Category Archives: फ़ासीवाद / साम्‍प्रदायिकता

मोदी मण्डली के जन-कल्याण के हवाई दावे बनाम दौलत के असमान बँटवारे में तेज़ वृद्धि

सन् 2014 से 2016 तक ऊपर की 1 प्रतिशत आबादी के पास भारत में कुल दौलत में हिस्सा 49 प्रतिशत से 58.4 प्रतिशत हो गया है। इस तरह ऊपर की 10 प्रतिशत आबादी की दौलत में भी वृद्धि हुई है। रिपोर्ट मुताबिक़ 80.7 प्रतिशत दौलत की मालिक यह ऊपर की 10 प्रतिशत आबादी सन् 2010 में 68.8 प्रतिशत की मालिक थी। यह आबादी भी मोदी सरकार के समय में और भी तेज़ी से माला-माल हुई है।

हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथियों और पुलिस को जनवादी जनसंगठनों की एकता ने दिया मुँहतोड़ जवाब

पुलिस की हिन्दुत्वी कट्टरपंथियों से मिलीभगत भी एकदम उजागर हो गई। पुलिस ने इन हमलावरों पर कार्रवाई करने की जगह जनचेतना की प्रबन्धक बिन्नी और वहाँ मौजूद टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन के प्रधान लखविन्दर, कारखाना मज़दूर यूनियन के नेता गुरजीत (समर) और नौजवान भारत सभा के सक्रिय सदस्य सतबीर को ही हिरासत में ले लिया था और जनचेतना की दुकान को सील कर दिया था। शाम को जन दबाव के बाद इन सब को रिहा कर दिया गया लेकिन 3 जनवरी को दोपहर 12 बजे थाने बुलाया गया था।

फासीवाद की बुनियादी समझ बनायें और आगे बढ़कर अपनी ज़िम्मेदारी निभायें

फासीवादी हमेशा, अंदर-ही-अंदर शुरू से ही, कम्युनिस्टों को अपना मुख्य शत्रु समझते हैं और उचित अवसर मिलते ही चुन-चुनकर उनका सफाया करते हैं, वामपंथी लेखकों-कलाकारों तक को नहीं बख्शते। इतिहास में हमेशा ऐसा ही हुआ है। फासीवादियों को लेकर भ्रम में रहने वाले, नरमी या लापरवाही बरतने वाले कम्युनिस्टों को इतिहास में हमेशा क़ीमत चुकानी पड़ी है। फासीवादियों ने तो सत्ता-सुदृढ़ीकरण के बाद संसदीय कम्युनिस्टों और सामाजिक जनवादियों को भी नहीं बख्शा।

भाजपा के सत्ता में आने के बाद से अल्पसंख्यकों व दलितों के ख़ि‍लाफ़़ अपराधों की रफ़्तार हुई तेज़

भाजपा के आने से फासीवादी तत्वों और दलित के ख़िलाफ़़ अपराधियों को छूट मिली हुई है। आरएसएस की विचारधारा में दलितों, अल्पसंख्यकों, स्त्रियों के विरुद्ध नफ़रत फैलाना शामिल है। मोदी जो कि 2002 में ख़ुद फासीवादी हिंसा में मुसलमानों के क़त्लेआम में शामिल रहा था, से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है? इसलिए, आज ज़रूरत है कि जितने भी उत्पीड़ित वर्ग चाहे वे अल्पसंख्यक,दलित या स्त्रियाँ हों उन्हें समूची जनता के अंग के तौर पर अपनी आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक सुरक्षा के लिए, भारत की समूची मेहनतकश जनता की पूँजीपतियों के ख़िलाफ़़ वर्गीय लड़ाई को मज़बूत बनाते हुए अपने उत्पीड़न का डटकर विरोध करना पड़ेगा।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के देश के स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान की असलियत

विभिन्न पूँजीवादी प्रसार माध्यमों के द्वारा किये जा रहे लुभावने प्रचार के पीछे छुपे ज़हरीले सत्य को पहचानने के लिए, जनता को ग़रीबी की ओर ढकेलने वाली व जनता के बीच फूट डालने वाली संघी राजनीति को उखाड़ फेंकने के लिए संघ का इतिहास जनता के सामने आना बहुत ज़रूरी है। आज संघ देशप्रेम की कितनी ही बातें कर ले पर उनका सच्चा काला इतिहास संघ के ही साहित्य में सुरक्षित रखा हुआ है। हाफ़ पैण्ट छोड़कर फुल पैण्ट पहनने पर भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नंगापन छुपेगा नहीं।

काला धन मिटाने के नाम पर नोटबन्दी – अपनी नाकामियाँ छुपाने के लिए मोदी सरकार का एक और धोखा!

काला धन वह नहीं होता जिसे बक्सों या तकिये के कवर में या ज़मीन में गाड़कर रखते हैं। सच्चाई यह है कि देश में काले धन का सिर्फ़ 6 प्रतिशत नगदी के रूप में है । आज काले धन का अधिकतम हिस्सा रियल स्टेट, विदेशों में जमा धन और सोने की खरीद आदि में लगता है। कालाधन भी सफेद धन की तरह बाज़ार में घूमता रहता है और इसका मालिक उसे लगातार बढ़ाने की फ़ि‍राक़ में रहता है। आज पैसे के रूप में जो काला धन है वह कुल काले धन का बेहद छोटा हिस्सा है और वह भी लोगों के घरों में नहीं बल्कि बाज़ार में लगा हुआ है।

फ़ासिस्ट ट्रम्प की जीत ने उतारा साम्राज्यवाद के चौधरी के मुँह से उदारवादी मुखौटा

डोनाल्ड ट्रम्प जैसे धुर दक्षिणपंथी और फ़ासिस्ट प्रवृत्ति के व्यक्ति के विश्व-पूँजीवाद की चोटी पर विराजमान होने से निश्‍चय ही अमेरिका ही नहीं बल्कि दुनिया भर के मज़दूरों की मुश्किलें और चुनौतियाँ आने वाले दिनों में बढ़ने वाली हैं। मज़दूर वर्ग को नस्लीय और धार्मिक आधार पर बाँटने की साज़‍िशें आने वाले दिनों में और परवान चढ़ने वाली हैं। लेकिन ट्रम्प की इस जीत से मज़दूर वर्ग को यह भी संकेत साफ़ मिलता है कि आज के दौर में बुर्जुआ लोकतंत्र से कोई उम्मीद करना अपने आपको झाँसा देना है। बुर्जुआ लोकतंत्र के दायरे के भीतर अपनी चेतना को क़ैद करने का नतीजा मोदी और ट्रम्प जैसे दानवों के रूप में ही सामने आयेगा। आज दुनिया के विभिन्न हिस्सों में परिस्थितियाँ चिल्ला-चिल्लाकर पूँजीवाद के विकल्प की माँग कर रही हैं। इसलिए वोट के ज़रिये लुटेरों के चेहरों को बदलने की चुनावी नौटंकी पर भरोसा करने की बजाय दुनिया के हर हिस्से में मज़दूर वर्ग को पूँजीवाद को कचरे की पेटी में डालकर उसका विकल्प खड़ा करने की अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी को निभाने के लिए आगे आना ही होगा।

समाज सेवा के नाम पर बच्चियों की तस्करी – आर.एस.एस. का साम्प्रदायिक, स्त्री विरोधी चरित्र हुआ और नंगा

आर.एस.एस. अपने साम्प्रदायिक फासीवादी नापाक इरादों के लिए बड़े स्तर पर बच्चियों की तस्करी कर रहा है। अधिक से अधिक हिन्‍दुत्ववादी स्त्री प्रचारक व कार्यकर्ता तैयार करने के लिए असम से छोटी-छोटी आदिवासी बच्चियों को समाज सेवा के नाम पर आर.एस.एस. संचालित प्रशिक्षिण शिविरों में भेजा रहा है। इन रिपोर्टों से जो सच सामने आया है वह तो बस एक झलक ही है। दशकों से जिस बड़े स्तर पर आर.एस.एस. ऐसी कार्रवाइयों को अंजाम दे रहा है उसका तो अंदाज़ा तक नहीं लगाया जा सकता।

कारखाना (संशोधन) विधेयक 2016 : मोदी सरकार ने भोंका मज़दूरों की पीठ में छुरा !

मोदी सरकार का मज़दूर विरोधी चेहरा अब जनता के सामने साफ़ हो चूका है लेकिन मज़दूरों के असंगठित होने और तमाम चुनावी पार्टियों से सम्बद्ध दलाल ट्रेड यूनियनों के कारण मज़दूर विरोधी कानून न सिर्फ संसद विधान सभाओं में पेश किये जाते है बल्कि बिना किसी असली विरोध के पारित भी कर दिए जाते है। आज के फ़ासीवाद के उभार के दौर में जहाँ धार्मिक कट्टरपंथी धर्म और जाति के नाम पर जनता को बाँट रहे है वहाँ इस सब उन्माद को पैदा करने वाले फ़ासीवादी पूँजीवाद को उसके संकट से बाहर निकालने के लिए ऐसे घोर मज़दूर विरोधी कानून पारित करवा रहे है।

सारण (बिहार) में साम्प्रदायिक उत्पात

हिन्दूवादी जिनके रहनुमा पूँजीपतियों के चाकर हैं, ऐसी बातों, अफवाहों को हवा देने में माहिर हैं। उनसे और अन्य धर्मों के कट्टरपंथियों से बचें। धर्म या समुदाय पर आधारित ऐसी चीज़ें हमेशा अफीम की तरह ही होती हैं। आम जनता यह नहीं समझेगी, तो डर, नफरत और मौत का खेल सबको दफ्न कर देगा।