Category Archives: अर्थनीति : राष्‍ट्रीय-अन्‍तर्राष्‍ट्रीय

बदहाली के सागर में लुटेरों की ख़ुशहाली के जगमगाते टापू – यही है देश के विकास की असली तस्वीर

सरकार और उसके भाड़े के अर्थशास्त्रियों द्वारा पेश किये जा रहे आँकड़ों की ही नज़र से अगर कोई देश के विकास की तस्वीर देखने पर आमादा हो तो उसे तस्वीर का यह दूसरा स्याह पहलू नज़र नहीं आयेगा। उसे तो बस यही नज़र आयेगा कि नोएडा में सैमसंग की विशाल मोबाइल फ़ैक्टरी खुल गयी है। चौड़े एक्सप्रेस-वे बन रहे हैं जिन पर महँगी कारें फ़र्राटा भर रही हैं। पिछले वर्ष के दौरान देश में 17 नये ”खरबपति” और पैदा हुए जिससे भारत में खरबपतियों की संख्या शतक पूरा कर 101 तक पहुँच गयी। देश की शासक पार्टी का 1100 करोड़ रुपये का हेडक्वाटर आनन-फ़ानन में बनकर तैयार हो गया है और देश की सबसे पुरानी शासक पार्टी का ऐसा ही भव्य  मुख़यालय तेज़ी से बनकर तैयार हो रहा है।

न्यूनतम वेतन क़ानून के ज़रिये केजरीवाल की नयी नौटंकी का पर्दाफ़ाश करो! संगठित होकर अपने हक़ हासिल करो!!

 अगर सरकार की सही मायने में यह मंशा होती कि यह क़ानून लागू किया जाये तो सबसे पहले तो यही सवाल बनता है कि दिल्ली की आप सरकार ने पुराने क़ानूनों को ही कितना लागू किया है? अगर सही मायने में केजरीवाल सरकार की यह मंशा होती तो वह सबसे पहले हर फ़ैक्टरी में मौजूदा श्रम क़ानूनों को लागू करवाने का प्रयास करती, परन्तु पंगु बनाये गये श्रम विभाग के ज़रिये यह सम्भव ही नहीं है। कैग की रिपोर्ट इनकी हक़ीक़त सामने ला देती है। इस रिपोर्ट के अनुसार कारख़ाना अधिनियम, 1948 (Factories Act, 1948) का भी पालन दिल्ली सरकार के विभागों द्वारा नहीं किया जा रहा है। वर्ष 2011 से लेकर 2015 के बीच केवल 11-25% पंजीकृत कारख़ानों का निरीक्षण किया गया। निश्चित ही  इस क़ानून से जिसको थोडा-बहुत फ़ायदा पहुँचेगा, वह सरकारी कर्मचारियों और संगठित क्षेत्र का छोटा-सा हिस्सा है, परन्तु यह लगातार सिकुड़ रहा है।

भारत में लगातार चौड़ी होती असमानता की खाई! जनता की बर्बादी की क़ीमत पर हो रहा ”विकास”!!

इस संकट के कीचड़ में भी अमीरों के कमल खिलते ही जा रहे हैं। केवल पिछले वर्ष के दौरान देश में 17 नये ”खरबपति” और पैदा हुए जिससे भारत में खरबपतियों की संख्या शतक पूरा कर 101 तक पहुँच गयी। ऑक्सफ़ैम की रिपोर्ट के अनुसार – पिछले वर्ष देश में पैदा हुई कुल सम्पदा का 73 प्रतिशत देश के सबसे अमीर एक प्रतिशत लोगों की मुट्ठी में चला गया। इस छोटे-से समूह की सम्पत्ति में पिछले चन्द वर्षों के दौरान 20.9 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोत्तरी हुई जो 2017 के केन्द्रीय बजट में ख़र्च के कुल अनुमान के लगभग बराबर है। दूसरी ओर, देश के 67 करोड़ नागरिकों, यानी सबसे ग़रीब आधी आबादी की सम्पदा सिर्फ़ एक प्रतिशत बढ़ी। देश के खरबपतियों की सम्पत्ति में 4891 खरब रुपये का इज़ाफ़ा हुआ है। यह इतनी बड़ी रक़म है जिससे देश के सभी राज्यों के शिक्षा और स्वास्थ्य बजट का 85 प्रतिशत पूरा हो जायेगा। आमदनी में असमानता किस हद तक है इसका अनुमान सिर्फ़ इस उदाहरण से लगाया जा सकता है कि भारत की किसी बड़ी गारमेण्ट कम्पनी में सबसे ऊपर के किसी अधिकारी की एक साल की कमाई के बराबर कमाने में ग्रामीण भारत में न्यूनतम मज़दूरी पाने वाले एक मज़दूर को 941 साल लग जायेंगे। दूसरी ओर वह मज़दूर अगर 50 वर्ष काम करे, तो भी उसकी जीवन-भर की कमाई के बराबर कमाने में गारमेण्ट कम्पनी के उस शीर्षस्थ अधिकारी को सिर्फ़ साढ़े सत्रह दिन लगेंगे।

क्या देश अमीरों के टैक्स के पैसे से चलता है? नहीं!

अक्सर उच्च मध्यम वर्ग या उच्च वर्ग द्वारा यह कहा जाता है कि देश उनके पैसे से चल रहा है। वही लोग हैं जो सरकार को टैक्स देते हैं जिससे सारे काम होते हैं, ग़रीब लोग तो केवल सब्सिडी, मुफ़्त सुविधाओं आदि के रूप में उन टैक्स के पैसों को उड़ाते हैं। इस प्रकार ग़रीब आम जनता देश पर बोझ होती है। दरअसल यह एक बड़ा झूठ है जो काफ़ी व्यापक रूप से लोगों में फैला हुआ है। अगर आँकड़ों के हिसाब से देखा जाये तो कहानी इसकी उल्टी ही है। सरकार जो टैक्स वसूलती है उसका बड़ा हिस्सा इसी ग़रीब आम जनता की जेबों से आता है। आइए देखते हैं कैसे।

तेल की लगातार बढ़ती क़ीमत : वैश्विक आर्थिक संकट और मोदी सरकार की पूँजीपरस्त नीतियों का नतीजा

मोदी सरकार तेल की अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार में घटती-बढ़ती क़ीमतों से इतर हमें बेइन्तहा लूट रहे हैं और इस लूट को वैध क़रार देने के लिए मोदी का गोदी मीडिया, भाजपा का आईटी सेल और संघी जमकर झूठ का कीचड़ फैला रहे हैं। परन्तु सच यह है कि संघी सरकार कॉरपोरेट घरानों के तलवे चाट रही है और देश को लूट और बर्बाद कर इन्हें आबाद कर रही है। इस लूटतन्त्र और झूठतन्त्र से सत्यापित करने के प्रयास को हमें बेनकाब करते रहना होगा।

वाराणसी में फ्लाईओवर गिरने से कम से कम 20 लोगों की मौत

वस्तुतः इन घटनाओं की आम वजह सरकार, अफ़सरों और ठेकेदार की लूट की हवस है। तमाम सूत्रों से पता चला कि सेतु निगम ने इस पुल का काम मन्त्रियों के क़रीबियों को बाँटा जिस पर 14% कमीशन लिया गया। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सेतु निगम (यही संस्था इस पुल का निर्माण कर रही है) के प्रबन्ध निदेशक राजन मित्तल का इस हादसे के बाद बयान आया कि पुल आँधी की वजह से गिरा। यह वही व्यक्ति है जिस पर पहले भी भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं, और इसके खि़लाफ़ जाँच के आदेश भी हुए हैं। लेकिन भाजपा सरकार ने न सिर्फ़ इस आदमी को सेतु निगम का अध्यक्ष बनाया, बल्कि इसे उत्तर प्रदेश निर्माण निगम का अतिरिक्त भार भी सौंप दिया। इतना ही नहीं, हादसे के बाद गिरे हुए कंक्रीट के बीम को उठाने के लिए सेतु निगम ने कम्प्रेशर क्रेन तक उपलब्ध नहीं करवायी, जिस वजह से बचाव का काम बहुत देर से शुरू हो पाया और इसी वजह से कई जानें जो बच सकती थी, वे नहीं बचायी जा सकीं।

नेशनल पेंशन स्कीम – कर्मचारियों के हक़ों पर डकैती डालने की नयी स्कीम

एनपीएस स्कीम एक अंशदायी स्कीम है जिसमें कर्मचारियों के वेतन से 10% काटा जायेगा और 10% सरकार द्वारा अंशदान के रूप में दिया जायेगा। काटे गये पैसे को शेयर मार्केट में लगाया जायेगा। अगर शेयर मार्केट डूब गया तो कर्मचारियों का पैसा डूब जायेगा, लेकिन सरकार इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेगी। पुरानी पेंशन (गारण्टीड पेंशन स्कीम) में कोई कटौती नहीं होती थी, तथा कर्मचारियों के रिटायर होने पर उस समय के अन्तिम वेतन (मूल वेतन और महँगाई भत्ता) का पचास प्रतिशत पेंशन के रूप में देने का प्रावधान था, लेकिन ‘नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) में सेवानिवृत्ति पर कुल रक़म जो शेयर मार्केट निर्धारित करेगा, उसका 40% प्रतिशत सरकार आयकर के रूप में कटौती कर लेगी।

अगर हमने पूँजीवाद को तबाह नहीं किया तो पूँजीवाद पृथ्वी को तबाह कर देगा

‘पृथ्वी दिवस’ के अवसर पर 22 अप्रैल को पूरी दुनिया में पर्यावरण को बचाने की चिंता प्रकट करते हुए कार्यक्रम हुए। 1970 में इसकी शुरुआत अमेरिका से हुई और यह बात अनायास नहीं लगती कि इसके लिए 22 अप्रैल का दिन चुना गया जो लेनिन का जन्मदिन है। लेनिन के बहाने क्रांति पर बातें हों, इससे बेहतर तो यही होगा कि पर्यावरण के विनाश पर अकर्मक चिंतायें प्रकट की जाएँ और लोगों को ही कोसा जाये कि अगर वे अपनी आदतें नहीं बदलेंगे, और पर्यावरण की चिंता नहीं करेंगे, तो वह दिन दूर नहीं जब धरती पर क़यामत आ जायेगी। यानी सामाजिक बदलाव के बारे में नहीं, महाविनाश के दिन के बारे में सोचो। हालीवुड वाले इस महाविनाश की थीम पर सालाना कई फ़िल्में बनाते हैं।

हथियारों का जनद्रोही कारोबार और राफ़ेल विमान घोटाला

लेकिन सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि राफ़ेल के बाद मचे इस शोर-शराबे के पीछे की कहानी क्या है? यूपीए सरकार के समय में फ़्रांसीसी कम्पनी दसाल्ट ने सबसे कम क़ीमत की बोली लगाकर यूरोफ़ाइटर को हराकर भारत को लड़ाकू विमान सप्लाई करने का अधिकार हासिल किया था। 2012 से ही विमान के ख़रीद की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी गयी थी। उस दौरान भारत सरकार और दसाल्ट एविएशन के बीच यह समझौता हुआ था कि 530 करोड़ रुपये प्रति विमान की दर से भारत सरकार दसाल्ट से 18 लड़ाकू विमान ख़रीदेगी और 108 विमानों को भारत सरकार की कम्पनी हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड तकनीक प्राप्त करके बनायेगी। बाद

बढ़ते घपले-घोटाले और पूँजीवाद

लेकिन हम फिर ज़ोर देकर इस बात को कहना चाहते हैं कि भ्रष्टाचार-मुक्त पूँजीवाद एक कपोल-कल्पना है। पूँजीवाद अपने आप में एक “मान्यता-प्राप्त” भ्रष्टाचार है। “हर सम्पत्ति-साम्राज्य अपराध की बुनियाद पर खड़ा होता है”(बाल्ज़ाक)। पूँजी श्रम-शक्ति की क़ानूनी लूट है। जहाँ क़ानूनी लूट होगी वहाँ अवैध लूट भी होगी। जहाँ “सफ़ेद पैसा” होगा, वहाँ काला पैसा भी होगा। दरअसल पूँजीवाद में सफ़ेद और काले धन का कोई अन्तर होता ही नहीं।