Category Archives: फ़ासीवाद / साम्‍प्रदायिकता

धार्मिक कट्टरपंथी ताकतों के घोर जनविरोधी चेहरे को पहचानो! : जनता में आपसी सदभावना और भाईचारा मज़बूत करो!

हमें सभी धर्मों के लोगों के बीच आपसी सदभावना और भाईचारा मज़बूत करने के लिए पूरा ज़ोर लगाना होगा। साम्प्रदायिकतावादी ताकतों की, फासीवादी हुक्मरानों की हर साजिश को नाकाम करने के लिए हमें सभी धर्मों के लोगों की, सभी इंसाफपसंद, जनवादी, क्रान्तिकारी लोगों की फौलादी एकता कायम करनी होगी। आओ, कंधे से कंधा मिला कर इसके लिए ज़ोरदार कोशिशें करें।

पश्चलेख – फासीवाद क्या है और इससे कैसे लड़ें?

जिन राजनीतिक ताक़तों और सामाजिक वर्गों को हम फासीवाद-विरोधी मज़दूर वर्ग के संयुक्त मोर्चे में शामिल करने की बात कर रहे हैं, वह आज समाज की भारी बहुसंख्या है। लेकिन इस बहुसंख्या को गोलबन्द और संगठित करने के लिए महज़ फासीवाद के इतिहास या उसकी सैद्धान्तिक परिभाषा को समझ लेना पर्याप्त नहीं होगा। हमें यह भी समझना होगा कि बीसवीं सदी में फासीवादी उभार की परिघटना आज इक्कीसवीं सदी में हूबहू दुहरायी नहीं जाने वाली है। फासीवादी उभार की विचारधारा और राजनीति में विश्व पूँजीवादी व्यवस्था और उसके संकट के चरित्र में आने वाले बदलावों के साथ जो बदलाव आये हैं, उन्हें समझना आज अनिवार्य है। इसके बिना, फासीवाद के प्रतिरोध के लिए मज़दूर वर्ग का क्रान्तिकारी आन्दोलन कोई रणनीति नहीं बना सकता है।

सँभलो, है लगने वाला ताला ज़बान पर!

जो नया सर्कुलर महाराष्ट्र सरकार ने जारी किया है उसके तहत सरकारी अफसरों, नेता-मंत्रियों की आलोचना करने पर आपको भारतीय दण्ड संहिता की धारा 124 ए के अनुसार राजद्रोही क़रार देकर जेलों में ठूँसा जा सकता है। मिसाल के तौर पर अगर आप अब मोदी की हिटलर से तुलना करें, सरकारी अफसरों को भ्रष्ट कहें, नेताओं के कार्टून बनाएं, अखबार-पत्रिकाओं में सरकार को कोसें तो आपको ख़तरनाक अपराधी करार दिया जा सकता है! आपको अपनी जुबान खोलने की क़ीमत तीन साल की जेल से लेकर आजीवन कारावास और साथ में जुर्माना भरने से चुकानी पड़ सकती है। सरकार की किसी लुटेरी नीति का विरोध करने के कारण आपकी नियति बदल सकती है! अभिव्यक्ति की आज़ादी पर ये नया हमला महाराष्ट्र सरकार की जनता को एक और “सौगात” है।

फॉक्सकॉन का महाराष्ट्र में पूँजी निवेश: स्वदेशी का राग जपने वाले पाखण्डी राष्ट्रवादियों का असली चेहरा

हाल ही के कुछ सालों में यहाँ मजदूरों के खुदकुशी करने की घटनाएँ भी बार-बार होती रही हैं। खुदकुशी करने वालों में ज्यादातर मजदूर 20 से 25 साल के नौजवान है जिसके चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फॉक्सकॉन की भारी आलोचना होती रही है। इस आलोचना को सकारात्मक तरीके से न लेकर उल्टा फॉक्सकॉन ने अपने मजदूरों को किसी भी बाहरी तत्व से कारखाने या कम्पनी सम्बंधित किसी भी समस्या को साझा करने पर प्रतिबन्ध लगा दिये हैं और इसके लिए मजदूरों को धमकाया भी जाता है। जब फेयर लेबर एसोसियेशन नामक संस्था ने फॉक्सकॉन के चीन स्थित 3 कारख़ानों की छानबीन की तब सामने आया कि इन कारख़ानों में मजदूरों की सुरक्षा और स्वास्थ्य को लेकर बहुत सारी समस्याएँ हैं और मज़दूरों से किसी भी अतिरिक्त मुआवजे़ के बिना अधिक घंटों तक काम करवाया जाता है। कई मानवाधिकार संगठन जब गुप्त तरीके से फॉक्सकॉन की डोरमेटरीज़ (मजदूरों के रहने की जगह) तक पहुँचे तब उन्होंने पाया कि किस तरीके से फैक्ट्री प्रबंधन मजदूरों की दिनचर्या को नियंत्रित करता है। मजदूरों के काम के घंटे प्रबंधन की और से निश्चित किये जाते हैं, मजदूरों को विशिष्ट चीजों को छोड़ किसी भी चीज को इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होती। जब भी कोई मजदूर इन नियमों का उल्लंघन करते पाया जाता है तब उसे सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जाता है। जब भी कोई नया उत्पाद बाजार में उतारा जाता है तब मजदूरों से 12-13 घंटे लगातार काम निकाला जाता है। उस समय कई मजदूर फैक्ट्री में ही सोने के लिए मजबूर होते हैं। क्योंकि बहुतेरे मजदूर सामान्य आर्थिक पृष्ठभूमि से आनेवाले नौजवान होते है, कम्पनी इनकी मजबूरी का फायदा उठाती है। यहाँ काम कर रहे ज़्यादातर मज़दूर बाहरी इलाकों से आने वाले नौजवान होते हैं पर इन्हें अपने घर जाने के लिए साल में एक ही बार छुट्टी मिलती है।

अच्छे दिनों का भ्रम छोड़ो, एकजुट हो, सामने खड़ी चुनौतियों का मुकाबला करने की तैयारी करो!

सच तो यह है कि विदेशों से आने वाली पूँजी अतिलाभ निचोड़ेगी और बहुत कम रोजगार पैदा करेगी। मोदी के ‘‘श्रम सुधारों’’ के परिणामस्वरूप मज़दूरों के रहे-सहे अधिकार भी छिन जायेंगे। असंगठित मज़दूरों के अनुपात में और अधिक बढ़ोत्तरी हो रही है। बारह-चौदह घण्टे सपरिवार खटने के बावजूद मज़दूर परिवारों का जीना मुहाल है।  औद्योगिक क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर मज़दूर असन्तोष बढ़ रहा है लेकिन दलाल और सौदेबाज यूनियनें 2 सितम्बर की हड़ताल जैसे अनुष्ठानिक विरोध से उस पर पानी के छींटे डालने का ही काम कर रही हैं। मगर यह तय है कि आने वाले समय में स्वतःस्फूर्त मज़दूर बगावतें बढ़ेंगी और क्रान्तिकारी वाम की कोई धारा यदि सही राजनीतिक लाइन से लैस हो, तो उन्हें सही दिशा में आगे बढ़ा सकती है।

फिलिस्तीन के साथ एकजुटता कन्वेंशन की रिपोर्ट

शनिवार एवं रविवार के दो सत्रों में ‘जायनवाद और फिलिस्तीनी प्रतिरोधः ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, चुनौतियां और संभावनाएं’ एवं ‘मध्य-पूर्व का नया साम्राज्यवादी खाका और फिलिस्तीनी मुक्ति का सवाल’ विषयों पर कई प्रतिष्ठित वक्ताओं ने इजरायल की नस्लभेदी नीतियों एवं उसके द्वारा फिलिस्तीन की जमीन पर कब्जे की कोशिशों की कठोरशब्दों में भर्त्सना की । कन्वेंशन में यह भी महसूस किया गया कि भारतीय सरकार ने फिलिस्तीनियों के लक्ष्य के साथ विश्वासघात किया है और वह अब जायनवादी राज्य की सबसे बड़ी समर्थक बन चुकी है जिसने सभी अन्तरराष्ट्रीय कानूनों को धता बातते हुए रखकर फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ अपना पागलपन भरा जनसंहारक अभियान जारी रखा है।

तर्कवादी चिन्तक कलबुर्गी की हत्या – धार्मिक कट्टरपंथी ताकतों की एक और कायरतापूर्ण हरकत

प्रसिद्ध साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हो चुके प्रोफेसर कलबुर्गी धारवाड़ स्थिति कर्नाटक विश्वविद्यालय में कन्नड़ विभाग के विभागाध्यक्ष रहे व बाद में हम्पी स्थित कन्नड़ विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। एक मुखर बुद्धिजीवी और तर्कवादी के रूप में कलबुर्गी का जीवन धार्मिक कुरीतियों, अन्धविश्वास, जाति-प्रथा, आडम्बरों और सड़ी-गली पुरानी मान्यताओं और परम्पराओं के विरुद्ध बहादुराना संघर्ष की मिसाल रहा। इस दौरान कट्टरपंथी संगठनों की तरफ से उन्हें लगातार धमकियों और हमलों का सामना करना पड़ा पर इन धमकियों और हमलों को मुंह चिढ़ाते हुए कलबुर्गी अपने शोध-कार्य और उसके प्रचार-प्रसार में सदा मग्न रहे। प्रोफेसर कलबुर्गी एक ऐसे शोधकर्ता और इतिहासकार थे जिनकी इतिहास के अध्ययन, शोध और उद्देश्य को लेकर समझ यथास्थितिवाद के विरुद्ध निरंतर संघर्ष करती थी। साथ ही कलबुर्गी अपने शोध कार्यों को अकादमिक गलियारों से बाहर नाटक, कहानियों, बहस-मुहाबसों के रूप में व्यवहार में लाने को हमेशा तत्पर रहते थे और यथास्थितिवाद के संरक्षकों, धार्मिक कट्टरपंथियों को उनकी यही बात सबसे ज्यादा असहज करती थी और इसीलिए उनकी कायरतापूर्ण हत्या कर दी गई

हिन्दुत्ववादी फ़ासिस्ट और बर्बर इज़रायली ज़ायनवादी एक-दूसरे के नैसर्गिक जोड़ीदार हैं!

पिछले साल मोदी के नेतृत्व में हिन्दुत्ववादियों के सत्ता में पहुँचने के बाद से ही इज़रायल के साथ सम्बन्धों को पहले से भी अधिक प्रगाढ़ करने की दिशा में प्रयास शुरू हो चुके थे। गाज़ा में बमबारी के वक़्त हिन्दुत्ववादियों ने संसद में इस मुद्दे पर बहस कराने से साफ़ इनकार कर दिया था ताकि उसके जॉयनवादी भाई-बंधुओं की किरकरी न हो। पिछले ही साल सितंबर के महीने में न्यूयॉर्क में संयुक्‍त राष्ट्र संघ की जनरल असेंबली की बैठक के दौरान मोदी ने गुज़रात के मासूमों के खू़न से सने अपने हाथ को गाज़ा के निर्दाषों के ताज़ा लहू से सराबोर नेतन्याहू के हाथ से मिलाया। नेतन्याहू इस मुलाक़ात से इतना गदगद था मानो उसका बिछुड़ा भाई मिल गया हो। उसने उसी समय ही मोदी को इज़रायल आने का न्योता दे दिया था। गुज़रात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान मोदी पहले ही इज़रायल की यात्रा कर चुका है, लेकिन एक प्रधानमंत्री के रूप में यह उसकी पहली यात्रा होगी।

याकूब मेमन की फांसी का अन्‍धराष्‍ट्रवादी शोर – जनता का मूल मुद्दों से ध्‍यान भटकाने का षड्यंत्र

सरकार ने अपने जिन हितों के लिए याकूब को फांसी पर लटकाया वे हित पूरा होते दिख रहे हैं। लोग महंगाई, बेरोजगारी, जनता के लिए बजट में कटौती आदि को भूलकर याकूब को फांसी देने पर सरकार और न्‍याय व्‍यवस्‍था की पीठ ठोंकने में लग गये हैं। इस मुद्दे से जो साम्‍प्रदायिकता की लहर फैली उसको देखते हुए भी कहा जा सकता है सरकार एक बार फिर ‘बांटो और राज करो’ की नीति को कुशलता से लागू करने में कामयाब रही। इस मुद्दे को साम्‍प्रदायिक रंग देने में सरकार ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। यह जरूरी है कि इस फांसी के पीछे के सामाजिक-राजनीतिक कारणों और इसपर हुई विभिन्‍न प्रतिक्रियाओं के कारणों को समझ लिया जाय।

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के खजूरी इलाक़े में साम्प्रदायिक माहौल बनाने में फि़र सक्रिय हुआ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

इस कॉलोनी के लोगों ने पहलक़दमी दिखाते हुए ईद वाले दिन आरएसएस द्वारा शाखा ग्राउण्ड में न लगने और सुरक्षा की माँग को लेकर दिल्ली पुलिस के कमिश्नर से मुलाक़ात की थी; लेकिन उनकी तरफ़ से भी इस सम्बन्ध में कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है। जबकि राजनीतिक दबाव के चलते इलाक़े के एसएचओ और डीसीपी ने साफ़ कहा कि ईद पर भी आरएसएस के लोग ज़रूर आयेंगे और प्रशासन उन्हें नहीं रोकगा। उनके मुताबिक़ ग्राउण्ड में शाखा लगने के बाद नमाज हो जायेगी। यहाँ बता दें कि पिछले साल ईद (बकराईद) पर भी यही तय हुआ था; लेकिन आरएसएस के लोगों ने तय समय में ग्राउण्ड ख़ाली नहीं किया, इस पर मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग भड़क गये थे और आरएसएस के लोगों से थोड़ी-सी झड़प हो गयी थी। आरएसएस के लोगों ने मुस्लिम समुदाय पर मार-पीट के कई झूठे केस दर्ज करा दिये और फिर इस घटना को साम्प्रदायिक रंग दे दिया गया। इस बार भी दो समुदाय के लड़कों के मामूली झगड़े को साम्प्रदायिक बनाने की कोशिश की जा रही है। हालाँकि अब इसमें यहाँ के मुस्लिम कट्टरपन्थी भी पीछे नहीं हैं। ऐेसे में काफ़ी आशंका है कि इस बार भी ईद वाले दिन साम्प्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा हो।