदेय दिया जाता है। यही नहीं तमिलनाडु सरकार वर्कर्स को 12,200 रुपये और हेल्पर्स को 8,650 रुपये मानदेय देती है। इसमें भी हेल्पर्स का मानदेय दिल्ली के तथाकथित बढ़े हुए मानदेय से कहीं ज़्यादा है। दिल्ली में बढ़ाया गया मानदेय वैसे भी देश में सबसे ज़्यादा होना चाहिए (जो कि वह नहीं है), क्योंकि दिल्ली में जीवनयापन का ख़र्च तेलंगाना या तमिलनाडु से कहीं ज़्यादा है। केजरीवाल सरकार यह दावा कर रही है कि उसने 2017 में आँगनवाड़ीकर्मियों का मानदेय बढ़ाया था! लेकिन ये झूठे-लबार यह नहीं बताते कि 2017 में आँगनवाड़ीकर्मियों ने 58 दिन लम्बी हड़ताल की थी और इनकी सरकार को घुटनों के बल लाकर वेतन बढ़ोत्तरी को मजबूर किया था। केजरीवाल सरकार दावा करती है कि दिल्ली की आँगनवाड़ी जितना पा रही हैं उतना कोई भी नहीं पा रहा। जबकि सच्चाई यह है कि तमिलनाडु और पाण्डिचेरी की सरकारें आँगनवाड़ीकर्मियों को पेंशन, ईएसआई-पीएफ़, दुर्घटना बीमा, सवैतनिक मातृत्व अवकाश जैसी सुविधाएँ दे रही हैं जो दिल्ली में नहीं मिल रही। कोविड महामारी के समय जब दिल्ली की जनता सड़कों पर दम तोड़ रही थी उस समय अपने विधायकों का वेतन 54,000 से 90,000 रुपये कर इसमें 66 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करने वाली केजरीवाल सरकार आँगनवाड़ी कर्मियों को 1,000-1,500 का झुनझुना थमा बरगलाना चाहती है। इसी केजरीवाल सरकार ने सिर्फ़ अपने प्रचार पर पिछले 2 सालों में 830 करोड़ रुपये से ज़्यादा ख़र्च किये हैं।
दूसरी तरफ़ भाजपा सरकार भी केजरीवाल का पूरा समर्थन करते हुए वही राग अलाप रही है। 2018 में मोदी ने 1500 वर्कर्स और 750 हेल्पर्स को देने की घोषणा की थी वो आज तक उन्हें नहीं मिले हैं। इसके साथ ही कर्मचारी का दर्जा देने की माँग को लेकर भी भाजपा कान में तेल डालकर बैठी है।
आँगनवाड़ीकर्मियों की इस अद्वितीय और ऐतिहासिक हड़ताल पर हरियाणा एसेंशियल सर्विसेज़ मेण्टेनेंस एक्ट के ज़रिए छह महीने की रोक लगा दी है। ग़ौरतलब है कि क़ायदे से यह क़ानून केवल सरकारी कर्मचारियों पर ही लगाया जा सकता है क्योंकि आँगनवाड़ीकर्मियों को तो सरकार कर्मचारी तक नहीं मानती तो उनकी सेवाएँ आवश्यक सेवाएँ किस प्रकार हैं, और यदि वे आवश्यक सेवाएँ हैं तो फिर उन्हें कर्मचारी का दर्जा क्यों नहीं मिलता। फिर दिल्ली के उपराज्यपाल महोदय इस पर हेस्मा किस प्रकार लगा सकते हैं? ज़ाहिर है, यह क़दम पूरी तरह से असंवैधानिक और ग़ैर-क़ानूनी है। लेकिन आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी दोनों इस क़दर भयाक्रान्त हैं कि इनका दिमाग़ काम करना बन्द कर चुका है। ये किसी भी तरह से जारी हड़ताल को रोकना चाहते हैं। इन्होंने तर्क दिया है कि चूँकि दिल्ली में बच्चों व औरतों की देखरेख के कार्य को हानि पहुँच रही है, इसलिए आँगनवाड़ी कर्मियों की हड़ताल पर एस्मा लगाया जा रहा है। लेकिन ये भूल गये कि ये 22,000 आँगनवाड़ीकर्मी ख़ुद भी ग़रीब और मध्यवर्ग से आने वाली औरतें ही हैं, जिन्हें ख़ुद भी घर चलाना है। उन्हें छह साढ़े छह हज़ार (हेल्पर के लिए) और बारह साढ़े बारह हज़ार (वर्कर के लिए) की ख़ैरात देकर दिनों-रात खटाया जाता है। यही इस पूँजीवादी व्यवस्था की सच्चाई है। इसकी नींव ही मेहनतकश लोगों की श्रमशक्ति की लूट पर आधारित है। यह स्कीम भी इसलिए चलायी गयी थी ताकि मज़दूरों-मेहनतकशों की श्रमशक्ति का मूल्य घट सके और उसकी पुनरुत्पादन की लागत को कम किया जा सके और वह भी इन्हीं मज़दूरों-मेहनतकशों के घरों की औरतों के श्रम का दोहन करके। जब इन औरतों ने इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठायी तो भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी दोनों ने ही अपने झगड़े भुलाकर साँठगाँठ कर ली और उपराज्यपाल के ज़रिए हड़ताल पर छह महीने के लिए एस्मा लगा दिया। वास्तव में, इनके द्वारा आपसी मिलीभगत से एस्मा लगाया जाना इनके डर को दिखलाता है और यह आँगनवाड़ीकर्मियों के संघर्ष की एक बड़ी राजनीतिक जीत है।
दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन इस अन्यायपूर्ण क़दम का पहला जवाब इसे अदालत में चुनौती देकर देगी। यदि देश की न्यायपालिका वास्तव में स्वतंत्र और निष्पक्ष है, तो वह इस ग़ैर-क़ानूनी और असंवैधानिक आदेश को रद्द करेगी और हड़ताल के बुनियादी अधिकार को सुनिश्चित करेगी। यदि वह सरकार और चुनावी पार्टियों की जेब में नहीं बैठी है, तो वह या तो आँगनवाड़ीकर्मियों को नियमितीकरण कर सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने का आदेश सरकार को देगी या फिर एस्मा को रद्द करेगी क्योंकि एस्मा सरकारी कर्मचारियों पर ही लगाया जा सकता है। अगर न्यायपालिका ऐसा नहीं करती है, तो यह सिद्ध हो जायेगा कि हमारे देश की न्यायपालिका भी निष्पक्ष और स्वतंत्र नहीं है, बल्कि मुनाफ़ाख़ोरों, अमीरों और सत्ताधारियों की जेब में बैठी है। या तो न्यायपालिका सरकार को आदेश दे कि कर्मचारी का हक़ देकर आँगनवाड़ीकर्मियों का नियमितीकरण करे और वाजिब पे स्केल के आधार पर वेतन दे, या फिर हेस्मा को रद्द करे। केवल तब तक के लिए आँगनवाड़ीकर्मी अपने संघर्ष को नये रूपों में जारी रखेंगी और हड़ताल को स्थगित करेंगी। यदि वहाँ भी न्याय नहीं मिलता, तो मानना पड़ेगा कि हमारे देश में अब अन्याय ही क़ानून बन गया है और उसके ख़िलाफ़ बग़ावत करते हुए एस्मा को तोड़कर फिर से हड़ताल की जायेगी।
कर्मचारी का दर्जा दिये बिना मूँगफलियों के मोल ग़ुलामों की तरह बेगार नहीं कराया जा सकता। वास्तव में, ऐसा कराने वाली व्यवस्था और सरकार ही अन्यायपूर्ण है और अन्याय के विरुद्ध विद्रोह करना हर इन्सान का जन्मसिद्ध अधिकार है, चाहे उस अन्याय को सरकार और व्यवस्था किसी क़ानून का हवाला देकर ही क्यों न करे। अंग्रेज़ों ने अन्यायपूर्ण नमक क़ानून बनाया था तो इस देश के लोगों ने उस क़ानून को तोड़कर सही किया था या ग़लत? जब ट्रेड डिस्प्यूट बिल के ख़िलाफ़ भगतसिंह और उनके साथियों ने संघर्ष का बिगुल फूँका था तो उन्होंने सही किया था या ग़लत? साफ़ है – जब अन्याय क़ानून बन जाये, तो विद्रोह हमारा अधिकार ही नहीं बल्कि कर्तव्य भी बन जाता है।
इस मुक़दमे में भारत की न्यायपालिका के चरित्र को उजागर करने तक भाजपा और आप का दिल्ली नगर निगम चुनावों में पूर्ण बहिष्कार और उनकी वोटबन्दी का आन्दोलन दिल्ली में चलाया जायेगा और पूरी दिल्ली की जनता को इन दोनों झूठी, बेईमान और भ्रष्टाचारी पार्टियों की असलियत से आँगनवाड़ीकर्मी अवगत करायेंगी। यह आन्दोलन अभी से शुरू है और सारी आँगनवाड़ी बहनों ने इसके लिए कमर कस ली है क्योंकि इन दोनों ही पार्टियों की असलियत सबके सामने नंगी हो चुकी है।
इसके साथ ही इस हड़ताल से यह भी स्पष्ट हो गया कि जब मेहनतकश वर्ग संगठित हो तो तमाम पूँजीवादी पार्टियाँ अपने आपसी मतभेद भुलाकर राज्यसत्ता के तौर पर एकजुट होकर आन्दोलन का खुले तौर पर दमन करती है। इसके साथ ही 38 दिन चले इस आन्दोलन ने भी साबित कर दिया कि अगर मेहनतकशों की एकजुटता को सही दिशा में क्रान्तिकारी नेतृत्व के साथ बढ़ाया जाये तो दमनकारी से दमनकारी राज्यसत्ता को भी झुकाया जा सकता है।

मज़दूर बिगुल, मार्च 2022


 

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