Category Archives: गतिविधि रिपोर्ट

मारुति-सुजुकी के बेगुनाह मज़दूरों को उम्रक़ैद व अन्य सज़ाओं के खि़लाफ़ लुधियाना में ज़ोरदार प्रदर्शन

एक बहुत बड़ी साजि़श के तहत़ क़त्ल, इरादा क़त्ल जैसे पूरी तरह झूठे केसों में फँसाकर पहले तो 148 मज़दूरों को चार वर्ष से अधिक समय तक, बिना ज़मानत दिये, जेल में बन्द रखा गया और अब गुड़गाँव की अदालत ने नाजायज़ ढंग से 13 मज़दूरों को उम्रक़ैद और चार को 5-5 वर्ष की क़ैद की कठोर सज़ा सुनाई है। 14 अन्य मज़दूरों को चार-चार साल की सज़ा सुनाई गयी है लेकिन चूँकि वे पहले ही लगभग साढे़ चार वर्ष जेल में रह चुके हैं इसलिए उन्हें रिहा कर दिया गया है। 117 मज़दूरों को, जिन्हें बाक़ी मज़दूरों के साथ इतने सालों तक जेलों में ठूँसकर रखा गया, उन्हें बरी करना पड़ा है। सबूत तो बाक़ी मज़दूरों के खि़लाफ़ भी नहीं है लेकिन फिर भी उन्हें जेल में बन्द रखने का बर्बर हुक्म सुनाया गया है।

‘महान अक्टूबर क्रान्ति और इक्कीसवीं सदी की नयी समाजवादी क्रान्तियाँ : निरन्तरता और परिवर्तन के तत्व’ पर नयी दिल्ली में व्याख्यान

अक्टूबर क्रान्ति के नये संस्करणों को रचने के लिए जहाँ अक्टूबर क्रान्ति की समस्याओं की समझ अनिवार्य है, वही आज के दिक् और काल में दुनिया के पूँजीवादी समीकरण को समझना भी बेहद ज़रूरी है। आज दुनियाभर के देशों में उपनिवेश, अर्धउपनिवेशों जैसी स्थिति नहीं है और इन देशों में राष्ट्रीय जनवादी क्रान्ति के कार्यभार भी सम्पन्न हो चुके हैं इसीलिए आज के युग की क्रान्तियाँ चीन की नवजनवादी क्रान्ति जैसी नहीं होंगी। साथ ही, आज की क्रान्तियाँ अक्टूबर क्रान्ति की हु-ब-हु कार्बन कॉपी या नक़ल भी नहीं हो सकतीं।

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में अन्तरराष्ट्रीय स्त्री दिवस के अवसर पर कार्यक्रम

आज देशभर की आधी आबादी दोहरी गुलामी का शिकार है। कहीं वो दहेज के लिए जलाई जा रही है, कहीं कारख़ानों में खप रही है तो कहीं दफ़्तरों में, तो कहीं चूल्हे में ख़ुद को झोंक देने के ि‍लए मजबूर है। अपने वजूद से बेख़बर पितृसत्ता और पूँजीवाद की गुलामी के लिए पिस रही है। साल दर साल महिला विरोधी अपराध की घटनाओं की तादाद बढ़ती जा रही है। ख़ासकर आज का दौर अगर देखा जाये जब हर ओर फासीवादी हमले हो रहे है तो महिलाएँ, अल्पसंख्यक, दलित और मज़दूर वर्ग इसका पहले शिकार हो रहे हैं।

‘भारत में जाति व्यवस्था : उद्भव, विकास और उन्मूलन का सवाल’ विषय पर परिचर्चा

जाति व्यवस्था पर चोट आज इसी रूप में की जा सकती है कि तमाम जातियों की मेहनतकश आबादी वर्ग आधारित एकजुटता स्थापित करे। मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था, जो जातिवाद का समाज की मेहनतकश जनता को बाँटने के लिए इस्तेमाल करती है, के क्रान्ति के द्वारा ख़ात्मे का सवाल बेशक एजेण्डे पर होना चाहिए किन्तु यह भी उतना ही सच है कि व्यापक जाति विरोधी आन्दोलनों को खड़ा किये बग़ैर मेहनतकश आबादी को एकजुट नहीं किया जा सकता।

नोटबन्दी के विरोध में बिगुल मज़दूर दस्ता और जनसंगठनों का भण्डाफोड़ अभियान

मोदी सरकार की नोटबन्दी का सख्त विरोध करते हुए बिगुल मज़दूर दस्ता, नौजवान भारत सभा, जागरूक नागरिक मंच, स्त्री मज़दूर संगठन और अन्य जनसंगठन देश के विभिन्न इलाक़ों में प्रचार अभियान चलाकर लोगों को इस घोर जनविरोधी फ़ैसले की असलियत से वाकिफ़ करा रहे हैं।

शहीद भगतसिंह के जन्मदिवस पर मराठी में क्रान्तिकारी साहित्य के प्रकाशन की शुरुआत

इस मौके पर बोलते हुए नौजवान भारत सभा के नारायण ने कहा कि भगतसिंह की शहादत के इतने वर्षों बाद भी उनके लेख प्रासंगिक हैं। इसका कारण ये है कि भगतसिंह केवल अंग्रेजों के विरुद्ध भारतीय जनता की लड़ाई के ही नहीं बल्कि शोषण के विरुद्ध मज़दूरों की लड़ाई के भी प्रतीक हैं। समानता पर आधारित व शोषणमुक्त समाज का सपना आंखों में लिए भगतसिंह व उनके साथियों ने अपना सब कुछ बलिदान कर दिया पर आज भी वैसा समाज नहीं बन पाया। उसी शोषणमुक्त समाज के निर्माण के लिए दुनियाभर के मज़दूरों की तरह ही भारत के मज़दूर भी लड़ रहे हैं। इस संघर्ष को परिणति तक ले  जाने के लिए भगतसिंह का लेखन आज भी मार्गदर्शक है। सड़े-गले विचारों, रूढ़ि‍यों व बौद्धिक गुलामी की जकड़ से आज़ाद होने की प्रेरणा देने की विलक्षण क्षमता उनके लिखे शब्दों में है। उनके लेखन से प्रेरित होकर खुद को शोषण के विरुद्ध लड़ाई में झोंक देना, यही भगतसिंह को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

नाशिक व पुणे में दलित विरोधी अत्याचारों के ख़ि‍लाफ़ मुम्बई में प्रदर्शन

नौजवान भारत सभा के नारायण खराडे ने कहा कि दलित अत्याचार विरोधी क़ानून में संशोधन की माँग करने वालों की असली मंशा समझने की ज़रूरत है। आज महाराष्ट्र के हर जिले में दलितों के विरुद्ध भयंकर अत्याचार अंजाम दिये जा रहे हैं व ऐसे ज़्यादातर केसों में अत्याचार विरोधी क़ानून के तहत मामला दर्ज होने के बावजूद भी सज़ा की दर काफी कम (दोष सिद्धि दर 10 प्रतिशत से भी कम) रहती है। ऐसे में इस क़ानून को और ज़्यादा प्रभावी बनाने की ज़रूरत है। नारायण ने बात रखते हुए कहा कि आज मराठा युवाओं को भी इस चीज़ को समझने की ज़रूरत है कि उनके असली दुश्‍मन दलित नहीं बल्कि अमीर किसान व उद्योगपति हैं जो सबको लूट रहे हैं।

लुधियाना में ‘स्त्री मज़दूर संगठन’ की शुरुआत

2 अक्टूबर 2016 को मज़दूर पुस्तकालय, लुधियाना में स्त्रियों की एक मीटिंग हुई। इस मीटिंग में समाज में स्त्रियों की बुरी हालत के बारे में और इस हालत को बदलने के लिए स्त्रियों को जागरूक व संगठित करने की ज़रूरत के बारे में बातचीत की गयी। मज़दूर स्त्रियों की हालत और भी बुरी है। घर और बाहर दोनों जगहों पर स्त्री मज़दूरों को बेहद भयंकर हालातों का सामना करना पड़ता है। मर्दों के बराबर या अधिक काम करने के बावजूद भी उन्हें पुरुष मज़दूरों से कम वेतन मिलता है।

शहीद-ए-आज़म के जन्मदिवस पर लुधियाना में मज़दूर संगठनों द्वारा जातिवाद विरोधी अभियान

शहीद भगतसिंह के जन्मदिवस पर इस बार टेक्सटाईल हौजरी कामगार यूनियन व कारखाना मज़दूर यूनियन द्वारा 25 से 28 सितम्बर तक लुधियाना में जातिवाद विरोधी अभियान चलाया गया। इस अभियान के तहत यूनियनों द्वारा एक पर्चा जारी किया गया। विभिन्न इलाकों में नुक्कड़ सभाएँ व पैदल मार्च आयोजित किए गये। 28 सितम्बर को मज़दूर पुस्तकालय, ताजपुर रोड, लुधियाना पर जातिवाद के बारे में मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर आधारित फिल्म ‘सदगति’ दिखायी गयी और विचार-चर्चा आयोजित की गयी।

‘जातिवाद की समस्या व इसका समाधान’ विषय पर विचार गोष्ठी

सुखविन्दर ने कहा कि जातिवाद के ख़ात्मे का रास्ता सिर्फ़ मार्क्सवाद के पास है। मार्क्सवाद और अम्बेडकरवाद को आपस में मिलाने की कोशिशें बेबुनियाद हैं, इनका फ़ायदा नहीं बल्कि नुकसान ही हो रहा है। जय भीम लाल सलाम का नारा एक ग़लत नारा है। डा. अम्बेडकर ने जातीय उत्‍पीड़न के मुद्दे को उभारने में अहम भूमिका निभायी लेकिन उनके पास जाति व्यवस्था के ख़ात्मे का कोई रास्ता नहीं था। वे भाववादी दर्शन और पूँजीवादी अर्थशास्त्र व राजनीति के पैरोकार थे।