अन्तरराष्ट्रीय कामगार स्त्री दिवस के अवसर पर आँगनवाड़ीकर्मियों ने मनाया ‘संघर्ष का उत्सव’!
8 मार्च की विरासत को याद किया और भविष्य के संघर्ष की तैयारी का संकल्प लिया दिल्ली की आँगनवाड़ी कर्मियों ने!

वृषाली, दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन

अन्तरराष्ट्रीय कामगार स्त्री दिवस (8 मार्च) के अवसर पर 9 मार्च के दिन दिल्ली की आँगनवाड़ी कर्मियों ने ‘संघर्ष का उत्सव’ मनाया। ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ के बैनर तले स्त्री कामगारों ने एक नये अन्दाज़ में 8 मार्च की विरासत को याद किया और भविष्य के संघर्षों का संकल्प लिया। इस मौक़े पर दिल्ली की आँगनवाड़ी कर्मियों के समर्थन में हरियाणा से आँगनवाड़ीकर्मी कमला दयोरा और छात्र-नौजवान व बुद्धिजीवी भी शामिल रहे। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंज़ाल्वेस ने भी इस अवसर पर महिलाकर्मियों को सम्बोधित किया। इसके अलावा ‘रेस्टोरेण्ट वर्कर्स यूनियन’ (यूएस), इंग्लैण्ड से ‘युनाइट द यूनियन’ व ‘इण्डियन लेबर सॉलिडैरिटी (यूके), न्यूज़ीलैण्ड से ‘प्रवासी कामगार यूनियन’, पाकिस्तान से ‘रेड वर्कर्स फ्रण्ट’, भारत से ‘इण्डियन फ़ेडेरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियन (IFTU)’ ने इस कार्यक्रम के आयोजन पर ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ को बधाई-पत्र भेजा। कार्यक्रम के समापन से पहले महिलकर्मियों ने दिल्ली के झण्डेवालान इलाक़े में रैली और नारों की गूँज से स्त्री मुक्ति के लिए आवाज़ बुलन्द की।

कार्यक्रम की शुरुआत स्त्री मुक्ति का सन्देश देते हुए गीत से हुई। इसके बाद संचालन करते हुए विशाल ने सबसे पहले 8 मार्च की जुझारू विरासत के बारे में बात रखी। उन्होंने कहा कि आज स्त्री दिवस को बाज़ार का उत्सव बना दिया गया है जबकि यह संघर्ष का उत्सव होना चाहिए। आँगनवाड़ी कर्मियों का संघर्ष दुनिया भर की आधी आबादी के संघर्षों का ही हिस्सा है। आज केयर वर्क में लगी महिलाकर्मी के श्रम के शोषण की बुनियाद भी यही है कि दुनियाभर में स्त्रियों की मेहनत की लूट आसान है। दिल्ली की आँगनवाड़ी कर्मियों की लड़ाई भी सिर्फ़ मानदेय तक सीमित नहीं है। अपने संघर्षों में आँगनवाड़ी कर्मियों ने पितृसत्ता को भी चुनौती दी है।

दिल्ली की आँगनवाड़ी कर्मियों ने आज से 3 साल पहले अपनी ऐतिहासिक हड़ताल के दौरान 8 मार्च को दिल्ली सचिवालय पर ‘आँगनवाड़ी स्त्री अधिकार रैली’ निकाली थी। 2022 में 38 दिन लम्बी चली हड़ताल को तोड़ पाने में नाक़ाम केजरीवाल सरकार ने केन्द्र की भाजपा सरकार के साथ मिलीभगत से 9 मार्च को हड़ताल पर ‘एस्मा’ थोपने का ऑर्डर जारी करवा दिया था। इस हड़ताल के बाद दिल्ली सरकार के ‘महिला एवं बाल विकास विभाग’ ने 884 महिला कर्मियों को ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से बदले के भावना से बर्ख़ास्त कर दिया था। यूनियन के संघर्ष के कारण क़रीब 740 आँगनवाड़ी कर्मियों को वापस काम पर लेने के लिए दिल्ली सरकार को मजबूर होना पड़ा है। दिल्ली की आँगनवाड़ी कर्मियों का संघर्ष अब भी जारी है। इस ग़ैर-क़ानूनी टर्मिनेशन के ख़िलाफ़ यूनियन की ओर से दिल्ली उच्च न्यायालय में मुक़दमा चल रहा है। जल्द ही बाक़ी 144 वर्कर्स और हेल्पर्स को भी काम पर वापस लिया जायेगा और उन्हें टर्मिनेशन के पूरे दौर का मानदेय भी एकमुश्त मिलेगा। यह लक्ष्य प्राप्त होने तक मौजूदा संघर्ष जारी रहेगा।

इस मुक़दमे में यूनियन के पक्ष का प्रतिनिधित्व सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता कॉलिन गोंज़ाल्वेस कर रहे हैं। सभा को सम्बोधित करते हुए उन्होंने बताया कि अपने जायज़ हक़ों के लिए संघर्ष करना हमारा जनवादी अधिकार है। 2022 की हड़ताल के बाद जिस तरीक़े से विभाग ने 884 महिलाकर्मियों को बर्ख़ास्त किया, वह ग़ैर-क़ानूनी था। आज हमें सड़क और अदालत, दोनों ही मोर्चों पर अपना संघर्ष जारी रखने की ज़रूरत है। यह हमारा संघर्ष ही है जिसकी बदौलत आज टर्मिनेट की गयीं महिला कर्मियों में से 750 से भी ज़्यादा की पुनः बहाली विभाग को करनी पड़ी है। यही नहीं, आज देश भर में स्कीम वर्कर्स संघर्षरत हैं; यही कारण है कि पिछले साल गुजरात हाई कोर्ट ने केन्द्र व राज्य सरकारों को आँगनवाड़ी कर्मियों को नियमित करने के लिए ज़रूरी क़दम उठाने का फ़ैसला सुनाया था। कॉलिन ने कहा कि आँगनवाड़ी कर्मियों के संघर्ष का सफ़र काफ़ी लम्बा रहा है, और अब वे जीत के बेहद क़रीब हैं।

यूनियन अध्यक्ष शिवानी ने महिलाओं को सम्बोधित करते हुए स्त्री मुक्ति के संघर्ष की लड़ाई पर बात रखी। शिवानी ने स्त्री दिवस की विरासत को रेखांकित करते हुए उसके जुझारू इतिहास से महलाकर्मियों को परिचित कराया। उन्होंने कहा कि सभी स्त्रियाँ उत्पीड़न का शिकार हैं लेकिन सभी स्त्रियों की माँगें और आकांक्षाएँ एक नहीं हैं। स्त्री दिवस कामगार स्त्रियों के संघर्ष की याददिहानी है, स्त्री दिवस उनका है जो संघर्ष में शामिल हैं। इसे हम इस मायने में ही मना सकते हैं कि हम लड़ने की ज़िद और जद्दोजहद को किसी भी सूरत में न छोड़ें। उन्होंने दिल्ली की आँगनवाड़ी कर्मियों के अतीत के संघर्षों पर बात करते हुए यह भी कहा कि आँगनवाड़ी कर्मियों की लड़ाई मज़दूर वर्ग की सत्ता को स्थापित करने की लड़ाई का ही एक हिस्सा है।

उन्होंने आगे कहा कि आज आँगनवाड़ीकर्मी देशभर में कर्मचारी के दर्जे का हक़ हासिल करने के लिए संघर्षरत हैं। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट से लेकर गुजरात हाई कोर्ट ने आँगनवाड़ी कर्मियों के पक्ष में फ़ैसले सुनाये हैं। इस संघर्ष में दिल्ली की महिलाकर्मी भी शामिल हैं। कर्मचारी के दर्जे के अधिकार के इस संघर्ष में ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ एक नये अध्याय की शुरुआत करने जा रही है। इस मुद्दे पर यूनियन की तरफ़ से जल्द ही दिल्ली हाई कोर्ट में एक केस दायर किया जायेगा। अदलात में संघर्ष के साथ सड़कों का संघर्ष भी इस मसले पर जारी रहेगा।

उत्सव में कई गीत भी पेश किये गये। सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत आँगनवाड़ी कर्मियों की नाट्य टोली ‘अपराजिता’ ने सफ़़दर हाशमी के नाटक से प्रेरित कहानी एक आँगनवाड़ी औरत की’ का मंचन किया। इस नाटक में मुख्यतः आँगनवाड़ी कर्मी शामिल थीं, जिन्होंने बेहद कम समय में इसे तैयार किया। सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत पेश किये गये गीतों ने आँगनवाड़ी कर्मियों के ज़ेहन में पुरानी यादें भी ताज़ा कीं और भविष्य के संघर्ष के लिए ऊर्जा का भी संचार किया।

‘संघर्ष के उत्सव’ में किताबों का एक स्टॉल मौजूद था। इस स्टॉल पर तमाम तरह की प्रगतिशील किताबें स्त्रियों और उनके साथ आये बच्चों के लिए उपलब्ध थीं। इसके साथ ही एक कोना बच्चों को समर्पित था जहाँ उनके लिए चित्रकारी के साधन और खिलौने मौजूद थे।

कार्यक्रम के समापन से पहले महिलाकर्मियों ने स्त्री मुक्ति के लिए उठी आवाज़ को बुलन्द करते हुए एक रैली का आयोजन किया। दिल्ली की सड़कों को एक बार फिर लाल रंगते हुए महिलाओं ने संघर्ष को और मजबूत करने का प्रण लिया।

रैली के बाद सामूहिक भोज के दौरान महिलाकर्मियों ने धर्म और जाति जैसे बन्धनों को तोड़कर एक साथ खाना खाया। इस दौरान आँगनवाड़ी कर्मियों की 2022 की हड़ताल पर बनी एक फ़िल्म जब शहर लाल हो गया’ भी दिखायी गयी। यह फ़िल्म ‘प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स लीग’ के कलाकार साथियों ने बनायी है। ‘प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स लीग’ दिल्ली की आँगनवाड़ी कर्मियों के संघर्ष में 2022 में भी शामिल था। यह फ़िल्म न केवल हड़ताल के दौरान की घटनाओं को दर्शाती है बल्कि महिलाओं के जुझारूपन, उनके संघर्ष के जज़्बे को भी बारीक़ी से पकड़ती है। किस तरह हड़ताल और संघर्ष के दौरान महिलाकर्मियों की ज़िन्दगी में बदलाव आये, यह फ़िल्म उस पर भी रोशनी डालती है।

 

मज़दूर बिगुल, मार्च 2025


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments