Category Archives: संघर्षरत जनता

ओमैक्स के बहादुर मज़दूरों का संघर्ष जारी है!

मुनाफ़े की हवस में अन्धे कम्पनी प्रबन्धन के लिए मज़दूर की ज़िन्दगी की क़ीमत महज़ एक पुर्जे जितनी है जिसे इस्तेमाल करने के बाद फेंक दिया जाता है। परन्तु ओमैक्स के मज़दूर पूँजी की इस गुलामी के ि‍ख़‍लाफ़ अपनी फै़क्टरी गेट पर डेट हुए हैं। मज़दूरों को कम्पनी के अन्दर मौजूद स्थायी मज़दूरों के बीच एकता स्थापित होने का ख़तरा लम्बे समय से खटक रहा था। 6 मार्च को कम्पनी ने यूनियन बॉडी सहित 18 स्थायी मज़दूरों को काम से निकाल दिया और काम पर आने पर स्थायी मज़दूरों से एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने को कहा जिसके तहत मज़दूरों को मीटिंग करने व संगठित होने की मनाही थी। कुछ मज़दूरों ने नासमझी और भ्रम में इसपर हस्ताक्षर कर दिये लेकिन करीब 100 मज़दूरों ने ऐसा करने से मना कर दिया। वे हड़ताल पर बैठे हुए मज़दूरों के साथ आ गये और प्रबन्धन के विरुद्ध नारेबाजी करने लगे। यह इस संघर्ष का एक बेहद महत्वपूर्ण बिन्दु था, जहाँ स्थायी और अस्थायी मज़दूरों के बीच एक ज़बरदस्त एकता क़ायम की जा सकती थी और पूरे संघर्ष को एक नये मुक़ाम तक पहुँचाया जा सकता था। परन्तु यह नहीं किया गया बल्कि उल्टा सभी स्थायी मज़दूर वापस काम पर चले गये। यह क़दम इस संघर्ष को कितना नुक़सान पहुँचायेगा यह तो आने वाले वक़्त में ही पता चलेगा परन्तु अगर मज़दूर इस संघर्ष को अपनी फै़क्टरी गेट से पूरे सेक्टर तक लेकर जायें तो इस संघर्ष को विस्तृत किया जा एकता है।

ऑमैक्स के संघर्षरत मज़दूरों का संघर्ष ज़िंदाबाद !

धारूहेड़ा की ऑमैक्स कम्पनी में पिछले 15-20 सालों से काम कर रहे श्रमिकों को प्रबन्धन ने एक फ़रवरी को अचानक बिना किसी नोटिस के काम से निकाल दिया। कम्पनी प्रबन्धन ने बिना कोई कारण बताये या नोटिस दिये 344 श्रमिकों को एक साथ काम से बाहर कर दिया। यह घटना अपने आप में ऑटोमोबाइल सेक्टर के लिए कोई नयी बात नहीं है, आये दिन किसी न किसी फ़ैक्टरी-कारख़ाने के मालिक अपने मुनाफ़े को बढ़ाने और मज़दूरों के अधिकारों को कुचलने के लिए मनमर्जी से काम पर रखने और निकालने की चाल अपना रहे हैं। लेकिन ऑमैक्स के मज़दूरों ने चुपचाप बैठकर इस अन्याय को सहने की बजाए इसके ख़िलाफ़ संघर्ष का बिगुल फूँक दिया है।

ऑटोमोबाइल सेक्टर में शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाने वालों की कड़ी में हीरो के मज़दूरों का नाम भी हुआ शामिल!

ऑटोमोबाइल सेक्टर में इस तरह सालों साल ठेके पर काम करवाने और स्थायी करने का समय आते ही नौकरी से निकाल देने की प्रथा बहुत पुरानी और आम बात है। यह नीति किसी एक फ़ैक्टरी या कम्पनी तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे सेक्टर के पोर-पोर में फैली हुई है। इसीलिए इस कुप्रथा से लड़ने के लिए आज पूरे सेक्टर के ठेका मज़दूरों को न सिर्फ़ हीरो के संघर्ष में उनका समर्थन करने के लिए आगे आना चाहिए बल्कि ख़ुद को एक स्वतन्त्र क्राि‍न्तकारी सेक्टरगत यूनियन के तले गोलबन्द होने की ज़रूरत है।

हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथियों और पुलिस को जनवादी जनसंगठनों की एकता ने दिया मुँहतोड़ जवाब

पुलिस की हिन्दुत्वी कट्टरपंथियों से मिलीभगत भी एकदम उजागर हो गई। पुलिस ने इन हमलावरों पर कार्रवाई करने की जगह जनचेतना की प्रबन्धक बिन्नी और वहाँ मौजूद टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन के प्रधान लखविन्दर, कारखाना मज़दूर यूनियन के नेता गुरजीत (समर) और नौजवान भारत सभा के सक्रिय सदस्य सतबीर को ही हिरासत में ले लिया था और जनचेतना की दुकान को सील कर दिया था। शाम को जन दबाव के बाद इन सब को रिहा कर दिया गया लेकिन 3 जनवरी को दोपहर 12 बजे थाने बुलाया गया था।

होंडा मज़दूरों का संघर्ष जारी है!

गुडगाँव, मानेसर, धारूहेड़ा, बावल, भिवाड़ी तक फैली ऑटोमोबाइल सेक्टर की औद्योगिक पट्टी में मजदूरों के गुस्से का लावा उबल रहा है जो समय समय पर फूट कर ज़मीन फाड़कर बाहर निकलता है. ऐसे गुस्से को हमें एक ऐसी यूनियन में बांधना होगा जो पूरे सेक्टर के तौर पर मजदूरों को संगठित कर सकती हो। हमें होंडा के आन्दोलन को भी पूरे औद्योगिक सेक्टर में फैलाना होगा। इस संघर्ष को हमें जंतर मंतर पर खूंटा बाँधकर चलाना होगा तो दूसरी और हमें टप्पूकड़ा से लेकर गुडगाँव-मानेसर-बावल-भिवाड़ी के मजदूरों में अपने संघर्ष का प्रचार करना चाहिए जिससे कि उन्हें भी इस संघर्ष से जोड़ा जा सके. यह इस आन्दोलन के जीते जाने की सबसे ज़रूरी कड़ी है।

कारखानों में श्रम कानून लागू करवाने के लिए लुधियाना में ज़ोरदार रोष प्रदर्शन

पहले तीखी धूप और फिर घण्टों तक भारी बारिश के बावजूद मज़दूर कारखानों में हड़ताल करके डी.सी. कार्यालय पहुँचे। डी.सी. कार्यालय के गेट तक पहुँचने पर लगाए गए अवरोध मज़दूरों के आक्रोश के सामने टिक नहीं पाए। मज़दूरों ने गगनभेदी नारों के साथ भरत नगर चौक से डी.सी. कार्यालय तक पैदल मार्च किया। डी.सी. कार्यालय के गेट पर भारी बारिश के बीच मज़दूर धरने पर डटे रहे, ज़ोरदार नारे बुलन्द करते रहे, मज़दूर नेताओं का भाषण ध्यान से सुनते रहे। उन्होंने माँग की कि कारखानों में हादसों से मज़दूरों की सुरक्षा के पुख्‍़ता इंतज़ाम किए जाएँ, हादसा होने पर पीड़ितों को जायज़ मुआवज़ा मिले, दोषी मालिकों को सख़्त सज़ाएँ हों, मज़दूरों की उज़रतों में 25 प्रतिशत बढ़ोतरी की जाए, न्यूनतम वेतन 15000 हो, ई.एस.आई., ई.पी.एफ., बोनस, पहचान पत्र, हाजिरी कार्ड, लागू हो, मज़दूरों से कारखानों में बदसलूकी बन्द हो, स्त्री मज़दूरों के साथ छेड़छाड़, व भेदभाव बन्द हो, उन्हें समान काम का पुरुषों के समान वेतन दिया जाए।

बरगदवां, गोरखपुर में मज़दूर नयी चेतना और जुझारूपन के साथ एक बार फिर संघर्ष की राह पर

गोरखपुर के बरगदवां औद्योगिक क्षेत्र में मिल-मालिकों व प्रबन्धन द्वारा सारे श्रम कानूनों को ताक पर रखकर काम करवाने और मज़दूरों के साथ आये दिन गाली-गलौज, मारपीट और अमानवीय व्यवहार के ख़िलाफ़ दो फैक्ट्रियों, अंकुर उद्योग प्राइवेट लिमिटेड व वी.एन.डायर्स प्रोसेसर्स (प्रा.) लिमिटेड, में क्रमशः 18 जून व 1 जुलाई को मज़दूर हड़ताल पर चले गए और अपनी जुझारू एकजुटता के दम पर उन्होंने जीत हासिल की।

टेक्सटाइल-होज़री मज़दूरों की हड़तालों ने अड़ियल मालिकों को झुकने के लिए मजबूर किया

मौजूदा समय में जब कारख़ाना इलाक़ों में मालिकों का एक किस्म का जंगल राज क़ायम है, मज़दूरों के अधिकारों को बर्बरता पूर्वक कुचला जा रहा है, जब सरकार, पुलिस-प्रशासन, श्रम विभाग आदि सब सरेआम मालिकों का पक्ष लेते हैं, जब मज़दूरों में एकता का बड़े पैमाने पर अभाव है और दलाल ट्रेड यूनियन व नेताओं का बोलबाला है, ऐसे समय में छोटे पैमाने पर ही सही मज़दूरों द्वारा एकजुटता बनाकर लड़ना और एक हद तक जीत हासिल करना महत्वपूर्ण बात है।

मोदी सरकार के ख़िलाफ़ बेंगलुरु की स्त्री गारमेंट मज़दूरों ने संभाली कमान

घर, कारखाने से लेकर पूरे समाज में कदम कदम पर पितृसत्ता और बर्बर पूँजीवाद का दंश झेलने वाली महिला मज़दूरों ने इस आन्दोलन की अगुआई की, पुलिसिया दमन का डटकर सामना किया और अपने हक़ की एक छोटी लड़ाई भी जीती। यह छोटी लड़ाई मज़दूर वर्ग के भीतर पल रहे जबर्दस्त गुस्से का संकेत देती है। इस आक्रोश को सही दिशा देकर महज़ कुछ तात्कालिक माँगों से आगे बढ़कर व्यवस्था परिवर्तन की दिशा में मोड़ने की चुनौती आज के दौर की सबसे बड़ी चुनौती है।

सरकार की कठोर पूँजीवादी नीतियों के खिलाफ़ फ्रांस के लाखों मज़दूर, नौजवान, छात्र सड़कों पर

आज पूरे संसार में उदारीकरण-निजीकरण की आँधी झूल रही है और मज़दूरों-मेहनतकशों, नौजवानों, छात्रों के अधिकारों को बुरी तरह कुचला जा रहा है। पूरी दुनिया में ही मज़दूर विरोधी श्रम सुधार किए जा रहे हैं। हमारे देश में भी यही हालत है। ऐसे समय में फ्रांस के मज़दूरों, नौजवानों, छात्रों का श्रम सुधारों के खिलाफ़ जबर्दस्‍त आन्दोलन भरपूर स्वागतयोग्य है। पेरिस कम्यून की धरती के जुझारू साथियों को इंकलाबी सलाम!