Category Archives: फ़ासीवाद / साम्‍प्रदायिकता

फ़ासिस्ट ट्रम्प की जीत ने उतारा साम्राज्यवाद के चौधरी के मुँह से उदारवादी मुखौटा

डोनाल्ड ट्रम्प जैसे धुर दक्षिणपंथी और फ़ासिस्ट प्रवृत्ति के व्यक्ति के विश्व-पूँजीवाद की चोटी पर विराजमान होने से निश्‍चय ही अमेरिका ही नहीं बल्कि दुनिया भर के मज़दूरों की मुश्किलें और चुनौतियाँ आने वाले दिनों में बढ़ने वाली हैं। मज़दूर वर्ग को नस्लीय और धार्मिक आधार पर बाँटने की साज़‍िशें आने वाले दिनों में और परवान चढ़ने वाली हैं। लेकिन ट्रम्प की इस जीत से मज़दूर वर्ग को यह भी संकेत साफ़ मिलता है कि आज के दौर में बुर्जुआ लोकतंत्र से कोई उम्मीद करना अपने आपको झाँसा देना है। बुर्जुआ लोकतंत्र के दायरे के भीतर अपनी चेतना को क़ैद करने का नतीजा मोदी और ट्रम्प जैसे दानवों के रूप में ही सामने आयेगा। आज दुनिया के विभिन्न हिस्सों में परिस्थितियाँ चिल्ला-चिल्लाकर पूँजीवाद के विकल्प की माँग कर रही हैं। इसलिए वोट के ज़रिये लुटेरों के चेहरों को बदलने की चुनावी नौटंकी पर भरोसा करने की बजाय दुनिया के हर हिस्से में मज़दूर वर्ग को पूँजीवाद को कचरे की पेटी में डालकर उसका विकल्प खड़ा करने की अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी को निभाने के लिए आगे आना ही होगा।

समाज सेवा के नाम पर बच्चियों की तस्करी – आर.एस.एस. का साम्प्रदायिक, स्त्री विरोधी चरित्र हुआ और नंगा

आर.एस.एस. अपने साम्प्रदायिक फासीवादी नापाक इरादों के लिए बड़े स्तर पर बच्चियों की तस्करी कर रहा है। अधिक से अधिक हिन्‍दुत्ववादी स्त्री प्रचारक व कार्यकर्ता तैयार करने के लिए असम से छोटी-छोटी आदिवासी बच्चियों को समाज सेवा के नाम पर आर.एस.एस. संचालित प्रशिक्षिण शिविरों में भेजा रहा है। इन रिपोर्टों से जो सच सामने आया है वह तो बस एक झलक ही है। दशकों से जिस बड़े स्तर पर आर.एस.एस. ऐसी कार्रवाइयों को अंजाम दे रहा है उसका तो अंदाज़ा तक नहीं लगाया जा सकता।

कारखाना (संशोधन) विधेयक 2016 : मोदी सरकार ने भोंका मज़दूरों की पीठ में छुरा !

मोदी सरकार का मज़दूर विरोधी चेहरा अब जनता के सामने साफ़ हो चूका है लेकिन मज़दूरों के असंगठित होने और तमाम चुनावी पार्टियों से सम्बद्ध दलाल ट्रेड यूनियनों के कारण मज़दूर विरोधी कानून न सिर्फ संसद विधान सभाओं में पेश किये जाते है बल्कि बिना किसी असली विरोध के पारित भी कर दिए जाते है। आज के फ़ासीवाद के उभार के दौर में जहाँ धार्मिक कट्टरपंथी धर्म और जाति के नाम पर जनता को बाँट रहे है वहाँ इस सब उन्माद को पैदा करने वाले फ़ासीवादी पूँजीवाद को उसके संकट से बाहर निकालने के लिए ऐसे घोर मज़दूर विरोधी कानून पारित करवा रहे है।

सारण (बिहार) में साम्प्रदायिक उत्पात

हिन्दूवादी जिनके रहनुमा पूँजीपतियों के चाकर हैं, ऐसी बातों, अफवाहों को हवा देने में माहिर हैं। उनसे और अन्य धर्मों के कट्टरपंथियों से बचें। धर्म या समुदाय पर आधारित ऐसी चीज़ें हमेशा अफीम की तरह ही होती हैं। आम जनता यह नहीं समझेगी, तो डर, नफरत और मौत का खेल सबको दफ्न कर देगा।

भाजपा और आरएसएस के दलित प्रेम और स्त्री सम्मान का सच

आज भारत का कोई भी नागरिक, व्यक्ति जिसके पास थोड़ा भी विवेक होगा वह जात-पाँत और स्त्रियों के प्रति दोयम व्यवहार को किसी भी रूप में समाज के लिए ख़तरनाक कहेगा। आज़ादी की जिस लड़ाई में भारत के पुरुषों के साथ महिलाएँ कन्धे से कन्धा मिलाकर लड़ी, हर एक जाति धर्म से लोग उठ खड़े हुए। बराबरी और समानता के विचारों के नए अंकुर इसी आज़ादी के दौरान फूटे। देश के क्रान्तिकारियों ने एक ऐसे समाज की कल्पना की जहाँ सभी को बराबरी और अधिकार प्राप्त हों, वहीं आरएसएस और मुस्लिम लीग ने लोगों को सदियों पुरानी रूढ़ियों और बेड़ियों में जकड़ने के लिए अपनी आवाज़ उठायी। और अपने इस गंदे मंसूबों के लिए बहाना बनाया प्राचीनता का, संस्कृति का और लोगों के आँख पर पट्टी चढ़ाने की कोशिश की धर्म की।

लुभावने जुमलों से कुछ न मिलेगा, हक़ पाने हैं तो लड़ना होगा!

अपने देश में एक ओर छात्रों-युवाओं, मज़दूरों, दलितों, अल्पसंख्यकों का जिस तरह दमन किया जा रहा है और दूसरी ओर गोरक्षा से लेकर लव जिहाद तक जिस तरह से उन्माद भड़काया जा रहा है वह भी इसी तस्वीर का एक हिस्सा है। पूँजीवादी व्यदवस्था का संकट दिनोंदिन गहरा रहा है और जनता की उम्मीदों को पूरा करने में दुनियाभर की पूँजीवादी सरकारें नाकाम हो रही हैं। पूँजीपतियों के घटते मुनाफ़े और बढ़ते घाटे को पूरा करने के लिए मेहनतकशों की रोटी छीनी जा रही है, उनके बच्चों से स्वास्थ्य और शिक्षा के अधिकार छीने जा रहे हैं, लड़कर हासिल की गयी सु‍विधाओं में एक-एक कर कटौती की जा रही है।

फासीवादी नारों की हक़ीक़त – हिटलर से मोदी तक

अगर हम आज अपने देश में उछाले जा रहे फ़ासीवादी नारों पर एक नज़र दौड़ाएँ तो हिटलर की इन नाजायज़ औलादों के मंसूबे भी हम अच्छी तरह समझ पाएंगे। ‘सबका साथ सबका विकास’ और ‘मेरा देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है’ सड़क पर, चौराहे पर बड़े-बड़े होर्डिंग पर यह नारे आँखों के सामने आ जाते है, रेडियो पर, अखबारों में, टीवी पर, बमबारी की तरह यह नारे हमारी चेतना पर हमला करते हैं। लेकिन जैसा ब्रेष्ट ने पहले ही चेता दिया है और जैसा हम अपनी ज़िन्दगी के हालात से भी समझ सकते है कि आखिर यह ‘सब’ कौन है जिनका विकास हो रहा है और यह कौनसा ‘देश’ है जो आगे बढ़ रहा है।

बुरे दिनों की एक और आहट – बजरंग दल के शस्त्र प्रशिक्षण शिविर

आने वाला समय और भी भयानक होने वाला है। हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथी धार्मिक अल्पसंख्यकों से भी बड़े दुश्मन कम्युनिस्टों, जनवादी कार्यकर्ताओं, तर्कशील व धर्मनिरपेक्ष लोगों आदि को मानते हैं। इसमें ज़रा भी शक नहीं है कि हिन्दुत्व कट्टरपंथी फासीवादी भारत में इन सभी पर हमले की तैयारी कर रहे हैं क्‍योंकि यही लोग इनके नापाक मंसूबों की राह में सबसे बड़ी बाधा हैं। लेकिन स्वाल यह है कि हम इसके मुकाबले की क्या तैयारी कर रहे हैं?

नाकाम मोदी सरकार और संघ परिवार पूरी बेशर्मी से नफ़रत की खेती में जुट चुके हैं!

अगर हम आज ही हिटलर के इन अनुयायियों की असलियत नहीं पहचानते और इनके ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाते तो कल बहुत देर हो जायेगी। हर ज़ुबान पर ताला लग जायेगा। देश में महँगाई, बेरोज़गारी और ग़रीबी का जो आलम है, ज़ाहिर है हममें से हर उस इंसान को कल अपने हक़ की आवाज़ उठानी पड़ेगी जो मुँह में चाँदी का चम्मच लेकर पैदा नहीं हुआ है। ऐसे में हर किसी को ये सरकार और उसके संरक्षण में काम करने वाली गुण्डावाहिनियाँ ”देशद्रोही” घोषित कर देंगी! हमें इनकी असलियत को जनता के सामने नंगा करना होगा। शहरों की कॉलोनियों, बस्तियों से लेकर कैम्पसों और शैक्षणिक संस्थानों में हमें इन्हें बेनक़ाब करना होगा। गाँव-गाँव, कस्बे-कस्बे में इनकी पोल खोलनी होगी।

देश को ख़ूनी दलदल या गुलामों के कैदख़ाने में तब्दील होने से बचाना है तो एकजुट होकर उठ खड़े हो!

फासीवाद कुछ व्यक्तियों या किसी पार्टी की सनक नहीं है। यह पूँजीवाद के लाइलाज रोग से पैदा होने वाला ऐसा कीड़ा है जिसे पूँजीवाद ख़ुद अपने संकट को टालने के लिए बढ़ावा देता है। यह पूँजीवादी व्यवस्था अन्दर से सड़ चुकी है, और इसी सड़ाँध से पूरी दुनिया के पूँजीवादी समाजों में हिटलर-मुसोलिनी के वे वारिस पैदा हो रहे हैं, जिन्हें फासिस्ट कहा जाता है।