लुधियाना पुलिस कमिशनरी में धरना-प्रदर्शनों पर पाबन्दी
के ख़िलाफ़ व्यापक संघर्ष का ऐलान

बिगुल संवाददाता

जब लोग नये वर्ष के जश्न मना रहे थे उस समय लोगों के ख़िलाफ़ एक बड़े हमले को अंजाम देते हुए लुधियाना प्रशासन 1 जनवरी 2018 से लुधियाना पुलिस कमिश्न्रेट में धरना-प्रदर्शनों पर पाबन्दी का फ़रमान जारी कर रहा था। पुलिस कमिश्न्रेट, लुधियाना के क्षेत्र में डीसी के आदेशों के मुताबिक़ पुलिस कमिश्नर द्वारा अनिश्चितकाल के लिए धारा 144 लगाकर यह रोक लगा दी गयी है। धरना-प्रदर्शनों के लिए शहर के बाहरी हिस्से में एक जगह (गलाडा मैदान) तय कर दिया गया है। जि़ले के बड़ी संख्या में इंसाफ़पसन्द जनवादी संगठनों ने इसकी सख़्त निन्दा करते हुए माँग की है कि यह हुक्म वापिस लिया जाये। लेकिन डीसी लुधियाना ने एक बार फिर ग़ैरजनवादी और ग़ैरजि़म्मेवाराना रवैया दिखाते हुए 9 जनवरी को संगठनों के प्रतिनिधिमण्डल से मीटिंग के लिए समय तय किये जाने के बावजूद मीटिंग नहीं की। उसी दिन संगठनों ने मीटिंग करके ऐलान किया कि अगर एक सप्ताह में धारा 144 रद्द नहीं की जाती तो 18 से 20 जनवरी तक लुधियाना जि़ला में विभिन्न जगहों पर प्रदर्शन किये जायेंगे। इसके बाद 30 जनवरी को डीसी लुधियाना के कार्यालय पर विशाल रैली की जायेगी।

संगठनों का कहना है कि धरना-प्रदर्शनों के लिए सिर्फ़़ एक स्थान तय कर देना किसी भी प्रकार जायज़ नहीं है बल्कि इसके पीछे जनआवाज़ कुचलने की साजि़श है। हालाँकि यह रोक सरकारी कामकाज बेरोक चलाने, लोगों की सहूलत, अमन-क़ानून की व्यवस्था बनाये रखने के बहाने लगायी गयी है लेकिन वास्तविक निशाना अधिकारों के संघर्षशील लोग हैं। यह रोक किसी भी प्रकार मानने योग्य नहीं है। धारा 144 लगाना संगठित होने, संघर्ष करने के बुनियादी जनवादी अधिकार पर हमला है। ऐसे आदेशों से जनसंघर्ष रुकने नहीं वाले बल्कि और तीखे ही होंगे। केन्द्रीय और राज्य स्तरों पर हुक्मरानों द्वारा धड़ाधड़ काले क़ानून बनाये जा रहे हैं। पंजाब में भी जनसंघर्षों को दबाने की साजि़श तले पंजाब सार्वजनिक व निजी जायदाद नुक़सान रोकथाम क़ानून लागू कर दिया गया है और गुण्डागर्दी रोकने के बहाने नया काला क़ानून पकोका भी बनाने की तैयारी है। डिप्टी कमिश्नर और पुलिस कमिश्रर लुधियाना द्वारा जारी हुए हुक्म भी इसी दमनकारी प्रक्रिया का अंग हैं।

अपनी समस्याएँ हल न होने पर लोगों को मज़बूरीवश विभिन्न सरकारी अधिकारियों के दफ़्तरों, संसद-विधानसभा मैम्बर, मेयर, काऊंसलर, थाना, चौकी, सड़कों आदि पर प्रदर्शन करने पड़ते हैं। हक़ों के लिए इकट्ठा होना और आवाज़ बुलन्द करना लोगों का जनवादी ही नहीं बल्कि संवैधानिक हक़ भी है। भारतीय संविधान की धारा 19 के तहत लोगों को अपने विचारों और हक़ों के लिए संगठित होने व संघर्ष करने की आज़ादी है। यह हुक्म लोगों के संवैधानिक व जनवादी अधिकार का हनन है।

इस संघर्ष में टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन, कारख़ाना मज़दूर यूनियन, नौजवान भारत सभा, पेंडू मज़दूर यूनियन (मशाल), लाल झण्डा बजाज सन्स मज़दूर यूनियन, भारतीय किसान यूनियन (एकता-उगराहाँ), भारतीय किसान यूनियन (एकता-डकौंदा), पेंडू मज़दूर यूनियन, जमहूरी अधिकार सभा, इंक़लाबी लोक मोर्चा, सीटू, लाल झण्डा हीरो साइकिल मज़दूर यूनियन, लाल झण्डा टेक्सटाइल हौज़री मज़दूर यूनियन, जमहूरी किसान सभा पंजाब, इंक़लाबी नौजवान विद्यार्थी मंच, मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान, कामागाटा मारू यादगारी कमेटी, इंक़लाबी केन्द्र पंजाब, मनरेगा मज़दूर यूनियन पंजाब, लाल झण्डा पंजाब भट्ठा मज़दूर यूनियन, पंजाब स्टूडेण्ट्स यूनियन, किरती किसान यूनियन, मोल्डर एण्ड स्टील वर्कर्ज़ यूनियन, तर्कशील सोसाइटी पंजाब, मेडिकल प्रेक्टीशनर्ज एसोसिएशन, शहीद भगतसिंह नौजवान विचार मंच, डेमोक्रेटिक टीचर्ज फ़्रण्ट, डेमोक्रेटिक लायर्ज़ एसोसिएशन, महासभा, पंजाब रोडवेज़ इम्पलाइज़ यूनियन, सफ़ाई लेबर यूनियन, पीप्लज़ मीडिय लिंक, आँगनवाड़ी मुलाजि़म यूनियन, रेलवे पेंशनर्ज एसोसिएशन, डिस्पोजल वर्कर्ज यूनियन, लाल झण्डा पेंडू चौकीदार यूनियन, एटक, आज़ाद हिन्द निर्माण यूनियन पंजाब, आदि संगठन शामिल हैं।

मज़दूर बिगुल, जनवरी 2018


 

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