मार्क्स की ‘पूँजी’ को जानिये : चित्रांकनों के साथ (दूसरी किस्त)
सोलहवीं सदी में धर्मसुधार और उसके फलस्वरूप चर्च की संपत्ति की लूट से आम लोगों के जबरन संपत्तिहरण की प्रक्रिया को एक नया और जबर्दस्त संवेग मिला। धर्मसुधार के समय कैथोलिक चर्च, जो सामंती प्रणाली के मातहत था, इंग्लैण्ड की भूमि के बहुत बड़े हिस्से का स्वामी था। मठों के दमन और उससे जुड़े क़दमों ने मठवासियों को सर्वहारा में तब्दील होने पर मजबूर कर दिया। चर्च की संपत्ति अधिकांशत: राजा के लुटेरे कृपापात्रों को दे दी गयी अथवा सट्टेबाज़ काश्तकारों और नागरिकों के हाथों हास्यास्पद रूप से कम क़ीमत पर बेच दी गयी, जिन्हाेंने पुश्तैनी शिकमीदारों को ज़मीन से खदेड़ दिया तथा उनकी छोटी-छोटी जोतों को मिलाकर बड़ी जागीरों में तब्दील कर दिया। चर्च को दिये जाने वाले दशांश (कुल पैदावार का दसवाँ भाग) के एक हिस्से का जो कानूनी अधिकार गाँव के ग़रीबों को मिलता था उसे भी चुपचाप ज़ब्त कर लिया गया।