वक्ताओं ने कहा कि केन्द्र व राज्य सरकारें काले क़ानूनों के ज़रिये जनता के जनवादी अधिकारों, नागरिक अाज़ादियों को कुचलने की राह पर तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं। देश के पूँजीवादी-साम्राज्यवादी हुक्मरानों द्वारा जनता के खि़लाफ़ तीखा आर्थिक हमला छेड़ा हुआ है। अमीरी-ग़रीबी की खाई बहुत बढ़ चुकी है। महँगाई, बेरोज़गारी, बदहाली, गुण्डागर्दी, स्त्रियों, दलित, अल्पसंख्यकों पर जुल्म बढ़ते जा रहे हैं। इसके चलते लोगों में तीखा रोष है। जनसंघर्षों से घबराये हुक्मरान काले क़ानूनों, दमन, अत्याचार के ज़रिये जनता की अधिकारपूर्ण आवाज़ दबाने का भ्रम पाल रहे हैं। लेकिन जनता इन काले क़ानूनों, तानाशाह फ़रमानों से घबराकर पीछे नहीं हटने वाली। ये तानाशाह फ़रमान, काले क़ानून हुक्मरानों की मज़बूती का नहीं कमज़ोरी का सूचक हैं। लोग न सिर्फ़ अपने आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखेंगे बल्कि इन दमनकारी फ़रमानों/काले क़ानूनों को भी वापिस करवाकर रहेंगे।