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यूक्रेन-रूस युद्ध की विभीषिका में साम्राज्यवादी गिद्ध हथियार बेच कमा रहे बेशुमार मुनाफ़ा

इस भयानक बर्बादी के बीच रूस और पश्चिमी देशों के रक्षा उद्योग की कम्पनियों ने ज़बरदस्त मुनाफ़ा कमाया है। टैंक, से लेकर ड्रोन, मिसाइल, मशीनगन, विमान तथा अन्य हथियारों का बाज़ार कुलाँचे मारकर आगे बढ़ रहा है। लॉकहीड मार्टिन, रेथ्योन, बोइंग और नॉर्थरोप ग्रुम्मन जैसी अमेरिकी हथियार कम्पनियों ने पिछले साल ज़बरदस्त मुनाफ़ा कमाया है। नॉर्थरोप ग्रुम्मन के शेयर 40 प्रतिशत बढ़ गये हैं जबकि लॉकहीड मार्टिन के शेयरों की कीमत में 37 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है। ब्रिटेन की रक्षा क्षेत्र की कम्पनी बीएई सिस्टम्स के शेयर में नये साल की शुरुआत से अब तक 36 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है। ल्योपार्ड टैंक बनाने वाली जर्मनी की राईनमेटल कम्पनी ने भी पिछले साल जमकर मुनाफ़ा कमाया है। रूस की रक्षा कम्पनियों ने भी इस तबाही में ज़बर्दस्त मुनाफ़ा पीटा है।

‘आधुनिक रोम’ में ग़ुलामों की तरह खटते मज़दूर

गुड़गाँव के इफ़्को चौक मेट्रो स्टेशन से गुड़गाँव शहर (या भाजपा द्वारा किये नामकरण के अनुसार गुरुग्राम) को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आप किसी जादुई नगरी में आ गये हों। आधुनिक स्थापत्यकला (तकनीकी भाषा में कहें तो ‘उत्तरआधुनिक स्थापत्यकला’) के एक से एक नमूनों में शीशे-सी जगमगाती मीनारों की आड़ी-तिरछी आकृतियों से शहर की रंगत अलग ही लगती है। पर इस जगमग शहर की सड़कों पर मज़दूरों को अपने परिवारों के साथ घूमने की इजाज़त नहीं, इस शहर के पार्कों में हम जा नहीं सकते, भले ही सड़कों को चमकाने और पार्कों को सुन्दर बनाने की ज़िम्मेदारी हमारे ऊपर ही आती हो।

क्लासिकीय पेण्टिंग्स पर पर्यावरण कार्यकर्ताओं द्वारा हमला : सही सर्वहारा नज़रिया क्या हो?

पिछले तीन महीनों में पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने आम लोगों का ध्यान पर्यावरण समस्या की ओर खींचने के लिए चुनिन्दा क्लासिकीय चित्रों पर हमला किया है। लिओनार्डो दा विन्ची की मोनालिसा, वैन गॉग की सनफ़्लावर्स तथा मोने का एक चित्र भी निशाने पर आ चुका है। पर्यावरण कार्यकर्ता ‘स्टॉप आयल’ और ‘लेट्जे जेनेरेन’ नामक एनजीओ से जुड़े हैं जिन्होंने म्यूज़ियम में जाकर चित्रों पर टमाटर की चटनी फेंकने से लेकर स्याही फेंकने का तरीक़ा अपनाया है।

इटली में धुर-दक्षिणपन्थी ज्यॉर्ज्या मेलोनी के आम चुनाव में जीत के मायने

इटली में धुर-दक्षिणपन्थी ज्यॉर्ज्या मेलोनी की पार्टी ब्रदर्स ऑफ़ इटली के नेतृत्व में दक्षिणपन्थी गठबन्धन की सरकार बनने जा रही है। इटली की जनता के एक बड़े हिस्से ने राष्ट्रवादी और प्रवासी-विरोधी प्रचार में बहकर धुर-दक्षिणपन्थी मेलोनी और अन्य दक्षिणपन्थियों को चुनाव में बहुमत दिया है। ख़ास तौर पर उत्तरी इटली के सफ़ेद कॉलर मज़दूरों और निम्न मध्यवर्ग ने बड़े स्तर पर मेलोनी को वोट किया है। मेलोनी ने न सिर्फ़ बरलोस्कुनी के फ़ोर्जा इतालिया और मात्तियो साल्वीनी के दक्षिणपन्थी लीग के दक्षिणपन्थी वोट आधार का एक हिस्सा पाया है बल्कि 2018 में सरकार में आयी फ़ाइव स्टार मूवमेण्ट पार्टी के निम्न मध्यवर्गीय वोटरों को भी आकर्षित किया है।

मज़दूर वर्ग की पार्टी कैसी हो? (चौथी क़िस्त) – पार्टी का राजनीतिक प्रचार और जनसमुदाय

मज़दूर वर्ग की पार्टी का राजनीतिक प्रचार किस प्रकार ट्रेड यूनियनवाद से अलग होता है इस प्रश्न पर लेनिन की अर्थवादियों से लम्बी बहस चली। पिछले लेख में हमने ज़िक्र किया था कि किस तरह हड़ताल आन्दोलन के उभार के समय स्वतःस्फूर्ततावाद के पूजक अर्थवादी लोग मज़दूरों के बीच कम्युनिस्टों के प्रचार को केवल आर्थिक माँगों के लिए संघर्ष तक सीमित रखते थे। परन्तु कम्युनिस्टों का ख़ुद को मज़दूरों की आर्थिक माँगें उठाने तक सीमित करना ही अर्थवाद नहीं कहलाता है बल्कि मज़दूर वर्ग के अलावा जनसमुदाय की माँगों को अनदेखा करना भी अर्थवाद कहलाता है। ऐसा क्यों है? इसे समझने के लिए हमें कम्युनिस्ट राजनीति के सार को समझना होगा।

सशस्त्र बलों के बीच प्रचार की लेनिनवादी अवस्थिति क्या है?

“जब भी इन सेनाओं और जत्थों की सामाजिक संरचना और भ्रष्ट आचरण के चलते ऐसा अवसर उत्पन्न हो जाये; तो (सेना में) विघटन की स्थिति उत्पन्न करने के लिए आन्दोलनात्मक प्रचार के हर अनुकूल क्षण का पूरा उपयोग किया जाना चाहिए। जहाँ पर भी इसका पूँजीवादी चरित्र एकदम उजागर हो, मिसाल के तौर पर अफ़सरों की कोर में, वहाँ पूरी जनता के सामने उसे बेनक़ाब करना चाहिए तथा उन्हें इतनी अधिक घृणा और सार्वजनिक तिरस्कार का पात्र बना देना चाहिए कि अपने ख़ुद के अलगाव के कारण वे भीतर से ही विघटन के शिकार हो जायें।”

मज़दूर वर्ग की पार्टी कैसी हो? (तीसरी क़िस्त) – मज़दूरों का आर्थिक संघर्ष और राजनीतिक प्रचार का सवाल

देश के क्रान्तिकारियों के समक्ष मज़दूर आन्दोलन में मौजूद अर्थवादी भटकाव एक बड़ी चुनौती है। केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों की संशोधनवादी ग़द्दारी के साथ ही कई तथाकथित “क्रान्तिकारी” भी अर्थवाद की बयार में बह चुके हैं। मज़दूरवाद, अराजकतावादी संघाधिपत्यवाद तो दूसरी तरफ़ वामपन्थी दुस्साहसवाद की ग़ैर-क्रान्तिकारी धाराएँ मज़दूरों के बीच क्रान्तिकारी राजनीति को स्थापित नहीं होने देती हैं।

मज़दूर वर्ग की पार्टी कैसी हो? (दूसरी क़िस्त) – मज़दूर वर्ग की पार्टी का प्रचार क्रान्तिकारी प्रचार होता है

मज़दूर वर्ग की पार्टी का प्रचार क्रान्तिकारी होता है। यह प्रचार मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकश जनता से ही निर्धारित होता है। यानी क्रान्तिकारी प्रचार के लिए सही विचार, सही नारे, और सही नीतियाँ आम मेहनतकश जनता के सही विचारों को संकलित कर, उसमें से सही विचारों को छाँटकर, सही विचारों के तत्वों को छाँटकर और उनका सामान्यीकरण करके ही सूत्रबद्ध किये जा सकते हैं। लेनिन बताते हैं कि “मज़दूरों के आम हितों और आकांक्षाओं के आधार पर, ख़ासकर उनके आम संघर्षों के आधार पर, कम्युनिस्ट प्रचार और आन्दोलन की कार्रवाई को इस प्रकार चलाना चाहिए कि वह मज़दूरों के अन्दर जड़ें जमा ले।” यही बात आम मेहनतकश जनता के बीच किये जाने वाले प्रचार के लिए भी सही है।

मज़दूर वर्ग की पार्टी कैसी हो? (पहली क़िस्त) – मज़दूर वर्ग की पार्टी कैसी हो?

हर वर्ग का राजनीतिक प्रतिनिधित्व उसकी राजनीतिक पार्टी या पार्टियाँ करती हैं। भारत में तमाम पार्टियाँ मौजूद हैं जो अलग-अलग वर्ग का समर्थन करती हैं या शासक वर्ग के किसी हिस्से के हितों की हिफ़ाज़त करती हैं। भाजपा और कांग्रेस मूलत: और मुख्यत: बड़े पूँजीपतियों के वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये दोनों पार्टियाँ भारत की बड़ी वित्तीय-औद्योगिक पूँजी के हितों को प्रमुखता से उठाती हैं।
वहीं तृणमूल कांग्रेस, राजद, जदयू, अन्नाद्रमुक और द्रमुक से लेकर तमाम पार्टियाँ मँझोले व क्षेत्रीय बुर्जुआ वर्ग और/या धनी किसानों-कुलकों की प्रतिनिधि हैं, जो कि बड़े पूँजीपति वर्ग से देशभर में विनियोजित हो रहे बेशी मूल्य में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की जद्दोजहद करते रहते हैं।

क्यूबा में साम्राज्यवादी दख़ल का विरोध करो!

जुलाई से ही क्यूबा में विपक्ष के नेताओं के आह्वान पर हज़ारों लोगों के सड़कों पर उतरने की ख़बरें आ रही हैं। बिजली कटौती, खाद्य सामग्री का महँगा होना व कोरोना के नये संस्करण के चलते बीमारी का फैलना प्रमुख कारण थे जिनके ख़िलाफ़ आम जनता में रोष है। परन्तु जब इसके साथ ही अमेरिका के सारे मीडिया चैनल और अख़बार ‘क्यूबा की मदद करो’ और इन आन्दोलनों को ‘जनवाद की बहाली’ बताने का आन्दोलन बताने लगते हैं तो समझ में आता है कि दाल में कुछ काला है!