पैसे और सियासी असर-रसूख के दम पर सलमान खान का बरी होना कोई हैरानी वाली बात नहीं है। जिस देश में भोपाल गैस काण्ड के ज़रिये दसियों हज़ार लोगों को मौत के घाट उतार देने के दोषी एण्डरसन को सरकार-पुलिस द्वारा खु़द जहाज़ पर चढ़ाकर भाग जाने का मौक़ा दिया जाये और वास्तविक दोषियों को 30 वर्ष गुज़र जाने पर भी सज़ा न सुनायी गयी हो, जहाँ गुज़रात, मुज़फ़्फ़रनगर, उड़ीसा, दिल्ली, हाशिमपुर (उत्तरप्रदेश), लक्षमणपुर बाथे (बिहार) आदि जगहों पर हुए मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों व दलितों के जनसंहार के दोषी न सिर्फ़ आज़ाद घूम रहे हों बल्कि संसद-विधानसभाओं में मौजूद होने के साथ ही प्रधानमन्त्री तक की कुर्सी पर विराजमान हों, जहाँ निठारी काण्ड का मुख्य दोषी पूँजीपति पंढेर बच्चों का मांस खाकर भी ‘‘बाइज़्ज़त’ समाज में आज़ाद घूम रहा हो वहाँ क़त्ल के मामले में सलमान खान का दोषी होकर भी बरी हो जाना हैरानी की बात कैसे हो सकती है? जहाँ जज, वकील, मन्त्री, अफ़सर, पुलिस सब बिकाऊ हों वहाँ जिसके पास दौलत है, वो न्याय ख़रीद सकता है। पूँजीवादी व्यवस्था में जिस तरह अन्य चीज़ें बिकाऊ माल हैं, उसी तरह न्याय भी बिकाऊ माल है। ग़रीब लोग न्याय ख़रीद नहीं सकते इसलिए करोड़ों बेगुनाह जेलों में सड़ रहे हैं। भारत में न्याय व्यवस्था है या अन्याय व्यवस्था इसे समझने के लिए किसी गहरे अध्ययन की ज़रूरत नहीं है। कड़वा सच सबके सामने है।