Category Archives: फ़ासीवाद / साम्‍प्रदायिकता

भाजपा और आरएसएस के दलित प्रेम और स्त्री सम्मान का सच

आज भारत का कोई भी नागरिक, व्यक्ति जिसके पास थोड़ा भी विवेक होगा वह जात-पाँत और स्त्रियों के प्रति दोयम व्यवहार को किसी भी रूप में समाज के लिए ख़तरनाक कहेगा। आज़ादी की जिस लड़ाई में भारत के पुरुषों के साथ महिलाएँ कन्धे से कन्धा मिलाकर लड़ी, हर एक जाति धर्म से लोग उठ खड़े हुए। बराबरी और समानता के विचारों के नए अंकुर इसी आज़ादी के दौरान फूटे। देश के क्रान्तिकारियों ने एक ऐसे समाज की कल्पना की जहाँ सभी को बराबरी और अधिकार प्राप्त हों, वहीं आरएसएस और मुस्लिम लीग ने लोगों को सदियों पुरानी रूढ़ियों और बेड़ियों में जकड़ने के लिए अपनी आवाज़ उठायी। और अपने इस गंदे मंसूबों के लिए बहाना बनाया प्राचीनता का, संस्कृति का और लोगों के आँख पर पट्टी चढ़ाने की कोशिश की धर्म की।

लुभावने जुमलों से कुछ न मिलेगा, हक़ पाने हैं तो लड़ना होगा!

अपने देश में एक ओर छात्रों-युवाओं, मज़दूरों, दलितों, अल्पसंख्यकों का जिस तरह दमन किया जा रहा है और दूसरी ओर गोरक्षा से लेकर लव जिहाद तक जिस तरह से उन्माद भड़काया जा रहा है वह भी इसी तस्वीर का एक हिस्सा है। पूँजीवादी व्यदवस्था का संकट दिनोंदिन गहरा रहा है और जनता की उम्मीदों को पूरा करने में दुनियाभर की पूँजीवादी सरकारें नाकाम हो रही हैं। पूँजीपतियों के घटते मुनाफ़े और बढ़ते घाटे को पूरा करने के लिए मेहनतकशों की रोटी छीनी जा रही है, उनके बच्चों से स्वास्थ्य और शिक्षा के अधिकार छीने जा रहे हैं, लड़कर हासिल की गयी सु‍विधाओं में एक-एक कर कटौती की जा रही है।

फासीवादी नारों की हक़ीक़त – हिटलर से मोदी तक

अगर हम आज अपने देश में उछाले जा रहे फ़ासीवादी नारों पर एक नज़र दौड़ाएँ तो हिटलर की इन नाजायज़ औलादों के मंसूबे भी हम अच्छी तरह समझ पाएंगे। ‘सबका साथ सबका विकास’ और ‘मेरा देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है’ सड़क पर, चौराहे पर बड़े-बड़े होर्डिंग पर यह नारे आँखों के सामने आ जाते है, रेडियो पर, अखबारों में, टीवी पर, बमबारी की तरह यह नारे हमारी चेतना पर हमला करते हैं। लेकिन जैसा ब्रेष्ट ने पहले ही चेता दिया है और जैसा हम अपनी ज़िन्दगी के हालात से भी समझ सकते है कि आखिर यह ‘सब’ कौन है जिनका विकास हो रहा है और यह कौनसा ‘देश’ है जो आगे बढ़ रहा है।

बुरे दिनों की एक और आहट – बजरंग दल के शस्त्र प्रशिक्षण शिविर

आने वाला समय और भी भयानक होने वाला है। हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथी धार्मिक अल्पसंख्यकों से भी बड़े दुश्मन कम्युनिस्टों, जनवादी कार्यकर्ताओं, तर्कशील व धर्मनिरपेक्ष लोगों आदि को मानते हैं। इसमें ज़रा भी शक नहीं है कि हिन्दुत्व कट्टरपंथी फासीवादी भारत में इन सभी पर हमले की तैयारी कर रहे हैं क्‍योंकि यही लोग इनके नापाक मंसूबों की राह में सबसे बड़ी बाधा हैं। लेकिन स्वाल यह है कि हम इसके मुकाबले की क्या तैयारी कर रहे हैं?

नाकाम मोदी सरकार और संघ परिवार पूरी बेशर्मी से नफ़रत की खेती में जुट चुके हैं!

अगर हम आज ही हिटलर के इन अनुयायियों की असलियत नहीं पहचानते और इनके ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाते तो कल बहुत देर हो जायेगी। हर ज़ुबान पर ताला लग जायेगा। देश में महँगाई, बेरोज़गारी और ग़रीबी का जो आलम है, ज़ाहिर है हममें से हर उस इंसान को कल अपने हक़ की आवाज़ उठानी पड़ेगी जो मुँह में चाँदी का चम्मच लेकर पैदा नहीं हुआ है। ऐसे में हर किसी को ये सरकार और उसके संरक्षण में काम करने वाली गुण्डावाहिनियाँ ”देशद्रोही” घोषित कर देंगी! हमें इनकी असलियत को जनता के सामने नंगा करना होगा। शहरों की कॉलोनियों, बस्तियों से लेकर कैम्पसों और शैक्षणिक संस्थानों में हमें इन्हें बेनक़ाब करना होगा। गाँव-गाँव, कस्बे-कस्बे में इनकी पोल खोलनी होगी।

देश को ख़ूनी दलदल या गुलामों के कैदख़ाने में तब्दील होने से बचाना है तो एकजुट होकर उठ खड़े हो!

फासीवाद कुछ व्यक्तियों या किसी पार्टी की सनक नहीं है। यह पूँजीवाद के लाइलाज रोग से पैदा होने वाला ऐसा कीड़ा है जिसे पूँजीवाद ख़ुद अपने संकट को टालने के लिए बढ़ावा देता है। यह पूँजीवादी व्यवस्था अन्दर से सड़ चुकी है, और इसी सड़ाँध से पूरी दुनिया के पूँजीवादी समाजों में हिटलर-मुसोलिनी के वे वारिस पैदा हो रहे हैं, जिन्हें फासिस्ट कहा जाता है।

देशद्रोही वे हैं जो इस देश के लुटेरों के साथ सौदे करते हैं और इसकी सन्तानों को लूटते हैं, उन्हें आपस में लड़ाते हैं, दबाते और कुचलते हैं!!

आने वाला समय मेहनतकश जनता और क्रान्तिकारी शक्तियों के लिए कठिन और चुनौतीपूर्ण है। हमें राज्यसत्ता के दमन का ही नहीं, सड़कों पर फासीवादी गुण्डा गिरोहों के उत्पात का भी सामना करने के लिए तैयार रहना पड़ेगा।

झूठी देशभक्ति और राष्ट्रवाद की चाशनी में डूबा संघी आतंक और फ़ासीवाद!

भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने पिछले साल अपनी आधिकारिक वेबसाइट शुरू करने के पश्चात अपना पहला लेख सावरकर को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा। भाजपा के नकली देशभक्तों की फेहरिस्त तो बेहद लम्बी है मगर उनमे से एक जो सबसे कुख्यात है वो है नाथूराम गोडसे। नाथूराम गोडसे जिसने महात्मा गांधी की हत्या की, आर.एस.एस. और हिन्दू महासभा के लिए वह ‘भारत का असली शूरवीर है’ और 15 नवंबर जिस दिन नाथूराम गोडसे को फांसी दी गयी थी उस दिन को संघी बलिदान दिवस के रूप में मनाते हैं। पिछले साल 15 नवंबर को बाकायदा नाथूराम गोडसे को समर्पित एक वेबसाइट का उद्घाटन किया गया जिसके पहले पन्ने पर भगवा रंग से लिखा है ‘भारत का भुला दिया गया असली नायक’। भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों की मुखबिरी करने में भी संघ ने कोई कमी नहीं छोड़ी। जिस गणतंत्र दिवस पर प्रधानमंत्री लाल किले से भाषण देते हैं उसी गणतंत्र दिवस को संघ से जुड़े लोग काले दिवस के रूप में मनाते हैं। संघ और उसके कुकृत्यों की फे़हरिस्त इतनी लम्बी है कि उसके बारे में कई ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं। मगर इन सभी प्रतिनिधिक उदाहरणों से यह समझा जा सकता है कि देश भक्ति से इनका दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं है।

भयानक साज़िश

हम यहाँ एक लेख का अंश प्रस्तुत कर रहे हैं जो बताता है कि जब सारी जनता अंग्रेज़ों को देश से बाहर करने के संघर्ष में सड़कों पर थी, 1946-47 के उन दिनों में भी संघ अपने ही देश के लोगों के ख़िलाफ़ कैसी घिनौनी साज़िशों में लगा हुआ था। इसे पढ़ने के बाद आपको इस बात पर कोई हैरानी नहीं होगी कि गुजरात में संघियों ने किस तरह से मुसलमानों के घरों और दुकानों को चुन-चुनकर निशाना बनाया था। इसके पीछे उनकी महीनों की तैयारी थी। हिटलरी जर्मनी के नाज़ियों से सीखे इन तरीकों को इस्‍तेमाल करने में इन्हें महारत हासिल हो चुकी है। इस अंश को प्रसिद्ध पत्रकार और नौसेना विद्रोह के भागीदार सुरेन्द्र कुमार ने ‘दायित्वबोध’ पत्रिका के लिए प्रस्तुत किया था।

सच्चे देशभक्तों को याद करो! नकली “देशभक्तों” की असलियत को पहचानो!

इस नफ़रत की सोच से अलग हटकर, ठहरकर एक बार सोचिये कि 2 लाख करोड़ रुपये का व्यापम घोटाला करने वाले, घोटाले के 50 गवाहों की हत्याएँ करवाने वाले, विधानसभा में बैठकर पोर्न वीडियो देखने वाले, विजय माल्या और ललित मोदी जैसों को देश से भगाने में मदद करने वाले देशभक्ति और राष्ट्रवाद का ढोंग करके आपकी जेब पर डाका और घर में सेंध तो नहीं लगा रहे? कहीं ये ‘बाँटो और राज करो’ की अंग्रेज़ों की नीति हमारे ऊपर तो नहीं लागू कर रहे ताकि हम अपने असली दुश्मनों को पहचान कर, जाति-धर्म के झगड़े छोड़कर एकजुट न हो जाएँ? सोचिये साथियो, वरना कल बहुत देर हो जायेगी! जो आग ये लगा रहे हैं, उसमें हमारे घर, हमारे लोग भी झुलसेंगे। इसलिए सोचिये!