Category Archives: महान शिक्षकों की क़लम से

मज़दूरों के क्रान्तिकारी अख़बार के बारे में लेनिन के विचार

हमारी राय में, हमारे कामों की शुरुआत, जिस संगठन को हम बनाना चाहते हैं उसके निर्माण की दिशा में हमारा पहला क़दम, एक अखिल रूसी राजनीतिक अख़बार की स्थापना होना चाहिए। हम कह सकते हैं कि यही वह मुख्य सूत्र है जिसे पकड़ कर हम संगठन का लगातार विकास कर सकेंगे और उसे गहरा और विस्तृत बना सकेंगे।

भारत के नव-नरोदवादी “कम्युनिस्टों” और क़ौमवादी “मार्क्सवादियों” को फ़्रेडरिक एंगेल्स आज क्या बता सकते हैं?

28 नवम्बर 1820 को सर्वहारा वर्ग के महान शिक्षक और कार्ल मार्क्स के अनन्य मित्र फ़्रेडरिक एंगेल्स का जन्म हुआ था। द्वन्द्वात्मक और ऐतिहासिक भौतिकवाद और वैज्ञानिक समाजवाद के सिद्धान्तों का कार्ल मार्क्स के साथ विकास करने वाले हमारे इस महान नेता ने पहले कार्ल मार्क्स के साथ और 1883 में मार्क्स की मृत्यु के बाद 1895 तक विश्व सर्वहारा आन्दोलन को नेतृत्व दिया। मार्क्सवाद के सार्वभौमिक सिद्धान्तों को स्थापित करने के अलावा इन सिद्धान्तों की रोशनी में उन्होंने इतिहास, विचारधारा, एंथ्रोपॉलजी और प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में ऐसे शोध-कार्य किये, जिन्‍हें पढ़ना आज भी इस क्षेत्र के विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य और अपरिहार्य है।

फ़ैक्टरी-मज़दूरों की एकता, वर्ग-चेतना और संघर्ष का विकास

यह दस्तावेज़ मज़दूरों और कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं के अध्ययन के लिए आज भी बेहद प्रासंगिक है। हम यहाँ ‘मज़दूर बिगुल’ के पाठकों के लिए उक्त मसौदा पार्टी कार्यक्रम की व्याख्या का एक हिस्सा प्रकाशित कर रहे हैं जिसमें इस प्रक्रिया का सिलसिलेवार ब्योरा दिया गया है कि किस प्रकार कारख़ानों में बड़ी पूँजी का सामना करने के लिए एकता मज़दूर वर्ग की ज़रूरत बन जाती है, और किस प्रकार उनकी वर्ग-चेतना विकसित होती है तथा उसके संघर्ष व्यापक होते जाते हैं।

फ़ैक्टरी-मज़दूरों की एकता, वर्ग-चेतना और संघर्ष का विकास

यह दस्तावेज़ मज़दूरों और कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं के अध्ययन के लिए आज भी बेहद प्रासंगिक है। हम यहाँ ‘मज़दूर बिगुल’ के पाठकों के लिए उक्त मसौदा पार्टी कार्यक्रम की व्याख्या का एक हिस्सा प्रकाशित कर रहे हैं जिसमें इस प्रक्रिया का सिलसिलेवार ब्योरा दिया गया है कि किस प्रकार कारख़ानों में बड़ी पूँजी का सामना करने के लिए एकता मज़दूर वर्ग की ज़रूरत बन जाती है, और किस प्रकार उनकी वर्ग-चेतना विकसित होती है तथा उसके संघर्ष व्यापक होते जाते हैं।

गाँव के ग़रीबों का हित किसके साथ है?

बात यह है कि किसान भी तरह-तरह के हैं: ऐसे भी किसान हैं, जो ग़रीब और भूखे हैं, और ऐसे भी हैं, जो धनी बनते जाते हैं। फलतः ऐसे धनी किसानों की गिनती बढ़ रही है, जिनका झुकाव ज़मींदारों की ओर है और जो मज़दूरों के विरुद्ध धनियों का पक्ष लेंगे। शहरी मज़दूरों के साथ एकता चाहने वाले गाँव के ग़रीबों को बहुत सावधानी से इस बात पर विचार करना और उसकी छानबीन करनी चाहिए कि इस तरह से धनी किसान कितने हैं, वे कितने मज़बूत हैं और उनकी ताक़त से लड़ने के लिए हमें किस तरह के संगठन की ज़रूरत है। अभी हमने किसानों के बुरे सलाहकारों का जि़क्र किया था। इन लोगों को यह कहने का बहुत शौक़ है कि किसानों के पास ऐसा संगठन पहले ही मौजूद है। वह है मिर या ग्राम-समुदाय। वे कहते हैं, ग्राम-समुदाय एक बड़ी ताक़त है। ग्राम-समुदाय बहुत मज़बूती के साथ किसानों को ऐक्यबद्ध करता है; ग्राम-समुदाय के रूप में किसानों का संगठन (अर्थात संघ, यूनियन) विशाल (मतलब कि बहुत बड़ा, असीम) है।

मज़दूरों के क्रान्तिकारी अख़बार के बारे में लेनिन के विचार

अख़बार की भूमिका मात्र विचारों का प्रचार करने, राजनीतिक शिक्षा देने, तथा राजनीतिक सहयोगी भरती करने के काम तक ही नहीं सीमित होती। अख़बार केवल सामूहिक प्रचारक और सामूहिक आन्दोलनकर्ता का ही नहीं बल्कि एक सामूहिक संगठनकर्ता का भी काम करता है। इस दृष्टि से उसकी तुलना किसी बनती हुई इमारत के चारों ओर खड़े किये गये बल्लियों के ढाँचे से की जा सकती है। इस ढाँचे से इमारत की रूपरेखा स्पष्ट हो जाती है और इमारत बनाने वालों को एक दूसरे के पास आने-जाने में सहायता मिलती है जिससे वे काम का बँटवारा कर सकते हैं और अपने संगठित श्रम के संयुक्त परिणामों पर विचार-विनिमय कर सकते हैं।

भारी महँगाई और पूँजीपतियों की ”कठिन” ज़िन्दगी – लेनिन

मज़दूर साथियो, आपका क्या ख़याल है : जब शुद्ध आय 24 करोड़ से बढ़कर 50 करोड़ हो जाये, यानी दो वर्ष में 26 करोड़ बढ़ जाये, तो क्या दस या बीस करोड़ रूबल टैक्स नहीं वसूला जाना चाहिए था? क्या मज़दूरों और ग़रीब किसानों को निचोड़कर बटोरे गये 26 करोड़ के अतिरिक्त मुनाफ़े में से, स्कूलों और अस्पतालों के लिए, भूखों की मदद के लिए और मज़दूरों के बीमा के लिए, कम से कम बीस करोड़ नहीं ले लिये जाने चाहिए थे?

पूँजीवादी जनतन्त्र के बारे में कार्ल मार्क्स के विचार

जनतन्त्र में पूँजीपति वर्ग का शासन मिट नहीं जाता। करोड़पति मज़दूरों में नहीं बदल जाते। बन्धुत्व और भाईचारे का नारा वर्ग वैरभाव को मिटा नहीं देता। बन्धुत्व एक सुखदायी विमुखता है, विरोधी वर्गों का भावुकतापूर्ण मेल है। बन्धुत्व वर्ग संघर्ष से ऊपर उठने की दिवास्वप्नमय कामना है। बन्धुत्व की भावना में एक उदार मादकता है जिसमें सर्वहारा और जनतन्त्रवादी झूमने लगते हैं। जनतन्त्र पुराने पूँजीवादी समाज का नया नृत्य परिधान है। यह पूँजीवाद को भयभीत नहीं करता, उससे भयभीत होता है।

लेनिन की कविता की कुछ पक्तियाँ

पैरों से रौंदे गये आज़ादी के फूल

आज नष्ट हो गये हैं

अँधेरे की दुनिया के स्वामी

रोशनी की दुनिया का खौफ़ देख ख़ुश हैं

मगर उस फूल के फल ने पनाह ली है

क्‍लासिकल मार्क्‍सवाद – कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र \ कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स

आधुनिक बुर्जुआ समाज ने, जो सामन्ती समाज के ध्वंस से पैदा हुआ है, वर्ग विरोधों को ख़त्म नहीं किया। उसने केवल पुराने के स्थान पर नये वर्ग, उत्पीड़न की पुरानी अवस्थाओं के स्थान पर नयी अवस्थाएँ और संघर्ष के पुराने रूपों की जगह नये रूप खड़े कर दिये हैं। किन्तु दूसरे युगों की तुलना में हमारे युग की, बुर्जुआ युग की विशेषता यह है कि उसने वर्ग विरोधों को सरल बना दिया है: आज पूरा समाज दो विशाल शत्रु शिविरों में, एक-दूसरे के ख़िलाफ़ खड़े दो विशाल वर्गों में – बुर्जुआ वर्ग और सर्वहारा वर्ग में – अधिकाधिक विभक्त होता जा रहा है।