एससी/एसटी एक्ट को कमज़ोर करने के खि़लाफ़ नौभास द्वारा महाराष्ट्र में चलाया गया अभियान
बिगुल संवाददाता
20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षित दलित आबादी पर होने वाले अत्याचार के खि़लाफ़ 1989 में बने क़ानून को कमज़ोर करने का फ़ैसला सुनाया गया। जिसके अनुसार कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के बाद अब एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी गयी है और साथ ही अग्रिम जमानत पर से रोक को हटा दिया गया है। इस फ़ैसले का देशभर में विरोध हुआ और 2 अप्रैल को क़ानून के बदलाव के विरोध में भारत बन्द का भी आह्वान किया गया था। नौजवान भारत सभा ने भी सरकार द्वारा एससी/एसटी एक्ट को कमज़ोर करने के विरोध में महाराष्ट्र के मुम्बई, पुणे और अहमदनगर इलाक़ों में अभियान चलाया।
मुम्बई में अभियान मुख्यतः लल्लूभाई कम्पाउण्ड, साठे नगर, जाकिर हुसैन नगर, टाटानगर, बैगन बारी, मण्डाला, महाराष्ट्र नगर आदि इलाक़ों में चलाया गया। साथ-साथ यूनिवर्सिटी में छात्रों के बीच भी पर्चे बाँटे गये। जगह-जगह नुक्कड़ सभाएँ की गयीं और पर्चे बाँटे गये। नुक्कड़ सभाओं के दौरान नौजवान भारत सभा के बबन ने बात रखते हुए कहा कि अगर आज दलित उत्पीड़न सम्बन्धी घटनाओं का आँकड़ा उठाकर देखें तो पता चलेगा कि हर दिन दो दलितों की हत्या कर दी जाती है और प्रतिदिन औसतन 6 स्त्रियाँ बलात्कार की शिकार होती हैं। 2007 से लेकर 2017 के बीच में दलित विरोधी अपराधों में 66 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 2016 में ही सिर्फ़ 48000 से ज़्यादा मामले दर्ज हैं। ऐसे में क़ानूनों को कमज़ोर बनाना सरकार की दलित विरोधी मानसिकता को ज़ाहिर करता है।
पुणे में 2 अप्रैल को नौजवान भारत सभा, लोकायत और अन्य प्रगतिशील संगठनों ने मिलकर एक विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया। इसमें नौजवान भारत सभा की तरफ़ से बात रखते हुए अभिजीत ने कहा कि एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार 2014-2016 के बीच में भाजपा शासित पाँच राज्यों में दलितों पर अत्याचार के सबसे ज़्यादा मामले दर्ज हैं। भाजपा सरकार आने के बाद ऊना, सहारनपुर जैसी घटनाएँ भी हमारे सामने आयी हैं। आज ज़रूरी है कि इस मनुवादी फासीवादी सरकार के खि़लाफ़ संघर्ष करने के लिए हम तैयार रहे।
अहमदनगर में सिद्धार्थ कॉलोनी और न्यू आर्ट्स कॉलेज में इसी विषय पर पर्चा वितरण किया गया और नुक्कड़ सभाएँ भी की गयीं। नुक्कड़ सभा में बात रखते हुए सोमनाथ ने कहा – अहमदनगर में दलित उत्पीड़न की कई घटनाएँ देखने को मिली हैं, चाहे वह जवाखेड़े हो या फिर नितिन आगे की घटना हो, जो समाज में मौजूद जातिगत उत्पीड़न की तस्वीर सामने ला देती है। आज ज़रूरी है इन जातिगत उत्पीड़नों के खि़लाफ़ आवाज़ उठायी जाये। साथ-साथ जनता को संगठित करके क़ानूनों को कमज़ोर करने की कोशिशों को नाकाम किया जाए।
मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2018
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