Category Archives: फ़ासीवाद / साम्‍प्रदायिकता

कॉरपोरेट जगत की तिजोरियाँ भरने के लिए जनहित योजनाओं की बलि चढ़ाने की शुरुआत

मोदी के नेतृत्व में सत्ता में आयी मौजूदा भाजपा सरकार मनरेगा को फिर से 200 ज़िलों तक सीमित करना चाहती है और इसके लिए सभी प्रदेशों को आवण्टित की जाने वाली धनराशि में कटौती करने का सिलसिला जारी है। यूपीए सरकार के समय से ही पिछले तीन-चार सालों में मनरेगा के लिए दिये जाने वाले बजट में कटौती की जा रही है, लेकिन भाजपा की सरकार बनने के बाद इस कटौती में और तेज़ी आ गयी है।

अमेरिका व भारत की “मित्रता” के असल मायने

इस समय पूरी दुनिया में आर्थिक संकट के काले बादल छाये हुए हैं जो दिन-ब-दिन सघन से सघन होते जा रहे हैं। दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ, अमेरिका और भारत भी इस संकट में बुरी तरह घिरी हुई हैं। आर्थिक संकट से निकलने के लिए अमेरिकी साम्राज्यवाद को अपनी दैत्याकार पूँजी के लिए बड़े बाज़ारों की ज़रूरत है। इस मामले में भारत उसके लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अमेरिकी पूँजीपति भारत में अधिक से अधिक पैर पसारना चाहते हैं ताकि आर्थिक मन्दी के चलते घुटती जा रही साँस से कुछ राहत मिले। इधर भारतीय पूँजीवाद को आर्थिक संकट से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर विदेशी पूँजी निवेश की ज़रूरत है। विदेशों से व्यापार के लिए इसे डॉलरों की ज़रूरत है। भारत में पूँजीवाद के तेज़ विकास के लिए भारतीय हुक्मरान आधारभूत ढाँचे के निर्माण में तेज़ी लाना चाहते हैं। भारतीय पूँजीपति वर्ग यहाँ उन्नत तकनोलॉजी, ऐशो-आराम का साजो-सामान आदि और बड़े स्तर पर चाहता है। इस सबके लिए इसे भारत में विदेशी पूँजी निवेश की ज़रूरत है। मोदी सरकार ने लम्बे समय से लटके हुए परमाणु समझौते को अंजाम तक पहुँचाने का दावा किया है। जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार यह समझौता कर रही थी तो भाजपा ने इसके विरोध का ड्रामा किया था और कहा था कि उसकी सरकार आने पर यह समझौता रद्द कर दिया जायेगा। जैसीकि उम्मीद थी, अमेरिका से परमाणु समझौता पूरा कर लेने का दावा करके भाजपा ने अपना थूका चाट लिया है।

ऐसे तैयार की जा रही है मज़दूर बस्तियों में साम्प्रदायिक तनाव की ज़मीन!

उत्तर-पश्चिमी दिल्ली  की मज़दूर बस्तियों में संघ परिवार बड़े ही सुनियोजित ढंग से साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण और तनाव को गहरा बनाने के लिए काम कर रहा है। हाल के एक वर्ष के दौरान मज़दूर इलाक़ों के लगभग सभी पार्कों में संघ की शाखाएँ लगने लगी हैं और झुग्गी  बस्तियों के मुस्लिम परिवारों को निशाना बनाकर साम्प्रदायिक ज़हर फैलाने का काम लगातार जारी है। इन हिन्दुतत्ववादियों के गिरोहों में छोटे ठेकेदारों, दलालों, दुकानदारों, मकान मालिकों के परिवारों के युवाओं के अतिरिक्त मज़दूर बस्तियों के लम्पट और अपराधी तत्व भी शामिल होते हैं।

कोल इण्डिया लिमिटेड में विनिवेश

कोल इण्डिया लिमिटेड दुनिया का पाँचवाँ सबसे बड़ा कोयला उत्पादक है जिसमें लगभग 3.5 लाख खान मज़दूर काम करते हैं। मोदी सरकार द्वारा कोल इण्डिया लिमिटेड के शेयरों को औने-पौने दामों में बेचे जाने का सीधा असर इन खान मज़दूरों की ज़िन्दगी पर पड़ेगा। पिछले कई वर्षों से भाड़े के कलमघसीट पूँजीवादी मीडिया में बिजली के संकट और कोल इण्डिया लिमिटेड की अदक्षता का रोना रोते आये हैं। इस संकट पर छाती पीटने के बाद समाधान के रूप में वे कोल इण्डिया लिमिटेड को जल्द से जल्द निजी हाथों में सौंपने का सुझाव देते हैं ताकि उसमें मज़दूरों की संख्या में कटौती की जा सके और बचे मज़दूरों के सभी अधिकारों को छीनकर उन पर नंगे रूप में पूँजीपतियों की तानाशाही लाद दी जाये। कोल इण्डिया लिमिटेड का हालिया विनिवेश इसी रणनीति की दिशा में आगे बढ़ा हुआ क़दम है।

साम्प्रदायिक फासीवाद के विरोध में कई राज्यों में जुझारू जनएकजुटता अभियान

देश में साम्प्रदायिक फासीवाद के उभार के ख़िलाफ़ दिल्ली, लखनऊ, हरियाणा और मुम्बई सहित देश के कई इलाक़ों में नौजवान भारत सभा, स्त्री मुक्ति लीग, दिशा छात्र संगठन, बिगुल मज़दूर दस्ता, जागरूक नागरिक मंच तथा अन्य सहयोगी संस्थाओं की ओर से साम्प्रदायिक फासीवाद विरोधी जनएकजुटता अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान के तहत व्यापक पैमाने पर पर्चा वितरण, नुक्कड़ सभाएँ, पोस्टरिंग और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये गये। कार्यकर्ताओं ने विभिन्न सभाओं में कहा कि देश में नरेन्द्र मोदी की सरकार आने के बाद गाँव-शहरों में साम्प्रदायिक ज़हर फैलाया जा रहा है। जैसे-जैसे मोदी सरकार की चुनावी वायदों की पोल खुलती जा रही है, जनता को धर्म के नाम पर बाँटने की कोशिशें की जा रही हैं। एक तरफ़ महँगाई, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है और दूसरी ओर जनता इस पर सवाल नहीं उठा सके इसलिए भगवा गिरोहों द्वारा लव जिहाद, ‘घर वापसी’ और ‘हिन्दू राष्ट्र’ जैसे नारे उछाले जा रहे हैं। ऐसे में आज ज़रूरी है जनता की वर्गीय एकजुटता कायम कर सभी धार्मिक कट्टरपन्थियों के ख़िलाफ़ संघर्ष चलाया जाये। एक बार फिर शहीदे-आज़म भगतसिंह का सन्देश गाँव-गाँव, घर-घर तक ले जाना होगा कि हमें जाति-धर्म की दीवारें तोड़कर शिक्षा, रोज़गार, चिकित्सा जैसे बुनियादी मुद्दों के लिए जनता की फौलादी एकजुटता कायम करनी होगी।

केजरीवाल की राजनीति और भविष्‍य की सम्‍भावनाओं पर कुछ बातें

आम आदमी पार्टी का निम्‍नबुर्जुआ लोकरंजकतावाद एक अस्‍थायी परिघटना है। यह राजनीतिक प्रवृत्ति कालान्‍तर में या तो बिखर जायेगी या फिर एक धुर दक्षिणपंथी अन्‍तर्वस्‍तु और सामाजिक जनवादी स्‍वरूप वाले बुर्जुआ संसदीय दल के रूप में इसी व्‍यवस्‍था में व्‍यवस्थित हो जायेगी।

पूँजीवादी नंगी लूट के विरोध को बाँटने-तोड़ने के लिए साम्प्रदायिक खेल शुरू!

गुजरात में आयोजित इन दोनों सम्मेलनों में पूँजीपतियों को लुभाने के लिए मोदी ने उनके सामने ललचाने वाले व्यंजनों से भरा पूरा थाल बिछा दिया – आओ जी, खाओ जी! श्रम क़ानूनों में मालिकों के मनमाफिक बदलाव, पूँजीपतियों के तमाम प्रोजेक्टों के लिए किसानों-आदिवासियों से ज़मीन हड़पने का पूरा इन्तज़ाम, कारख़ाने लगाने के लिए पर्यावरण मंज़ूरी फटाफट और बेरोकटोक करने की सुविधा, तमाम तरह की सरकारी बन्दिशों और जाँच-पड़ताल से पूरी छूट, सस्ते से सस्ता बैंक ऋण और टैक्सों में छूट। यानी ‘ईज़ ऑफ़ बिज़नेस’ (बिज़नेस करने की आसानी)!

मोदी सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों को औने-पौने दामों में निजी पूँजीपतियों को बेचने के लिए कमर कसी

वैसे तो आज़ादी के बाद से हर सरकार ने अपने-अपने तरीक़े से पूँजीपति वर्ग की चाकरी की है, लेकिन अपने कार्यकाल के शुरुआती छह महीनों में ही मोदी सरकार ने इस बात के पर्याप्त संकेत दिये हैं कि उसने चाकरी के पुराने सारे कीर्तिमान ध्वस्त करने का बीड़ा उठा लिया है। देशी-विदेशी पूँजीपतियों को लूट के नये-नवेले ऑफ़र दिये जा रहे हैं। एक ओर यह सरकार विदेशी पूँजी को रिझाने के लिए मुख़्तलिफ़ क्षेत्रों में विदेशी पूँजी के सामने लाल कालीनें बिछा रही है, वहीं दूसरी ओर देशी पूँजी को भी लूट का पूरा मौक़ा दिया जा रहा है। पूँजी को रिझाने के इसी मक़सद से अब मोदी सरकार आज़ादी के छह दशकों में जनता की हाड़-तोड़ मेहनत से खड़े किये गये सार्वजनिक उद्यमों को औने-पौने पर बेचने के लिए कमर कस ली है।

मोदी सरकार के अगले साढ़े-चार वर्षों के बारे में वैज्ञानिक तथ्य-विश्लेषण आधारित कुछ भविष्यवाणियाँ!

मोदी के अच्छे दिनों के वायदे का बैलून जैसे-जैसे पिचककर नीचे उतरता जायेगा, वैसे-वैसे हिन्दुत्व की राजनीति और साम्प्रदायिक तनाव एवं दंगों का उन्मादी खेल ज़ोर पकड़ता जायेगा ताकि जन एकजुटता तोड़ी जा सके। अन्धराष्ट्रवादी जुनून पैदा करने पर भी पूरा ज़ोर होगा। पाकिस्तान के साथ सीमित या व्यापक सीमा संघर्ष भी हो सकता है, क्योंकि जनाक्रोश से आतंकित दोनों ही देशों के संकटग्रस्त शासक वर्गों को इससे राहत मिलेगी।

पाखण्ड का नया नमूना रामपाल: आखि़र क्यों पैदा होते हैं ऐसे ढोंगी बाबा?

लोग पूँजीवादी व्यवस्था में व्याप्त सामाजिक-आर्थिक असुरक्षा होने के कारण धर्म-कर्म के चक्कर में पड़ते हैं। पूँजीवादी समाज का जटिल तन्त्र और उसमें व्याप्त अस्थिरता किसी भाववादी सत्ता में विश्वास करने का कारण बनती है। असल में धार्मिक बाबाओं के पास लोग एकदम भौतिक कारणों से जाते हैं। किसी को रोज़गार चाहिए, किसी को सम्पत्ति के वारिस के तौर पर लड़का चाहिए, कोई अपनी बीमारी के इलाज के लिए जाता है तो किसी को धन चाहिए। यही नहीं बौद्धिक रूप से कुपोषित नेता-मन्त्री और ख़ुद को पढे-लिखे कहने वाले लोग भी अपनी कूपमण्डूकता का प्रदर्शन करते रहते हैं। मौजूदा व्यवस्था की वैज्ञानिक समझ के बिना और तर्कशीलता और वैज्ञानिक नज़रिये से रीते होने के कारण लोग पोंगे-पण्डितों को अवतार पुरुष समझ बैठते हैं। ये ढोंगी बाबा एकदम विज्ञान पर आधारित कुछ ट्रिकों का इस्तेमाल करते हैं और अपनी छवि को चमत्कारी व अवतारी के तौर पर प्रस्तुत करते हैं। हरियाणा में कभी सिंचाई विभाग का जूनियर इंजीनियर रह चुका रामपाल भी चमत्कारी प्रभाव छोड़ने के लिए हाईड्रोलिक्स कुर्सी तथा रंगबिरंगी लाइटों का इस्तेमाल करता था। धार्मिक गुरु घण्टाल लोगों को तर्क न करने, पूर्ण समर्पण करने, दिमाग़ को ख़ाली रखने आदि जैसी “हिदायतें” लगातार देते रहते हैं। यहाँ पर ‘श्रद्धावानम् लभते ज्ञानम्’ के फ़ार्मूले पर काम करना सिखाया जाता है। लेकिन इस सबके बावजूद कुछ लोग इनके पाखण्ड को समझने की “भूल” कर बैठते हैं तो इन जैसों से ये बाबा दूसरे तरीक़े से निपटते हैं। अपने “भटके हुए” भक्तों की हत्या तक करवा देना इन बाबाओं के बायें हाथ का खेल है। आसाराम और नारायण साईं, कांची पीठ के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती, डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम, चन्द्रास्वामी, प्रेमानन्द आदि ऐसे चन्द उदाहरण हैं जिनके नाम अपने भक्तों को असली मोक्ष प्रदान करने में सामने आये हैं।