Category Archives: संघर्षरत जनता

टेक्सटाइल-होज़री मज़दूरों की हड़तालों ने अड़ियल मालिकों को झुकने के लिए मजबूर किया

मौजूदा समय में जब कारख़ाना इलाक़ों में मालिकों का एक किस्म का जंगल राज क़ायम है, मज़दूरों के अधिकारों को बर्बरता पूर्वक कुचला जा रहा है, जब सरकार, पुलिस-प्रशासन, श्रम विभाग आदि सब सरेआम मालिकों का पक्ष लेते हैं, जब मज़दूरों में एकता का बड़े पैमाने पर अभाव है और दलाल ट्रेड यूनियन व नेताओं का बोलबाला है, ऐसे समय में छोटे पैमाने पर ही सही मज़दूरों द्वारा एकजुटता बनाकर लड़ना और एक हद तक जीत हासिल करना महत्वपूर्ण बात है।

मोदी सरकार के ख़िलाफ़ बेंगलुरु की स्त्री गारमेंट मज़दूरों ने संभाली कमान

घर, कारखाने से लेकर पूरे समाज में कदम कदम पर पितृसत्ता और बर्बर पूँजीवाद का दंश झेलने वाली महिला मज़दूरों ने इस आन्दोलन की अगुआई की, पुलिसिया दमन का डटकर सामना किया और अपने हक़ की एक छोटी लड़ाई भी जीती। यह छोटी लड़ाई मज़दूर वर्ग के भीतर पल रहे जबर्दस्त गुस्से का संकेत देती है। इस आक्रोश को सही दिशा देकर महज़ कुछ तात्कालिक माँगों से आगे बढ़कर व्यवस्था परिवर्तन की दिशा में मोड़ने की चुनौती आज के दौर की सबसे बड़ी चुनौती है।

सरकार की कठोर पूँजीवादी नीतियों के खिलाफ़ फ्रांस के लाखों मज़दूर, नौजवान, छात्र सड़कों पर

आज पूरे संसार में उदारीकरण-निजीकरण की आँधी झूल रही है और मज़दूरों-मेहनतकशों, नौजवानों, छात्रों के अधिकारों को बुरी तरह कुचला जा रहा है। पूरी दुनिया में ही मज़दूर विरोधी श्रम सुधार किए जा रहे हैं। हमारे देश में भी यही हालत है। ऐसे समय में फ्रांस के मज़दूरों, नौजवानों, छात्रों का श्रम सुधारों के खिलाफ़ जबर्दस्‍त आन्दोलन भरपूर स्वागतयोग्य है। पेरिस कम्यून की धरती के जुझारू साथियों को इंकलाबी सलाम!

दिल्ली सचिवालय पर घरेलू कामगारों का जुझारू प्रदर्शन

दिल्ली के सैकड़ों घरेलू कामगारों ने दिल्ली सरकार के सचिवालय पर बीते 25 अप्रैल को एक जुझारू प्रदर्शन किया और उनके प्रतिनिधिमंडल ने दिल्ली राज्य के श्रम मन्त्री को अपनी माँगों का ज्ञापन सौंपा। श्रम विभाग में अनिवार्य पंजीकरण, न्यूनतम वेतन, कार्यदिवस, साप्ताहिक छुट्टी एवं अन्य अवकाशों का निर्धारण, स्वास्थ्य और दुर्घटना बीमा, पी।एफ़।, पेंशन, ई।एस।आयी। एवं सामाजिक सुरक्षा के अन्य प्रावधान आदि घरेलू कामगारों की प्रमुख माँगें थीं।

अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर विश्वभर में गूँजी मज़दूर मुक्ति की आवाज़

इस वर्ष भी विश्वभर में करोड़ों मज़दूरों न पूँजीवादी लूट के खिलाफ़ जोरदार आवाज़ बुलन्द की है। आयोजन चाहे क्रान्तिकारी ताकतों की पहलीकदमी पर हुए हों या चाहे पूँजीपरस्त नेताओं/संगठनों की पहलकदमी पर हुए हों, अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर मज़दूरों द्वारा दिखाया जोश यह दिखाता है कि वे मौजूदा लुटेरी व्यवस्था से किस कदर दुखी हैं, कि वे पूँजीपक्षधर नेताओं के लक्ष्यों से अगली कार्रवाई चाहते हैं, कि वे गुलामी वाली परिस्थितियों से छुटकारा चाहते हैं। अनेक स्थानों पर क्रान्तिकारी व मज़दूर पक्षधर ताकतों के नेतृत्व में आयोजन हुए जिनके दौरान मज़दूर वर्ग की मुक्ति की लड़ाई जारी रखने, पूँजीवादी व्यवस्था को जड़ से मिटाने, पूँजीपति वर्ग के मज़दूर वर्ग और अन्य मेहनतकश लोगों के खिलाफ़ तीखे हो रहे हमलों के खिलाफ़ संघर्ष तेज़ करने के संकल्प लिए गये।

चीन में मज़दूरों का बढ़ता असन्तोष

चीन में मज़दूर अपने इन हालातों के खि़लाफ़ निरंतर संघर्षरत है और अपनी माँगों को लेकर सड़कों पर उतर रहे हैं। यहाँ यह भी जानना दिलचस्‍प होगा कि चीन में केवल सरकारी नियंत्रण के तहत काम करने वाली ‘ऑल चाइना फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन्स’ को ही सरकार द्वारा कानूनी मान्यता हासिल है। पूँजीपतियों की खि़दमत में लगी यह ट्रेड यूनियन किसी भी रूप में मज़दूरों के हितों का प्रतिनिधत्व नहीं करती और यही कारण है कि मज़दूरों को इस ट्रेड यूनियन पर राई-रत्ती भी भरोसा नहीं है। चीन की सरकार ने मज़दूरों के स्वतंत्र यूनियन बनाने के किसी भी प्रयास पर रोक लगा रखी है। मज़दूरों को अपनी पहलकदमी पर संगठित करने वाले मज़दूर कार्यकर्ताओं के प्रति सरकार का रुख़ इसी बात से समझा जा सकता उन्‍हें पुलिस द्वारा प्रताडि़त किया जाता है, गि़रफ्तार किया जाता है, उनके खि़लाफ़ व्यक्तिगत कुत्सा प्रचार भी किया जाता है जिसमें चीन की मीडिया बढ़-चढ़कर भूमिका निभाती है। कुछ मामलों में तो कार्यकर्ताओं को राष्ट्रीय मीडिया पर मज़दूरों को संगठित करने के अपने प्रयासों के लिए माफी तक माँगने को बाध्य किया जाता है।

रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के विरोध में देशभर में विरोध प्रदर्शन

असल में विश्वविद्यालय प्रशासन और मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी, श्रम मंत्री बण्डारू दत्तात्रेय ही रोहित की मौत के लिए ज़िम्मेदार हैं। इन्हीं की प्रताड़ना का शिकार होकर एक नौजवान ने फाँसी लगा ली। उसका दोष क्या था? यही कि उसने धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों के खिलाफ़ आवाज उठायी थी। रोहित की मौत की ज़िम्मेदार वे ताकतें हैं जो लोगों के आवाज़ उठाने और सवाल उठाने पर रोक लगाना चाहती हैं और आज़ाद ख़याल रखने वाले लोगों को गुलाम बनाना चाहती हैं।

‘दिल्ली मास्टर प्लान 2021’ की भेंट चढ़ी ग़रीबों-मेहनतकशों की एक और बस्ती – शकूर बस्ती

झुग्गियों के उजड़ने के बाद जैसे चुनावबाज पार्टियों के नेता अपने वोट बैंक को बचाने के लिए मीडिया के सामने सफाई देना शुरू कर देते हैं उसी तरह दल्लों, छुटभैये नेताओं और गुण्डों की बहार आ जाती है। राहत सामग्रियों को बाजार में बेचने का धन्धा चलता है। अफवाहों का बाज़ार गर्म किया जाता है और लोगों को डराकर पैसे ऐंठे जाते हैं। इन तमाम दल्लों का धन्धा ग़रीबों, मेहनतकशों की गाढ़ी कमाई को लूटकर ही चलता है। अपनी झूठी बातों और सरकारी दफ्तरों के जंजाल का भय लोगों में बिठाकर आधार कार्ड, पहचान पत्र बनवाने से लेकर स्कूल में बच्चे का दाखिला करवाने तक में ये दल्ले पाँच सौ से हजार रुपये तक वसूलते हैं। लेकिन, इतने पर भी सही काम की कोई गारण्टी नहीं होती। चुनावों के समय तमाम पार्टियों से पैसे लेकर वोट खरीदने का काम भी खूब करते हैं और खुद को बस्ती का प्रधान भी घोषित कर लेते हैं और अपने फेंके टुकड़ों पर पलने वाले गुर्गे भी तैयार कर लेते हैं। इन तमाम दल्लों और गुण्डों को पुलिस से लेकर क्षेत्रीय विधयक तक की शह रहती है। ऊपर से तुर्रा यह कि खुद को मज़दूरों का हितैषी बतानेवाली और रेलवे में बड़ी यूनियनें चलानेवाली एक सेण्ट्रल ट्रेड यूनियन भी सीमेण्ट मज़दूरों के बीच में सक्रिय है। और इनकी नाक के नीचे तमाम स्थानीय गुण्डे और दलाल अपनी मनमर्जी चला रहे थे। दरअसल मज़दूरों की अपनी क्रान्तिकारी यूनियन ही जुझारू तरीके से मज़दूरों की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी की दिक्कतों समस्याओं के ख़िला़फ़ लड़ सकती है। सेण्ट्रल ट्रेड यूनियनें बस वेतन भत्ते की लड़ाई तक ही सीमित रहती हैं।

होंडा मोटर्स, राजस्‍थान के मज़दूरों के आन्‍दोलन का बर्बर दमन, पर संघर्ष जारी है!

पिछली 16 फरवरी की शाम को टप्पूखेड़ा प्लांट के बाहर धरने पर बैठे मज़दूरों पर राजस्थान पुलिस और कम्पनी के गुंडों ने बर्बर लाठीचार्ज किया। इसी दिन सुबह एक ठेका मज़दूर के साथ सुपरवाइज़र द्वारा मारपीट के बाद मज़दूर हड़ताल पर चले गये थे। मैनेजमेंट द्वारा कई मज़दूरों के खिलाफ़ कार्रवाई करने से मज़दूरों में आक्रोश था। 16 फरवरी की सुबह एक ठेका मज़दूर ने बीमार होने के कारण काम करने में असमर्थता जताई। इस पर सुपरवाइज़र ने उस पर हमला कर दिया और उसकी गर्दन दबाने लगा। इससे मज़दूर भड़क उठे और उन्होंने काम बंद कर फैक्‍ट्री के भीतर ही धरना दे दिया। उस वक्त करीब 2000 मज़दूर फैक्ट्री के भीतर थे और बड़ी संख्या में मज़दूर बाहर मौजूद थे। मैनेजमेंट ने यूनियन के प्रधान नरेश कुमार को बातचीत के लिए अंदर बुलाया और इसी बीच अचानक भारी संख्‍या में पुलिस और बाउंसरों ने मज़दूरों पर हमला बोल दिया। उन्होंने मज़दूरों को दौड़ा-दौड़ाकर बुरी तरह लाठियों-रॉड आदि से पीटा जिसमें दर्जनों मज़दूरों को गम्‍भीर चोटें आयीं। पूरी फैक्ट्री पर पुलिस और गुंडों ने कब्ज़ा कर लिया। सैकड़ों मज़दूरों को गिरफ्तार कर लिया गया।

पंजाब की जनता का काला क़ानून विरोधी संघर्ष जारी

इस क़ानून के मुताबिक़ किसी भी प्रकार के आन्दोलन, धरना, प्रदर्शन, रैली, हड़ताल, जुलूस, आदि के दौरान अगर सार्वजनिक व निजी सम्पत्ति को किसी भी प्रकार का नुक़सान होता है (इसमें घाटा में शामिल किया गया है, यानी हड़ताल-टूल डाऊन आदि करने पर भी जेल जाना होगा) तो संघर्ष में किसी भी प्रकार से शामिल, मार्गदर्शन करने वालों, सलाह देने वालों, किसी भी प्रकार की मदद करने वालों आदि को दोषी माना जायेगा। हवलदार तुरन्त गिरफ़्तारी कर सकता है। इस क़ानून के तहत किया गया ‘अपराध’ ग़ैरजमानती है। नुक़सान भरपाई के लिए ज़मीन जब्त की जायेगी। जुर्माने अलग से लगेंगे। एक से पाँच वर्ष तक की क़ैद की सज़ा होगी। वीडियो को पक्के सबूत के तौर पर माना जायेगा। कहने की ज़रूरत नहीं कि इस क़ानून का इस्तेमाल हक़, सच, इंसाफ़ के लिए संघर्ष करने वालों के ख़िलाफ़ ही होगा। हुक़्मरानों की घोर जनविरोधी नीतियों के चलते जनता में बढ़ते आक्रोश के माहौल में पहले से मौजूद दमनकारी काले क़ानूनों और राजकीय ढाँचे से अब इनका काम नहीं चलने वाला। जनआवाज़ को दबाने के लिए जुल्मी हुक़्मरानों को दमनतन्त्र के दाँत तीखे करने की ज़रूरत पड़ रही है। इसी का नतीजा है पंजाब का यह नया काला क़ानून। लेकिन जनता हुक़्मरानों के काले क़ानूनों से डरकर चुप नहीं बैठती। पंजाब की जनता का संघर्ष इसका गवाह है।