मुझे 2200 महीने की पगार मिलती है और 12-14 घण्टे तक काम करना पड़ता है। ओवरटाइम सिंगल रेट से देता है और एक भी छुट्टी नहीं मिलती। मैं काम से नहीं घबराता, लेकिन इतनी मेहनत से काम करने के बाद भी सुपरवाइजर माँ-बहन की गाली देता रहता है, ज़रा सी ग़लती पर गाली-गलौज करने लगता है, और अक्सर हाथ भी उठा देता है। मज़दूर लोग दूर गाँव से अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए आये हैं, इसलिए नौकरी से निकाले जाने के डर से वे लोग कुछ नहीं बोलते। शुरू-शुरू में एक-दो फैक्टरी में मैंने पलटकर जवाब दिया तो मुझे काम से निकाल दिया गया। यहाँ मेरा कोई जानने वाला नहीं है, इसलिए मेरे लिए काम करना बहुत ही ज़रूरी है। इसी बात पर मैं भी अब कुछ नहीं बोलता। लेकिन बुरा बहुत लगता है कि सुपरवाइज़र ही नहीं, मैनेजर, चौकीदार और ख़ुद मालिक लोग भी हमें जानवर से ज्यादा कुछ नहीं समझते। कारख़ाने में घुसने के समय और काम खत्म करने के बाद बाहर लौटते समय गेट पर बैठे चौकीदार हम लोगों की तलाशी ऐसे लेते हैं, जैसे हम चोर हों। यही नहीं, हम लोगों को चाय पीने, बीड़ी पीने और यहाँ तक कि पेशाब करने के लिए नहीं जाने दिया जाता। बस लंच में ही समय मिलता है। उसके अलावा यदि ज़रूरत हो तो सुपरवाइज़र के आगे नाक रगड़नी पड़ती है। औरत मज़दूरों के साथ तो और भी बुरा बर्ताव होता है। गाली-गलौज, छेड़छाड़ तो आम बात है, जैसे वे औरत नहीं, उस फैक्टरी का प्रोडक्ट हों। एक-दो औरत मज़दूरों ने विरोध किया और पलटकर गाली भी दी, तो उन्हें काम से निकाल दिया गया और बड़ा बेइज्ज़त किया।