Category Archives: महान शिक्षकों की क़लम से

स्‍तालिन – पार्टी मजदूर वर्ग का संगठित दस्ता है

पार्टी मज़दूर वर्ग का केवल अग्रदल ही नहीं है। यदि वह अपने वर्ग के संघर्षों का वास्तविक संचालन करना चाहती है तो उसे सर्वहारा का संगठित दस्ता भी होना पड़ेगा, पूँजीवाद की परिस्थितियों में पार्टी के कार्य अत्यन्त गम्भीर और विविध हैं। भीतरी और बाहरी विकास की अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में उसे सर्वहारा वर्ग के संघर्षों का नेतृत्व करना होगा। जब परिस्थिति आक्रमण के अनुकूल हो तब उसे अपने वर्ग को लेकर चढ़ाई करनी होगी; और जब स्थिति प्रतिकूल हो जाए तो शक्तिशाली दुश्मन के प्रहार से उसे बचाने के लिए अपने वर्ग को पीछे हटा लाना होगा। साथ ही पार्टी के बाहर के करोड़ों असंगठित मज़दूरों को संघर्ष का ढंग और अनुशासन सिखलाना होगा और उनमें संगठन और सहनशीलता की भावना उत्पन्न करनी होगी। पार्टी यह सब काम तभी पूरा कर सकती है जब वह स्वयं संगठन और अनुशासन का आदर्श रूप हो, जब वह स्वयं सर्वहारा वर्ग का संगठित दस्ता हो। पार्टी में अगर ये गुण न हों तो वह करोड़ों सर्वहारा का पथ प्रदर्शन करने की बात भी नहीं सोच सकती।

एंगेल्स – मज़दूरी की व्यवस्था में मज़दूर के शोषण का रहस्य

एक ओर, अकूत धन-सम्पत्ति और मालों की इफ़रात है, जिनको ख़रीदार ख़रीद नहीं पाते; दूसरी ओर, समाज का अधिकांश भाग है, जो सर्वहारा हो गया है, उजरती मज़दूर बन गया है और जो ठीक इसीलिए इन इफ़रात मालों को हस्तगत करने में असमर्थ है। समाज के एक छोटे-से अत्यधिक धनी वर्ग और उजरती मज़दूरों के एक विशाल सम्पत्तिविहीन वर्ग में बँट जाने के परिणामस्वरूप उसका ख़ुद अपनी इफ़रात से गला घुटने लगता है, जबकि समाज के सदस्यों की विशाल बहुसंख्या घोर अभाव से प्रायः अरक्षित है या नितान्त अरक्षित तक है। यह वस्तुस्थिति अधिकाधिक बेतुकी और अधिकाधिक अनावश्यक होती जाती है। इस स्थिति का अन्त अपरिहार्य है। उसका अन्त सम्भव है। एक ऐसी नयी सामाजिक व्यवस्था सम्भव है, जिसमें वर्त्तमान वर्ग-भेद लुप्त हो जायेंगे और जिसमें–शायद एक छोटे-से संक्रमण-काल के बाद, जिसमें कुछ अभाव सहन करना पड़ेगा, लेकिन जो नैतिक दृष्टि से बड़ा मूल्यवान काल होगा–अभी से मौजूद अपार उत्पादक-शक्तियों का योजनाबद्ध रूप से उपयोग तथा विस्तार करके और सभी के लिए काम करना अनिवार्य बनाकर, जीवन-निर्वाह के साधनों को, जीवन के उपभोग के साधनों को तथा मनुष्य की सभी शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों के विकास और प्रयोग के साधनों को समाज के सभी सदस्यों के लिए समान मात्र में और अधिकाधिक पूर्ण रूप से सुलभ बना दिया जायेगा।

लेनिन के दो उद्धरण

आम तौर से पूँजीवाद और ख़ास तौर से साम्राज्यवाद जनवाद को भ्रम बना देता है, हालाँकि पूँजीवाद उसके साथ ही जन साधारण में जनवादी आकांक्षाएँ पैदा करता है, जनवादी संस्थाओं की सृष्टि करता है, जनवाद को अस्वीकृत करने वाले साम्राज्यवाद तथा जनवाद की आकांक्षा करने वाले जन साधारण के बीच विरोध को संगीन बनाता है। पूँजीवाद और साम्राज्यवाद का तख़्ता अत्यन्त “आदर्श” जनवादी परिवर्तनों द्वारा भी नहीं, बल्कि केवल आर्थिक क्रान्ति द्वारा उलटा जा सकता है। लेकिन जो सर्वहारा वर्ग जनवाद के संघर्ष में शिक्षित नहीं है, वह आर्थिक क्रान्ति सम्पन्न करने में असमर्थ है।

स्तालिन / सर्वहारा वर्ग तथा सर्वहारा की पार्टी

क्या एक पार्टी सदस्य के लिए पार्टी का कार्यक्रम, कार्यनीति तथा संगठनात्मक विचारों को केवल स्वीकार करना ही पर्याप्त है? क्या ऐसा व्यक्ति सर्वहारा की सेना का एक सच्चा नेता माना जा सकता है? अवश्य ही नहीं। प्रथम तो हर व्यक्ति यह जानता है कि दुनिया में ऐसे अनेकों बकवास करने वाले लोग हैं जो तुरन्त पार्टी के कार्यक्रम, कार्यनीति तथा संगठनात्मक विचारों को “स्वीकार” कर लेंगे, जब कि वे बकवास करने के अतिरिक्त और कुछ करने के योग्य नहीं हैं। ऐसे बकवासी व्यक्ति को पार्टी के सदस्य (यानी कि सर्वहारा की सेना का नेता) कहना तो पार्टी की पूरी गरिमा को नष्ट कर देना होगा। और फिर, हमारी पार्टी कोई दर्शन बघारने की जगह या धार्मिक पंथ तो है नहीं। क्या हमारी पार्टी एक युद्धरत जुझारू पार्टी नहीं है? चूँकि है, अतः क्या यह स्वतः-स्पष्ट नहीं है कि वह सिर्फ अपने कार्यक्रम, कार्यनीति तथा संगठनात्मक सिद्धान्तों की मौखिक स्वीकृति से ही सन्तुष्ट न होगी, कि वह वह बेशक यह माँग करेगी कि उसके सदस्य स्वीकार किये गये सिद्धान्तों को कार्यान्वित करें। अतः, जो भी कोई हमारी पार्टी का सदस्य बनना चाहता है वह केवल हमारी पार्टी के कार्यक्रम, कार्यनीति तथा संगठनात्मक विचारों को स्वीकार कर संतुष्ट नहीं बैठ सकता, वरन उसे इन विचारों को क्रियान्वित करना चाहिए, उन्हें अमल में लाना चाहिए।

लेनिन – हड़तालों के बारे में

हड़ताल मज़दूरों को सिखाती है कि मालिकों की शक्ति तथा मज़दूरों की शक्ति किसमें निहित होती है; वह उन्हें केवल अपने मालिक और केवल अपने साथियों के बारे में ही नहीं, वरन तमाम मालिकों, पूँजीपतियों के पूरे वर्ग, मज़दूरों के पूरे वर्ग के बारे में सोचना सिखाती है। जब किसी फ़ैक्टरी का मालिक, जिसने मज़दूरों की कई पीढ़ियों के परिश्रम के बल पर करोड़ों की धनराशि जमा की है, मज़दूरी में मामूली वृद्धि करने से इन्कार करता है, यही नहीं, उसे घटाने का प्रयत्न तक करता है और मज़दूरों द्वारा प्रतिरोध किये जाने की दशा में हज़ारों भूखे परिवारों को सड़कों पर धकेल देता है, तो मज़दूरों के सामने यह सर्वथा स्पष्ट हो जाता है कि पूँजीपति वर्ग समग्र रूप में समग्र मज़दूर वर्ग का दुश्मन है और मज़दूर केवल अपने ऊपर और अपनी संयुक्त कार्रवाई पर ही भरोसा कर सकते हैं। अक्सर होता यह है कि फ़ैक्टरी का मालिक मज़दूरों की आँखों में धूल झोंकने, अपने को उपकारी के रूप में पेश करने, मज़दूरों के आगे रोटी के चन्द छोटे-छोटे टुकड़े फेंककर या झूठे वचन देकर उनके शोषण पर पर्दा डालने के लिए कुछ भी नहीं उठा रखता। हड़ताल मज़दूरों को यह दिखाकर कि उनका “उपकारी” तो भेड़ की खाल ओढ़े भेड़िया है, इस धोखाधाड़ी को एक ही वार में ख़त्म कर देती है।

स्‍तालिन – “निजी स्वतन्त्रता”

मेरे लिए यह कल्पना करना कठिन है कि एक बेरोज़गार भूखा व्यक्ति किस तरह की “निजी स्वतन्त्रता” का आनन्द उठाता है। वास्तविक स्वतन्त्रता केवल वहीं हो सकती है जहाँ एक व्यक्ति द्वारा दूसरे का शोषण और उत्पीड़न न हो; जहाँ बेरोज़गारी न हो, और जहाँ किसी व्यक्ति को अपना रोज़गार, अपना घर और रोटी छिन जाने के भय में जीना न पड़ता हो। केवल ऐसे ही समाज में निजी और किसी भी अन्य प्रकार की स्वतन्त्रता वास्तव में मौजूद हो सकती है, न कि सिर्फ़ काग़ज़ पर।

लेनिन – जनवादी जनतन्त्र: पूँजीवाद के लिए सबसे अच्छा राजनीतिक खोल

बुर्जुआ समाज की ज़रख़रीद तथा गलित संसदीय व्यवस्था की जगह कम्यून ऐसी संस्थाएं क़ायम करता है, जिनके अन्दर राय देने और बहस करने की स्वतंत्रता पतित होकर प्रवंचना नहीं बनतीं, क्योंकि संसद-सदस्यों को ख़ुद काम करना पड़ता है, अपने बनाये हुए क़ानूनों को ख़ुद ही लागू करना पड़ता है, उनके परिणामों की जीवन की कसौटी पर स्वयं परीक्षा करनी पड़ती है और अपने मतदाताओं के प्रति उन्हें प्रत्यक्ष रूप से ज़िम्मेदार होना पड़ता है। प्रतिनिधिमूलक संस्थाएं बरक़रार रहती हैं, लेकिन विशेष व्यवस्था के रूप में, क़ानून बनाने और क़ानून लागू करने के कामों के बीच विभाजन के रूप में, सदस्यों की विशेषाधिकार-पूर्ण संस्थाओं के बिना जनवाद की, सर्वहारा जनवाद की भी कल्पना हम कर सकते हैं और हमें करनी चाहिए, अगर बुर्जुआ समाज की आलोचना हमारे लिए कोरा शब्दजाल नहीं है, अगर बुर्जुआ वर्ग के प्रभुत्व को उलटने की हमारी इच्छा गम्भीर और सच्ची हैं, न कि मेंशेविकों और समाजवादी-क्रान्तिकारियों की तरह, शीडेमान, लेजियन, सेम्बा और वानउरवेल्डे जैसे लोगों की तरह मज़दूरों के वोट पकड़ने के लिए “चुनाव” का नारा भर।

लेनिन – मज़दूरों का राजनीतिक अख़बार एक क्रान्तिकारी पार्टी खड़ी करने के लिए ज़रूरी है

अखबार न केवल सामूहिक प्रचारक और सामूहिक आन्दोलनकर्ता का, बल्कि सामूहिक संगठनकर्ता का भी काम करता है। इस दृष्टि से उसकी तुलना किसी बनती हुई इमारत के चारों ओर बाँधे गये पाड़ से की जा सकती है; इससे इमारत की रूपरेखा प्रकट होती है और इमारत बनाने वालों को एक-दूसरे के पास आने-जाने में सहायता मिलती है, इससे वे काम का बँटवारा कर सकते हैं, अपने संगठित श्रम द्वारा प्राप्त आम परिणाम देख सकते हैं।

लेनिन – फ्रेडरिक एंगेल्स की स्मृति में (जन्मतिथिः 28 नवम्बर, 1820)

1848-1849 के आन्दोलन के बाद निर्वासन-काल में मार्क्स और एंगेल्स केवल वैज्ञानिक शोधकार्य में ही व्यस्त नहीं रहे। 1864 में मार्क्स ने ‘अन्तर्राष्ट्रीय मज़दूर संघ’ की स्थापना की और पूरे दशक भर इस संस्था का नेतृत्व किया। एंगेल्स ने भी इस संस्था के कार्य में सक्रिय भाग लिया। ‘अन्तर्राष्ट्रीय संघ’ का कार्य, जिसने मार्क्स के विचारानुसार सभी देशों के सर्वहारा को एकजुट किया, मज़दूर आन्दोलन के विकास के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण था। पर 19वीं शताब्दी के आठवें दशक में उक्त संघ के बन्द होने के बाद भी मार्क्स और एंगेल्स की एकजुटता विषयक भूमिका नहीं समाप्त हुई। इसके विपरीत, कहा जा सकता है, मज़दूर आन्दोलन के वैचारिक नेताओं के रूप में उनका महत्व सतत बढ़ता रहा, क्योंकि यह आन्दोलन स्वयं भी अरोध्य रूप से प्रगति करता रहा। मार्क्स की मृत्यु के बाद अकेले एंगेल्स यूरोपीय समाजवादियों के परामर्शदाता और नेता बने रहे। उनका परामर्श और मार्गदर्शन जर्मन समाजवादी, जिनकी शक्ति सरकारी यन्त्रणाओं के बावजूद शीघ्रता से और सतत बढ़ रही थी, और स्पेन, रूमानिया, रूस आदि जैसे पिछड़े देशों के प्रतिनिधि, जो अपने पहले कदम बहुत सोच-विचार कर और सम्भल कर रखने को विवश थे, सभी समान रूप से चाहते थे। वे सब वृद्ध एंगेल्स के ज्ञान और अनुभव के समृद्ध भण्डार से लाभ उठाते थे।

माओ – दुश्मन द्वारा हमला किया जाना बुरी बात नहीं बल्कि अच्छी बात है

मैं मानता हूं कि अगर किसी व्यक्ति, राजनीतिक दल, सेना या स्कूल पर दुश्मन हमला नहीं करता तो हमारे लिए यह बुरी बात है क्योंकि इसका निश्चित रूप से यह मतलब होता कि हम दुश्मन के स्तर तक नीचे सरक आये हैं। दुश्मन द्वारा हमला किया जाना अच्छा है क्योंकि यह साबित करता है कि हमने दुश्मन और अपने बीच एक स्पष्ट विभाजक-रेखा खींच दी है। अगर दुश्मन हम पर उन्मत्त होकर हमला करता है और हमें किसी भी गुण से रहित एकदम काले रूप में चित्रित करता है तो यह और भी अच्छा है। यह दिखाता है कि हमने न केवल दुश्मन और अपने बीच एक स्पष्ट विभाजक-रेखा खींच दी है बल्कि अपने काम में काफ़ी कुछ हासिल भी कर लिया है।