Category Archives: संघर्षरत जनता

मज़दूर विरोधी “श्रम सुधारों” के खि़लाफ़ रोषपूर्ण प्रदर्शन

केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा नवउदारवादी नीतियों के तहत श्रम क़ानूनों में मज़दूर विरोधी संशोधनों के खि़लाफ़ बीती 20 नवम्बर को टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन और कारख़ाना मज़दूर यूनियन की ओर से डी.सी. कार्यालय पर ज़ोरदार प्रदर्शन किया गया। मज़दूर संगठनों ने तथाकथित श्रम सुधारों की तीखी आलोचना करते हुए भारत सरकार से घोर मज़दूर विरोधी नीति रद्द करने की माँग की। डी.सी. लुधियाना के ज़रिये भारत सरकार को इस सम्बन्धी माँगपत्र भेजा गया है। संगठनों के वक्ताओं ने प्रदर्शन को सम्बोधित करते हुए कहा कि पहले ही पूँजीपति मज़दूरों की मेहनत की भयंकर लूट कर रहे हैं, जिसके चलते मज़दूर ग़रीबी-बदहाली की ज़िन्दगी जीने पर मज़बूर हैं। “श्रम सुधारों” के कारण मज़दूरों की लूट ओर तीखी होगी। इसके खि़लाफ़ मज़दूरों में भारी रोष है। अगर यह नीति रद्द नहीं होती तो हुक्मरानों को तीखे मज़दूर आन्दोलन का सामना करना होगा।

फ़ैक्टरियों में सुरक्षा के इन्तज़ाम की माँग को लेकर मज़दूरों ने किया प्रदर्शन

दस दिसम्बर को वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के मज़दूरों ने ‘दिल्ली इस्पात मज़दूर यूनियन’ के नेतृत्व में वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के ठण्डा रोला और पावर प्रेस सहित सभी फ़ैक्टरियों में सुरक्षा के पुख़्ता इन्तज़ाम की माँग उठाते हुए श्रम विभाग नीमड़ी कॉलोनी का घेराव किया। बैनर, पोस्टर और नारों के साथ सड़क पर मार्च करता हुआ यह दस्ता बरबस ही लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच रहा था।

अस्ति का मज़दूर आन्दोलन ऑटो सेक्टर मज़दूरों के संघर्ष की एक और कड़ी!

अस्ति में मज़दूरों पर अन्याय, शोषण, अत्याचार की यह अकेली घटना नहीं है। ऑटो सेक्टर की यह पूरी बेल्ट में इस तरह मज़दूरों की हड्डियाँ का चूरा बनाकर कम्पनियाँ मुनाफ़ा कूट रही हैं। और इसके विरुद्ध मज़दूरों की आवाज़ अलग-अलग समय पर अलग-अलग फ़ैक्टरी से उठती ही रही हैं। लेकिन फ़ैक्टरी-कारख़ानों की चौहद्दी में कैद होकर ये आन्दोलन टूट और बिखराव का शिकार हो जाता है। इसलिए अस्ति के मज़दूरों को अपनी फ़ौरी लड़ाई लड़ते हुए भी अपनी दूरगामी लड़ाई के लिए भी तैयार रहना होगा। क्योंकि आज पूरे गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल में ठेका, कैजुअल, ट्रेनी मज़दूर बेहद शोषण और अमानवीय परिस्थितियों में काम करने के लिए बेबस है। जिन कम्पनियों में यूनियन बनी है, उसका फ़ायदा भी सिर्फ़ स्थायी मज़दूरों को मिलता है। जबकि हम सभी जानते हैं कि मोदी सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों में बदलाव के बाद स्थायी कर्मचारियों के भी हक़-अधिकारों पर हमला होना तय है। इसलिए स्थायी, कैजुअल और ठेका मज़दूरों को अपनी ठोस एकता कायम करनी होगी, साथ ही पूरे ऑटो सेक्टर के आधार पर गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल के मज़दूरों की “ऑटो मज़दूर यूनियन” का निर्माण करना होगा। ज़ाहिरा तौर ऐसी ऑटो सेक्टर मज़़दूर यूनियन मज़दूर आन्दोलन से ग़द्दारी कर चुकी केन्द्रीय ट्रेड से स्वतन्त्र होनी चाहिए।

गीता प्रेस – धार्मिक सदाचार व अध्यात्म की आड़ में मेहनत की लूट के ख़ि‍लाफ़ मज़दूर संघर्ष की राह पर

धर्म बहुत लम्बे समय से अनैतिकता, अपराध, लूट व शोषण की आड़ बनता रहा है। परन्तु मौजूदा समय में गलाजत, सड़ान्ध इतने घृणास्पद स्तर पर पहुँच चुकी है कि धर्म की आड़ से गन्दगी पके फोड़े की पीप की तरह बाहर आ रही है। आसाराम, रामपाल जैसे इसके कुछ प्रातिनिधिक उदाहरण हैं। इसी कड़ी में धर्म और अध्यात्म की रोशनी में मज़दूरों की मेहनत की निर्लज्ज लूट का ताज़ा उदाहरण गीता प्रेस, गोरखपुर है। कहने को तो गीता प्रेस से छपी किताबें धार्मिक सदाचार, नैतिकता, मानवता आदि की बातें करती हैं, लेकिन गीता-प्रेस में हड्डियाँ गलाने वाले मज़दूरों का ख़ून निचोड़कर सिक्का ढालने के काम में गीता प्रेस के प्रबन्धन ने सारे सदाचार, नैतिकता और मानवता की धज्जियाँ उड़ाकर रख दिया है। संविधान और श्रम कानून भी जो हक मज़दूरों को देते हैं वह भी गीता प्रेस के मज़दूरों को हासिल नहीं है! क्या इत्तेफ़ाक है कि गीता का जाप करनेवाली मोदी सरकार भी सारे श्रम कानूनों को मालिकों के हित में बदलने में लगी है। इसी माह प्रबन्धन के अनाचार, शोषण को सहते-सहते जब मज़दूरों का धैर्य जवाब दे गया तो उनका असन्तोष फूटकर सड़कों पर आ गया।

गोरखपुर के नागरिकों के नाम गीता-प्रेस के मज़दूरों की एक अपील

गोरखपुर के नागरिकों के नाम गीता-प्रेस के मज़दूरों की एक अपील दोस्तो, कहने को तो गीता प्रेस से छपी किताबें धार्मिक सदाचार, नैतिकता, मानवता आदि की बातें करती हैं लेकिन…

लुधियाना के टेक्सटाइल मजदूरों के संघर्ष की शानदार जीत

टेक्सटाइल होजरी कामगार यूनियन के नेतृत्व में लुधियाना के लगभग 50 पावरलूम कारखानों के मजदूरों का संघर्ष इस वर्ष 8 से 12 प्रतिशत वेतन/पीस रेट बढ़ोत्तरी और बोनस लेने का समझौता करवाकर जीत से समाप्त हुआ। पिछले पाँच वर्षों से पावरलूम मजदूरों ने संघर्ष करते हुए अब तक वेतन/पीस रेटों में 63 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी करवाई है, ज्यादातर कारखानों में ईएसआई कार्ड बनाने के लिए मालिकों को मजबूर किया और पिछले तीन वर्षों से मालिकों को बोनस देने के लिए भी मजबूर किया है।

पंजाब सरकार के फासीवादी काले क़ानून को रद्द करवाने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर तीन विशाल रैलियाँ

पंजाब सरकार सन् 2010 में भी दो काले क़ानून लेकर आयी थी। जनान्दोलन के दबाव में सरकार को दोनों काले क़ानून वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था। रैलियों के दौरान वक्ताओं ने ऐलान किया कि इस बार भी पंजाब सरकार को लोगों के आवाज़ उठाने, एकजुट होने, संघर्ष करने के जनवादी अधिकार छीनने के नापाक इरादों में कामयाब नहीं होने दिया जायेगा।

काले क़ानून के खि़लाफ़ रैली में औद्योगिक मज़दूरों की विशाल भागीदारी

पंजाब सरकार का यह काला क़ानून रैली, धरना, प्रदर्शन, आदि संघर्ष के रूपों के आगे तो बड़ी रुकावटें खड़ी करता ही है वहीं हड़ताल को अप्रत्यक्ष रूप से गैर-क़ानूनी बना देता है। इस क़ानून के मुताबिक हड़ताल के दौरान मालिक/सरकार को पड़े घाटे की भरपाई हड़ताली मज़दूरों और उनके नेताओं को करनी होगी। इसके साथ ही घाटा डालने के ज़रिए सार्वजनिक या निजी सम्पत्ति को पहुँचाये नुक्सान के “अपराध” में जेल और जुर्माने का सामना भी करना पड़ेगा। हड़ताल होगी तो घाटा तो होगा ही। इस तरह हड़ताल या यहाँ तक कि रोष के तौर पर काम धीमा करना भी गैरक़ानूनी हो जायेगा। हड़ताल मज़दूर वर्ग के लिए संघर्ष का एक बेहद महत्वपूर्ण रूप है। हड़ताल को गैरक़ानूनी बनाने की कार्रवाई और इसके लिए सख्त सजाएँ व साथ ही रैली, धरना, प्रदर्शन, जुलूस आदि करने पर नुक्सान के दोष लगाकर जेल, जुर्माने आदि की सख्त सज़ाएँ बताती हैं कि यह क़ानून मज़दूर वर्ग पर कितना बड़ा हमला है। मज़दूर वर्ग को इस हमले के खिलाफ़ अन्य मेहतनकशों के साथ मिलकर सख़्त लड़ाई लड़नी होगी। इसलिए पंजाब सरकार के काले क़ानून के खि़लाफ़ टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन व कारख़ाना मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में लुधियाना के कारख़ाना मज़दूरों का आगे आना महत्वपूर्ण बात है।

छात्र-युवा आन्दोलन में नया उभार और भविष्य के संकेत

ऐसे कितने ही छात्र-युवा आन्दोलन आज दुनिया भर में देखने को मिल रहे हैं। ये सब अपने-अपने देश के शासकों को यही चेतावनी दे रहे हैं कि हम अपने अधिकारों पर हो रहे हमलों को चुपचाप बर्दाश्त नहीं करेंगे। जैसे-जैसे शिक्षा के क्षेत्र में बाज़ारीकरण और निजीकरण को लागू किया जायेगा, वैसे-वैसे आम घरों के बेटे-बेटियों के लिए अच्छी शिक्षा प्राप्त कर पाना मुश्किल होता जायेगा जिसका नतीजा छात्रों में बढ़ते असन्तोष के रूप में सामने आयेगा और ज़्यादा से ज़्यादा छात्र इसके विरोध में सड़कों पर उतरेंगे। इसके साथ ही इस विरोध को कुचलने के लिए सत्ता के दमन का पहिया भी तेज़ होता जायेगा। शिक्षा के बाज़ारीकरण के विरोध की इस लड़ाई को छात्र सिर्फ़ अपने दम पर नहीं जीत सकते। इसके लिए उन्हें अपनी लड़ाई को मज़दूर वर्ग की पूँजीवाद विरोधी लड़ाई के साथ जोड़ना होगा।

मोदी सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों में बदलाव की कवायद के विरोध में संसद भवन पर मज़दूरों का जुझारू प्रदर्शन!

संसद के पिछले सत्र में मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित श्रम क़ानूनों में बदलाव के विरोध में 20 अगस्त को बिगुल मज़दूर दस्ता और देश के अलग-अलग इलाकों से आये विभिन्न मज़दूर संगठनों तथा मज़दूर यूनियनों ने दिल्ली के संसद मार्ग तक मार्च किया और प्रधानमन्त्री का पुतला दहन किया। इस प्रदर्शन में मज़दूरों ने बड़ी संख्या में भागीदारी की।