केरल की आशाकर्मियों का संघर्ष ज़िन्दाबाद!
नकली मज़दूर पार्टी सीपीएम और इसकी ट्रेड यूनियन सीटू का दोमुहाँपन एक बार फिर उजागर!!

वृषाली, दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन

केरल की आशाकर्मी पिछली 10 फ़रवरी से हड़ताल पर हैं। ये अपनी पिछले तीन महीनों के मानदेय व प्रोत्साहन राशि के भुगतान, मानदेय बढ़ोत्तरी, रिटायरमेण्ट सुविधाओं इत्यादि माँगों के लिए संघर्ष कर रही हैं। ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ केरल की आशाकर्मियों के साथ अपनी एकजुटता ज़ाहिर करती है। इस पूरे वाक़ये ने केरल में सत्तासीन नामधारी कम्युनिस्ट पार्टी सीपीएम और इसकी ट्रेड यूनियन सीटू दोनों की कलई खोलने का काम किया है। इस नक़ली “लाल झण्डा” पार्टी की स्वास्थ्य मन्त्री के अनुसार ये आशाकर्मी व्यर्थ ही हड़ताल पर बैठी हैं। केरल में तक़रीबन 26,000 आशाकर्मी हैं। फ़िलहाल केरल सरकार की ओर से इन आशाकर्मियों को 7,000 व केन्द्र सरकार की ओर से 2,000 रुपये की मानदेय राशि दी जाती है। 9,000 रुपये के इस मामूली मानदेय के लिए एक माह में कई तरह के काम पूरे करने होते हैं। सभी काम पूरे न होने की सूरत में न्यूनतम मानदेय राशि 5,500 तक भी चली जाती है। प्रति बच्चा टीके के लिए प्रोत्साहन राशि महज़ 20 रुपये तय है। इसके अलावा केरल सरकार ने राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन के अन्तर्गत आशाकर्मियों को “शैली” ऐप पर जीवनशैली सम्बन्धित बीमारियों का डेटा फ़ीड करने का काम भी सौंपा है जबकि इसके लिए आवश्यक स्मार्टफ़ोन का कोई इन्तज़ाम नहीं किया गया है। मोबाइल रिचार्ज के लिए पर्याप्त राशि भी आवण्टित नहीं की जाती है। पिछले कुछ समय के दौरान हमें देश भर में स्कीम वर्करों (आँगनवाड़ी, आशा व मिड-डे-मील कर्मियों) के कई आन्दोलन देखने को मिले हैं। इसका कारण है कि स्कीम वर्करों पर कामों का बोझ लगातार बढ़ाया जा रहा है; इन स्कीमों में ज़मीनी स्तर पर काम में लगी महिलाकर्मियों का शोषण किया जाता है।

केरल के मामले ने सीपीएम और सीटू की असलियत को भी उजागर कर दिया है। सीटू केरल में सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) की जेबी ट्रेड यूनियन है। यह यूनियन देश के अलग-अलग हिस्सों में तो स्कीम वर्करों की हिमायती और प्रतिनिधि बनने का ढोंग करती है लेकिन असल में स्कीम वर्करों और मज़दूरों के हितों का सौदा करती है। सीटू ने किस तरह से स्कीम वर्करों के आन्दोलनों को बर्बाद करने और दलाली करने का इतिहास रचा है, वह हमने दिल्ली में चली 2015, 2017 और 2022 की तीनों हड़तालों में देखा है। यही नहीं, पूरे मज़दूर आन्दोलन में दलाली, कमीशनख़ोरी और ग़द्दारी सीटू का अतीत रहा है। सीटू और प्रशासन का चोली-दामन का साथ सभी हड़तालों में नज़र आ जाता है। आन्दोलनों के प्रति दुष्प्रचार करना, प्रशासन और सरकार के साथ गठजोड़ करना, आन्दोलन के नेतृत्व को बरख़ास्त करवाना — सीटू के यही काम रहे हैं! केरल में जारी आशाकर्मियों की हड़ताल के बारे में यहाँ की सरकार व प्रशासन यही रवैया अपना रहे हैं। केरल सरकार आशाकर्मियों की माँगों को अनसुना ही नहीं कर रही है बल्कि सीपीएम के केन्द्रीय कमिटी मेम्बर इलामाराम करीम ने तो सीपीएम के मुखपत्र में इस आन्दोलन को बदनाम करने के लिए एक पूरा लेख ही लिख डाला है! इसी सीपीएम से सम्बद्ध ‘ऑल इण्डिया फ़ेडरेशन ऑफ आशा वर्कर्स’ (सम्बद्ध सीटू) ने नवम्बर 2024 में नियमितीकरण, 26,000 रुपये वेतन और सामाजिक सुरक्षा की माँगों पर दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर देशव्यापी प्रदर्शन किया था लेकिन जिस राज्य में लम्बे समय से सीपीएम ख़ुद सत्तारूढ़ है वहाँ इन्हीं माँगों को उठाने वाली आशाकर्मियों को सरकार न सिर्फ़ अनदेखा कर रही है बल्कि सरकार इनकी हड़ताल को अराजकतावादी तत्वों की साज़िश कहकर कलंकित कर रही है! 20 फ़रवरी को सीटू की ऑल इण्डिया फ़ेडरेशन ऑफ़ आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन का राष्ट्रिय अधिवेशन चल रहा था। इस अधिवेशन में भी सीटू आँगनवाड़ी कर्मियों के लिए भी वही माँगें उठा रही थी जो केरल सरकार को वहाँ की आशाकर्मियों को देते नहीं बन रहा! इसे दोमुँहेपन की इन्तहा नहीं तो और क्या ही कहें?! संशोधनवाद और संसदवाद की दलदल में धँसी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) से इससे ज़्यादा की उम्मीद भी नहीं की जा सकती है।

केरल में चल रहे आशाकर्मियों के आन्दोलन ने एक बार फ़िर से सीपीएम और सीटू जैसे ग़द्दारों को बेपर्द करने का काम किया है। आज देश भर में आन्दोलनरत स्कीम वर्करों के बीच इन जैसे विभीषणों, जयचन्दों और मीर जाफ़रों की सच्चाई उजागर करना बेहद ज़रूरी कार्यभार बनता है। किसी भी जुझारू आन्दोलन के लिए बुनियादी ज़रूरत है एक इन्क़लाबी और स्वतन्त्र यूनियन का गठन। सभी चुनावबाज़ पार्टियों से स्वतन्त्र यूनियन ही बिना किसी समझौते के किसी संघर्ष को उसके सही मुक़ाम तक पहुँचाने में सक्षम हो सकती है। केरल की आशाकर्मियों को हमारी दोस्ताना सलाह है कि वे हमारी बातों पर ज़रूर ग़ौर करें। ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ केरल की आशाकर्मियों की माँगों का पुरज़ोर समर्थन करती है। बकाये के भुगतान; मानदेय बढ़ोत्तरी, सामाजिक सुरक्षा और नियमितीकरण की माँगें हमारी बेहद ही बुनियादी और ज़रूरी माँगें हैं। दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मी अपनी जायज़ माँगों के लिए संघर्षरत केरल की जुझारू आशाकर्मी बहनों के साथ हर क़दम पर खड़ी हैं।

 

 

मज़दूर बिगुल, मार्च 2025


 

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