इक्कीसवीं शताब्दी की पहली दशाब्दी के समापन के अवसर पर
यह महज पहली सर्वहारा क्रान्तियों की हार है जिसकी शिक्षाएँ इन क्रान्तियों के नये संस्करणों की फैसलाकुन जीत की ज़मीन तैयार करेंगी। यह श्रम और पूँजी के बीच जारी विश्व ऐतिहासिक समर का मात्र पहला चक्र है, अन्तिम नहीं। अतीत में भी निर्णायक ऐतिहासिक जीत से पहले विजेता वर्ग एकाधिक बार पराजित हुआ है। कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों ने तब समाजवाद के अन्तर्गत जारी वर्ग संघर्ष, पूँजीवादी पुनर्स्थापना के अन्तर्निहित ख़तरों और चीन की सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति की शिक्षाओं के आधार पर भविष्य में इन ख़तरों से लड़ने के बारे में भी बार-बार बातें की थीं। वे यह भी बताते रहे कि पूँजीवाद जिन कारणों से अपने भीतर से समाजवाद के बीज और उसके वाहक वर्ग को (अपनी कब्र खोदने वाले वर्ग को) पैदा करता है, वे बुनियादी कारण अभी भी मौजूद हैं।
















