Category Archives: गतिविधि रिपोर्ट

‘अन्‍वेषण’:कला के असली सजर्कों तक कला को ले जाने की अनूठी पहल

यह कविता दिल्ली के मज़दूर इलाक़ों में छात्र-युवा कलाकारों की संस्था ‘प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स लीग’ द्वारा शुरू की गई मुहिम ‘अन्‍वेषण’ को सटीक ढंग से अभिव्यक्त करती है। ‘अन्‍वेषण’ का मक़सद कला को आर्ट गैलरी की दीवारों से बाहर उतारकर ज़िन्दगी के बीच लाना है। इस मुहि‍म का मक़सद जीवन की बुनियादी शर्तों को रचने वाले सर्जकों के बीच जाकर जीवन के गरम ताप से कला को सींचना है। हमने अन्‍वेषण के तहत बवाना, वज़ीरपुर, नांगलोई के औद्योगिक क्षेत्रों में, इन इलाक़ों से सटे रिहायशी क्षेत्रों में फोटोग्राफ़ी की, स्‍केच बनाये, चित्र बनाये और लोगों से कला के बारे में, उनकी ज़िन्दगी के बारे में बातचीत की। इस दौरान किये गये कलाकर्म को लोगों के बीच प्रदर्शित भी किया। इस दौरान हमारे जो अनुभव रहे उन्हें हम यहाँ साझा कर रहे हैं।

कश्मीरी क़ौमी संघर्ष समर्थन कमेटी, पंजाब के आह्वान पर पंजाब में हज़ारों लोग कश्मीरी जनता के हक़ में सड़कों पर उतरे

15 सितम्बर को पंजाब में कश्मीरी कौम के हक़ में इतनी ज़ोरदार आवाज़ उठी कि 40 दिनों से बहरे बने बैठे पूँजीवादी मीडिया को भी सुननी पड़ गई। ‘‘कश्मीर कश्मीरी लोगों का, नहीं हिन्द-पाक की जोकों का’’ और ‘‘पंजाब से उठी आवाज, कश्मीरी संघर्ष ज़ि‍न्दाबाद’’ के नारों के साथ पंजाब के हज़ारों मज़दूरों, किसानों, छात्रों, नौजवानों व बुद्धिजीवियों के जब 15 सितम्बर की सुबह चण्डीगढ़/मोहाली की तरफ काफ़ि‍ले जाने शुरू हुए तो इस आवाज़ ने हुक्मरानों के लिए खौफ़ खड़ा कर दिया। पंजाब में उठी यह आवाज़ दमन और प्रतिरोध की आग में तप रहे कश्मीरी जनता के लिए हवा के ठण्डे झोंके की तरह है। कश्मीरी जनता के लिए इस तरह ज़ोरदार आवाज़ बुलन्द करके पंजाब के जनवादी जनान्दोलन ने अपनी जनवादी व जुझारू रवायतों को बरकरार रखा है।

“मई दिवस बन जाये हर दिन साल का, यह सोच कर तैयारियाँ करने लगें हम फिर”

“मई दिवस बन जाये हर दिन साल का, यह सोच कर तैयारियाँ करने लगें हम फिर” इंक़लाबी जोश-ओ-ख़रोश के साथ मज़दूरों ने दी शिकागो के शहीदों को श्रद्धांजलि ‘बिगुल मज़दूर…

ईवीएम में घपले के ख़िलाफ़ भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) का निर्वाचन आयोग पर विरोध प्रदर्शन!

चुनाव के दौरान देश के अनेक स्थानों से ईवीएम मशीनों में हेराफेरी की आ रही ख़बरों और ईवीएम में छेड़छाड़ को लेकर उठाये जा रहे गम्भीर सवालों के मद्देनज़र 22 मई को RWPI के नेतृत्व में निर्वाचन आयोग के सामने चुनाव में जालसाज़ी के ख़िलाफ़ ज़ोरदार प्रदर्शन किया गया।

‘बसनेगा’ नमूना सर्वेक्षण की रिपोर्ट जारी – तेज़ी से बढ़ रही है बेरोज़गारी

‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून’ अभियान, बसनेगा द्वारा आयोजित एक प्रेस वार्ता में 20 फ़रवरी को ‘बसनेगा’ की नमूना सर्वेक्षण की रिपोर्ट का प्रो. अनिल सदगोपाल, प्रो. अरुण कुमार और प्रो. सतीश देशपाण्डे द्वारा लोकार्पण किया गया। मीडिया के सामने बेरोज़गारी के असल हालात को रखा गया।

गतिविधि रिपोर्ट – शिक्षा सहायता मण्डल, हरिद्वार

मेहनतकशों के बच्चों में पढ़ने की दिलचस्पी होने के बावजूद भी मज़दूर बस्तियों में चलने वाले सरकारी-अर्द्धसरकारी स्कूलों की दुर्दशा की वजह से वे बेहतर शिक्षा से वंचित हो जाते हैं। इसको बदलने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में ‘सबको नि:शुल्क और एकसमान शिक्षा’ के नारे के साथ एक बड़े आन्दोलन की शुरुआत करनी होगी तभी मेहनतकशों के बच्चों को बेहतर शिक्षा हासिल हो सकती है।उल्लेखनीय है कि ऐसे ‘शिक्षा सहायता मण्डल’ बिगुल मज़दूर दस्ता और नौजवान भारत सभा की ओर से उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र आदि के अनेक ज़िलों में भी चलाये जा रहे हैं।

राजधानी दिल्ली में 3 मार्च को बसनेगा अभियान का दूसरा पड़ाव – ‘रोज़गार अधिकार रैली’ में कई राज्यों से हज़ारों की जुटान

पिछली 3 मार्च 2019 के दिन देश की राजधानी दिल्ली में हज़ारों आँगनवाड़ी कर्मियों, औद्योगिक मज़दूरों, छात्रों, युवाओं, घरेलू कामगारों और न्यायपसन्द नागरिकों ने रोज़गार अधिकार रैली निकाली। रोज़गार के मुद्दे पर आयोजित रोज़गार अधिकार रैली का यह दूसरा पड़ाव था। पहला पड़ाव था 25 मार्च 2018 का। ‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून’ (बसनेगा) अभियान के मीडिया प्रभारी योगेश स्वामी ने बताया कि देश के अलग-अलग हिस्सों में बसनेगा पारित कराने के लिए विभिन्न संगठनों और यूनियनों के कार्यकर्त्ताओं की टोलियाँ पिछले काफ़ी समय से प्रचार कार्य में जुटी हुई थी। 3 मार्च की विशाल रैली इसी का परिणाम थी। रोज़गार अधिकार रैली के माध्यम से सत्ता के सामने अपने हक़ का मुक्का तो ठोंका ही गया, इसके साथ ही यह सन्देश भी गया कि देश की जनता नक़ली मुद्दों पर लड़ने की बजाय असली मुद्दों को उठाकर उन पर एकजुट संघर्ष खड़े करना भी जानती है। दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार में कार्यरत विभिन्न यूनियनों और जन-संगठनों ने दिलोजान से रोज़गार अधिकार रैली के आयोजन में ताक़त झोंकी।

कारख़ाना मज़दूर यूनियन के दूसरे सदस्य सम्मेलन का आयोजन

कारख़ाना मज़दूर यूनियन ने सन् 2008 में अपनी स्थापना से लेकर अब तक मज़दूरों को जागरूक, संगठित करने में लगी हुई है। अनेकों छोटे-बड़े संघर्ष हुए हैं। अन्य मेहनतकश लोगों के जायज़ माँग-मसलों, जनता के जनवादी मुद्दों पर डटकर खड़ी होती रही है। टेक्सटाइल हौज़री कामगार यूनियन के नेता गुरदीप ने कारख़ाना मज़दूर यूनियन के सम्मेलन के लिए बधाई दी और उम्मीद व्यक्त की कि यूनियन जन-हित में संघर्षरत रहेगी। सम्मेलन का मंच संचालन समर ने किया।

8 मार्च अन्तरराष्ट्रीय स्त्री दिवस के अवसर पर कार्यक्रम

स्त्री मज़दूर संगठन की बीना ने कहा कि पूँजीवादी समाज में स्त्रियाँ दोहरे उत्पीड़न का शिकार होती हैं – एक तो पूँजी की ग़ुलामी और दूसरी तरफ़ पितृसत्तात्मक ग़ुलामी। हम अपने आसपास, फ़ैक्टरियों तथा जिन घरों में हम काम करते हैं वहाँ  लगातार इस सामाजिक मानसिकता के दंश को झेल रहे हैं। आज के समय में जब हमारे जीवन को पूँजी की लूट ने बद से बदतर बना दिया है तो ठीक इसी कारण आज हमें उठ खड़े होने की ज़रूरत भी सबसे ज़्यादा है। आज समाज के पोर-पोर में पैठी स्त्री दलित, अल्पसंख्यक और मज़दूर विरोधी मानसिकता और फासीवादी राजनीति के ख़िलाफ़ लगातार संगठित होने की ज़रूरत है।

दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) के ठेका कर्मचारियों की हड़ताल : एक रिपोर्ट

डीटीसी विभाग में ठेके (अनुबन्ध) पर काम करने वाले ड्राइवर (4000) और कण्डक्टर (8000) को मिलाकर 12,000 कर्मचारी हैं। हालाँकि लम्बे समय से डीटीसी के ये ठेका कर्मचारी बुनियादी श्रम अधिकार भी न मिलने के कारण परेशान थे। इस साल के अगस्त माह में जब दिल्ली हाईकोर्ट का दिल्ली सरकार द्वारा बढ़ायी गयी न्यूनतम मज़दूरी पर रोक लगा दी गयी थी; जिसके कारण कर्मचारियों के वेतन में लगभग 4 से 5 हज़ार रुपये कम हो गये थे। वेतन कम होने के बाद इन कर्मचारियों की बैठक हुई और फ़ैसला किया गया वेतन कम होने, समान काम-समान वेतन व अन्य माँगों को लेकर कर्मचारी 22 अक्टूबर को एक दिन की हड़ताल करेंगे। इस एक दिन की हड़ताल में कर्मचारियों के साथ एक्टू (चुनावबाज़ संशोधनवादी कम्युनिस्ट पार्टी सीपीआई (माले-लिबरेशन) का मज़दूर फ्रण्ट) की भागीदारी भी थी। 22 अक्टूबर की शाम को ही दिल्ली सरकार ने इस हड़ताल की अगुवाई कर रहे 8 कर्मचारियों को नौकरी से बर्ख़ास्त कर दिया था। ऐसे में इन कर्मचारियों ने फ़ैसला लिया कि बर्ख़ास्त कर्मचारियों को वापस लेने व अन्य माँगों को लेकर अब अनिश्चितकालीन हड़ताल की जायेगी। कर्मचारियों के इस फ़ैसले से एक्टू सहमत नहीं था; उनका कहना था कि बस एक दिन की प्रतीकात्मक हड़ताल से ही सरकार पर दबाव बनाया जा सकता है। ऐसे में डीटीसी कर्मचारियों ने सीटू को अपनी अनिश्चितकालीन हड़ताल से पूरी तरह अलग करने का फ़ैसला किया।