भगतसिंह जनअधिकार यात्रा के पहले चरण (12 मार्च से 15 अप्रैल, 2022) के समापन के बाद पहला राष्ट्रीय सम्मेलन दिल्ली में सफलतापूर्वक सम्पन्न
बिगुल संवाददाता
बीते 10 मई को दिल्ली के अम्बेडकर भवन में भगतसिंह जनअधिकार यात्रा के पहले राष्ट्रीय सम्मेलन का सफल आयोजन सम्पन्न हुआ। ज्ञात हो कि 12 मार्च से लेकर 15 अप्रैल तक देश के 11 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में भगतसिंह जनअधिकार यात्रा के प्रथम चरण का आयोजन किया गया था। यात्रा का प्रमुख मक़सद शिक्षा, चिकित्सा, रोज़गार, आवास जैसे मुद्दों को उठाना, महँगाई, बेरोज़गारी, लूट, साम्प्रदायिकता के खिलाफ़ जनता की जुझारू एकजुटता कायम करना है। दिल्ली एनसीआर, उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तराखण्ड, चण्डीगढ़, आन्ध्रप्रदेश, तेलंगाना समेत देश के विभिन्न हिस्सों में भगतसिंह जनअधिकार यात्रा की टोलियाँ पहुँची। इस दौरान हज़ारों नुक्कड़ सभाएँ करते हुए लाखों की संख्या में पर्चों-पुस्तिकाओं का वितरण किया गया। पहले राष्ट्रीय सम्मेलन में विभिन्न राज्यों से यात्रा के सैकड़ों यात्रियों, कार्यकर्ताओं और प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। सम्मेलन में 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की शुरुआत के एतिहासिक दिन 10 मई को जनता की जुझारू जनएकजुटता कायम करके असल मुद्दों पर जनसंघर्ष खड़े करने का संकल्प लिया गया।
पहले राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान जनअधिकार यात्रा की ओर से विशाल ने बताया कि 10 मई 1857 के विद्रोह की ऐतिहासिक विरासत हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इसी दिन जनता ने हिन्दू-मुसलमान की धार्मिक दीवारों को गिराकर ब्रिटिश गुलामी व कम्पनी सरकार के खिलाफ़ आज़ादी के संघर्ष का बिगुल फूँका था। 1857 के पहले स्वतन्त्रता संग्राम की शुरुआत 10 मई को हुई थी। देश की आज़ादी के बाद एक नया कम्पनी राज कायम हुआ जिसे भाजपा के राज में नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया गया। अदानी-अम्बानी जैसे पूँजीपतियों के नये कम्पनी राज को भी हम जाति-मजहब की दीवारों को गिराकर जनता की जुझारू जनएकजुटता कायम करके ही नेस्तनाबूद कर सकते हैं। जनता की जुझारू जनएकजुटता कायम करके असल मुद्दों पर जनसंघर्ष खड़े करने के संकल्प के लिए इस दिन से बेहतर कोई दिन हो नहीं सकता है।
सम्मेलन में मंच संचालन विशाल ने किया। अध्यक्ष मण्डल की ज़िम्मेदारी प्रसेन, जी. श्रीनिवास, अश्विनी, दीपक शर्मा, अविनाश ने निभायी। कार्यक्रम की शुरुआत अनुष्टुप द्वारा पेश गीत रंग दे बसन्ती चोला के साथ हुई। इसके बाद संघर्षशील पहलवान खिलाड़ियों के प्रतिनिधिमण्डल की ओर से अर्जुन अवार्डी पहलवान सत्यव्रत कादयान और योग चैम्पियन मनदीप ने भगतसिंह जनअधिकार यात्रा के मंच से बात रखी। खिलाड़ियों की सभी माँगों का पूरे सदन ने पुरज़ोर समर्थन किया। आगे विभिन्न संगठनों के नेताओं ने सभा को सम्बोधित किया और यात्रा के दौरान के अपने अनुभव साझा किये। भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) की ओर से शिवानी, प्रसेन, वारुणी ने बात रखी। बिगुल मज़दूर दस्ता की ओर से अभिनव ने सभा को संबोधित किया। नौजवान भारत सभा की ओर से अरविन्द, दिशा छात्र संगठन की ओर से अमित, अदारा दखल की ओर से अवतार, स्त्री मुक्ति लीग की ओर से पूजा ने यात्रा के अपने अनुभव साझा किये। इसके अलावा महाराष्ट्र से निखिल एकडे, तेलंगाना से सहजा और श्रीजा, आन्ध्र प्रदेश से बुरुगा श्रीनिवास और अरुणा ने भी सभा में अपनी बात रखी।
वक्ताओं ने कहा कि भगतसिंह जनअधिकार यात्रा द्वारा उठाये जा रहे शिक्षा-चिकित्सा-रोज़गार-आवास जैसे मुद्दे जनता के जीवन से जुड़े असली मुद्दे हैं। महँगाई, बेरोज़गारी ने हमारा जीना हराम कर दिया है। स्वास्थ्य सेवाओं के बुरे हालात आये दिन लोगों के जीवन को लील रहे हैं। आज जानलेवा महँगाई इसलिए नहीं है कि चीज़ों और सामानों की कोई किल्लत हो गयी है। बल्कि महँगाई इसलिए है क्योंकि मोदी सरकार ने जनता पर अप्रत्यक्ष करों का पहाड़ लाद दिया है जोकि दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। बेरोज़गारी इसलिए नहीं है कि आबादी ज़्यादा हो गयी है और विकास की सम्भावनाएं समाप्त हो गयी हैं। बल्कि बेरोज़गारी का कारण सरकारों की पूँजी परस्त नीतियाँ हैं। आज मोदी राज में तमाम श्रम कानूनों को शर्म कानूनों में तब्दील कर दिया गया है। जो सिर्फ़ कागज़ों में दर्ज़ हैं और इनका मेहनतकश आबादी के लिए कोई मतलब नहीं है। मोदी सरकार की सेवा में लगा गोदी मीडिया दिलोजान लगाकर हमारे जीवन के असली मुद्दों पर पर्दा डालने का काम कर रहा है। हिन्दू-मुस्लिम, मन्दिर-मस्जिद, पहनावा, खान-पान आदि मसलों को साम्प्रदायिकता की चासनी में डुबोकर जनता को बरगलाया जा रहा है। आज सच्ची धर्मनिरपेक्षता के लिए धर्म के राजनीति व सामाजिक जीवन से पूर्ण विलगाव की माँग उठानी चाहिए। इसके बिना धार्मिक कट्टरता और फ़िरकापरस्ती का दानव सबको निगल जायेगा जैसा कि कई देशों में हुआ भी है। हमें हर प्रकार की साम्प्रदायिकता को नकार देना चाहिए। ऐसे में हमारे सामने यह अतिरिक्त कार्यभार बन जाता है कि अपना जनपक्षधर मीडिया भी खड़ा करें ताकि गोदी मीडिया जनता को मूर्ख न बना सके। सम्मेलन में गोदी मीडिया से जुड़े सभी टीवी चैनलों और अखबारों के बहिष्कार की शपथ ली गयी।
आगे वक्ताओं ने कहा कि बेशक आज जनता को अपनी मुक्ति का कोई उपाय नज़र नहीं आ रहा है, लेकिन यह विकल्पहीनता ही हमारा भाग्य नहीं है। हमारा भरोसा है देश के बहादुर नौजवान, मेहनतकश मज़दूर-किसान आज के हालात को बदलने के लिए अवश्य आगे आयेंगे। भगतसिंह ने कितना सटीक कहा था कि लोगों को परस्पर लड़ने से रोकने के लिए वर्ग चेतना की ज़रूरत होती है। यह बात आज भी उतनी ही सच है। मेहनतकश जनता चाहे किसी भी जाति-धर्म-भाषा-क्षेत्र की हो उसकी समस्याएँ एक हैं, उसे लूटने वाली ताक़तें भी एक हैं। अपनी एकजुटता बनाकर संघर्ष करेंगे तो अपने हक़ हासिल कर सकते हैं। यदि हमें शिक्षा, रोज़गार, चिकित्सा, आवास, सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा, जनवादी अधिकार, सच्चे सेक्युलरिज़्म और जनपक्षधर संस्कृति व मूल्य देने में मौजूदा व्यवस्था नाकाम है तो हमें इसे हटाकर एक नयी जनपक्षधर व्यवस्था का निर्माण करना होगा जिसमें उत्पादन, राजकाज और समाज के पूरे ढाँचे पर उत्पादक मेहनतकश जनता के समूहों का नियन्त्रण हो। लेकिन इस दूरगामी लक्ष्य की ओर आगे बढ़ने की शुरुआत अपने बुनियादी अधिकारों यानी शिक्षा, रोज़गार, चिकित्सा, आवास पर सरकार को घेरने और उन्हें हासिल करने के संघर्ष से करनी होगी। इसीलिए अपने महान बलिदानी योद्धा पुरखों की क्रान्तिकारी विरासत से प्रेरित होकर ‘भगतसिंह जनअधिकार यात्रा’ की शुरुआत हुई है। इस यात्रा का मक़सद समाज में नयी क्रान्तिकारी जागृति लाना और जनता को उसके असल मुद्दों के प्रति जागरूक और एकजुट करना है।
लोगों ने जोशोखरोश के साथ भगतसिंह जनअधिकार यात्रा के पहले राष्ट्रीय सम्मेलन में शिरकत की। इसे नयी ऊर्जा और जोश के साथ अगले चरण में ले जाने और इसे जनआन्दोलन में तब्दील करने का संकल्प लिया! सम्मेलन का अन्त गगनभेदी नारों के साथ झंडेवालान के पूरे इलाक़े में रैली निकाल कर किया गया। यात्रा के अगले चरण के लिए नये संकल्पों के साथ भगतसिंह जनअधिकार यात्रा के पहले चरण का समापन हुआ।
भगतसिंह जन अधिकार यात्रा की प्रमुख माँगें :
- शिक्षा-रोज़गार-स्वास्थ्य और आवास मौलिक अधिकार घोषित हों। निजीकरण पर रोक लगे। भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून पारित करो, रोज़गार न दे पाने की सूरत में 10,000 रुपये प्रतिमाह बेरोज़गारी भत्ता दिया जाये। केन्द्र व राज्य सरकारों के सभी ख़ाली पद शीघ्र भरो। ‘अग्निवीर’ योजना को तत्काल रद्द कर सेना में पक्की भरती की व्यवस्था बहाल की जाये।
- सभी श्रम क़ानूनों को सख़्ती से लागू करो, प्रस्तावित चार ‘लेबर कोड्स’ रद्द करो। ग्रामीण मज़दूरों को भी श्रम क़ानूनों के अन्तर्गत लाया जाये। ‘पुरानी पेंशन स्कीम’ बहाल करो। ठेकेदारी प्रथा ख़त्म कर नियमित प्रकृति के कामों पर पक्के रोज़गार का प्रबन्ध करो।
- महँगाई पर रोक लगाने के लिए सभी अप्रत्यक्ष करों को समाप्त किया जाये और बढ़ती सम्पत्ति के आधार पर प्रगतिशील प्रत्यक्ष करों की व्यवस्था को मज़बूती के साथ लागू किया जाये।
- मनरेगा योजना को सख़्ती से लागू किया जाये, इसके तहत पूरे साल का काम देने का प्रावधान किया जाये और इसके काम पर कम-से-कम न्यूनतम वेतन जितनी राशि प्रदान की जाये।
- ग़रीब और मँझोले किसानों के लिए बीज, खाद, बिजली, आदि पर सब्सिडी की समुचित व्यवस्था हेतु अमीर वर्गों पर विशेष कर लगाये जायें, सिंचाई की सरकारी व्यवस्था और संस्थागत ऋण का भी समुचित प्रबन्ध किया जाना चाहिए।
- “सर्वधर्म समभाव” की नकली धर्मनिरपेक्षता की जगह सच्चे धर्मनिरपेक्ष राज्य को सुनिश्चित करने के लिए क़ानून लाया जाये। किसी भी नेता या पार्टी द्वारा धर्म, समुदाय या आस्था का सार्वजनिक जीवन में किसी भी रूप में उल्लेख व इस्तेमाल करना दण्डनीय अपराध घोषित किया जाये।
- छुआछूत ही नहीं बल्कि हर प्रकार से जातिगत भेदभाव को संवैधानिक संशोधन करके दण्डनीय अपराध घोषित किया जाये।
- चुनावी दलों व सरकार द्वारा किये जाने वाले भ्रष्टाचार पर रोक लगे और इनके पब्लिक ऑडिट व जाँच की व्यवस्था की जाये।
- स्त्रियों के साथ सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक भेदभाव के हर रूप को समाप्त करो, इसके लिए सख़्त क़ानून लाये जायें।
- धार्मिक व जातिगत वैमनस्य भड़काने वाले तथा साम्प्रदायिक हिंसा व मॉब लिंचिंग में सक्रिय हर प्रकार के संगठनों और दलों पर तत्काल प्रतिबन्ध लगाकर इन्हें आतंकवादी घोषित किया जाये और इनके नेताओं व गुर्गों पर तत्काल कठोर कार्रवाई की जाये
मज़दूर बिगुल, जून 2023
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन