Category Archives: अर्थनीति : राष्‍ट्रीय-अन्‍तर्राष्‍ट्रीय

वाराणसी में फ्लाईओवर गिरने से कम से कम 20 लोगों की मौत

वस्तुतः इन घटनाओं की आम वजह सरकार, अफ़सरों और ठेकेदार की लूट की हवस है। तमाम सूत्रों से पता चला कि सेतु निगम ने इस पुल का काम मन्त्रियों के क़रीबियों को बाँटा जिस पर 14% कमीशन लिया गया। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सेतु निगम (यही संस्था इस पुल का निर्माण कर रही है) के प्रबन्ध निदेशक राजन मित्तल का इस हादसे के बाद बयान आया कि पुल आँधी की वजह से गिरा। यह वही व्यक्ति है जिस पर पहले भी भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं, और इसके खि़लाफ़ जाँच के आदेश भी हुए हैं। लेकिन भाजपा सरकार ने न सिर्फ़ इस आदमी को सेतु निगम का अध्यक्ष बनाया, बल्कि इसे उत्तर प्रदेश निर्माण निगम का अतिरिक्त भार भी सौंप दिया। इतना ही नहीं, हादसे के बाद गिरे हुए कंक्रीट के बीम को उठाने के लिए सेतु निगम ने कम्प्रेशर क्रेन तक उपलब्ध नहीं करवायी, जिस वजह से बचाव का काम बहुत देर से शुरू हो पाया और इसी वजह से कई जानें जो बच सकती थी, वे नहीं बचायी जा सकीं।

नेशनल पेंशन स्कीम – कर्मचारियों के हक़ों पर डकैती डालने की नयी स्कीम

एनपीएस स्कीम एक अंशदायी स्कीम है जिसमें कर्मचारियों के वेतन से 10% काटा जायेगा और 10% सरकार द्वारा अंशदान के रूप में दिया जायेगा। काटे गये पैसे को शेयर मार्केट में लगाया जायेगा। अगर शेयर मार्केट डूब गया तो कर्मचारियों का पैसा डूब जायेगा, लेकिन सरकार इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेगी। पुरानी पेंशन (गारण्टीड पेंशन स्कीम) में कोई कटौती नहीं होती थी, तथा कर्मचारियों के रिटायर होने पर उस समय के अन्तिम वेतन (मूल वेतन और महँगाई भत्ता) का पचास प्रतिशत पेंशन के रूप में देने का प्रावधान था, लेकिन ‘नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) में सेवानिवृत्ति पर कुल रक़म जो शेयर मार्केट निर्धारित करेगा, उसका 40% प्रतिशत सरकार आयकर के रूप में कटौती कर लेगी।

अगर हमने पूँजीवाद को तबाह नहीं किया तो पूँजीवाद पृथ्वी को तबाह कर देगा

‘पृथ्वी दिवस’ के अवसर पर 22 अप्रैल को पूरी दुनिया में पर्यावरण को बचाने की चिंता प्रकट करते हुए कार्यक्रम हुए। 1970 में इसकी शुरुआत अमेरिका से हुई और यह बात अनायास नहीं लगती कि इसके लिए 22 अप्रैल का दिन चुना गया जो लेनिन का जन्मदिन है। लेनिन के बहाने क्रांति पर बातें हों, इससे बेहतर तो यही होगा कि पर्यावरण के विनाश पर अकर्मक चिंतायें प्रकट की जाएँ और लोगों को ही कोसा जाये कि अगर वे अपनी आदतें नहीं बदलेंगे, और पर्यावरण की चिंता नहीं करेंगे, तो वह दिन दूर नहीं जब धरती पर क़यामत आ जायेगी। यानी सामाजिक बदलाव के बारे में नहीं, महाविनाश के दिन के बारे में सोचो। हालीवुड वाले इस महाविनाश की थीम पर सालाना कई फ़िल्में बनाते हैं।

हथियारों का जनद्रोही कारोबार और राफ़ेल विमान घोटाला

लेकिन सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि राफ़ेल के बाद मचे इस शोर-शराबे के पीछे की कहानी क्या है? यूपीए सरकार के समय में फ़्रांसीसी कम्पनी दसाल्ट ने सबसे कम क़ीमत की बोली लगाकर यूरोफ़ाइटर को हराकर भारत को लड़ाकू विमान सप्लाई करने का अधिकार हासिल किया था। 2012 से ही विमान के ख़रीद की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी गयी थी। उस दौरान भारत सरकार और दसाल्ट एविएशन के बीच यह समझौता हुआ था कि 530 करोड़ रुपये प्रति विमान की दर से भारत सरकार दसाल्ट से 18 लड़ाकू विमान ख़रीदेगी और 108 विमानों को भारत सरकार की कम्पनी हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड तकनीक प्राप्त करके बनायेगी। बाद

बढ़ते घपले-घोटाले और पूँजीवाद

लेकिन हम फिर ज़ोर देकर इस बात को कहना चाहते हैं कि भ्रष्टाचार-मुक्त पूँजीवाद एक कपोल-कल्पना है। पूँजीवाद अपने आप में एक “मान्यता-प्राप्त” भ्रष्टाचार है। “हर सम्पत्ति-साम्राज्य अपराध की बुनियाद पर खड़ा होता है”(बाल्ज़ाक)। पूँजी श्रम-शक्ति की क़ानूनी लूट है। जहाँ क़ानूनी लूट होगी वहाँ अवैध लूट भी होगी। जहाँ “सफ़ेद पैसा” होगा, वहाँ काला पैसा भी होगा। दरअसल पूँजीवाद में सफ़ेद और काले धन का कोई अन्तर होता ही नहीं।

मोदी और पेट गैस की गोलियों में क्या संबंध है!

नवम्बर में औद्योगिक उत्पादन 8.4% बढ़ने के आंकड़े जारी करने के बाद मोदी सरकार और उसके भोंपू अर्थशास्त्री विशेषज्ञ अर्थव्यवस्था में फिर से तेजी का राग अलाप रहे हैं! पर लिंक में दिए औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े के पैराग्राफ 8 को पढ़ें तो कुल उत्पादन वृद्धि में से 2.5% वृद्धि तो सिर्फ पेट गैस की गोलियों और पाचन शक्ति बढ़ाने वाले टॉनिकों से हुई बताई गई है, जबकि कुल औद्योगिक उत्पादन में इनका कुल हिस्सा (weightage) चौथाई प्रतिशत से भी कम होता है – 0.22%! ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है – ये पेट गैस की गोलियों का चक्कर पिछले साल भी था! अब ये इतनी पेट गैस की गोलियां कौन खा रहा है?

2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में अदालत का फ़ैसला संसाधनों की बेहिसाब पूँजीवादी लूट पर पर्दा नहीं डाल सकता

मज़दूर वर्ग के दृष्टिकोण से देखा जाये तो जिसे 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला कहा गया वो दरअसल इस मामले में हुई कुल लूट का एक बेहद छोटा-सा हिस्सा था। इस घोटाले पर मीडिया में ज़ोरशोर से लिखने वाले तमाम प्रगतिशील रुझान वाले पत्रकार और बुद्धिजीवी भी कभी यह सवाल नहीं उठाते कि आख़िर इलेक्ट्रोमैगनेटिक स्पेक्ट्रम जैसे प्राकृतिक संसाधन, जो जनता की सामूहिक सम्पदा है, को किसी भी क़ीमत पर पूँजीपतियों के हवाले क्यों किया जाना चाहिए!

40 प्रतिशत हैं बेरोज़गार, कौन है इसका जि़म्मेदार?

सरकारी व निजी क्षेत्र दोनों जगह हालत बहुत खराब है और बेरोज़गारी की समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है। निजी सम्पत्ति और मुनाफ़े पर टिकी पूँजीवादी व्यवस्था में इस समस्या का कोई समाधान सम्भव नहीं है क्योंकि पूँजीवाद में पूँजीपति वर्ग जनता के लिए नहीं, अपनी तिजोरी भरने के लिए उत्पादन करता है। इसलिए पूँजीवाद में बेरोज़गारी बनी रहती है। बेरोज़गारों की फ़ौज हर समय बनाये रखना पूँजीवाद के हित में होता है क्योंकि इससे मालिकों को मनमानी मज़दूरी पर लोगों को रखने की छूट मिल जाती है। ये समस्या तभी ख़त्म की जा सकती है जब सामूहिक सम्पत्ति पर टिकी समाजवादी व्यवस्था का निर्माण किया जाये जहाँ उत्पादन निजी मुनाफ़े के लिए नहीं हो, बल्कि मानव समाज की ज़रूरतें पूरी करने के लिए हो। तभी रोज़गार-विहीन विकास के पूँजीवादी सिद्धान्त को धता बताकर हर हाथ को काम और हर व्यक्ति का सम्मानजनक जीवन का अधिकार सुनिश्चि‍त किया जा सकेगा।

‘भारत में आय असमानता, 1922-2014 : ब्रिटिश राज से खरबपति राज?’

पिछले दिनों ही भारत में सम्पत्ति के वितरण पर क्रेडिट सुइस की रिपोर्ट भी आयी थी। इसमें बताया गया था कि 2016 में देश की कुल सम्पदा के 81% का मालिक सिर्फ़ 10% तबक़ा है। इसमें से भी अगर शीर्ष के 1% को लें तो उनके पास ही देश की कुल सम्पदा का 58% है। वहीं नीचे की आधी अर्थात 50% जनसंख्या को लें तो उनके पास कुल सम्पदा का मात्र 2% ही है अर्थात कुछ नहीं। इनमें से भी अगर सबसे नीचे के 10% को लें तो ये लोग तो सम्पदा के मामले में नकारात्मक हैं अर्थात सम्पत्ति कुछ नहीं क़र्ज़ का बोझा सिर पर है। इसी तरह बीच के 40% लोगों को देखें तो उनके पास कुल सम्पदा का मात्र 17% है।

जनता में बढ़ते असन्तोष से घबराये भगवा सत्ताधारी

हमने मोदी की जीत के बाद जो भविष्यवाणी की थी वह अक्षरश: सही साबित हो रही है। विदेशों में जमा काला धन की एक पाई भी वापस नहीं आयी है। देश के हर नागरिक के खाते में 15 लाख रुपये आना तो दूर, फूटी कौड़ी भी नहीं आयेगी। नोटबन्‍दी से काला धन कम होने के बजाय उसका एक हिस्‍सा सफ़ेद हो गया और आम लोगों की ईमान की कमाई लुट गयी। निजीकरण की अन्धाधुन्ध मुहिम में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को हड़पकर देशी-विदेशी कम्पनियाँ जमकर छँटनी कर रही हैं।