Category Archives: बुर्जुआ जनवाद – दमन तंत्र, पुलिस, न्‍यायपालिका

छात्रों-युवाओं के दमन और विरोधी विचारों को कुचलने की हरकतों का कड़ा विरोध

हैदराबाद विश्वविद्यालय में छात्रों के दमन और मुम्बई में आर.एस.एस. विरोधी पर्चे बाँटने पर नौजवान भारत सभा कार्यालय पर आतंकवाद निरोधक दस्ते के छापे की देश भर के जनवादी व नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और विभिन्न जनसंगठनों की तरफ़ से की कड़ी निन्दा की गयी।

होंडा मोटर्स, राजस्‍थान के मज़दूरों के आन्‍दोलन का बर्बर दमन, पर संघर्ष जारी है!

पिछली 16 फरवरी की शाम को टप्पूखेड़ा प्लांट के बाहर धरने पर बैठे मज़दूरों पर राजस्थान पुलिस और कम्पनी के गुंडों ने बर्बर लाठीचार्ज किया। इसी दिन सुबह एक ठेका मज़दूर के साथ सुपरवाइज़र द्वारा मारपीट के बाद मज़दूर हड़ताल पर चले गये थे। मैनेजमेंट द्वारा कई मज़दूरों के खिलाफ़ कार्रवाई करने से मज़दूरों में आक्रोश था। 16 फरवरी की सुबह एक ठेका मज़दूर ने बीमार होने के कारण काम करने में असमर्थता जताई। इस पर सुपरवाइज़र ने उस पर हमला कर दिया और उसकी गर्दन दबाने लगा। इससे मज़दूर भड़क उठे और उन्होंने काम बंद कर फैक्‍ट्री के भीतर ही धरना दे दिया। उस वक्त करीब 2000 मज़दूर फैक्ट्री के भीतर थे और बड़ी संख्या में मज़दूर बाहर मौजूद थे। मैनेजमेंट ने यूनियन के प्रधान नरेश कुमार को बातचीत के लिए अंदर बुलाया और इसी बीच अचानक भारी संख्‍या में पुलिस और बाउंसरों ने मज़दूरों पर हमला बोल दिया। उन्होंने मज़दूरों को दौड़ा-दौड़ाकर बुरी तरह लाठियों-रॉड आदि से पीटा जिसमें दर्जनों मज़दूरों को गम्‍भीर चोटें आयीं। पूरी फैक्ट्री पर पुलिस और गुंडों ने कब्ज़ा कर लिया। सैकड़ों मज़दूरों को गिरफ्तार कर लिया गया।

”देशभक्ति” के गुबार में आम मेहनतकश जनता की ज़िन्दगी के ज़रूरी मुद्दों को ढँक देने की कोशिश

इन फ़ासिस्टों के खिलाफ़ लड़ाई कुछ विरोध प्रदर्शनों और जुलूसों से नहीं जीती जा सकती। इनके विरुद्ध लम्बी ज़मीनी लड़ाई की तैयारी करनी होगी। भारत में संसदीय वामपंथियों ने हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथ विरोधी संघर्ष को मात्र चुनावी हार-जीत का और कुछ रस्मी प्रतीकात्मक विरोध का मुद्दा बना दिया है।

पंजाब की जनता का काला क़ानून विरोधी संघर्ष जारी

इस क़ानून के मुताबिक़ किसी भी प्रकार के आन्दोलन, धरना, प्रदर्शन, रैली, हड़ताल, जुलूस, आदि के दौरान अगर सार्वजनिक व निजी सम्पत्ति को किसी भी प्रकार का नुक़सान होता है (इसमें घाटा में शामिल किया गया है, यानी हड़ताल-टूल डाऊन आदि करने पर भी जेल जाना होगा) तो संघर्ष में किसी भी प्रकार से शामिल, मार्गदर्शन करने वालों, सलाह देने वालों, किसी भी प्रकार की मदद करने वालों आदि को दोषी माना जायेगा। हवलदार तुरन्त गिरफ़्तारी कर सकता है। इस क़ानून के तहत किया गया ‘अपराध’ ग़ैरजमानती है। नुक़सान भरपाई के लिए ज़मीन जब्त की जायेगी। जुर्माने अलग से लगेंगे। एक से पाँच वर्ष तक की क़ैद की सज़ा होगी। वीडियो को पक्के सबूत के तौर पर माना जायेगा। कहने की ज़रूरत नहीं कि इस क़ानून का इस्तेमाल हक़, सच, इंसाफ़ के लिए संघर्ष करने वालों के ख़िलाफ़ ही होगा। हुक़्मरानों की घोर जनविरोधी नीतियों के चलते जनता में बढ़ते आक्रोश के माहौल में पहले से मौजूद दमनकारी काले क़ानूनों और राजकीय ढाँचे से अब इनका काम नहीं चलने वाला। जनआवाज़ को दबाने के लिए जुल्मी हुक़्मरानों को दमनतन्त्र के दाँत तीखे करने की ज़रूरत पड़ रही है। इसी का नतीजा है पंजाब का यह नया काला क़ानून। लेकिन जनता हुक़्मरानों के काले क़ानूनों से डरकर चुप नहीं बैठती। पंजाब की जनता का संघर्ष इसका गवाह है।

तय जगह पर, आज्ञा लेकर व फ़ीस देकर विरोध करो वरना जेल जाओ!

यह फ़ासीवादी फ़रमान पंजाब के ज़िला लुधियाना के प्रशासन ने जारी किया है। डी.सी. लुधियाना ने तय किया है कि धरने शहर के बाहरी हिस्से में सिर्फ़ चण्डीगढ़ रोड पर स्थित गलाडा मैदान (जिसे पुडा मैदान भी कहते हैं) पर ही लगेंगे और वहाँ धरना लगाने के लिए भी पहले से आज्ञा लेनी होगी। इसकी फ़ीस 7500 रुपये होगी। इस फ़रमान की उल्लंघना करने पर पुलिस केस, क़ैद आदि सज़ाएँ देने का ऐलान किया गया है। लुधियाना प्रशासन का धरनों के लिए एक जगह तय करने का फ़रमान घोर जनविरोधी और ग़ैरजनवादी ही नहीं बल्कि असंवैधानिक भी है। यह संविधान की धारा 19 की स्पष्ट उल्लंघना है जिसके तहत लोगों को अपने विचारों के प्रचार-प्रसार, संगठित होने व संघर्ष करने की आज़ादी है।
इस सम्बन्ध में डी.सी. ने लुधियाना के पुलिस कमिश्नर को इस आदेश को लागू करने के लिए पत्र भेज दिया है। उधर इस फ़रमान को रद्द करवाने के लिए जनवादी-इंसाफ़पसन्द जनसंगठनों ने भी कमर कस ली है। लुधियाना प्रशासन को माँगपत्र सौंपकर इस फ़ैसले को पूरी तरह रद्द करने की माँग की गयी है।

हरियाणा पुलिस का दलित विरोधी चेहरा एक बार फिर बेनकाब

दलित उत्पीड़न के मामलों का समाज के सभी जातियों के इंसाफ़पसन्द लोगों को एकजुट होकर संगठित विरोध करना चाहिए। अन्य जातियों की ग़रीब आबादी को यह बात समझनी होगी की ग़रीब मेहनतकश दलितों, ग़रीब किसानों, खेतिहर मज़दूरों और समाज के तमाम ग़रीब तबके की एकजुटता और उसके अन्याय के विरुद्ध संघर्ष के बूते ही हम दलित विरोधी उत्पीड़न का मुकाबला कर सकते हैं। उन्होंने कहा – सवर्ण और मँझोली जातियों की ग़रीब-मेहनतकश आबादी को इस बात को समझना होगा कि यदि हम समाज के एक तबके को दबाकर रखेंगे, उसका उत्पीड़न करेंगे तो हम खुद भी व्यवस्था द्वारा दबाये जाने और उत्पीड़न के विरुद्ध अकेले लड़ नहीं पायेंगे। और दलित जातियों की ग़रीब-मेहनतकश आबादी को भी यह बात समझनी होगी कि तमाम तरह की पहचान की राजनीति, दलितवादी राजनीति से हम दलित उत्पीड़न का मुकाबला नहीं कर सकते। दलितों का वोट की राजनीति में एक मोहरे के सामान इस्तेमाल करने वाले लोग केवल रस्मी तौर पर ही मुद्दों को उछालते हैं और उन मुद्दों का वोट बैंक की राजनीति के लिए इस्तेमाल करते हैं। इनके लिए कार्टून महत्वपूर्ण मुद्दा बन जाता है किन्तु दलित उत्पीड़न के भयंकर मामलों के समय ये बस बयान देकर अपने-अपने बिलों में दुबक जाते हैं।

भारतीय ‘‘न्याय व्यवस्था’’ का एक और अन्याय : मज़दूरों का क़ातिल सलमान खान बरी

पैसे और सियासी असर-रसूख के दम पर सलमान खान का बरी होना कोई हैरानी वाली बात नहीं है। जिस देश में भोपाल गैस काण्ड के ज़रिये दसियों हज़ार लोगों को मौत के घाट उतार देने के दोषी एण्डरसन को सरकार-पुलिस द्वारा खु़द जहाज़ पर चढ़ाकर भाग जाने का मौक़ा दिया जाये और वास्तविक दोषियों को 30 वर्ष गुज़र जाने पर भी सज़ा न सुनायी गयी हो, जहाँ गुज़रात, मुज़फ़्फ़रनगर, उड़ीसा, दिल्ली, हाशिमपुर (उत्तरप्रदेश), लक्षमणपुर बाथे (बिहार) आदि जगहों पर हुए मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों व दलितों के जनसंहार के दोषी न सिर्फ़ आज़ाद घूम रहे हों बल्कि संसद-विधानसभाओं में मौजूद होने के साथ ही प्रधानमन्त्री तक की कुर्सी पर विराजमान हों, जहाँ निठारी काण्ड का मुख्य दोषी पूँजीपति पंढेर बच्चों का मांस खाकर भी ‘‘बाइज़्ज़त’ समाज में आज़ाद घूम रहा हो वहाँ क़त्ल के मामले में सलमान खान का दोषी होकर भी बरी हो जाना हैरानी की बात कैसे हो सकती है? जहाँ जज, वकील, मन्त्री, अफ़सर, पुलिस सब बिकाऊ हों वहाँ जिसके पास दौलत है, वो न्याय ख़रीद सकता है। पूँजीवादी व्यवस्था में जिस तरह अन्य चीज़ें बिकाऊ माल हैं, उसी तरह न्याय भी बिकाऊ माल है। ग़रीब लोग न्याय ख़रीद नहीं सकते इसलिए करोड़ों बेगुनाह जेलों में सड़ रहे हैं। भारत में न्याय व्यवस्था है या अन्याय व्यवस्था इसे समझने के लिए किसी गहरे अध्ययन की ज़रूरत नहीं है। कड़वा सच सबके सामने है।

दमनकारी पंजाब सरकार ने जनता पर थोपा काला कानून

22 जुलाई 2014 को पंजाब विधान सभा में पारित किया गया फासीवादी काला कानून ‘पंजाब (सार्वजनिक व निजी सम्पत्ति नुक़सान रोकथाम) कानून-2104’ आखिर केन्द्र सरकार द्वारा पारित कर दिया गया है। कुछ दिन पहले राष्ट्रपति ने इस पर हस्ताक्षर कर दिए है। बढ़ते आर्थिक व राजनीतिक संकट व जनाक्रोश के इस वक्त में पंजाब के हुक्मरानों को हकों के लिए जूझ रहे लोगों पर दमन का कहर ढाने के लिए एक और जबरदस्त हथियार मिल गया है।

मारुति के ठेका मजदूरों द्वारा वेतन बढ़ोत्तरी की माँग पर प्रबन्धन से मिली लाठियाँ!

स्थायी मज़दूरों को कभी नहीं भूलना चाहिए कि कंपनियाँ हमेशा स्थायी मज़दूरों की संख्या कम करने की, अस्थायीकरण की ताक़ में रहती हैं, और अपने फायदे के हिसाब से उनका इस्तेमाल करती है। उन्हें जुलाई 2012 में मारुति की घटना को नहीं भूलना चाहिए जिसके बाद कंपनी ने थोक भाव से स्थायी मज़दूरों को काम से निकाला था। उनका वर्ग हित अपने वर्ग भाइयों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर लड़ने में है। पूरे सेक्टर में लगातार बढ़ते ठेकाकरण, छँटनी, नये स्थायी मज़दूरों की बहाली न होना, ठेका मज़दूरों से ज़्यादा उनके लिए खतरे की घंटी है। यह दिखाता है कि स्थायी मज़दूरों का दायरा सिकुड़ता जा रहा है। पूँजीपतियों के इन “अच्छे दिनों” में जहाँ एक-एक कर मज़दूरों के अधिकारों पर हमले हो रहे हैं वहाँ यह कोई बड़ी बात नही होगी कि एक ही झटके में स्थायी मज़दूरों का पत्ता काटकर कारखानों-उद्योगों में शत प्रतिशत ठेकाकरण कर दिया जाये। इसीलिए मारुति ही नहीं बल्कि पूरे सेक्टर के स्थायी मज़दूरों के लिए ज़रूरी है कि वे अपने संकीर्ण हितों से ऊपर उठकर ठेकेदारी प्रथा के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलन्द करें और एक वर्ग के तौर पर एकजुट होकर संघर्ष करें।

सँभलो, है लगने वाला ताला ज़बान पर!

जो नया सर्कुलर महाराष्ट्र सरकार ने जारी किया है उसके तहत सरकारी अफसरों, नेता-मंत्रियों की आलोचना करने पर आपको भारतीय दण्ड संहिता की धारा 124 ए के अनुसार राजद्रोही क़रार देकर जेलों में ठूँसा जा सकता है। मिसाल के तौर पर अगर आप अब मोदी की हिटलर से तुलना करें, सरकारी अफसरों को भ्रष्ट कहें, नेताओं के कार्टून बनाएं, अखबार-पत्रिकाओं में सरकार को कोसें तो आपको ख़तरनाक अपराधी करार दिया जा सकता है! आपको अपनी जुबान खोलने की क़ीमत तीन साल की जेल से लेकर आजीवन कारावास और साथ में जुर्माना भरने से चुकानी पड़ सकती है। सरकार की किसी लुटेरी नीति का विरोध करने के कारण आपकी नियति बदल सकती है! अभिव्यक्ति की आज़ादी पर ये नया हमला महाराष्ट्र सरकार की जनता को एक और “सौगात” है।