Category Archives: महान शिक्षकों की क़लम से

Classical Marxism – On Contradiction \ Mao Tse-tung

As opposed to the metaphysical world outlook, the world outlook of materialist dialectics holds that in order to understand the development of a thing we should study it internally and in its relations with other things; in other words, the development of things should be seen as their internal and necessary self-movement, while each thing in its movement is interrelated with and interacts on the things around it. The fundamental cause of the development of a thing is not external but internal; it lies in the contradictoriness within the thing. There is internal contradiction in every single thing, hence its motion and development.

क्‍लासिकल मार्क्‍सवाद – अंतरविरोध के बारे में \ माओ त्से–तुङ

अध्यात्मवादी विश्व–दृष्टिकोण के विपरीत, भौतिकवादी द्वन्द्ववाद के विश्व–दृष्टिकोण का कहना है कि किसी वस्तु के विकास को समझने के लिए उसका अध्ययन भीतर से, अन्य वस्तुओं के साथ उस वस्तु के संबंध से किया जाना चाहिए; दूसरे शब्दों में वस्तुओं के विकास को उनकी आंतरिक और आवश्यक आत्म–गति के रूप में देखना चाहिए, और यह कि प्रत्येक गतिमान वस्तु को और उसके इर्द–गिर्द की वस्तुओं को परस्पर संबंधित तथा एक–दूसरे को प्रभावित करती हुई वस्तुओं के रूप में देखना चाहिए। किसी वस्तु के विकास का मूल कारण उसके बाहर नहीं बल्कि उसके भीतर होता है; उसके अंदरूनी अंतरविरोध में निहित होता है। यह अंदरूनी अंतरविरोध हर वस्तु में निहित होता है तथा इसीलिए हर वस्तु गतिमान और विकासशील होती है।

क्‍लासिकल मार्क्‍सवाद – व्यवहार के बारे में \ माओ त्से–तुङ

व्यवहार से ही सत्य की खोज करना और व्यवहार से ही सत्य को परखना और विकसित करना। इंद्रियग्राह्य ज्ञान से आरंभ करना और उसे गत्यात्मक रूप से बुद्धिसंगत ज्ञान में विकसित करना; उसके बाद बुद्धिसंगत ज्ञान से आरंभ करके गत्यात्मक रूप से क्रांतिकारी व्यवहार का पथ प्रदर्शन करना, जिससे कि मनोगत और वस्तुगत दुनिया में परिवर्तन लाया जा सके। व्यवहार, ज्ञान फिर व्यवहार, फिर ज्ञान। इस क्रम की अनंत काल तक आवृत्ति होती रहती है और हर आवृत्ति के साथ व्यवहार और ज्ञान की अंतर्वस्तु और अधिक ऊंचे स्तर पर पहुंचती जाती है। यह है द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का समूचा ज्ञान–सिद्धांत, यह है द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का जानने और कर्म करने की एकता का सिद्धांत।

अख़बार केवल सामूहिक प्रचारक और सामूहिक आन्दोलनकर्ता ही नहीं बल्कि सामूहिक संगठनकर्ता का भी काम करता है

अख़बार की भूमिका मात्र विचारों का प्रचार करने, राजनीतिक शिक्षा देने, तथा राजनीतिक सहयोगी भरती करने के काम तक ही नहीं सीमित होती। अख़बार केवल सामूहिक प्रचारक और सामूहिक आन्दोलनकर्ता का ही नहीं बल्कि एक सामूहिक संगठनकर्ता का भी काम करता है। इस दृष्टि से उसकी तुलना किसी बनती हुई इमारत के चारों ओर खड़े किये गये बल्लियों के ढाँचे से की जा सकती है। इस ढाँचे से इमारत की रूपरेखा स्पष्ट हो जाती है और इमारत बनाने वालों को एक दूसरे के पास आने-जाने में सहायता मिलती है जिससे वे काम का बँटवारा कर सकते हैं और अपने संगठित श्रम के संयुक्त परिणामों पर विचार-विनिमय कर सकते हैं। अख़बार की मदद और उसके माध्यम से, स्वाभाविक रूप से, एक स्थायी संगठन खड़ा हो जायेगा जो न केवल स्थानीय गतिविधियों में, बल्कि नियमित आम कार्यों में भी हिस्सा लेगा, और अपने सदस्यों को इस बात की ट्रेनिंग देगा कि राजनीतिक घटनाओं का वे सावधानी से निरीक्षण करते रहें, उनके महत्व और आबादी के विभिन्न अंगों पर उनके प्रभाव का मूल्यांकन करें, और ऐसे कारगर उपाय निकालें जिनके द्वारा क्रान्तिकारी पार्टी उन घटनाओं को प्रभावित करे।

युवा मार्क्स की कविता : जीवन-लक्ष्य

कठिनाइयों से रीता जीवन
मेरे लिए नहीं,
नहीं, मेरे तूफानी मन को यह स्वीकार नहीं।
मुझे तो चाहिये एक महान ऊँचा लक्ष्य
और उसके लिए उम्र भर संघर्षों का अटूट क्रम ।
ओ कला ! तू खोल
मानवता की धरोहर, अपने अमूल्य कोषों के द्वार
मेरे लिए खोल !

लेनिन – ग़रीबी दूर करने का एक ही रास्ता – समाजवादी व्यवस्था

जनता की ग़रीबी को दूर करने का एक ही रास्ता है – मौजूदा व्यवस्था को नीचे से ऊपर तक सारे देश में बदलकर उसके स्थान पर समाजवादी व्यवस्था क़ायम करना। दूसरे शब्दों में, बड़े ज़मींदारों से उनकी जागीरें, कारख़ानेदारों से उनकी मिलें और कारख़ाने और बैंकपतियों से उनकी पूँजी छीन ली जाये, उनके निजी स्वामित्व को ख़त्म कर दिया जाये और उसे देश-भर की समस्त श्रमजीवी जनता के हाथों में दे दिया जाये। ऐसा हो जाने पर धनी लोग, जो दूसरों के श्रम पर जीते हैं, मज़दूरों के श्रम का उपयोग नहीं कर पायेंगे, बल्कि उसका उपयोग स्वयं मज़दूर तथा उनके चुने हुए प्रतिनिधि करेंगे। ऐसा होने पर साझे श्रम की उपज तथा मशीनों और सभी सुधारों से प्राप्त होने वाले लाभ तमाम श्रमजीवियों, सभी मज़दूरों को प्राप्त होंगे। धन और भी जल्दी से बढ़ना शुरू होगा, क्योंकि जब मज़दूर पूँजीपति के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए काम करेंगे, तो वे काम को और अच्छे ढंग से करेंगे। काम के घण्टे कम होंगे। मज़दूरों का खाना-कपड़ा और रहन-सहन बेहतर होगा। उनकी गुज़र-बसर का ढंग बिल्कुल बदल जायेगा।

‘इस्क्रा’ के सम्पादकीय बोर्ड का घोषणापत्र – वी.आई. लेनिन (सम्पादकीय बोर्ड की ओर से)

हमारा पूरा प्रयास रहेगा कि प्रत्येक रूसी कॉमरेड हमारे प्रकाशन को अपना ही माने, जिससे सारे ही समूह आन्दोलन से सम्बन्धित हर तरह की सूचनाएँ साझा कर सकें, जिसमें वे अपने अनुभव दूसरों से बाँट सकें, अपने विचार व्यक्त कर सकें, राजनीतिक साहित्य की अपनी आवश्यकताएँ बता सकें, और सामाजिक-जनवादी संस्करणों के बारे में अपनी राय व्यक्त कर सकें, संक्षेप में कहें तो, आन्दोलन के लिए उनका जो भी योगदान हो और आन्दोलन से उन्होंने जो कुछ भी ग्रहण किया हो, वे उस प्रकाशन के माध्यम से साझा कर सकें। सिर्फ़ इसी तरीक़़े से एक अखिल रूसी सामाजिक-जनवादी मुखपत्र की नींव डालना सम्भव हो सकेगा। सिर्फ़ ऐसा प्रकाशन ही आन्दोलन को राजनीतिक संघर्ष के असली रास्ते पर ले जा सकेगा। “अपनी सीमाओं का विस्तार करो और अपनी प्रचारात्मक, आन्दोलनात्मक, और संगठनात्मक गतिविधियों की अन्तर्वस्तु को और भी व्यापक बनाओ” – पी.बी. एक्सेलरोद के इन शब्दों को रूसी सामाजिक-जनवादियों की निकट भविष्य की कार्यवाहियों को परिभाषित करते नारे की भूमिका अदा करनी चाहिए, और यही नारा हम अपने प्रकाशन के कार्यक्रम के लिए भी अपना रहे हैं।

मार्क्स की ‘पूँजी’ को जानिये : चित्रांकनों के साथ (छठी किस्त)

जिस हद तक मशीन का कोई मूल्य है, और इसलिए वह उत्पाद को मूल्य हस्तान्तरित करती है, उस हद तक वह उस उत्पाद के मूल्य का अंग बन जाती है। उत्पाद को सस्ता करने की बजाय वह स्वयं के मूल्य के अनुपात में उत्पाद को महँगा कर देती है। यह स्पष्ट है कि मशीनें और मशीनरी के तंत्र, बड़े पैमाने के उद्योग द्वारा उपयोग किये जाने वाले अभिलाक्षणिक श्रम के साधन, दस्तकारी और मैन्युफैक्चरिंग में उपयोग किये जाने वाली श्रम के साधनों से अतुलनीय रूप से अधिक मूल्यवान हैं।

उद्धरण

चीखते-चिल्लाते महत्वोन्मादियों, गुण्डों, शैतानों और स्वेच्छाचारियों की यह फ़ौज जो फासीवाद के ऊपरी आवरण का निर्माण करती है, उसके पीछे वित्तीय पूँजीवाद के अगुवा बैठे हैं, जो बहुत ही शान्त भाव, सा़फ़ सोच और बुद्धिमानी के साथ इस फ़ौज का संचालन करते हैं और इनका ख़र्चा उठाते हैं।

मार्क्स की ‘पूँजी’ को जानिये : चित्रांकनों के साथ (पाँचवी किस्त)

सबसे पहले तो मज़दूर अपना काम उस पूँजीपति के नियंत्रण में करता है जो उसके श्रम का मालिक होता है। पूँजीपति इसका पूरा ध्यान रखता है कि काम ठीक ढंग से किया जाए, और उत्पादन के साधनों का उचित उपयोग हो सके। वह इसका ध्यान रखता है कि कोई भी कच्चा माल बेकार न जाए, और श्रम के किसी औजार में कोई ख़राबी न आए। इनमें से बाद वालों का इस्तेमाल उसी हद तक करना होता है जिस हद तक वे श्रम की प्रक्रिया में आवश्यक होते हैं।