Category Archives: बुर्जुआ जनवाद – दमन तंत्र, पुलिस, न्‍यायपालिका

विकलांगों के आये “अच्छे दिन”, “रामराज्य” में विकलांगों की पुलिस कर रही पिटाई!

राजस्थान के महिला एवं बाल विकास मंत्री ने तो आन्दोलनकारियों से मिलने तक से इंकार कर दिया। उनके इस असंवेदनशील व्यवहार का विरोध करने पर पुलिस ने एक विकलांग व्यक्ति को थप्‍पड़ जड़ दिया। इसके पहले आन्दोलन की शुरुआत में पुलिस ने आन्दोलनकारियों पर बर्बर लाठीचार्ज किया गया व एक महिला आन्देालनकारी की तिपहिया साइकिल तोड़ दी।

ग्रेटर नोएडा की यामाहा फैक्ट्री में वेतन बढ़ोत्तरी की माँग पर हड़ताल कर रहे मज़दूरों पर पुलिस और अर्द्धसैनिक बल ने बरसाई लाठियाँ!

कम्पनी के नियमित मज़दूरों और कान्‍ट्रैक्ट मज़दूरों के न तो काम में कोई अन्तर है और न ही काम के घंटों में कोई फर्क है, फिर भी एक ही फैक्ट्री में काम करने वाले मज़दूरों के वेतन में ज़मीन-आसमान का फर्क कोई इत्तेफ़ाक नहीं है। पूँजीवाद में मज़दूरों की वर्ग एकता को तोड़ने के लिए पूँजीपति बहुत चालाकी से मज़दूरों के बीच भी एक सफ़ेद कालर मज़दूर वर्ग तैयार कर देता है जो अपने ही वर्ग हित के ख़िलाफ़ काम करते हैं।

छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के ख़ि‍लाफ़ सरकार का आतंकी युद्ध एक नये आक्रामक चरण में

तमाम मुखर आवाज़ों के बर्बर दमन के अलावा राज्यसत्ता सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिबन्ध‍ित किये गये सलवा जुडूम को ही दूसरे नामों से फिर से शुरू करने की कोशिश में है। सलवा जुडूम की ही तर्ज़ पर वहाँ ‘बस्तर विकास संघर्ष समिति’, ‘महिला एकता मंच’ और ‘सामाजिक एकता मंच’ जैसे कई नये समूह उभर कर आ रहे हैं। देश की सबसे भ्रष्ट राज्‍य सरकारों में से एक, छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार ”माओवाद” से लड़ने के नाम पर अपने तमाम कुकर्मों पर पर्दा डालने में लगी है।

कश्मीर : आओ देखो गलियों में बहता लहू

कश्मीर में सैन्य दलों द्वारा स्थानीय लोगों पर ढाए जाने वाले ज़ुल्मो–सितम की न तो यह पहली घटना है न ही आखिरी। उनके वहशियाना हरकतों की फेहरिस्त काफ़ी लम्बी है। फरवरी 1991 में कुपवाड़ा जि़ले के ही कुनन-पोशपोरा गाँव में पहले गाँव के पुरुषों को हिरासत में लिया गया, यातनाएँ दी गयीं और बाद में राजपूताना राइफलस के सैन्यकर्मियों द्वारा गाँव की अनेक महिलाओं का उनके छोटे-छोटे बच्चों के सामने बलात्कार किया गया। (अनेक स्रोत इनकी संख्या 23 बताते हैं लेकिन प्रतिष्ठित अन्तरराष्ट्रीय संस्था ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ सहित कई मानवाधिकार संगठनों के अनुसार यह संख्या 100 तक हो सकती है।) वर्ष 2009 में सशस्त्र बल द्वारा शोपियां जि़ले में दो महिलाओं का बलात्कार करके उन्हें बेरहमी से मौत के घाट उतारा गया। बढ़ते जनदबाव के बाद कहीं जाकर राज्य पुलिस ने एफ़.आई.आर. दर्ज की।

‘आधार’ – जनता के दमन का औज़ार

मौजूदा फासीवादी उभार के समय में जब राज्यसत्ता की हिमायत प्राप्त हिन्दुत्ववादी अँधराष्ट्रवाद व साम्प्रदायिकता का बोलबाला है, जब जनता के विचारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी, अधिकारों के लिए संगठित होने व संघर्ष करने के संविधानिक-जनवादी अधिकारों पर राज्यसत्ता द्वारा जोरदार हमले हो रहे हैं ऐसे फासीवादी उभार के समय में देश के पूँजीवादी हुक़्मरानों के हाथ में आधार जैसा दमन का औजार आना एक बेहद चिंताजनक बात है। जनता को हुक़्मरानों के इस हमले से परिचित कराना, इसके खिलाफ़ जगाना, संगठित करना बहुत ज़रूरी है।

छात्रों-युवाओं के दमन और विरोधी विचारों को कुचलने की हरकतों का कड़ा विरोध

हैदराबाद विश्वविद्यालय में छात्रों के दमन और मुम्बई में आर.एस.एस. विरोधी पर्चे बाँटने पर नौजवान भारत सभा कार्यालय पर आतंकवाद निरोधक दस्ते के छापे की देश भर के जनवादी व नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और विभिन्न जनसंगठनों की तरफ़ से की कड़ी निन्दा की गयी।

होंडा मोटर्स, राजस्‍थान के मज़दूरों के आन्‍दोलन का बर्बर दमन, पर संघर्ष जारी है!

पिछली 16 फरवरी की शाम को टप्पूखेड़ा प्लांट के बाहर धरने पर बैठे मज़दूरों पर राजस्थान पुलिस और कम्पनी के गुंडों ने बर्बर लाठीचार्ज किया। इसी दिन सुबह एक ठेका मज़दूर के साथ सुपरवाइज़र द्वारा मारपीट के बाद मज़दूर हड़ताल पर चले गये थे। मैनेजमेंट द्वारा कई मज़दूरों के खिलाफ़ कार्रवाई करने से मज़दूरों में आक्रोश था। 16 फरवरी की सुबह एक ठेका मज़दूर ने बीमार होने के कारण काम करने में असमर्थता जताई। इस पर सुपरवाइज़र ने उस पर हमला कर दिया और उसकी गर्दन दबाने लगा। इससे मज़दूर भड़क उठे और उन्होंने काम बंद कर फैक्‍ट्री के भीतर ही धरना दे दिया। उस वक्त करीब 2000 मज़दूर फैक्ट्री के भीतर थे और बड़ी संख्या में मज़दूर बाहर मौजूद थे। मैनेजमेंट ने यूनियन के प्रधान नरेश कुमार को बातचीत के लिए अंदर बुलाया और इसी बीच अचानक भारी संख्‍या में पुलिस और बाउंसरों ने मज़दूरों पर हमला बोल दिया। उन्होंने मज़दूरों को दौड़ा-दौड़ाकर बुरी तरह लाठियों-रॉड आदि से पीटा जिसमें दर्जनों मज़दूरों को गम्‍भीर चोटें आयीं। पूरी फैक्ट्री पर पुलिस और गुंडों ने कब्ज़ा कर लिया। सैकड़ों मज़दूरों को गिरफ्तार कर लिया गया।

”देशभक्ति” के गुबार में आम मेहनतकश जनता की ज़िन्दगी के ज़रूरी मुद्दों को ढँक देने की कोशिश

इन फ़ासिस्टों के खिलाफ़ लड़ाई कुछ विरोध प्रदर्शनों और जुलूसों से नहीं जीती जा सकती। इनके विरुद्ध लम्बी ज़मीनी लड़ाई की तैयारी करनी होगी। भारत में संसदीय वामपंथियों ने हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथ विरोधी संघर्ष को मात्र चुनावी हार-जीत का और कुछ रस्मी प्रतीकात्मक विरोध का मुद्दा बना दिया है।

पंजाब की जनता का काला क़ानून विरोधी संघर्ष जारी

इस क़ानून के मुताबिक़ किसी भी प्रकार के आन्दोलन, धरना, प्रदर्शन, रैली, हड़ताल, जुलूस, आदि के दौरान अगर सार्वजनिक व निजी सम्पत्ति को किसी भी प्रकार का नुक़सान होता है (इसमें घाटा में शामिल किया गया है, यानी हड़ताल-टूल डाऊन आदि करने पर भी जेल जाना होगा) तो संघर्ष में किसी भी प्रकार से शामिल, मार्गदर्शन करने वालों, सलाह देने वालों, किसी भी प्रकार की मदद करने वालों आदि को दोषी माना जायेगा। हवलदार तुरन्त गिरफ़्तारी कर सकता है। इस क़ानून के तहत किया गया ‘अपराध’ ग़ैरजमानती है। नुक़सान भरपाई के लिए ज़मीन जब्त की जायेगी। जुर्माने अलग से लगेंगे। एक से पाँच वर्ष तक की क़ैद की सज़ा होगी। वीडियो को पक्के सबूत के तौर पर माना जायेगा। कहने की ज़रूरत नहीं कि इस क़ानून का इस्तेमाल हक़, सच, इंसाफ़ के लिए संघर्ष करने वालों के ख़िलाफ़ ही होगा। हुक़्मरानों की घोर जनविरोधी नीतियों के चलते जनता में बढ़ते आक्रोश के माहौल में पहले से मौजूद दमनकारी काले क़ानूनों और राजकीय ढाँचे से अब इनका काम नहीं चलने वाला। जनआवाज़ को दबाने के लिए जुल्मी हुक़्मरानों को दमनतन्त्र के दाँत तीखे करने की ज़रूरत पड़ रही है। इसी का नतीजा है पंजाब का यह नया काला क़ानून। लेकिन जनता हुक़्मरानों के काले क़ानूनों से डरकर चुप नहीं बैठती। पंजाब की जनता का संघर्ष इसका गवाह है।

तय जगह पर, आज्ञा लेकर व फ़ीस देकर विरोध करो वरना जेल जाओ!

यह फ़ासीवादी फ़रमान पंजाब के ज़िला लुधियाना के प्रशासन ने जारी किया है। डी.सी. लुधियाना ने तय किया है कि धरने शहर के बाहरी हिस्से में सिर्फ़ चण्डीगढ़ रोड पर स्थित गलाडा मैदान (जिसे पुडा मैदान भी कहते हैं) पर ही लगेंगे और वहाँ धरना लगाने के लिए भी पहले से आज्ञा लेनी होगी। इसकी फ़ीस 7500 रुपये होगी। इस फ़रमान की उल्लंघना करने पर पुलिस केस, क़ैद आदि सज़ाएँ देने का ऐलान किया गया है। लुधियाना प्रशासन का धरनों के लिए एक जगह तय करने का फ़रमान घोर जनविरोधी और ग़ैरजनवादी ही नहीं बल्कि असंवैधानिक भी है। यह संविधान की धारा 19 की स्पष्ट उल्लंघना है जिसके तहत लोगों को अपने विचारों के प्रचार-प्रसार, संगठित होने व संघर्ष करने की आज़ादी है।
इस सम्बन्ध में डी.सी. ने लुधियाना के पुलिस कमिश्नर को इस आदेश को लागू करने के लिए पत्र भेज दिया है। उधर इस फ़रमान को रद्द करवाने के लिए जनवादी-इंसाफ़पसन्द जनसंगठनों ने भी कमर कस ली है। लुधियाना प्रशासन को माँगपत्र सौंपकर इस फ़ैसले को पूरी तरह रद्द करने की माँग की गयी है।